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कभी भटक कर चल पड़े थे नक्सली बनने, आज गुरू बन दे रहे हैं ज्ञान, जानिए परिवर्तन की अनोखी कहानी

बोकारो के परशुराम पहले रास्ता भटक गए थे. पढ़े-लिखे न होने के कारण नक्सली बनने चले गए. जिसके बाद उन्हें एहसास हुआ कि ये रास्ता गलत है. फिर वे मुख्यधारा से जुड़े. उनका हौसला उड़ान भर रहा था, समाज के लिए कुछ करना चाहते थे. जिसके बाद उन्होंने स्कूल खोलने का निर्णय लिया. हालांकि अब भी उनकी मुश्किलें कम नहीं हुई हैं.

झोपड़ी में पढ़ते बच्चे
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Published : Sep 6, 2019, 9:17 PM IST

Updated : Sep 6, 2019, 9:56 PM IST

बोकारोः कभी वह डर का पर्याय था, कभी उससे लोग डरते थे, नफरत करते थे. वजह वह एक नक्सली था. लेकिन आज कहानी बदल गई है. वही नक्सली आज शिक्षा की अलख जगा रहा है. गुरु बनकर ज्ञान बांट रहा है. ये कहानी है मुख्यधारा से भटक कर नक्सली बने परशुराम की है, जो अब शिक्षक बन चुका है.

देखें पूरी खबर

परशुराम के अनुसार 24 साल पहले जब उसका नक्सलियों से मोहभंग हुआ, तब उसे यह समझ में आया कि वह जिस रास्ते पर है, वह सही नहीं है. जिसके बाद उसने शिक्षा बांटने का काम चुना. शिक्षा ही क्यों, क्योंकि उसे अहसास हुआ कि शिक्षित नहीं होने की वजह से ही उसने नक्सल बनना स्वीकार किया था. पिछले 24 सालों से परशुराम झोपड़ी में गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रहे हैं. शिक्षक परशुराम के हौसले आज भी बुलंद है.

ये भी पढ़ें- दुमका में 2 शव मिलने से सनसनी, हत्या और आत्महत्या की गुत्थी में उलझी पुलिस

समाज के सहयोग से चल रहा स्कूल
बता दें कि अतिक्रमण हटाओ अभियान में इन गरीब बच्चों का विद्यालय भी हटा दिया गया. जिसके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. टेंट के छाए में शिक्षा का अलख जगाना जारी रखा. पिछले 24 सालों में हजारों बच्चों में अक्षरज्योत जगाने वाले परशुराम को समाज का सहयोग मिलता रहता है. इसी बल पर वो गरीब बच्चों में निशुल्क शिक्षा बांट रहे हैं. वर्तमान में करीब 100 बच्चे यहां शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. गरीब बच्चों में शिक्षा की ज्योति जगाने वाले परशुराम को अगर साथ नहीं मिला तो जिला प्रशासन का.

ये भी पढ़ें- मंत्री नीरा यादव ने गिनाई सरकार की उपलब्धियां, कहा- देवघर में जल्द खुलेगा संस्कृत विश्वविद्यालय

आज भी है हौसला बुलंद
24 साल पहले समाज के मुख्यधारा से भटके नक्सलवादियों के साथ जिन्दगी गुजारने वाले परशुराम जब समाज के लिए कुछ करने की ठानी, तो नक्सलवाद का रास्ता छोड़ गरीब बच्चों में शिक्षा का अलख जगाने निकल पड़े. उनकी इस मुहीम में परेशानियां तो बहुत आई, लेकिन उन्होंने अपने इस मुहीम को जारी रखा. आज उनके सामने एक विकेट समस्या है फिर भी उनका हौसला बुलंद है. उनका साफ कहना है कि कानूनी लड़ाई लड़कर भी इन गरीब बच्चों को शिक्षा का अधिकार दिलाकर रहेंगे.

बोकारोः कभी वह डर का पर्याय था, कभी उससे लोग डरते थे, नफरत करते थे. वजह वह एक नक्सली था. लेकिन आज कहानी बदल गई है. वही नक्सली आज शिक्षा की अलख जगा रहा है. गुरु बनकर ज्ञान बांट रहा है. ये कहानी है मुख्यधारा से भटक कर नक्सली बने परशुराम की है, जो अब शिक्षक बन चुका है.

