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संथाल में बीजेपी ने किया जिन ST उम्मीदवारों पर भरोसा, वह कभी थे JMM के क्षत्रप - झारखंड समाचार

लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी और महागठबंधन जिन पर भरोसा जता रही है वह कभी दूसरी पार्टी के कैडर हुआ करते थे. लेकिन इस चुनाव में किसी और पार्टी का झंडा बुलंद कर रहे हैं.

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Published : May 15, 2019, 3:20 PM IST

रांची: प्रदेश में सत्तारूढ़ बीजेपी ने संथाल परगना में किला फतह करने की मकसद से जिन दो अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों के उम्मीदवारों पर दांव लगाया है. वह कभी झारखंड मुक्ति मोर्चा के हार्डकोर कैडर हुआ करते थे. दुमका संसदीय सीट पर वैसे तो बीजेपी के कैंडिडेट सुनील सोरेन तीसरी बार शिबू सोरेन के खिलाफ खड़े हो रहे हैं. लेकिन वह 2004 तक झारखंड मुक्ति मोर्चा का झंडा ढोया करते थे.

सुनील शिबू सोरेन के बड़े बेटे और जामा से विधायक रहे दुर्गा सोरेन के दाहिना हाथ माने जाते थे. सन 2000 में दुर्गा को दुमका के जामा असेंबली एरिया से विधानसभा तक पहुंचाने में सुनील सोरेन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. बाद में 2004 में हुए लोकसभा चुनावों के दौरान उनका दुर्गा सोरेन से मतभेद हो गया. इसके बाद उन्होंने बीजेपी ज्वाइन कर ली और 2005 में जामा विधानसभा से दुर्गा सोरेन के खिलाफ खड़े हुए और जीत हासिल की.हालांकि यह जीत 6000 से अधिक वोटों के अंतर से हुई थी लेकिन संथाल परगना में दिशोम गुरु शिबू सोरेन के शिष्य होने के नाते उनके लिए यह बड़ी उपलब्धि मानी गयी. झामुमो सुप्रीमो के बेटे को हराने के बाद बीजेपी ने सुनील सोरेन को 'गुरुजी' के खिलाफ खड़ा किया. लगातार 2009 और 2014 में दुमका संसदीय सीट से सुनील सोरेन बीजेपी के अधिकृत उम्मीदवार बने.

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हालांकि दोनों चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा लेकिन तीसरी बार भी पार्टी ने उन पर भरोसा जताया है. राजमहल से हेमलाल भी रहे हैं सोरेन के काफी करीबी वहीं संथाल परगना की दूसरी एसटी सीट पर बीजेपी के उम्मीदवार हेमलाल मुर्मू झारखंड मुक्ति मोर्चा के पुराने सिपाही रहे हैं.हेमलाल 1990 में बरहेट विधानसभा से झामुमो के विधायक बने. उसके बाद 1995 और 2000 में भी विधायक रहे. इतना ही नहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर 2004 में वो राजमहल से सांसद बने. हालांकि 2009 में वह चुनाव हार गए और 2014 में उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा से दामन छुड़ा लिया. झामुमो के पुराने कैडर रहे हेमलाल का जहां झामुमो के मौजूदा हेमंत सोरेन के नेतृत्व को लेकर मतभेद उभरा और 2014 में वहीं बीजेपी के अधिकृत उम्मीदवार होकर राजमहल से चुनाव लड़े. लेकिन उन्हें झारखंड मुक्ति मोर्चा के कैंडिडेट विजय हांसदा से हार का सामना करना पड़ा.

इतना ही नहीं बीजेपी ने उन्हें 2014 में बरहेट विधानसभा से मौका दिया लेकिन विधानसभा चुनाव में उन्हें हेमंत सोरेन से हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद भी बीजेपी ने उन्हें लिट्टीपाड़ा विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में अपना उम्मीदवार बनाया. वहां भी मुर्मू को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी, लगातार हार का मुंह देख रहे मुर्मू पर बीजेपी ने फिर से भरोसा जताया है और राजमहल में झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए वर्तमान सांसद के खिलाफ उन्हें मैदान में उतारा है. गोड्डा में झाविमो उम्मीदवार प्रदीप यादव भी रहे हैं बीजेपी में वहीं गोड्डा सीट में कभी बीजेपी के पुराने सिपाही रहे प्रदीप यादव फिलहाल महागठबंधन के उम्मीदवार हैं. बाबूलाल मरांडी के करीबी प्रदीप यादव ने बीजेपी छोड़कर झारखंड विकास मोर्चा का दाम 2006 के बाद थाम लिया.

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जबकि पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार में वह राज्य के शिक्षा मंत्री भी रह चुके हैं, फिलहाल संथाल परगना में प्रदेश की पूरी राजनीतिक गतिविधि शिफ्ट कर गई है. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी कि चुनावी सभाएं हुई है. बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी संथाल परगना के दो अलग इलाकों में चुनावी सभाएं कर रहे हैं. वहीं विपक्ष में भी एकजुट होकर सत्तारूढ़ बीजेपी के खिलाफ कड़ा टक्कर देने के मूड में हैं. संथाल परगना की तीनों सीटों के लिए 19 मई को मतदान होना है.

