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9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस, जानिए पूरी कहानी - Ranchi News

झारखंड में कई जनजातियों के लोग रहते हैं. सूबे की कुल आबादी में करीब 27.67 प्रतिशत जनसंख्या जनजातियों की है. साल 2001 की जनगणना के अनुसार जनजातियों की कुल आबादी 16 लाख 16 हजार 914 है. झारखंड में कुल 32 तरह की जनजातियां रहती हैं. इनमें संताल जातियों की जनसंख्या सबसे ज्यादा है और सबसे कम आबादी बंजारा जनजाति की है.

9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस
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Published : Aug 5, 2019, 10:51 AM IST

रांची: 9 अगस्त को पूरे देश में विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है. आदिवासियों की भाषा, संस्कृति आदिवासियों के मूलभूत अधिकारों को लेकर और उनके संरक्षण के लिए 1982 में संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) ने एक कार्य दल का गठन किया, जिसकी पहली बैठक 9 अगस्त 1982 को हुई. तब से आदिवासी समाज इसे आदिवासी दिवस यानी मूलवासी दिवस के रूप में मना रहे हैं.

वीडियो में देखें पूरी खबर

हालांकि सबसे पहले जानना जरूरी है की जनजातियां होती क्या है इसके लिए झारखंड के 1953 में स्थापित जनजातीय कल्याण शोध संस्था यानी डॉ रामदयाल मुंडा जनजाति कल्याण शोध ने इस विषय पर काफी गहन चिंतन मंथन और रिसर्च किया है। अनुसूचित जनजातियों की भाषा संस्कृति कला स्वास्थ्य शिक्षा रीति-रिवाज और उनके विभिन्न समस्याओं की पड़ताल इस संस्था के द्वारा लगातार की जा रही है

झारखंड में कई जनजातियों के लोग रहते हैं. सूबे की कुल आबादी में करीब 27.67 प्रतिशत जनसंख्या जनजातियों की है. साल 2001 की जनगणना के अनुसार जनजातियों की कुल आबादी 16 लाख 16 हजार 914 है. झारखंड में कुल 32 तरह की जनजातियां रहती हैं. इनमें संताल जातियों की जनसंख्या सबसे ज्यादा है और सबसे कम आबादी बंजारा जनजाति की है.

जनजातियों की प्रजाति अमूमन 3 तरह की है. पहली ऑस्ट्रोलॉयड, दूसरी प्रोटो-ऑस्ट्रोलॉयड और तीसरी द्रविड़. हर जनजाती की भाषा और मूल निवास स्थान अलग-अलग रहे हैं. सूबे में कुल 32 तरह की जनजातियां पाई जाती हैं. डॉ रामदयाल मुंडा जनकल्याण शोध संस्था की ओर से 32 में 17 जनजातियों पर रिसर्च की जा रही है. इनमें 8 आदिम जनजाती को चिंहित किया गया है, जो सबसे कमजोर वर्ग में आती हैं. इनमें बिरजिया, कोरवा, माल पहाड़िया, सौरिया पहड़िया, बिरहोर, सावर, परहिया और असुर शामिल हैं. इसके साथ ही 5 सबसे बड़ी आबादी वाली जनजातियों में संताल, मुंडा, उरांव, हो, खड़िया शुमार हैं. इनमें 4 कारीगर जनजातियां कुरमाली, महली, लोहार और चिकबराइक भी आती हैं.

