रांचीः पाकुड़ जिला के महेशपुर विधानसभा क्षेत्र को झामुमो का गढ़ कहा जाता है. झारखंड बनने के बाद से अबतक हुए सभी विधानसभा चुनाव में झामुमो प्रत्याशियों की जीत हुई है. फिलहाल स्टीफन मरांडी यहां से झामुमो के विधायक हैं. इसके दो प्रखंड हैं. महेशपुर और पाकुड़िया पश्चिम. पश्चिम बंगाल का सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण यहां की विधि व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त रखना एक बड़ी चुनौती है. प्रशासनिक व्यवस्था के लिहाज अमरापाड़ा प्रखंड को मिलाकर महेशपुर को अनुमंडल का दर्जा देने की मांग लंबे समय से चली आ रही है.
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पाकुड़ के तत्कालीन उपायुक्त ने 17 अगस्त 2013 को पत्रांक संख्या 7449 के जरिए महेशपुर को अनुमंडल का दर्जा देने की अनुशंसा की थी. इसके लिए संथाल परगना के आयुक्त से मंतव्य मांगा गया था, जो अभी तक लटका पड़ा है. फाइल धूल फांक रही है. कार्मिक, प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग को सात साल बाद भी प्रमंडलीय आयुक्त का मंतव्य नहीं मिला है. राजनीतिक दबाव बढ़ने पर 15 फरवरी 2021 को आयुक्त के नाम फिर पत्र भेजा गया है. इसके बावजूद बात नहीं बन पाई है. आयुक्त का मंतव्य मिल जाता तो प्रशासनिक इकाई के सृजन के लिए गठित उच्चस्तरीय समिति को फाइल भेज दी जाती. फिर समिति की अनुशंसा पर सरकार फैसला लेती कि महेशपुर को अनुमंडल का दर्जा दिया जाए या नहीं.
यह आदिवासी बहुल क्षेत्र है. इसकी सीमाएं पश्चिम बंगाल से लगी हुई हैं. यहां के लोगों का पश्चिम बंगाल में आना जाना दिनचर्या का हिस्सा है. महेशपुर में बड़े पैमाने पर पत्थर का उत्खनन होता है. बॉर्डर क्षेत्र होने के कारण अवैध तरीके से पत्थर की ढुलाई भी होती है. इससे सरकार को राजस्व का नुकसान होता है. यही नहीं महेशपुर में बड़े पैमाने पर अवैध तरीके से बालू की भी ढुलाई होती है. माफिया इस कदर हावी हैं कि यहां के प्रतिनिधि कई बार कह चुके हैं कि प्रशासनिक सिस्टम चुस्त नहीं हुआ तो आने वाले समय में यहां पहाड़ नजर नहीं आएंगे. इस मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के आश्वासन से एक आस जगी है. उन्होंने कहा कि बहुत जल्द इस दिशा में काम किया जाएगा. अब देखना है कि सरकार इसको लेकर वाकई गंभीर है या यह जुमला बनकर रह जाएगा.