रांची: प्रदेश में सत्तारूढ़ बीजेपी ने संथाल परगना में किला फतह करने की मकसद से जिन दो अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों के उम्मीदवारों पर दांव लगाया है. वह कभी झारखंड मुक्ति मोर्चा के हार्डकोर कैडर हुआ करते थे. दुमका संसदीय सीट पर वैसे तो बीजेपी के कैंडिडेट सुनील सोरेन तीसरी बार शिबू सोरेन के खिलाफ खड़े हो रहे हैं. लेकिन वह 2004 तक झारखंड मुक्ति मोर्चा का झंडा ढोया करते थे.

सुनील शिबू सोरेन के बड़े बेटे और जामा से विधायक रहे दुर्गा सोरेन के दाहिना हाथ माने जाते थे. सन 2000 में दुर्गा को दुमका के जामा असेंबली एरिया से विधानसभा तक पहुंचाने में सुनील सोरेन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. बाद में 2004 में हुए लोकसभा चुनावों के दौरान उनका दुर्गा सोरेन से मतभेद हो गया. इसके बाद उन्होंने बीजेपी ज्वाइन कर ली और 2005 में जामा विधानसभा से दुर्गा सोरेन के खिलाफ खड़े हुए और जीत हासिल की.हालांकि यह जीत 6000 से अधिक वोटों के अंतर से हुई थी लेकिन संथाल परगना में दिशोम गुरु शिबू सोरेन के शिष्य होने के नाते उनके लिए यह बड़ी उपलब्धि मानी गयी. झामुमो सुप्रीमो के बेटे को हराने के बाद बीजेपी ने सुनील सोरेन को 'गुरुजी' के खिलाफ खड़ा किया. लगातार 2009 और 2014 में दुमका संसदीय सीट से सुनील सोरेन बीजेपी के अधिकृत उम्मीदवार बने.

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हालांकि दोनों चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा लेकिन तीसरी बार भी पार्टी ने उन पर भरोसा जताया है. राजमहल से हेमलाल भी रहे हैं सोरेन के काफी करीबी वहीं संथाल परगना की दूसरी एसटी सीट पर बीजेपी के उम्मीदवार हेमलाल मुर्मू झारखंड मुक्ति मोर्चा के पुराने सिपाही रहे हैं.हेमलाल 1990 में बरहेट विधानसभा से झामुमो के विधायक बने. उसके बाद 1995 और 2000 में भी विधायक रहे. इतना ही नहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर 2004 में वो राजमहल से सांसद बने. हालांकि 2009 में वह चुनाव हार गए और 2014 में उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा से दामन छुड़ा लिया. झामुमो के पुराने कैडर रहे हेमलाल का जहां झामुमो के मौजूदा हेमंत सोरेन के नेतृत्व को लेकर मतभेद उभरा और 2014 में वहीं बीजेपी के अधिकृत उम्मीदवार होकर राजमहल से चुनाव लड़े. लेकिन उन्हें झारखंड मुक्ति मोर्चा के कैंडिडेट विजय हांसदा से हार का सामना करना पड़ा.

इतना ही नहीं बीजेपी ने उन्हें 2014 में बरहेट विधानसभा से मौका दिया लेकिन विधानसभा चुनाव में उन्हें हेमंत सोरेन से हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद भी बीजेपी ने उन्हें लिट्टीपाड़ा विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में अपना उम्मीदवार बनाया. वहां भी मुर्मू को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी, लगातार हार का मुंह देख रहे मुर्मू पर बीजेपी ने फिर से भरोसा जताया है और राजमहल में झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए वर्तमान सांसद के खिलाफ उन्हें मैदान में उतारा है. गोड्डा में झाविमो उम्मीदवार प्रदीप यादव भी रहे हैं बीजेपी में वहीं गोड्डा सीट में कभी बीजेपी के पुराने सिपाही रहे प्रदीप यादव फिलहाल महागठबंधन के उम्मीदवार हैं. बाबूलाल मरांडी के करीबी प्रदीप यादव ने बीजेपी छोड़कर झारखंड विकास मोर्चा का दाम 2006 के बाद थाम लिया.

ये भी पढ़ें- शिबू सोरेन के खिलाफ सीएम के आरोपों पर JMM की चुनौती, कहा- साबित करें आरोप​​​​​​​

जबकि पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार में वह राज्य के शिक्षा मंत्री भी रह चुके हैं, फिलहाल संथाल परगना में प्रदेश की पूरी राजनीतिक गतिविधि शिफ्ट कर गई है. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी कि चुनावी सभाएं हुई है. बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी संथाल परगना के दो अलग इलाकों में चुनावी सभाएं कर रहे हैं. वहीं विपक्ष में भी एकजुट होकर सत्तारूढ़ बीजेपी के खिलाफ कड़ा टक्कर देने के मूड में हैं. संथाल परगना की तीनों सीटों के लिए 19 मई को मतदान होना है.