2001 के जनगणना के अनुसार जनजातियों की संख्या

1. असुर- 22 हजार 459
2. बैग- 3 हजार 582
3. बंजारा- 411
4. वथुडी- 3 हजार 464
5. बेदिया- 1लाख 162
6. भूमिज- 2लाख 9 हजार 448
7. विझिया- 14 हजार 404
8. विरहोर- 10 हजार 726
9. बिरजिया- 6 हजार 276
10. चेरो- 95 हजार 575
11. चिकबाईक- 54 हजार 163
12.गोण्ड- 53 हजार 676
13.गोराईत- 4 हजार 973
14.हो- 9 लाख 28 हजार 289
15.कुमरमालि- 64 हजार 154
16.खरिया- 1 लाख 96 हजार 135
17.खरवार- 2 लाख 48 हजार 974
18.खोण्ड- 221
19.सौरिया पहड़िया- 46 हजार 222
20.किसान- 37 हजार 265
21.कोरा- 32 हजार 786
22.कोरवा- 35 हजार 606
23. लोहरा- 2 लाख 16 हजार 226
24.महली- 1 लाख 52 हजार 663
25.माल पहड़िया- 1 लाख 35 हजार 797
26.मुंडा- 12 लाख 29 हजार 221
27.उरांव- 17 लाख 16 हजार 618
28.परहया- 25 हजार 585
29.संताल- 27 लाख 54 हजार 723
30.सावर- 9 हजार 688
31.कंवर- 8 हजार 145
32.कोल- 53 हजार 584

शिक्षाविद और शोधकर्ता डॉ करमा उरांव का मानना है कि सरकार की ओर से जनजाति के विकास को लेकर बनाई जा रही योजनाएं उनकी सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक परिस्थिति के मुताबिक नहीं हैं.

रांची: 9 अगस्त को पूरे देश में विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है. आदिवासियों की भाषा, संस्कृति आदिवासियों के मूलभूत अधिकारों को लेकर और उनके संरक्षण के लिए 1982 में संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) ने एक कार्य दल का गठन किया, जिसकी पहली बैठक 9 अगस्त 1982 को हुई. तब से आदिवासी समाज इसे आदिवासी दिवस यानी मूलवासी दिवस के रूप में मना रहे हैं.

वीडियो में देखें पूरी खबर

हालांकि सबसे पहले जानना जरूरी है की जनजातियां होती क्या है इसके लिए झारखंड के 1953 में स्थापित जनजातीय कल्याण शोध संस्था यानी डॉ रामदयाल मुंडा जनजाति कल्याण शोध ने इस विषय पर काफी गहन चिंतन मंथन और रिसर्च किया है। अनुसूचित जनजातियों की भाषा संस्कृति कला स्वास्थ्य शिक्षा रीति-रिवाज और उनके विभिन्न समस्याओं की पड़ताल इस संस्था के द्वारा लगातार की जा रही है

झारखंड में कई जनजातियों के लोग रहते हैं. सूबे की कुल आबादी में करीब 27.67 प्रतिशत जनसंख्या जनजातियों की है. साल 2001 की जनगणना के अनुसार जनजातियों की कुल आबादी 16 लाख 16 हजार 914 है. झारखंड में कुल 32 तरह की जनजातियां रहती हैं. इनमें संताल जातियों की जनसंख्या सबसे ज्यादा है और सबसे कम आबादी बंजारा जनजाति की है.

जनजातियों की प्रजाति अमूमन 3 तरह की है. पहली ऑस्ट्रोलॉयड, दूसरी प्रोटो-ऑस्ट्रोलॉयड और तीसरी द्रविड़. हर जनजाती की भाषा और मूल निवास स्थान अलग-अलग रहे हैं. सूबे में कुल 32 तरह की जनजातियां पाई जाती हैं. डॉ रामदयाल मुंडा जनकल्याण शोध संस्था की ओर से 32 में 17 जनजातियों पर रिसर्च की जा रही है. इनमें 8 आदिम जनजाती को चिंहित किया गया है, जो सबसे कमजोर वर्ग में आती हैं. इनमें बिरजिया, कोरवा, माल पहाड़िया, सौरिया पहड़िया, बिरहोर, सावर, परहिया और असुर शामिल हैं. इसके साथ ही 5 सबसे बड़ी आबादी वाली जनजातियों में संताल, मुंडा, उरांव, हो, खड़िया शुमार हैं. इनमें 4 कारीगर जनजातियां कुरमाली, महली, लोहार और चिकबराइक भी आती हैं.

