रांची: लोकसभा चुनावों में संथाल परगना में दिशोम गुरु और झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुप्रीमो शिबू सोरेन को हराकर बीजेपी अब विधानसभा चुनाव में अपना परचम लहराने के लिए कमर कस चुकी है. अपने इस लक्ष्य को भेदने के लिए पार्टी ने एक तरफ स्ट्रेटजी बनानी शुरू कर दी है. वहीं दूसरी तरफ कथित तौर पर 'भितरघात' करने वाले 'विभीषणों' पर भी नजर रखी जा रही है.
बीजेपी के उच्च पदस्थ सूत्रों की माने तो संथाल से आने वाले दो मंत्रियों पर संगठन और सरकार दोनों की नजर हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में भले ही इन दो मंत्रियों के प्रदर्शन ने बीजेपी को उनके विधानसभा इलाके में 'लीड' दिलवाई हो लेकिन अन्य इलाकों में उनकी भूमिका को लेकर न तो सरकार और न ही संगठन संतुष्ट माने जा रहे हैं.
ये भी पढें- प्रदीप यादव को लेकर BJP सांसदों के बीच तनातनी, सुनील सोरेन ने कहा- पार्टी नेतृत्व करेगी अंतिम फैसला
'मेहनत और कल्याण' से जुड़े उन दोनों मंत्रियों के ऊपर लोकसभा चुनाव के दौरान एक अनुसूचित जनजाति सीट और एक सामान्य सीट में उन्हें बाकायदा टास्क दिया गया. बावजूद उसके एक एसटी-सीट पर बीजेपी को छह विधानसभा इलाके में से 3 पर बढ़त मिली. जबकि अन्य तीन विधानसभा इलाकों में प्रमुख विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा बढ़त बनाए रखा. हालांकि बीजेपी ने वहां जीत दर्ज कराई. वहीं, सामान्य सीट गोड्डा पर बीजेपी सभी छह विधानसभाओं पर लीड लेकर जीत का परचम लहराने में कामयाब हुई.
ये भी पढ़ें- PNB डकैती कांड का खुलासा, पुलिस के हत्थे चढ़ा 1 अपराधी
पार्टी सूत्रों की माने तो लोकसभा चुनाव के बाद बाकायदा संथाल परगना इलाके से पार्टी कैडर और नेताओं की एक लिस्ट बनाकर न केवल राज्य मुख्यालय भेजी गई है. बल्कि उस लिस्ट के कुछ नाम बाकायदा बीजेपी के दिल्ली दरबार तक पहुंचे हैं. जिनके ऊपर कथित रूप से पार्टी क उम्मीदवारों के साथ 'असहयोग' करने का आरोप भी लगा है. हालांकि इस मामले पर बीजेपी का कोई भी नेता खुलकर बोलने को तैयार नहीं है लेकिन अंदर खाने इस विषय पर गहन चर्चा चल रही है.
पार्टी सूत्रों की माने तो लोकसभा चुनावों के परफॉर्मेंस के आधार पर विधानसभा चुनाव में टिकट का बंटवारा होना है. अंदर खाने से मिली जानकारी के अनुसार जिस तरह लोकसभा चुनाव में बड़ी संख्या में सीटिंग सांसदों के टिकट काट दिए गए थे. उसी फार्मूले पर झारखंड में विधानसभा चुनावों में सीटिंग विधायकों के टिकट को लेकर संगठन की 'कैंची' चल सकती है. उसका आधार लोकसभा चुनाव में उन विधायकों के परफॉर्मेंस और पार्टी के प्रति उनके रवैए को माना जा रहा है.