Intro:रांची। प्रदेश में सत्तारूढ़ बीजेपी ने संथाल परगना में किला फतह करने के मकसद से जिन दो अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों के उम्मीदवारों पर दांव लगाया है। वह कभी झारखंड मुक्ति मोर्चा के हार्डकोर कैडर हुआ करते थे। दुमका संसदीय सीट पर वैसे तो बीजेपी के कैंडिडेट सुनील सोरेन तीसरी बार शिबू सोरेन के खिलाफ खड़े हो रहे हैं लेकिन वह 2004 तक झारखंड मुक्ति मोर्चा का झंडा ढोया करते थे । सुनील, शिबू सोरेन के बड़े बेटे और जामा से विधायक रहे दुर्गा सोरेन के दाहिना हाथ माने जाते थे। सन 2000 में दुर्गा को दुमका के जामा असेंबली एरिया से विधानसभा तक पहुंचाने में सुनील सोरेन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बाद में 2004 में हुए लोकसभा चुनावों के दौरान उनका दुर्गा से मतभेद हो गया।


Body:इसके बाद उन्होंने बीजेपी ज्वाइन कर ली और 2005 में जामा विधानसभा से दुर्गा सोरेन के खिलाफ खड़े हुए और जीत हासिल की। हालांकि यह जीत 6000 से अधिक वोटों के अंतर से हुई थी लेकिन संथाल परगना में दिशोम गुरु शिबू सोरेन के शिष्य होने के नाते उनके लिए यह बड़ी उपलब्धि मानी गयी। झामुमो सुप्रीमो के बेटे को हराने के बाद बीजेपी ने सुनील सोरेन को 'गुरुजी' के खिलाफ खड़ा किया। लगातार 2009 और 2014 में दुमका संसदीय सीट से सुनील सोरेन बीजेपी के अधिकृत उम्मीदवार बने। हालांकि दोनों चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा लेकिन तीसरी बार भी पार्टी ने उन पर भरोसा जताया है। राजमहल से हेमलाल भी रहे हैं सोरेन के काफी करीबी वहीं संथाल परगना की दूसरी एसटी सीट पर बीजेपी के उम्मीदवार हेमलाल मुर्मू झारखंड मुक्ति मोर्चा के पुराने सिपाही रहे हैं। हेमलाल 1990 में बरहेट विधानसभा से झामुमो के विधायक बने। उसके बाद 1995 और 2000 में भी विधायक रहे। इतना ही नहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर 2004 में वो राजमहल से सांसद बने। हालांकि 2009 में वह चुनाव हार गए और 2014 में उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा से दामन छुड़ा लिया। झामुमो के पुराने कैडर रहे हेमलाल का जहां झामुमो के मौजूदा हेमंत सोरेन के नेतृत्व को लेकर मतभेद उभरा और 2014 में वहीं बीजेपी के अधिकृत उम्मीदवार होकर राजमहल से चुनाव लड़े। लेकिन उन्हें झारखंड मुक्ति मोर्चा के कैंडिडेट विजय हांसदा से हार का सामना करना पड़ा।


Conclusion:इतना ही नहीं बीजेपी ने उन्हें 2014 में बरहेट विधानसभा से मौका दिया लेकिन विधानसभा चुनाव में उन्हें हेमंत सोरेन से हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद भी बीजेपी ने उन्हें लिट्टीपाड़ा विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में अपना उम्मीदवार बनाया।वहां भी मुर्मू को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी। लगातार हार का मुंह देख रहे मुर्मू पर बीजेपी ने फिर से भरोसा जताया है और राजमहल में झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए वर्तमान सांसद के खिलाफ उन्हें मैदान में उतारा है। गोड्डा में झाविमो उम्मीदवार प्रदीप यादव भी रहे हैं बीजेपी में वहीं गोड्डा सीट में कभी बीजेपी के पुराने सिपाही रहे प्रदीप यादव फिलहाल महागठबंधन के उम्मीदवार हैं। बाबूलाल मरांडी के करीबी प्रदीप यादव ने बीजेपी छोड़कर झारखंड विकास मोर्चा का दाम 2006 के बाद थाम लिया जबकि पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार में वह राज्य के शिक्षा मंत्री भी रह चुके हैं। फिलहाल संथाल परगना में प्रदेश की पूरी राजनीतिक गतिविधि शिफ्ट कर गई है। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी कि चुनावी सभाएं हुई है। बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी संथाल परगना के दो अलग इलाकों में चुनावी सभाएं कर रहे हैं। वहीं विपक्ष में भी एकजुट होकर सत्तारूढ़ बीजेपी के खिलाफ कड़ा टक्कर देने के मूड में है। संथाल परगना की तीनों सीटों के लिए 19 मई को मतदान होना है।
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