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PM मोदी के रोड शो के बाद बढ़ा रांची का पारा, बना पार्टी की प्रतिष्ठा का सवाल - चुनाव आयोग

प्रदेश की रांची पार्लियामेंट्री सीट बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है. एक तरफ जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रोड शो ने राजधानी की इस पार्लियामेंट्री सीट का राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है. यह बीजेपी की परंपरागत सीट नहीं रही है, लेकिन 1991 के बाद अगर आंकड़ों पर गौर करें तो अब तक दो बार यह सीट बीजेपी के हाथ से निकली है. 2004 और 2009 में यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार सुबोध कांत सहाय जीतकर संसद पहुंचे हैं, जबकि 1991, 1996, 1998, 1999 और 2014 में बीजेपी के रामटहल चौधरी रांची के एमपी रहे हैं.

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Published : Apr 26, 2019, 5:42 PM IST

रांची: प्रदेश की रांची पार्लियामेंट्री सीट बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है. एक तरफ जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रोड शो ने राजधानी की इस पार्लियामेंट्री सीट का राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है. वहीं, दूसरी तरफ अब बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह रांची आने वाले हैं.

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वैसे तो यह बीजेपी की परंपरागत सीट नहीं रही है, लेकिन 1991 के बाद अगर आंकड़ों पर गौर करें तो अब तक दो बार यह सीट बीजेपी के हाथ से निकली है. 2004 और 2009 में यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार सुबोध कांत सहाय जीतकर संसद पहुंचे हैं, जबकि 1991, 1996, 1998, 1999 और 2014 में बीजेपी के रामटहल चौधरी रांची के एमपी रहे हैं.


क्यों है बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल?
दरअसल, बीजेपी 1991 से लेकर अब तक रांची में रामटहल चौधरी पर आंख बंद कर भरोसा करती आई थी, लेकिन इस बार बढ़ती उम्र का हवाला देते हुए और पार्टी की नीतियों के आधार पर उनका टिकट काटकर झारखंड खादी ग्राम उद्योग बोर्ड के अध्यक्ष संजय सेठ को मैदान में उतारा गया है. वैसे तो संजय सेठ बीजेपी के पुराने कैडर है, लेकिन बीच में उनका भी कथित रूप से पार्टी से मोहभंग हो गया था. इधर, टिकट कटने से नाराज रामटहल चौधरी ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पर्चा भरा है और सामाजिक समीकरण के अनुसार कुर्मी वोटर वाले इस संसदीय इलाके में रामटहल चौधरी की मजबूत पकड़ मानी जाती है. ऐसे में पार्टी के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है.


बीजेपी ने झोंक दी है पूरी ताकत
रामटहलल चौधरी के बागी होने के बाद भी पार्टी ने एक तरफ जहां उनके प्रति नरम रुख अपना रखा है. वहीं वोट शेयर डैमेज नहीं हो इसके लिए भी पर्याप्त इंतजाम किए जा रहे हैं. एक तरफ पार्टी ने प्रचार पर पूरा ध्यान दिया है. वहीं दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रोड शो के बाद रांची संसदीय सीट की बयार बदलने के दावे किए जा रहे हैं. पार्टी नेता मानते हैं कि प्रधानमंत्री के आने से राजनीतिक हवा बदल गई है. पार्टी के प्रदेश महामंत्री दीपक प्रकाश ने कहा कि रांची संसदीय सीट पर बीजेपी मजबूत स्थिति में है और जीत का मार्जिन इस बार बढ़ेगा.


विपक्ष ने कसा तंज
वहीं, जेपीसीसी के प्रवक्ता लाल किशोर नाथ शाहदेव ने कहा कि बीजेपी का जनाधार घटता जा रहा है. यही वजह है कि उसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बुलाकर रोड शो कराना पड़ रहा है. शाहदेव ने कहा कि जब से रोड शो हुआ है और लोहरदगा में प्रधानमंत्री कार्यक्रम हुआ है. बीजेपी और बुरी स्थिति में आ गई है. उन्होंने कहा कि पहले चरण में होने वाले चुनाव में एक तरफ जहां विपक्ष मजबूत है. वही रांची सीट पर भी कांग्रेस प्रत्याशी इस बार बड़े अंतर से जीतेंगे.


