रांची: 9 अगस्त को पूरे देश में विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है. आदिवासियों की भाषा, संस्कृति आदिवासियों के मूलभूत अधिकारों को लेकर और उनके संरक्षण के लिए 1982 में संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) ने एक कार्य दल का गठन किया, जिसकी पहली बैठक 9 अगस्त 1982 को हुई. तब से आदिवासी समाज इसे आदिवासी दिवस यानी मूलवासी दिवस के रूप में मना रहे हैं.
हालांकि सबसे पहले जानना जरूरी है की जनजातियां होती क्या है इसके लिए झारखंड के 1953 में स्थापित जनजातीय कल्याण शोध संस्था यानी डॉ रामदयाल मुंडा जनजाति कल्याण शोध ने इस विषय पर काफी गहन चिंतन मंथन और रिसर्च किया है। अनुसूचित जनजातियों की भाषा संस्कृति कला स्वास्थ्य शिक्षा रीति-रिवाज और उनके विभिन्न समस्याओं की पड़ताल इस संस्था के द्वारा लगातार की जा रही है
झारखंड में कई जनजातियों के लोग रहते हैं. सूबे की कुल आबादी में करीब 27.67 प्रतिशत जनसंख्या जनजातियों की है. साल 2001 की जनगणना के अनुसार जनजातियों की कुल आबादी 16 लाख 16 हजार 914 है. झारखंड में कुल 32 तरह की जनजातियां रहती हैं. इनमें संताल जातियों की जनसंख्या सबसे ज्यादा है और सबसे कम आबादी बंजारा जनजाति की है.
जनजातियों की प्रजाति अमूमन 3 तरह की है. पहली ऑस्ट्रोलॉयड, दूसरी प्रोटो-ऑस्ट्रोलॉयड और तीसरी द्रविड़. हर जनजाती की भाषा और मूल निवास स्थान अलग-अलग रहे हैं. सूबे में कुल 32 तरह की जनजातियां पाई जाती हैं. डॉ रामदयाल मुंडा जनकल्याण शोध संस्था की ओर से 32 में 17 जनजातियों पर रिसर्च की जा रही है. इनमें 8 आदिम जनजाती को चिंहित किया गया है, जो सबसे कमजोर वर्ग में आती हैं. इनमें बिरजिया, कोरवा, माल पहाड़िया, सौरिया पहड़िया, बिरहोर, सावर, परहिया और असुर शामिल हैं. इसके साथ ही 5 सबसे बड़ी आबादी वाली जनजातियों में संताल, मुंडा, उरांव, हो, खड़िया शुमार हैं. इनमें 4 कारीगर जनजातियां कुरमाली, महली, लोहार और चिकबराइक भी आती हैं.
2001 के जनगणना के अनुसार जनजातियों की संख्या
1. असुर- 22 हजार 459
2. बैग- 3 हजार 582
3. बंजारा- 411
4. वथुडी- 3 हजार 464
5. बेदिया- 1लाख 162
6. भूमिज- 2लाख 9 हजार 448
7. विझिया- 14 हजार 404
8. विरहोर- 10 हजार 726
9. बिरजिया- 6 हजार 276
10. चेरो- 95 हजार 575
11. चिकबाईक- 54 हजार 163
12.गोण्ड- 53 हजार 676
13.गोराईत- 4 हजार 973
14.हो- 9 लाख 28 हजार 289
15.कुमरमालि- 64 हजार 154
16.खरिया- 1 लाख 96 हजार 135
17.खरवार- 2 लाख 48 हजार 974
18.खोण्ड- 221
19.सौरिया पहड़िया- 46 हजार 222
20.किसान- 37 हजार 265
21.कोरा- 32 हजार 786
22.कोरवा- 35 हजार 606
23. लोहरा- 2 लाख 16 हजार 226
24.महली- 1 लाख 52 हजार 663
25.माल पहड़िया- 1 लाख 35 हजार 797
26.मुंडा- 12 लाख 29 हजार 221
27.उरांव- 17 लाख 16 हजार 618
28.परहया- 25 हजार 585
29.संताल- 27 लाख 54 हजार 723
30.सावर- 9 हजार 688
31.कंवर- 8 हजार 145
32.कोल- 53 हजार 584
शिक्षाविद और शोधकर्ता डॉ करमा उरांव का मानना है कि सरकार की ओर से जनजाति के विकास को लेकर बनाई जा रही योजनाएं उनकी सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक परिस्थिति के मुताबिक नहीं हैं.