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झारखंड के इन व्यंजनों का स्वाद है लाजवाब, एक बार चखेंगे तो बार-बार करेगा खाने का मन - ranchi

अगर आप झारखंडी आदिवासी खानपान के शौकीन है तो आपकी ये इच्छा पूरी हो सकती है. इसके लिए आपको आदिवासी उड़ान केंद्र से संपर्क करना होगा. ये केंद्र झारखंडी खान-पान को बढ़ावा देने के अलावा बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा प्रदान करती है. साथ ही कुछ जगहों पर स्टॉल भी लगाती है.

देखिए स्पेशल स्टोरी.
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Published : Feb 4, 2019, 5:30 PM IST

रांची: अगर आप झारखंडी आदिवासी खानपान के शौकीन है तो आपकी ये इच्छा पूरी हो सकती है. इसके लिए आपको आदिवासी उड़ान केंद्र से संपर्क करना होगा. ये केंद्र झारखंडी खान-पान को बढ़ावा देने के अलावा बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा प्रदान करती है. साथ ही कुछ जगहों पर स्टॉल भी लगाती है.

आदिवासी खानपान व्यंजनों का स्टॉल बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के तीन दिवसीय कृषि मेला में लगाया गया. जो इस मेले में मुख्य आकर्षण का केंद्र रहा. साथ ही मड़ुआ की रोटी, मड़ुआ की रोल, मड़ुआ, छिलका रोटी, मड़ुआ लड्डू, और विभिन्न प्रकार के साग को लोगों ने पसंद किया.

बता दें कि झारखंडी खानपान धीरे-धीरे झारखंड से लुप्त होते जा रहा है. लोग मॉडर्न कल्चर को अपनाते हुए तरह-तरह के खानों का अब स्वाद ले रहे हैं. लेकिन इस संस्था के द्वारा झारखंडी आदिवासी परंपरा को बनाए रखने के उद्देश्य से मिनी रेस्ट्रो खोला गया है. ताकि लोग झारखंडी रेसिपी और व्यंजनों का स्वाद चख सकें.

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वहीं, लोगों द्वारा झारखंडी खानपान की बहुत तारीफ की गई. लोगों ने कहा कि इस तरह के पकवान अब नहीं मिलते. उन्होंने ये भी कहा कि झारखंडी खानपान में कई रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता होती है. साग का सूप औषधि का काम करता है. ऐसे में आदिवासी उड़ान मंच के द्वारा यह प्रयास काफी सराहनीय है.

रांची: अगर आप झारखंडी आदिवासी खानपान के शौकीन है तो आपकी ये इच्छा पूरी हो सकती है. इसके लिए आपको आदिवासी उड़ान केंद्र से संपर्क करना होगा. ये केंद्र झारखंडी खान-पान को बढ़ावा देने के अलावा बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा प्रदान करती है. साथ ही कुछ जगहों पर स्टॉल भी लगाती है.

आदिवासी खानपान व्यंजनों का स्टॉल बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के तीन दिवसीय कृषि मेला में लगाया गया. जो इस मेले में मुख्य आकर्षण का केंद्र रहा. साथ ही मड़ुआ की रोटी, मड़ुआ की रोल, मड़ुआ, छिलका रोटी, मड़ुआ लड्डू, और विभिन्न प्रकार के साग को लोगों ने पसंद किया.

बता दें कि झारखंडी खानपान धीरे-धीरे झारखंड से लुप्त होते जा रहा है. लोग मॉडर्न कल्चर को अपनाते हुए तरह-तरह के खानों का अब स्वाद ले रहे हैं. लेकिन इस संस्था के द्वारा झारखंडी आदिवासी परंपरा को बनाए रखने के उद्देश्य से मिनी रेस्ट्रो खोला गया है. ताकि लोग झारखंडी रेसिपी और व्यंजनों का स्वाद चख सकें.