देखें पूरी खबर

परशुराम के अनुसार 24 साल पहले जब उसका नक्सलियों से मोहभंग हुआ, तब उसे यह समझ में आया कि वह जिस रास्ते पर है, वह सही नहीं है. जिसके बाद उसने शिक्षा बांटने का काम चुना. शिक्षा ही क्यों, क्योंकि उसे अहसास हुआ कि शिक्षित नहीं होने की वजह से ही उसने नक्सल बनना स्वीकार किया था. पिछले 24 सालों से परशुराम झोपड़ी में गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रहे हैं. शिक्षक परशुराम के हौसले आज भी बुलंद है.

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समाज के सहयोग से चल रहा स्कूल
बता दें कि अतिक्रमण हटाओ अभियान में इन गरीब बच्चों का विद्यालय भी हटा दिया गया. जिसके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. टेंट के छाए में शिक्षा का अलख जगाना जारी रखा. पिछले 24 सालों में हजारों बच्चों में अक्षरज्योत जगाने वाले परशुराम को समाज का सहयोग मिलता रहता है. इसी बल पर वो गरीब बच्चों में निशुल्क शिक्षा बांट रहे हैं. वर्तमान में करीब 100 बच्चे यहां शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. गरीब बच्चों में शिक्षा की ज्योति जगाने वाले परशुराम को अगर साथ नहीं मिला तो जिला प्रशासन का.

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आज भी है हौसला बुलंद
24 साल पहले समाज के मुख्यधारा से भटके नक्सलवादियों के साथ जिन्दगी गुजारने वाले परशुराम जब समाज के लिए कुछ करने की ठानी, तो नक्सलवाद का रास्ता छोड़ गरीब बच्चों में शिक्षा का अलख जगाने निकल पड़े. उनकी इस मुहीम में परेशानियां तो बहुत आई, लेकिन उन्होंने अपने इस मुहीम को जारी रखा. आज उनके सामने एक विकेट समस्या है फिर भी उनका हौसला बुलंद है. उनका साफ कहना है कि कानूनी लड़ाई लड़कर भी इन गरीब बच्चों को शिक्षा का अधिकार दिलाकर रहेंगे.

Intro:कभी वह डर का पर्याय था। कभी वह मौत का सौदागर था। कभी उससे लोग उससे थर राते थे, डरते थे, नफरत करते थे। क्योंकि वह एक नक्सली था। आज वह शिक्षा की अलग जगाता है। गुरु बनकर ज्ञान बांटता है। गुरु बनकर अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। गुरु बनकर ज्ञान की गंगा बहता है। गुरु बनकर अपनी गलतियों से पछताते हुए दूसरों को ऐसा नहीं करने की सीख देता है। गुरु बनकर वह मार्ग दिखाता है। सन्मार्ग की ओर अच्छे कर्म की ओर। वह कलयुग का बाल्मीकि है। वह कलयुग का अंगुलिमाल है। यह कहानी है परशुराम की भूतपूर्व नक्सली परशुराम की जो अब शिक्षक हैं।

24 साल पहले जब उसका नक्सलियों से मोहभंग हुआ उसे जब यह कभी वह डर का पर्याय था। कभी वह मौत का सौदागर था। कभी उससे लोग उससे थर राते थे, डरते थे, नफरत करते थे। क्योंकि वह एक नक्सली था। आज वह शिक्षा की अलग जगाता है। गुरु बनकर ज्ञान बांटता है। गुरु बनकर अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। गुरु बनकर ज्ञान की गंगा बहता है। गुरु बनकर अपनी गलतियों से पछताते हुए दूसरों को ऐसा नहीं करने की सीख देता है। गुरु बनकर वह मार्ग दिखाता है। सन्मार्ग की ओर अच्छे कर्म की ओर। वह कलयुग का बाल्मीकि है। वह कलयुग का अंगुलिमाल है। यह कहानी है परशुराम की भूतपूर्व नक्सली परशुराम की जो अब शिक्षक हैं।

