रांची: 2014 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी मैजिक के बावजूद झामुमो ने लोकसभा की 2 सीटों पर कब्जा जमाया और कुछ महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में 19 सीटों पर कब्जा कर झारखंड में अपनी पैठ का लोहा मनवाया.
वहीं, 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस शून्य पर आउट हो गई थी इसके बावजूद 2019 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के तहत झामुमो ने सिर्फ 4 सीटों पर ही संतोष कर लिया और कांग्रेस को 7 सीटें दे दी. इसको लेकर झामुमो में भीतरखाने कई तरह की चर्चाएं हो रही हैं. चर्चा इस बात की है कि कहीं झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करने में जल्दबाजी तो नहीं दिखा दी. हेमंत सोरेन पर सवाल उठने के पीछे सबसे बड़ी वजह है चाईबासा यानी सिंहभूम लोकसभा सीट.
गीता कोड़ा के उम्मीदवार बनने से पार्टी में नाराजगी
दरअसल, सिंहभूम लोकसभा क्षेत्र के अधीन आने वाली 6 विधानसभा सीटों में सरायकेला, चाईबासा, मझगांव, मनोहरपुर और चक्रधरपुर सीट पर झामुमो का कब्जा है. लिहाजा जगन्नाथपुर विधानसभा सीट से बतौर निर्दलीय जीतने वाली गीता कोड़ा के कांग्रेस प्रत्याशी बनने पर झामुमो के भीतर जबरदस्त नाराजगी है. चर्चा इस बात की भी है कि सिंहभूम में झामुमो की जबरदस्त पैठ के बावजूद हेमंत सोरेन ने कांग्रेस के साथ इस सीट को लेकर क्यों कंप्रोमाइज किया. खबर यह भी है कि पिछले दिनों सिंहभूम से कांग्रेस प्रत्याशी गीता कोड़ा चक्रधरपुर से झामुमो विधायक शशि भूषण सामद से मिलने उनके घर गई, तो उन्होंने दरवाजा बंद कर लिया.
आगामी विधानसभा चुनाव में झामुमो को होगा नुकसान!
बाद में हेमंत सोरेन के कहने पर पार्टी के सुब्रतो भट्टाचार्य बीच में आए और पार्टी के 5 विधायकों को मनाकर गीता कोड़ा के पक्ष में वोट मांगने का टॉस्क दिया. लेकिन हेमंत सोरेन की इन तमाम कवायद के बावजूद विधायकों को इस बात की चिंता सता रही है कि कहीं उनके कार्यकर्ता गीता कोड़ा के करीब ना चले जाएं. इसकी वजह से आगामी विधानसभा चुनाव में झामुमो को नुकसान उठाना पड़ सकता है.
गीता कोड़ा पर नहीं करना चाहिए भरोसा
हालांकि जब कांग्रेस, झामुमो, जेवीएम और राजद के बीच लोकसभा चुनाव को लेकर महागठबंधन बना था, तब उस समय कहा गया कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बड़े भाई की भूमिका में होगी. इसके साथ ही आगामी विधानसभा चुनाव में झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन बड़े भाई की भूमिका निभाएंगे, लेकिन सिंहभूम क्षेत्र के झामुमो विधायकों के बीच इस बात की चर्चा है कि जब सिंहभूम में पार्टी बेहद मजबूत थी फिर उस सीट को कांग्रेस को क्यों दिया गया. चर्चा इस बात की भी है कि बतौर निर्दलीय विधायक रहते हुए गीता कोड़ा ने कई मोर्चों पर रघुवर सरकार को समर्थन दिया. इसलिए उन पर भरोसा नहीं किया जाना चाहिए.
हेमंत सोरेन बिना सोचे समझे ले रहे फैसले
खास बात है कि सिंहभूम लोकसभा क्षेत्र के झामुमो विधायक सीधे तौर पर हेमंत सोरेन पर हमला नहीं बोल रहे हैं, लेकिन उन्हें इस बात की चिंता सता रही है कि अगर गीता कोड़ा जीत गई तो आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस इस क्षेत्र की अन्य विधानसभा सीटों की मांग कर सकती है. ऐसा होने पर झामुमो के कई विधायकों का टिकट कट सकता है. गिरिडीह से झामुमो के एक पुराने नेता ने भी कई जगह इस बात की चर्चा की है कि हेमंत सोरेन बिना सोचे समझे अपने स्तर पर फैसला ले रहे हैं. इसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ेगा.
मधु कोड़ पर लगे हैं कई गंभीर आरोप
सिंहभूम में इस बात की भी चर्चा है कि 2009 के लोकसभा चुनाव को वर्तमान कांग्रेस प्रत्याशी गीता कोड़ा के पति और झारखंड के बतौर निर्दलीय मुख्यमंत्री बनने वाले मधु कोड़ा ने जीत दर्ज की थी. जबकि मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए मधु कोड़ा पर कई गंभीर आरोप लगे थे. इसलिए झामुमो के विधायकों को जनता के बीच गीता कोड़ा के पक्ष में वोट मांगने में भी दिक्कत हो रही है.
राजद ने तोड़ी महागठबंधन की परंपरा
राजनीति के जानकार बताते हैं कि यह कहना जल्दबाजी होगी की विधानसभा चुनाव के वक्त भी महागठबंधन का यही स्वरूप होगा. क्योंकि अगर राजद, पलामू सीट नहीं निकाल पाती है तो विधानसभा चुनाव में सीट शेयरिंग पर इसका प्रभाव पड़ेगा और राजद अपनी राह पकड़ सकता है. वैसे भी राजद चतरा सीट को लेकर महागठबंधन की परंपरा पहले ही तोड़ चुका है. कमोबेश यही स्थिति बाबूलाल मरांडी और प्रदीप यादव की हार जीत पर भी निर्भर करेगी. जाहिर है इस शतरंज की बिसात कांग्रेस ने तैयार की है और लोकसभा चुनाव में अगर वह राजनीतिक जमीन बना लेती है तो विधानसभा चुनाव में महागठबंधन का स्वरूप कुछ और दिख सकता है.