क्या है भौगोलिक स्थिति?
रांची संसदीय क्षेत्र 6 विधानसभा इलाकों में बटा हुआ है. इसके अंतर्गत रांची जिले के 5 विधानसभा इलाके रांची, कांके, सिल्ली, खिजरी और हटिया के अलावे सरायकेला खरसावां जिले के ईचागढ़ विधानसभा क्षेत्र आता है. विधानसभा वार नेतृत्व की बात करें तो सिल्ली में झारखंड मुक्ति मोर्चा की विधायक है, जबकि अन्य 5 विधानसभा सीट पर बीजेपी के एमएलए हैं. 2014 में रामटहल चौधरी कांग्रेस उम्मीदवार सुबोधकांत सहाय को हराकर सांसद बने थे, जबकि 2009 में रामटहल चौधरी सुबोधकांत सहाय से हारे थे. आंकड़ों पर गौर करें तो 1991 के बाद दो बार कांग्रेस के हाथ में यह सीट गई है, जबकि 2014 और 1991 के अलावा 1996, 1998, 1999 में रामटहल चौधरी यहां से सांसद रहे हैं.

रांची: प्रदेश की रांची पार्लियामेंट्री सीट बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है. एक तरफ जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रोड शो ने राजधानी की इस पार्लियामेंट्री सीट का राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है. वहीं, दूसरी तरफ अब बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह रांची आने वाले हैं.

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वैसे तो यह बीजेपी की परंपरागत सीट नहीं रही है, लेकिन 1991 के बाद अगर आंकड़ों पर गौर करें तो अब तक दो बार यह सीट बीजेपी के हाथ से निकली है. 2004 और 2009 में यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार सुबोध कांत सहाय जीतकर संसद पहुंचे हैं, जबकि 1991, 1996, 1998, 1999 और 2014 में बीजेपी के रामटहल चौधरी रांची के एमपी रहे हैं.


क्यों है बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल?
दरअसल, बीजेपी 1991 से लेकर अब तक रांची में रामटहल चौधरी पर आंख बंद कर भरोसा करती आई थी, लेकिन इस बार बढ़ती उम्र का हवाला देते हुए और पार्टी की नीतियों के आधार पर उनका टिकट काटकर झारखंड खादी ग्राम उद्योग बोर्ड के अध्यक्ष संजय सेठ को मैदान में उतारा गया है. वैसे तो संजय सेठ बीजेपी के पुराने कैडर है, लेकिन बीच में उनका भी कथित रूप से पार्टी से मोहभंग हो गया था. इधर, टिकट कटने से नाराज रामटहल चौधरी ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पर्चा भरा है और सामाजिक समीकरण के अनुसार कुर्मी वोटर वाले इस संसदीय इलाके में रामटहल चौधरी की मजबूत पकड़ मानी जाती है. ऐसे में पार्टी के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है.


बीजेपी ने झोंक दी है पूरी ताकत
रामटहलल चौधरी के बागी होने के बाद भी पार्टी ने एक तरफ जहां उनके प्रति नरम रुख अपना रखा है. वहीं वोट शेयर डैमेज नहीं हो इसके लिए भी पर्याप्त इंतजाम किए जा रहे हैं. एक तरफ पार्टी ने प्रचार पर पूरा ध्यान दिया है. वहीं दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रोड शो के बाद रांची संसदीय सीट की बयार बदलने के दावे किए जा रहे हैं. पार्टी नेता मानते हैं कि प्रधानमंत्री के आने से राजनीतिक हवा बदल गई है. पार्टी के प्रदेश महामंत्री दीपक प्रकाश ने कहा कि रांची संसदीय सीट पर बीजेपी मजबूत स्थिति में है और जीत का मार्जिन इस बार बढ़ेगा.


विपक्ष ने कसा तंज
वहीं, जेपीसीसी के प्रवक्ता लाल किशोर नाथ शाहदेव ने कहा कि बीजेपी का जनाधार घटता जा रहा है. यही वजह है कि उसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बुलाकर रोड शो कराना पड़ रहा है. शाहदेव ने कहा कि जब से रोड शो हुआ है और लोहरदगा में प्रधानमंत्री कार्यक्रम हुआ है. बीजेपी और बुरी स्थिति में आ गई है. उन्होंने कहा कि पहले चरण में होने वाले चुनाव में एक तरफ जहां विपक्ष मजबूत है. वही रांची सीट पर भी कांग्रेस प्रत्याशी इस बार बड़े अंतर से जीतेंगे.


क्या है भौगोलिक स्थिति?
रांची संसदीय क्षेत्र 6 विधानसभा इलाकों में बटा हुआ है. इसके अंतर्गत रांची जिले के 5 विधानसभा इलाके रांची, कांके, सिल्ली, खिजरी और हटिया के अलावे सरायकेला खरसावां जिले के ईचागढ़ विधानसभा क्षेत्र आता है. विधानसभा वार नेतृत्व की बात करें तो सिल्ली में झारखंड मुक्ति मोर्चा की विधायक है, जबकि अन्य 5 विधानसभा सीट पर बीजेपी के एमएलए हैं. 2014 में रामटहल चौधरी कांग्रेस उम्मीदवार सुबोधकांत सहाय को हराकर सांसद बने थे, जबकि 2009 में रामटहल चौधरी सुबोधकांत सहाय से हारे थे. आंकड़ों पर गौर करें तो 1991 के बाद दो बार कांग्रेस के हाथ में यह सीट गई है, जबकि 2014 और 1991 के अलावा 1996, 1998, 1999 में रामटहल चौधरी यहां से सांसद रहे हैं.

