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Jharkhand Scholarship Scam: आसान शब्दों में समझें क्या है झारखंड छात्रवृत्ति घोटाला - छात्रवृत्ति में फर्जीवाड़ा

झारखंड में इन दिनों छात्रवृत्ति घोटाले का मामला गूंज रहा है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इसकी जांच के आदेश दे दिए हैं. आइए सरल शब्दों में समझें कि झारखंड छात्रवृत्ति घोटाला आखिर है क्या.

झारखंड छात्रवृत्ति घोटाला
झारखंड छात्रवृत्ति घोटाला
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Published : Nov 6, 2020, 2:34 PM IST

रांचीः गरीब छात्रों के लिए बनी छात्रवृत्ति योजना की रकम को झारखंड में कथित तौर पर बंदरबांट की गई है. इस योजना के तहत केंद्र सरकार गरीब छात्रों को पढ़ाई के लिए एक तय रकम देती है. कहा जा रहा है कि छात्रों के नाम पर बैंक कर्मचारियों, बिचौलियों और स्कूल कर्मचारियों ने कथित तौर पर बड़ी रकम का फर्जीवाड़ा किया है.


छात्रवृत्ति घोटाले की जांच शुरू

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने छात्रवृत्ति घोटाले की जांच के आदेश दे दिए हैं. उन्होंने 4 नवंबर को दुमका में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि एक बड़ा छात्रवृत्ति घोटाला उनके संज्ञान में आया है. उन्होंने मुख्य सचिव सुखदेव सिंह को इस घोटाले की जांच की जिम्मेदारी दी है. उन्होंने कहा कि झारखंड में तब भाजपा की सरकार थी और रघुवर दास मुख्यमंत्री थे. यह मामला कल्याण विभाग के अंतर्गत आता है और उस वक्त लुईस मरांडी कल्याण मंत्री थीं. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बताया कि वह बदले की भावना से राजनीति करने में यकीन नहीं रखते लेकिन इस घोटाले की जांच करवाई जाएगी और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.


ये भी पढ़ें-EXCLUSIVE: प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप घोटाला, सुनिए लाभुक छात्रा और संदिग्ध स्कूल संचालक की जुबानी


बिचौलिया की भूमिका

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार फर्जीवाड़ा करनेवाला गिरोह अल्पसंख्यक समुदाय के जरूरतमंद लोगों की तलाश करता है और उन्हें सऊदी अरब से मदद दिलाने के नाम पर आधार कार्ड और बैंक खाते की जानकारी लेता है. इसके बाद राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल में छात्रवृत्ति के लिए आवेदन जमा किया जाता है. बैंक खाते में छात्रवृत्ति की रकम आने पर गिरोह के लोग कुछ रुपए बैंक खाते के मालिक को देते हैं और बाकी रुपए खुद हजम कर जाते हैं. छात्र अपने खातों में प्राप्त वास्तविक राशि के बारे में जानते ही नहीं हैं.


कहां से खुली फर्जीवाड़े की पोल

रामगढ़ जिले में दुलमी प्रखंड के बोंगासौरी गांव के एक सरकारी अनुदान प्राप्त मदरसे में सबसे पहले फर्जीवाड़े का पता चला था. रामगढ़ के जिस मदरसा फैजुल बारी में फर्जीवाड़े की बात कही गई, जब ईटीवी भारत की टीम वहां पहुंची तो स्थानीय लोगों के बताया कि मदरसा लॉकडाउन के समय से बंद है. हालांकि पूर्व में ही छात्रवृत्ति में फर्जीवाड़ा की आशंका को लेकर अंजुमन कमेटी ने रामगढ़ डीसी को आवेदन देकर मामले की जांच की मांग की थी. अंजुमन कमेटी ने डीसी को लिखा था कि वित्तीय वर्ष 2019- 20 के दौरान फैजुल रज्जा मदरसा में महिलाओं और पुरुषों को सातवीं-आठवीं का स्टूडेंट बताकर छात्रवृत्ति दे दी गई है. इस पूरे मामले में जब हमने जिला कल्याण पदाधिकारी रामेश्वर चौधरी से बात की तो उन्होंने बताया कि उपायुक्त के निर्देश पर 3 सदस्यीय टीम मामले की जांच कर रही है.

