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विश्व आदिवासी दिवस: तालाब में हुआ था नागवंशी राजा का जन्म, रोचक है इनका इतिहास

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Published : Aug 9, 2019, 2:28 PM IST

छोटानागपुर में मुंडाओं का आगमन 600 ईसा पूर्व ही हो गया था. तब से मुंडाओं का शासन पड़हा समिति के द्वारा छोटानागपुर में विस्तार हुआ. छोटानागपुर के इतिहास में मुंडाओं का शासन लंबे समय तक चला. इनके शासनकाल में जनता काफी खुशहाल थी. आपको आदिवासी दिवस के मौके पर ऐसे ही एक मुंडा शासन व्यवस्था की रोचक जानकारियां देते हैं.

तालाब में हुआ था नागवंशी राजा फणी मुकुट राय का जन्म

रांची: राजधानी से महज 16 किलोमीटर दूर पिठोरिया का सूतियाम्बेगढ़, जहां से मुंडा राजाओं की उत्पत्ति हुई थी. 600 ईसा पूर्व मुंडा यहां का शासन व्यवस्था चलाया करते थे. इस मुड़हार पहाड़ पर राजा की कचहरी भी लगा करता था जहां राजा जनता का फरियाद सुना करते थे. सूतियाम्बेगढ़ का सबसे पहला राजा सूतिया मुंडा को माना जाता है.

वीडियो में देखिए स्पेशल स्टोरी

सूर्तिया मुंडा के बाद शासन व्यवस्था मदरा मुंडा के हाथों में चला गया. मंदरा मुंडा के शासन काल में भी जनता काफी खुश रहा करती थी. क्योंकि उस समय जनता और राजा में कोई ज्यादा फर्क नहीं होता था. उस समय शासन पड़हा व्यवस्था के द्वारा चला करता था.

पिठोरिया के इस सूतियाम्बेगढ़ में आज भी कई इतिहास छुपे हुए हैं. कहा जाता है कि मुंडाओं का धार्मिक स्थल कंपार्ट जहां से मुंडावर ने अपनी शासन व्यवस्था शुरू की थी. आज भी मुंडा इस स्थल को पूज्य मानते हैं. मदरा मुंडा के द्वारा सूर्य मंदिर में पूजा की जाती थी जो आज भी टूटे फूटे अवस्था में है और इस तरह के कई मुंडाओं के पूजा स्थल हैं जहां पर आज भी मुंडा समाज के लोग पूजा करते हैं.

मौखिक इतिहास के अनुसार फणी मुकुट राय से नागवंशी राजाओं की शुरुआत हुई. कहा जाता है कि फणी मुकुट राय मदरा मुंडा के दत्तक पुत्र थे. उनके बाद 46 से भी अधिक राजाओं का वंश चला है छोटानागपुर में. जिसका सबसे अंतिम पीढ़ी रातू राजा हैं. यह कहानी नागवंशी राजा फणी मुकुट राय की है. इन्होंने लगभग 200 साल तक छोटानागपुर पर शासन किया.
इनकी जन्म की दंत कथा बड़े ही रोचक है. दरअसल, बनारस में एक नाग पार्वती नाम की ब्राह्मण कन्या से विवाह कर लेता है. शादी के बाद से ही लगातार पार्वती नाग से अपनी असलियत बताने को कहती रही. लेकिन नाग अपनी असलियत किसी को नहीं बताता था.

तालाब में हुआ था जन्म

एक तीर्थ यात्रा के दौरान रास्ते में नाग और उसकी पत्नी विश्राम करने के लिए पिठोरिया के अंधारी तालाब में रुके. उसी समय पार्वती फिर उससे असलियत जाननी चाही तो नाग ने कहा कि अगर मैं तुम्हें अपनी असलियत बता दूंगा तो तुम्हारे साथ नहीं रहूंगा. पार्वती जिद में अड़ी और नाग से असलियत जानना चाही. उसके बाद नाग ने अपना असलियत तो बताया लेकिन उसके बाद अंधारी तालाब में समा गया. उसी समय पार्वती ने एक बालक को जन्म दिया. जन्म देने के बाद पार्वती की भी मृत्यु हो गई.

