अलवर. राज्य और केंद्र सरकार की तरफ से लगातार प्रवासी श्रमिकों को हर संभव मदद उपलब्ध कराने के साथ ही उनको घर पहुंचाने के दावे किए जा रहे हैं. दोनों ही सरकारें श्रमिकों को सहायता उपलब्ध कराने के साथ ही श्रेय लेने में लगी है. लेकिन मंगलवार को अलवर पहुंचे कुछ श्रमिकों ने सरकार की पोल खोलकर रख दी.
उत्तर प्रदेश और झारखंड के रहने वाले करीब 14 श्रमिक भीषण गर्मी में 400 किलोमीटर पैदल चलकर 8 दिन में अलवर पहुंचे. इसमें तीन उत्तर प्रदेश और 11 लोग झारखंड के अलग-अलग जिलों के रहने वाले हैं. अलवर के रास्ते यह लोग उत्तर प्रदेश जाना चाहते हैं. श्रमिकों ने बताया कि भीलवाड़ा में कुछ दिनों का राशन उनको उपलब्ध कराया गया. लेकिन दूसरे लॉकडाउन से पहले ही उनका राशन खत्म हो गया था.
ऐसे में मजदूरों को भूखे पेट रहने पड़ रहा था. किसी तरह से वो मांग कर अपना पेट भर रहे थे. लेकिन ऐसे में ज्यादा दिनों तक वो भीलवाड़ा में नहीं रह पा रहे थे. सभी श्रमिक भीलवाड़ा की एक ट्रैक्टर कंपनी में काम करते हैं. उन्होंने कहा कि अगर भूख से मरना है तो वह अपने घर जाकर रहेंगे. इसलिए मजबूरी में वो पैदल ही घर के लिए निकल पड़े.
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ईटीवी भारत से खास बातचीत में श्रमिकों ने बताया कि उनके पास ना तो पैसा है, ना ही खाने के लिए भोजन. उन्होंने कई बार सरपंच की मदद से प्रशासन से संपर्क करने का प्रयास किया. लेकिन सरपंच ने कोई भी मदद करने से मना कर दिया. इसलिए अब सभी श्रमिक पैदल अपने घर के लिए निकल पड़े.
श्रमिकों ने कहा कि वो कई दिनों से भूखे हैं. उन्होंने साफ किया कि अभी तक उनको सरकार की कोई मदद नहीं मिली है. रास्ते में किसी ने उनको कहा कि अलवर से लोगों की संख्या के हिसाब से बसें भेजी जा रही हैं. इसलिए वो बहरोड़ होते हुए अलवर बस स्टैंड जाना चाहते हैं.
ईटीवी भारत की टीम ने की श्रमिकों की मदद
ईटीवी भारत की टीम ने श्रमिकों की मदद करते हुए उनकी जानकारी प्रशासन को दी. जिसके बाद प्रशासन की टीम श्रमिकों से संपर्क कर रही है. सभी की स्वास्थ्य जांच के बाद उन्हें भोजन उपलब्ध कराया जाएगा और रहने के लिए जगह दी जाएगी. जिसके बाद उन्हें वाहनों के जरिए उनके घर पहुंचाया जाएगा.
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सरकार ने शुरू किया था ऑनलाइन पोर्टल
प्रदेश भर में रहने वाले प्रवासी श्रमिकों को उनके घर पहुंचाने के लिए लगातार सरकार और प्रशासन की तरफ से प्रयास किए जा रहे हैं. कई दावे भी किए गए हैं कि सरकार ने प्रवासी श्रमिकों की पहचान करने के लिए एक पोर्टल लॉन्च किया था. जिसमें प्रवासी श्रमिक रजिस्ट्रेशन करा रहे हैं. प्रशासन और सरकार का दावा था कि इस पोर्टल के माध्यम से रजिस्टर्ड होने वाले श्रमिकों को उनके घर पहुंचाया जाएगा. लेकिन अब भी लाखों श्रमिक ऐसे हैं, जो अपने घर जाने के लिए परेशान हो रहे हैं.
कांग्रेस उठाएगी श्रमिकों का खर्च
कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने श्रमिकों का खर्चा उठाने की बात कही थी. सोनिया गांधी ने सभी प्रवासी श्रमिकों को घर भेजने के लिए किराया वहन करने की बात कही थी. जिसके बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने घोषणा की थी कि सभी श्रमिकों को उनके घर पहुंचाया जाएगा. सरकार उसका खर्चा वहन करेगी. सरकार के तमाम दावों के बाद भी प्रदेश भर में हजारों श्रमिक परेशान हो रहे हैं. इसका जीता जागता उदाहरण मंगलवार को अलवर में देखने को मिला.
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अलवर के हालात पर एक नजर
अलवर में 11 छोटे बड़े औद्योगिक क्षेत्र हैं. जिनमें 12 हजार से भी अधिक औद्योगिक इकाइयां हैं. औद्योगिक इकाइयों में लाखों प्रवासी श्रमिक काम करते हैं. कुछ श्रमिक लॉकडाउन के शुरुआत में अपने घर चले गए थे. लेकिन कुछ श्रमिक अब भी औद्योगिक इकाइयों और जिले में फंसे हुए हैं. मंगलवार को भीलवाड़ा से पैदल चलकर अलवर पहुंचे श्रमिकों ने बताया कि वो भीलवाड़ा, उदयपुर, अजमेर, जयपुर, कोटपूतली सहित कई जिलों की सीमा पार करते हुए पैदल अलवर पहुंचे हैं.