धनबाद के जेवियर्स पब्लिक स्कूल बरवाअड्डा के प्रिंसिपल घनश्याम साव ने ईटीवी भारत को बताया कि इस स्कूल में मात्र 6 छात्रों का ही एडमिशन का अपडेट पोर्टल पर अपलोड किया गया था. बाद में जब अन्य छात्रों की जानकारी अपलोड करना चाहा तो पासवर्ड फेल हो गया. उन्होंने जब जिला कल्याण पदाधिकारी से संपर्क किया तो पता चला कि उनके मोबाइल नंबर को हटाकर किसी दूसरे का मोबाइल नंबर डाल दिया गया है. मोबाइल नंबर सही करवाने के बाद घनश्याम ने जब लॉगिन किया तो देखा कि कुल 341 छात्रों का रजिस्ट्रेशन किया जा चुका है. यानी फर्जीवाड़ा करने वाला गिरोह ऐसे ही मोबाइल नंबर बदलकर फर्जी छात्रों का रजिस्ट्रेशन करवाता है और छात्रवृत्ति की रकम मिलने पर हड़प लेता है.


ये भी पढ़ें-झारखंड में छात्रवृत्ति घोटालाः फर्जी छात्रों के नाम पर बैंक खातों से 23 करोड़ का घालमेल

प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना क्या है?

प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों की मदद करने के लिए है. मुस्लिम, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध परिवारों में 1 लाख रुपये से कम वार्षिक आय वाले परिवारों के छात्रों को अपनी कक्षा की परीक्षा में कम से कम 50 प्रतिशत अंक लाने की आवश्यकता होती है. छात्रवृत्ति हर साल दो स्तरों में दी जाती है. कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों को हर साल 1,000 रुपये मिलते हैं. छात्रावास में रहने वाले कक्षा 6 से 10 के छात्रों के 10,700 रुपये दिये जाते हैं जबकि डे-स्कॉलर के लिए ये रकम 5,700 रुपये हैं.


ये भी पढ़ें-स्कूलों को खबर भी नहीं उनके नाम पर निकाल ली अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति, एनएसपी पोर्टल का काम देखने वाले कर्मचारियों को शोकॉज

झारखंड के लिए कितनी रकम मिली

अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के अनुसार साल 2019-20 के दौरान प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के तहत झारखंड को 61 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया. मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 2,03,628 छात्रों ने आवेदन किया और 84,133 छात्रों ने छात्रवृत्ति दी गई. 2018-19 में झारखंड के लिए 34.61 करोड़ रुपये दिए गए. तब 1,66,423 छात्रों ने आवेदन किया और केवल 50,466 छात्रों को छात्रवृत्ति मिली. यहां ये भी बता दें कि शैक्षणिक वर्ष 2019-20 के लिए देशभर में प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति के लिए 1423.89 करोड़ रुपये का वितरण किया गया था.

छात्रवृत्ति का आवेदन करने के लिए राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल (एनएसपी) पर पंजीकरण अनिवार्य है. छात्रों को अपने शैक्षिक दस्तावेज, बैंक खाते का विवरण और आधार संख्या देना होता है. छात्रों को हर साल अगस्त और नवंबर के बीच योजना के लिए आवेदन करने के लिए कहा जाता है जबकि पैसा सालाना वितरित किया जाता है.

ये भी पढ़ें-अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति घोटाला मामले की जांच तेज, सभी परतें खोलने में जुटी तीन सदस्यीय टीम


छात्रवृत्ति के लिए आवेदन की प्रक्रिया

योग्य छात्रों को राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल (एनएसपी) पर पंजीकरण करने के लिए शैक्षिक दस्तावेज, बैंक खाता विवरण और आधार संख्या जमा करने की आवश्यकता होती है. अल्पसंख्यकों के लिए योजना हर साल अगस्त से नवंबर तक खुली रहती है. इस साल छात्र 30 नवंबर तक आवेदन कर सकते हैं. यह योजना केवल ऑनलाइन है और कोई भी छात्र एनएसपी वेबसाइट या मोबाइल एप्लिकेशन के जरिये आवेदन कर सकता है. योग्य छात्रों को छात्रवृत्ति का वितरण साल में एक बार आमतौर पर अप्रैल या मई में किया जाता है. कोई भी व्यक्ति अपने बैंक खाता नंबर या एप्लिकेशन आईडी के माध्यम से लोक वित्त प्रबंधन प्रणाली सॉफ्टवेयर के माध्यम से भुगतान को ट्रैक कर सकता है. चूंकि अधिकांश छात्र इस प्रक्रिया से अनजान हैं इसलिए स्कूल उनके आवेदन को भरता है और कुछ मामलों में बिचौलियों को इसका लाभ मिल जाता है.