2001 के जनगणना के अनुसार जनजातियों की संख्या

1. असुर- 22 हजार 459
2. बैग- 3 हजार 582
3. बंजारा- 411
4. वथुडी- 3 हजार 464
5. बेदिया- 1लाख 162
6. भूमिज- 2लाख 9 हजार 448
7. विझिया- 14 हजार 404
8. विरहोर- 10 हजार 726
9. बिरजिया- 6 हजार 276
10. चेरो- 95 हजार 575
11. चिकबाईक- 54 हजार 163
12.गोण्ड- 53 हजार 676
13.गोराईत- 4 हजार 973
14.हो- 9 लाख 28 हजार 289
15.कुमरमालि- 64 हजार 154
16.खरिया- 1 लाख 96 हजार 135
17.खरवार- 2 लाख 48 हजार 974
18.खोण्ड- 221
19.सौरिया पहड़िया- 46 हजार 222
20.किसान- 37 हजार 265
21.कोरा- 32 हजार 786
22.कोरवा- 35 हजार 606
23. लोहरा- 2 लाख 16 हजार 226
24.महली- 1 लाख 52 हजार 663
25.माल पहड़िया- 1 लाख 35 हजार 797
26.मुंडा- 12 लाख 29 हजार 221
27.उरांव- 17 लाख 16 हजार 618
28.परहया- 25 हजार 585
29.संताल- 27 लाख 54 हजार 723
30.सावर- 9 हजार 688
31.कंवर- 8 हजार 145
32.कोल- 53 हजार 584

शिक्षाविद और शोधकर्ता डॉ करमा उरांव का मानना है कि सरकार की ओर से जनजाति के विकास को लेकर बनाई जा रही योजनाएं उनकी सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक परिस्थिति के मुताबिक नहीं हैं.

Intro:रांची
बाइट--- राणेद्र कुमार निदेशक (डॉ रामदयाल मुंडा जनजाति कल्याण शोध संस्थान )
बाइट---डॉ करमा उराँव शिक्षाविद एवं शोधकर्ता (id में लिया गया बाइट)

9 अगस्त को पूरे देश में विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है आदिवासियों की भाषा संस्कृति आदिवासियों की आधारभूत हक हक को लेकर ( आदिवासी) के मानव अधिकारों को लागू करने और उसके संरक्षण के लिए 1982 में संयुक्त राष्ट्र संघ(UNO ने एक कार्य दल का गठन किया था जिस की पहली बैठक 9 अगस्त 1982 को हुई थी तबसे आदिवासी समाज इसे आदिवासी दिवस यानी मूलवासी दिवस के के रूप में मनाते रहे हैं। लेकिन सबसे पहले जानना जरूरी है की जनजातियां होती क्या है इसके लिए झारखंड के 1953 में स्थापित जनजातीय कल्याण शोध संस्था यानी डॉ रामदयाल मुंडा जनजाति कल्याण शोध ने इस विषय पर काफी गहन चिंतन मंथन और रिसर्च किया है। अनुसूचित जनजातियों की भाषा संस्कृति कला स्वास्थ्य शिक्षा रीति-रिवाज और उनके विभिन्न समस्याओं की पड़ताल इस संस्था के द्वारा लगातार की जा रही है


Body:झारखंड विभिन्न जनजातियों का निवास है झारखंड की कुल आबादी 27.67 प्रतिशत जनसंख्या जनजातियों का है वर्तमान झारखंड में वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार जनजातियों की कुल आबादी 16,16, 914 है झारखंड में कुल 32 प्रकार के जनजातियों का निवास है संताल जातियों की जनसंख्या सबसे अधिक है तथा सबसे कम आबादी बंजारा जनजाति की है। झारखंड में संथाल जनजाति 35.46% है। जबकि बंजारों की संख्या मात्र 411 जनजातियों की सर्वाधिक जनसंख्या पश्चिम सिंहभूम जिले में है देवघर जिले में सबसे कम जनजातियों का निवास है प्रतिशत के दृष्टिकोण से गुमला जिले में 71% जनजातियों का निवास है जबकि धनबाद में सबसे कम या नहीं 8.31% है लेकिन साक्षरता का दर 16.1% है। झारखंड में मुंडा जनजातियों का आगमन लगभग 600 ईसा पूर्व हुआ खड़िया जनजातियों का आगमन 1500 इसापुर के आगमन के आसपास हुआ है अन्य जातियों का आगमन 15 वी शताब्दी तक आती रहे जनजातियों की प्रजाति मुख्यतः प्रकार की है ऑस्ट्रोलॉयड, प्रोटो-ऑस्ट्रोलॉयड एवं द्रविड़। प्रत्येक जनजातियों की भाषा तथा मूल निवास स्थान अलग-अलग रहे हैं और कुल 32 प्रकार के जनजातियां पाई जाती है। इस शोध संस्था के द्वारा 32 में से 17 जनजातियों पर शोध किया जा रहा है में मुख्य जनजातिया निम्न प्रकार हैं


