बोकारोः कभी वह डर का पर्याय था, कभी उससे लोग डरते थे, नफरत करते थे. वजह वह एक नक्सली था. लेकिन आज कहानी बदल गई है. वही नक्सली आज शिक्षा की अलख जगा रहा है. गुरु बनकर ज्ञान बांट रहा है. ये कहानी है मुख्यधारा से भटक कर नक्सली बने परशुराम की है, जो अब शिक्षक बन चुका है.
परशुराम के अनुसार 24 साल पहले जब उसका नक्सलियों से मोहभंग हुआ, तब उसे यह समझ में आया कि वह जिस रास्ते पर है, वह सही नहीं है. जिसके बाद उसने शिक्षा बांटने का काम चुना. शिक्षा ही क्यों, क्योंकि उसे अहसास हुआ कि शिक्षित नहीं होने की वजह से ही उसने नक्सल बनना स्वीकार किया था. पिछले 24 सालों से परशुराम झोपड़ी में गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रहे हैं. शिक्षक परशुराम के हौसले आज भी बुलंद है.
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समाज के सहयोग से चल रहा स्कूल
बता दें कि अतिक्रमण हटाओ अभियान में इन गरीब बच्चों का विद्यालय भी हटा दिया गया. जिसके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. टेंट के छाए में शिक्षा का अलख जगाना जारी रखा. पिछले 24 सालों में हजारों बच्चों में अक्षरज्योत जगाने वाले परशुराम को समाज का सहयोग मिलता रहता है. इसी बल पर वो गरीब बच्चों में निशुल्क शिक्षा बांट रहे हैं. वर्तमान में करीब 100 बच्चे यहां शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. गरीब बच्चों में शिक्षा की ज्योति जगाने वाले परशुराम को अगर साथ नहीं मिला तो जिला प्रशासन का.
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आज भी है हौसला बुलंद
24 साल पहले समाज के मुख्यधारा से भटके नक्सलवादियों के साथ जिन्दगी गुजारने वाले परशुराम जब समाज के लिए कुछ करने की ठानी, तो नक्सलवाद का रास्ता छोड़ गरीब बच्चों में शिक्षा का अलख जगाने निकल पड़े. उनकी इस मुहीम में परेशानियां तो बहुत आई, लेकिन उन्होंने अपने इस मुहीम को जारी रखा. आज उनके सामने एक विकेट समस्या है फिर भी उनका हौसला बुलंद है. उनका साफ कहना है कि कानूनी लड़ाई लड़कर भी इन गरीब बच्चों को शिक्षा का अधिकार दिलाकर रहेंगे.