उसी समय महाराजा मदरा मुंडा का पुरोहित उस रास्ते से गुजर रहा था. अचानक बच्चे की रोने आवाज सुन कर उसके पास पहुंचा तो बच्चे के पास कोई नहीं था. उसने बच्चे को उठाकर मदरा मुंडा के दरबार में पेश किया. उसी समय महाराजा मदरा मुंडा के घर में भी एक बालक का जन्म हुआ था. जिसका नाम मणि रखा था.

योग्यता के आधार पर मिली राज गद्दी

नाग से जन्मे उस बच्चे को महाराजा मदरा मुंडा ने दत्तक पुत्र के रूप में पालन-पोषण किया. और दोनों बालक रंग भेद में एक दूसरे से समान थे. लेकिन फणी मुकुट राय बचपन से ही चंचल स्वभाव का थे. दोनों बालक साथ में बड़े होते हैं. बच्चे के बड़े होने के बाद बात आती है कि महाराजा मदरा मुंडा का शासन व्यवस्था आखिर किसके हाथ में जाएगा.

शासन का बागडोर संभालने के लिए दोनों बच्चों को अपनी योग्यता सिद्ध करने के लिए जंगल भेजा गया. योग्यता के आधार पर पड़हा समिति फनी मुकुट राय का राज्यभिषेक करने का फैसला सुनाता है. जिसके बाद फनी मुकुट राय को राज गद्दी सौंप दी जाती है. छोटानागपुर में इनकी शासन व्यवस्था 200 सालों तक चली और इसका अंतिम राजा रातू के महाराजा हुआ करते थे.

रांची: राजधानी से महज 16 किलोमीटर दूर पिठोरिया का सूतियाम्बेगढ़, जहां से मुंडा राजाओं की उत्पत्ति हुई थी. 600 ईसा पूर्व मुंडा यहां का शासन व्यवस्था चलाया करते थे. इस मुड़हार पहाड़ पर राजा की कचहरी भी लगा करता था जहां राजा जनता का फरियाद सुना करते थे. सूतियाम्बेगढ़ का सबसे पहला राजा सूतिया मुंडा को माना जाता है.

वीडियो में देखिए स्पेशल स्टोरी

सूर्तिया मुंडा के बाद शासन व्यवस्था मदरा मुंडा के हाथों में चला गया. मंदरा मुंडा के शासन काल में भी जनता काफी खुश रहा करती थी. क्योंकि उस समय जनता और राजा में कोई ज्यादा फर्क नहीं होता था. उस समय शासन पड़हा व्यवस्था के द्वारा चला करता था.

पिठोरिया के इस सूतियाम्बेगढ़ में आज भी कई इतिहास छुपे हुए हैं. कहा जाता है कि मुंडाओं का धार्मिक स्थल कंपार्ट जहां से मुंडावर ने अपनी शासन व्यवस्था शुरू की थी. आज भी मुंडा इस स्थल को पूज्य मानते हैं. मदरा मुंडा के द्वारा सूर्य मंदिर में पूजा की जाती थी जो आज भी टूटे फूटे अवस्था में है और इस तरह के कई मुंडाओं के पूजा स्थल हैं जहां पर आज भी मुंडा समाज के लोग पूजा करते हैं.

मौखिक इतिहास के अनुसार फणी मुकुट राय से नागवंशी राजाओं की शुरुआत हुई. कहा जाता है कि फणी मुकुट राय मदरा मुंडा के दत्तक पुत्र थे. उनके बाद 46 से भी अधिक राजाओं का वंश चला है छोटानागपुर में. जिसका सबसे अंतिम पीढ़ी रातू राजा हैं. यह कहानी नागवंशी राजा फणी मुकुट राय की है. इन्होंने लगभग 200 साल तक छोटानागपुर पर शासन किया.
इनकी जन्म की दंत कथा बड़े ही रोचक है. दरअसल, बनारस में एक नाग पार्वती नाम की ब्राह्मण कन्या से विवाह कर लेता है. शादी के बाद से ही लगातार पार्वती नाग से अपनी असलियत बताने को कहती रही. लेकिन नाग अपनी असलियत किसी को नहीं बताता था.

