बोकारो: जिले के चास प्रखंड के कोलबेंदी गांव में बुधन कलश स्थापना के साथ मां दुर्गा की पूजा शुरू हो गई है. यहां की दुर्गा पूजा अपने आप में अलग है. पूरे देश में 9 दिन का नवरात्रि और दसवें दिन विसर्जन होता है. लेकिन इस मंदिर में 16 दिन पूजा और 17वें दिन विसर्जन होता है. इस साल अश्विन दो माह का होने के कारण इस मंदिर में 45 दिन पूजा होगी. परंपरा के अनुसार इस मंदिर में जिउतिया के पारण के दिन बुधन कलश स्थापना कर मां की पूजा शुरू की जाती है, जबकि सप्तमी के दिन से मूर्ति पूजा शुरू होती है.
300 सालों से चली आ रही है पूजा
बोकारो में मां की पूजा 300 सालों से चली आ रही है. इस साल आश्विन दो माह का होने के कारण मां के मंदिर में 45 दिनों तक पूजा का आयोजन किया जा रहा है. बोकारो जिला के चास प्रखंड के कोलबेंदी गांव में स्थित दुर्गा पूजा अपने आप में एक दम अलग है. जहां पूरे देश में नौ वें दिन नवरात्री और 10वें दिन विसर्जन होता है. लेकिन इस मंदिर में 16 दिन पूजा और 17वें दिन विसर्जन किया जाता है. ईटीवी भारत की टीम इस मंदिर के परंपरा को जानने कोलबेंदी गांव पहुंची. कोलबेंदी गांव में कोरोना को लेकर इस पर विशेष ध्यान रखा जा रहा है.पहले जहां लोगो की भीड़ नजर आती थी अब इस पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है.बताया जा रहा है की पंरपरा के अनुसार मंदिर में जिउतिया के पारण के दिन से ही बुधन कलश स्थापना कर मां की पूजा की शुरुआत की जाती है.
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दस देवियां हैं विराजमान
कहा जाता है यह पंरपरा वर्षो से चली आ रही है और सप्तमी के दिन ही मां की मूर्ति की पूजा शुरू होती है. इस मंदिर में कई ऐसी पुरानी परंपराएं चली आ रही है, जिसका उल्लेख यहां के निवासी और मंदिर की देखरेख कर रहे पुराने लोग बता रहे हैं. इस मंदिर में मां की मूर्ति के साथ एक ही पटरा है, जिस पर मां विराजमान रहती हैं.
कोरोना ने बदला नजारा
मंदिर में लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश, कार्तिकेय, जया, विजया, महिषासुर की मूर्ति शामिल है. गांव के लोग बड़ी संख्या में यहां पर पहुंचकर मन्नत मांगते हैं. साथ ही यहां पर मन्नतें पूरी होने पर श्रद्धालु बलि भी देने पहुंचते है. इस बार कोरोना को लेकर सब कुछ बदला हुआ नजर आ रहा है. कहा जाता है की जो मूर्तिकार मां या अन्य देवी देवता की मूर्ति को बनाने का काम कर रहे है. उनके ही पूर्वज यहां पर कार्य करते रहे हैं.
क्या है मान्यता
एक मान्यता यह भी सामने आयी की भगवान श्रीराम ने लंका विजय के लिए बुधन कलश स्थापना कर मां की पूजा की थी. उसी पंरपरा के तहत इस मंदिर में पूजा 300 सालों से की जा रही है. मंदिर के पुजारी बताते है की षष्ठी को वेलवरन और महासप्तमी से मूर्ति पूजन की जाती है. यहां भी बताया गया की करीब 300 साल पहले इस मंदिर की स्थापना जमींदार ठाकुर किशनदेव ने की थी. तब से उनके वंशज इस पंरपरा को निभा रहे हैं.