Intro:रांची। प्रदेश की रांची पार्लियामेंट्री सीट बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है। एक तरफ जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रोड शो ने राजधानी की इस पार्लियामेंट्री सीट का राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है। वहीं दूसरी तरफ अब बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह रांची आने वाले हैं। वैसे तो यह बीजेपी की परंपरागत सीट नहीं रही है लेकिन 1991 के बाद अगर आंकड़ों पर गौर करें तो अब तक दो बार यह सीट बीजेपी के हाथ से निकली है। 2004 और 2009 में यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार सुबोध कांत सहाय जीतकर संसद पहुंचे हैं। जबकि 1991, 1996, 1998, 1999 और 2014 में बीजेपी के रामटहल चौधरी रांची के एमपी रहे हैं।


Body:क्यों है बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल
दरअसल बीजेपी 1991 से लेकर अब तक रांची में रामटहल चौधरी पर आंख बंद कर भरोसा करती आई थी, लेकिन इस बार बढ़ती उम्र का हवाला देते हुए और पार्टी की नीतियों के आधार पर उनका टिकट काटकर झारखंड खादी ग्राम उद्योग बोर्ड के अध्यक्ष संजय सेठ को मैदान में उतारा गया है। वैसे तो संजय सेठ बीजेपी के पुराने कैडर है लेकिन बीच में उनका भी कथित रूप से पार्टी का मोहभंग हो गया था। इधर टिकट कटने से नाराज रामटहल चौधरी ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पर्चा भरा है और सामाजिक समीकरण के अनुसार कुर्मी वोटर वाले इस संसदीय इलाके में रामटहल चौधरी की मजबूत पकड़ मानी जाती है। ऐसे में पार्टी ने के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है

बीजेपी ने झोंक दी है पूरी ताकत
रामटहलल चौधरी के बागी बाद भी होने के बाद भी पार्टी ने एक तरफ जहां उनके प्रति नरम रुख अपना रखा है। वही वोट शेयर डैमेज नहीं हो इसके लिए भी पर्याप्त इंतजाम किए जा रहे हैं। एक तरफ पार्टी ने प्रचार पर पूरा ध्यान दिया है। वहीं दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रोड शो के बाद रांची संसदीय सीट की बयार बदलने के दावे किए जा रहे हैं। पार्टी नेता मानते हैं कि प्रधानमंत्री के आने से राजनीतिक हवा बदल गई है। पार्टी के प्रदेश महामंत्री दीपक प्रकाश ने कहा कि रांची संसदीय सीट पर बीजेपी मजबूत स्थिति में है और जीत का मार्जिन इसबार बढ़ेगा।

विपक्ष ने कसा तंज
वहीं जेपीसीसी के प्रवक्ता लाल किशोर नाथ शाहदेव ने कहा कि बीजेपी का जनाधार के घटता जा रहा है। यही वजह है कि उसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बुलाकर रोड शो कराना पड़ रहा है शाहदेव ने कहा कि जब से रोड शो हुआ है और लोहरदगा में प्रधानमंत्री कार्यक्रम हुआ है बीजेपी और बुरी स्थिति में आ गई है। उन्होंने कहा कि पहले चरण में होने वाले चुनाव में एक तरफ जहां विपक्ष मजबूत है। वही रांची सीट पर भी कॉन्ग्रेस प्रत्याशी इस बार बड़े अंतर से जीतेंगे।



Conclusion:क्या है भौगोलिक स्थिति
रांची संसदीय क्षेत्र 6 विधानसभा इलाकों में बटा हुआ है। इसके अंतर्गत रांची जिले के 5 विधानसभा इलाके रांची, कांके, सिल्ली खिजरी और हटिया के अलावे सराइकेला खरसावां का इचागढ़ असेंबली एरिया आता है। विधानसभा वार नेतृत्व की बात करें तो सिल्ली में झारखंड मुक्ति मोर्चा की विधायक है। जबकि अन्य 5 विधानसभा सीट पर बीजेपी के एमएलए हैं। 2014 में रामटहल चौधरी कांग्रेस उम्मीदवार सुबोध कांत सहाय को हराकर सांसद बने थे। जबकि 2009 में रामटहल चौधरी सुबोध कांत सहाय से हारे थे। आंकड़ों पर गौर करें तो 1991 के बाद दो बार कांग्रेस के हाथ में यह सीट गई है जबकि 2014 और 1991 के अलावा 1996, 1998, 1999 में रामटहल चौधरी यहां से सांसद रहे हैं।
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