जिनमें 8 आदम जनजातियों के रूप में चिन्हित किया गया है सबसे कमजोर वर्ग में आते हैं

बिरजिया,कोरवा, माल पहड़िया,सौरिया पहड़िया,बिरहोर, सावर,परहिया एवं असुर सामिल है

5 सबसे बड़ी आबादी वाले जनजाति

संथाल,मुंडा,उरांव, हो,खड़िया

जिनमें 4 कारीगर जन जातियां आती है

कुरमाली,महली,लोहार,और चिकबराइक

इन तमाम जनजातियों के शोध के लिए झारखंड में एकमात्र शोध संस्थान डॉ रामदयाल मुंडा जनकल्याण शोध है जिसकी स्थापना 1954 में हुई थी, देश और राज्य के विश्वविद्यालय ही नहीं बल्कि बल्कि विदेशों शोधकर्ता इस संस्थान में आकर जनजातियों के जमीनी हकीकत और इतिहास के बारे में शोध करते हैं
डॉ रामदयाल मुंडा जनजाति कल्याण शोध संस्थान के निदेशक राणेद्र कुमार ने बताया 32 जनजातियों में से 17 जनजातियों पर शोध संस्थान के द्वारा किया जा चुका है बाकी बचे कम जनसंख्या वाले जनजातियों में से 10 जनजातियों का शोध की कार्य शुरू कर दी गई है। सभी जनजातियों दूसरे जनजातिया से बिल्कुल भिन्न है जैसे उनकी परंपरा प्रथा जन्म लेने विवाह लोकगीत मृत्यु संस्कार सभी अलग-अलग होते हैं यही कारण है कि सभी जनजातियों पर अलग-अलग लगातार शोध किया जाता है और यह हर 10 साल में दोबारा शोध होती है।

2001 के जनगणना के अनुसार जनजातियों के संख्या

1. असुर 22459
2. बैग 3582
3. बंजारा 411
4. वथुडी 3464
5. बेदिया 100162
6. भूमिज 209448
7. विझिया 14404
8. विरहोर 10726
9. बिरजिया 6276
10. चेरो 95575
11. चिकबाईक 54163
12.गोण्ड 53676
13.गोराईत 4,973
14.हो 928289
15.कुमरमालि 64154
16.खरिया 196135
17.खरवार 248974
18.खोण्ड 221
19.सौरिया पहड़िया 46222
20.किसान 37265
21.कोरा 32786
22.कोरवा 35606
23. लोहरा 216226
24.महली 152663
25.माल पहड़िया 135797
26.मुंडा 1229221
27.उराँव 1716618
28.परहया 25585
29.संथाल 2754723
30.सावर 9688
31.कंवर 8145
32.कोल 53584







Conclusion:राज्य में ऐसे 8 से 9 जनजातियां है जिनकी जनसंख्या बढ़ने के जगह घटती नजर आ रही है जो चिंता का विषय है शिक्षाविद और शोधकर्ता डॉ करमा उरांव का मानना है कि सरकार के द्वारा वैसे जनजाति के विकास के लिए बनाए जा रहे योजनाएं उनके सामाजिक आर्थिक और भौगोलिक परिस्थिति के अनुकूल नहीं बनाई जा रही है साथ ही चिन्हित वैसे जनजाति ...जो खानपान रहन सहन चिकित्सा व्यवस्था जैसे अनेक सुविधाओं से भी वंचित है यही कारण है कि जनसंख्या का ग्रोथ सीमित है बल्कि विलुप्त होने के कगार पर है।
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