तालाब में हुआ था जन्म

एक तीर्थ यात्रा के दौरान रास्ते में नाग और उसकी पत्नी विश्राम करने के लिए पिठोरिया के अंधारी तालाब में रुके. उसी समय पार्वती फिर उससे असलियत जाननी चाही तो नाग ने कहा कि अगर मैं तुम्हें अपनी असलियत बता दूंगा तो तुम्हारे साथ नहीं रहूंगा. पार्वती जिद में अड़ी और नाग से असलियत जानना चाही. उसके बाद नाग ने अपना असलियत तो बताया लेकिन उसके बाद अंधारी तालाब में समा गया. उसी समय पार्वती ने एक बालक को जन्म दिया. जन्म देने के बाद पार्वती की भी मृत्यु हो गई.

उसी समय महाराजा मदरा मुंडा का पुरोहित उस रास्ते से गुजर रहा था. अचानक बच्चे की रोने आवाज सुन कर उसके पास पहुंचा तो बच्चे के पास कोई नहीं था. उसने बच्चे को उठाकर मदरा मुंडा के दरबार में पेश किया. उसी समय महाराजा मदरा मुंडा के घर में भी एक बालक का जन्म हुआ था. जिसका नाम मणि रखा था.

योग्यता के आधार पर मिली राज गद्दी

नाग से जन्मे उस बच्चे को महाराजा मदरा मुंडा ने दत्तक पुत्र के रूप में पालन-पोषण किया. और दोनों बालक रंग भेद में एक दूसरे से समान थे. लेकिन फणी मुकुट राय बचपन से ही चंचल स्वभाव का थे. दोनों बालक साथ में बड़े होते हैं. बच्चे के बड़े होने के बाद बात आती है कि महाराजा मदरा मुंडा का शासन व्यवस्था आखिर किसके हाथ में जाएगा.

शासन का बागडोर संभालने के लिए दोनों बच्चों को अपनी योग्यता सिद्ध करने के लिए जंगल भेजा गया. योग्यता के आधार पर पड़हा समिति फनी मुकुट राय का राज्यभिषेक करने का फैसला सुनाता है. जिसके बाद फनी मुकुट राय को राज गद्दी सौंप दी जाती है. छोटानागपुर में इनकी शासन व्यवस्था 200 सालों तक चली और इसका अंतिम राजा रातू के महाराजा हुआ करते थे.

Intro:रांची
आदिवासी दिवस पर मदरा मुंडा से जुड़ी स्पेशल स्टोरी


बाइट----चिन्टू दोराईबुरु उप निदेशक राम दयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान
बाइट---- जय मंगल उराँव महाराजा मदरा मुंडा पड़हा समिति

नोट ओपनिंग पीटीसी महाराजा मथुरा मुंडा आदम कद प्रतिमा के समीप
2. तालाब के समीप जहां फनी मुकुट राय का जन्म हुआ था

3. पहाड़ के मुख्य द्वार पर जहां महाराजा मदरा मुंडा का कचहरी लगा करता था

छोटा नागपुर में मुंडाओं का आगमन 600 ईसापुर भी हो गया था। तब से मुंडाओं का शासन पड़हा समिति के द्वारा छोटा नागपुर में विस्तार हुआ। छोटा नागपुर के इतिहास में मुंडाओं का शासन लंबे समय तक चला। इन के शासनकाल में जनता भी काशी खुशहाल थे। आइए आपको आदिवासी दिवस के मौके पर ऐसे ही एक मुंडा शासन व्यवस्था के बारे में आपको रोचक कहानी बताएंगे

राजधानी रांची से महज 16 किलोमीटर दूर पिठोरिया स्थित सूतियाम्बेगढ़ के बारे में आपको बताने जा रहे हैं जहां से मुर्दा राजाओं का उत्पत्ति हुई थी 600 ईसा पूर्व में यहां मुंडा राजा शासन व्यवस्था चलाया करते थे। और इस मुड़हार पहाड़ राजा की कचहरी भी लगा करता था। और इस कचहरी से जनता का फरियाद राजा सुना करते थे। सूतियाम्बे गढ़ सबसे पहला राजा सूतिया मुंडा हुआ करते थे। अर्शिया मुंडा के बाद शासन व्यवस्था मथुरा मुंडा के हाथों चला गया मंदा मुंडा के शासन काल में भी जनता काफी खुश रहा करते थे। क्योंकि उस समय जनता और राजा में कोई ज्यादा फर्क नहीं होगा करता था। उस समय शासन पड़हा व्यवस्था से द्वारा चला करता था।