24 साल पहले जब उसका नक्सलियों से मोहभंग हुआ उसे जब यह समझ में आ गया कि वह जिस पथ पर है वह न्याय का पथ नहीं है। बल्कि अन्याय का पथ है। क्योंकि किसी को मारना न्याय नहीं हो सकता है। तब उसने शिक्षा बांटने का काम चुना। क्योंकि उसे अहसास हुआ कि शिक्षित नहीं होने ki वजह से ही वह पथभ्रष्ट हुआ था। फिर क्या निकल पड़ा एक मिशन पर। जो पिछले 24 सालों से अनबर त चल रहा है।
पिछले 24 वर्षों से परशुराम झोपड़ी में गरीब बच्चों को निषुल्क शिक्षा उपलब्ध करा रहे हैं। शिक्षक परशुराम के हौसले आज भी बुलंद है। अब अतिक्रमण हटाओ अभियान में इन गरीब बच्चों का विद्यालय धराशाही होने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नही हरी है। और टेंट के छाये में शिक्षा का अलख जगाना जारी रखा है। पिछले 24 सालों हज़ारों बच्चों में अक्षरज्योत जगाने वाले परशुराम को समाज का सहयोग मिलता रहता है। इसी बल पर वो गरीब बच्चों में निषुल्क शिक्षा प्रदान कर रहे है। वर्तमान में करीब 100 बच्चे यहाँ शिक्षा ग्रहण कर रहे है। गरीब बच्चों में शिक्षा की ज्योति जगाने वाले परशुराम को अगर साथ नही मिला तो ज़िला प्रशासन का।
24 वर्ष पूर्व समाज के मुख्यधारा से भटक नक्सलवादियों के साथ ज़िन्दगी गुजारने वाले परशुराम जब समाज के लिए कुछ करने की ठानी तो नक्स्लवाद का रास्ता छोड़ गरीब बच्चों मे शिक्षा का अलख जगाने निकल पड़े, उनकी इस मुहीम में परेशानियां तो बहुत आई लेकिन उन्होंने बिना ऊह किये अपने इस मुहीम को जारी रखा। आज उनके सामने एक विकेट समस्या आन पड़ी है फिर भी उनका हौसला बुलंद है। उनका साफ कहना है कि कानूनी लड़ाई लड़कर भी इन गरीब बच्चों को शिक्षा का अधिकार दिलाकर रहेंगे।
बाइट- परशुराम राम, विद्यालय संचालक। में आ गया कि वह जिस पथ पर है वह न्याय का पथ नहीं है। बल्कि अन्याय का पथ है। क्योंकि किसी को मारना न्याय नहीं हो सकता है। तब उसने शिक्षा बांटने का काम चुना। क्योंकि उसे अहसास हुआ कि शिक्षित नहीं होने ki वजह से ही वह पथभ्रष्ट हुआ था। फिर क्या निकल पड़ा एक मिशन पर। जो पिछले 24 सालों से अनबर त चल रहा है।
Body:पिछले 24 वर्षों से परशुराम झोपड़ी में गरीब बच्चों को निषुल्क शिक्षा उपलब्ध करा रहे हैं। शिक्षक परशुराम के हौसले आज भी बुलंद है। अब अतिक्रमण हटाओ अभियान में इन गरीब बच्चों का विद्यालय धराशाही होने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नही हरी है। और टेंट के छाये में शिक्षा का अलख जगाना जारी रखा है। पिछले 24 सालों हज़ारों बच्चों में अक्षरज्योत जगाने वाले परशुराम को समाज का सहयोग मिलता रहता है। इसी बल पर वो गरीब बच्चों में निषुल्क शिक्षा प्रदान कर रहे है। वर्तमान में करीब 100 बच्चे यहाँ शिक्षा ग्रहण कर रहे है। गरीब बच्चों में शिक्षा की ज्योति जगाने वाले परशुराम को अगर साथ नही मिला तो ज़िला प्रशासन का।
24 वर्ष पूर्व समाज के मुख्यधारा से भटक नक्सलवादियों के साथ ज़िन्दगी गुजारने वाले परशुराम जब समाज के लिए कुछ करने की ठानी तो नक्स्लवाद का रास्ता छोड़ गरीब बच्चों मे शिक्षा का अलख जगाने निकल पड़े, उनकी इस मुहीम में परेशानियां तो बहुत आई लेकिन उन्होंने बिना ऊह किये अपने इस मुहीम को जारी रखा। आज उनके सामने एक विकेट समस्या आन पड़ी है फिर भी उनका हौसला बुलंद है। Conclusion:उनका साफ कहना है कि कानूनी लड़ाई लड़कर भी इन गरीब बच्चों को शिक्षा का अधिकार दिलाकर रहेंगे। परशुराम इस कहावत को चरितार्थ करते हैं जिसमें कहा गया है कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबियत से उछालो।
बाइट- परशुराम राम, विद्यालय संचालक।
Last Updated : Sep 6, 2019, 9:56 PM IST
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