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वहीं, लोगों द्वारा झारखंडी खानपान की बहुत तारीफ की गई. लोगों ने कहा कि इस तरह के पकवान अब नहीं मिलते. उन्होंने ये भी कहा कि झारखंडी खानपान में कई रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता होती है. साग का सूप औषधि का काम करता है. ऐसे में आदिवासी उड़ान मंच के द्वारा यह प्रयास काफी सराहनीय है.

Intro:अगर आप झारखंडी आदिवासी खानपान के शौकीन है तो घबराएं नहीं आपको यह आदिवासी खानपान का शौक पूरा हो सकता है लेकिन इसके लिए आपको आदिवासी उड़ान केंद्र से संपर्क करना होगा जी हां आदिवासी उड़ान केंद्र एक ऐसी संस्था है जो दूरदराज के बच्चों को निशुल्क शिक्षा प्रदान करती है। वैसे बच्चे जो पैसे के अभाव में पढ़ नहीं पाते हैं इस संस्था के द्वारा उन बच्चों को निशुल्क पढ़ाया जाता है पढ़ाई के साथ साथ या झारखंडी खान-पान को भी बढ़ावा दे रहे हैं इसके साथ ही बचे वक्त में आदिवासी खानपान व्यंजनों का भी स्टोल जगह जगह पर लगाती है। इस मिनी रिस्ट्रो में आपको झारखंड के पारंपरिक आदिवासी व्यंजनों का स्वाद मिलेगा जो पूरी तरह से पोषक तत्वों से भरपूर होता है।


Body:आदिवासी खानपान व्यंजनों का स्टॉल बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के तीन दिवसीय कृषि मेला में लगाया गया है जो कि इस मेले में मुख्य आकर्षण का केंद्र रहा है, साथी मडुआ का रोटीमडुआ का रोल मडुआ,छिलका रोटी ,मडुआ लड्डू, और और विभिन्न प्रकार के साग से बने आकर्षण का केंद्र रहा। या झारखंडी खानपान धीरे धीरे झारखंड से लुप्त होते चला जा रहा है लोग मॉडर्न कल्चरल को अपनाते हुए तरह-तरह के खानों का अब स्वाद ले रहे हैं लेकिन इस संस्था के द्वारा झारखंडी आदिवासी परंपरा को बनाए रखने के उद्देश्य से इस तरह का छोटा मिनी रिस्ट्रो का आयोजन किया जाता है ताकि लोगों को झारखंडी रेसिपी और व्यंजनों का स्वाद चखा सके।
लोगों के द्वारा झारखंडी खानपान का बहुत ही ज्यादा तारीफ की गई है जिसके कारण इन छात्र-छात्राओं में भी काफी उत्साह भर गई है इन लोगों की मानें तो इससे भी बड़ा रिस्ट्रो का आयोजन किया जाएगा ताकि झारखंडी खान-पान का लोगों को स्वास्थ्य खाया जा सके


Conclusion:झारखंडी खान-पान को लोगों ने काफी सराहना किया है उनकी मानें तो एक जमाना हो गया था कि मरुआ का रोटी और मरुआ से बने चीजों का सेवन किए हुए इसको खाते के बाद ही अपने दादी की याद आ गई उनके जमाने में इस तरह का पकवान बनाया जाते थे लेकिन अब धीरे-धीरे या लुप्त होता चला गया है इस तरह का छोटे-छोटे स्टोल झारखंडी खानपान का मजा मिलता है तो मन बाग बाग हो जाता है पहले त्यौहार के दिनों में इस तरह के पकवान बनाया जाते थे लेकिन अब वह भी परंपरा खत्म हो गई है

झारखंडी खानपान में भरपूर मात्रा में पोस्टिक आहार होते हैं इसके साथ ही कई रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता भी होती है दुर्लभ साग का सूप औषधि का काम करता है पुराने जमाने के लोग इंसानों का प्रयोग कर कई रोगों से निजात कर लेते थे लेकिन यह खानपान अब धीरे-धीरे लुप्त सा होता गया है ऐसे में इस आदिवासी उड़ान मंच के द्वारा यह प्रयास काफी सराहनीय है
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