पिठोरिया के इस सूतियाम्बेगढ़ में आज भी कई इतिहास छुपे हुए हैं। कहा जाता है कि मुंडा ओं का धार्मिक स्थल कंपार्ट जहां से मुंडावर ने अपनी शासन व्यवस्था शुरू किया था आज भी मुंडा इस स्थल को पूज्य मानते हैं। मदरा मुंडा के द्वारा सूर्य मंदिर में पूजा की जाती थी जो आज भी जीर्णशीर्ष से अवस्था में है। और इस तरह के कई मुंडा व के पूजा स्थल है जहां पर आज भी मुंडा पूजा किया करते थे।।




Body:मदरा मुंडा से जुड़े सबसे रोचक कहानी भी है जिसके बारे में आपने सिर्फ किताबों में पढ़ा होगा। यह कहानी एक ऐसे राजा की है जिसने लगभग 200 वर्षों तक छोटानागपुर में शासन व्यवस्था चलाया। कहानी है नागवंशी राजा फणी मुकुट राय की इस बालक की जन्म की रोचक कहानी जुड़ी हुई है दंत कथाओं के अनुसार एकनाथ भाकर बनारस में एक पार्वती नाम की ब्राह्मण कन्या से विवाह कर लेता है शादी के बाद से ही लगातार पार्वती नाग से अपनी असलियत बताने को कहती रही।लेकिन नाग अपनी असलियत किसी को नहीं बताता था उसी समय अपनी पत्नी को लेकर व तीर्थ यात्रा के लिए निकल गया रास्ते में विश्राम करने के लिए पिठोरिया के अंधारी तालाब में रुका। उसी समय पार्वती फिर से उसे असलियत के लिए पूछने लगी नाग ने कहा कि मैं अगर असलियत बता दूंगा तो मैं तुम्हारे साथ नहीं रहूंगा। पार्वती ज़िद में अड़ी और नाक से असलियत जाना चाहिए नाग अपना असलियत बताने के बाद अंधारी तालाब में समा गया उसी समय पार्वती को प्रसव पीड़ा हुआ उस ने एक बालक को जन्म दिया जन्म देने के बाद पार्वती की भी मृत्यु हो गई बालक को रोता देख नाग दोबारा तालाब से बाहर निकलता है और उस बच्चे के ऊपर अपना फन फैलाकर खड़ा हो जाता है। उसी समय महाराजा मदरा मुंडा का पुरोहित उस रास्ते से गुजर रहा था अचानक बच्चे की रोने आवाज सुन वहां और आस पास देखता है तो कोई नहीं रहता है बच्चे को उठाकर वह मदरा मुंडा के दरबार में पेश करता है उसी समय महाराजा मदरा मुंडा के घर में भी एक बालक का जन्म हुआ था जिसका नाम मणि रखा था। नाग से जन्मे उस बच्चे को महाराजा मदरा मुंडा दत्तक पुत्र के रूप में पालन-पोषण करता है।दोनों बालक रंग भेद में एक दूसरे से समान थे।लेकिन फणी मुकुट राय बच्चन से ही चंचल स्वभाव का था। दोनों बालक साथ में बड़े होते हैं।


Conclusion:बच्चे के बड़े होने के बाद बात आती है कि महाराजा मदरा मुंडा का शासन व्यवस्था आखिर किसके हाथ में जाएगा। जिसके लिए दोनों बच्चों को अपनी योग्यता सिद्ध करने के लिए जंगल भेज दिया जाता है। योग्यता के आधार पर फनी मुकुट राय को पड़हा समिति के द्वारा राज अभिषेक करने का फैसला सुनाया जाता है जिसके बाद फनी मुकुट राय को और आज अभिषेक कर राज गद्दी सौंप दिया जाता है जिसका शासन व्यवस्था 200 वर्षों तक छोटानागपुर में चला। आज इसका अंतिम राजा रातू के महाराजा हुआ करते थे उस शासन व्यवस्था कि आज भी रातू किला इतिहास के रूप में मौजूद है।
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