सत्यापन की प्रक्रिया

  • छात्र को छात्रवृत्ति के लिए आवेदन करने में सक्षम बनाने के लिए, संस्थान/स्कूल को एक नोडल अधिकारी नियुक्त करना होगा और एनएसडी पोर्टल पर नोडल अधिकारी को खुद को पंजीकृत करना होगा.
  • आवेदन को स्कूल/संस्थान स्तर पर और फिर अधिवास जिले या अधिवास राज्य स्तर पर सत्यापित किया जाना चाहिए.
  • अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय छात्रवृत्ति राशि तभी जारी करेगा जब आवेदन का सत्यापन सभी अधिकारियों द्वारा अनुमोदित हो.
  • यदि आवेदन किसी भी कारण से संबंधित अधिकारियों द्वारा अस्वीकार कर दिया जाता है, तो आवेदन करने वाले छात्रों को छात्रवृत्ति नहीं मिलेगी.

ये भी पढ़ें-स्कॉलरशिप घोटाला और स्किल समिट ऑफर लेटर मामले की होगी जांच, धर्म कोड पर एक 11 नवंबर को विशेष सत्र: हेमंत सोरेन


राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल क्या है?

राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल (एनएसपी) एक वन-स्टॉप समाधान है, जिसके माध्यम से छात्र विभिन्न सेवाओं जैसे आवेदन, आवेदन रसीद, सत्यापन जैसी सुविधाएं पा सकते हैं. राष्ट्रीय-ई गवर्नेंस योजना के तहत लॉन्च राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल 50 अलग -अलग छात्रवृतियों के लिए एक मंच के तौर पर काम करता है. इसके जरिए केंद्र सरकार गरीब परिवार के बच्चों की पढ़ाई के लिए छात्रवृति देती है. ये पोर्टल छात्रवृत्ति के आवेदन और उसके निष्पादन को सरल और पारदर्शी बनाता है. इसका उद्देश्य छात्रवृत्ति की राशि को बिना किसी बाधा के सीधे छात्रों के बैंक खाते में भेजना है.

छात्रवृत्ति घोटाले वाले अन्य राज्य

  • बिहार में वित्तीय वर्ष 2014-15 के दौरान पांच करोड़ से ज्यादा का एससी-एसटी छात्रवृत्ति घोटाला उजागर हुआ था. आर्थिक अपराध इकाई को इसकी जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई थी.
  • उत्तराखंड में भी छात्रवृत्ति घोटाला का मामला सामने आया है. सामाजिक कार्यकर्ता रविंद्र जुगरान ने नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि समाज कल्याण विभाग के द्वारा वर्ष 2003 से लेकर 2020 तक अनुसूचित जाति एवं जनजाति के छात्रों की छात्रवृत्ति का पैसा नहीं दिया गया है. साल 2017 में इसकी जांच के लिए एसआईटी गठित की गई थी और 3 माह के भीतर जांच पूरी करने को भी कहा था, लेकिन इस पर आगे की कोई कार्रवाई नहीं हो सकी.
  • इसी तरह हिमाचल प्रदेश में साल 2013-14 से 2016-17 तक 924 निजी संस्थानों के छात्रों को 210.05 करोड़ रुपये और 18 हजार 682 सरकारी संस्थानों के छात्रों को 56.35 करोड़ रुपये की छात्रवृत्ति दी गई. आरोप है कि इस दौरान फर्जी दस्तावेजों के आधार पर मोटी रकम हड़प ली गई और छात्रों को छात्रवृत्ति मिली ही नहीं. इस मामले की जांच सीबीई कर रही है.
  • पंजाब में भी छात्रवृत्ति का कथित घोटाला सामने आया है. साल 2019 के दौरान निजी कॉलेजों के छात्रों के लिए केंद्र से 303 करोड़ रुपये मिले थे, जिसमें 39 करोड़ रुपये से संबंधित रिकॉर्ड नहीं हैं. माना जा रहा है कि इस राशि का गबन किया गया है या फर्जी संस्थानों को जारी कर दिया गया है. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह इस छात्रवृत्ति घोटाले की जांच के आदेश दे चुके हैं.

रांचीः गरीब छात्रों के लिए बनी छात्रवृत्ति योजना की रकम को झारखंड में कथित तौर पर बंदरबांट की गई है. इस योजना के तहत केंद्र सरकार गरीब छात्रों को पढ़ाई के लिए एक तय रकम देती है. कहा जा रहा है कि छात्रों के नाम पर बैंक कर्मचारियों, बिचौलियों और स्कूल कर्मचारियों ने कथित तौर पर बड़ी रकम का फर्जीवाड़ा किया है.


छात्रवृत्ति घोटाले की जांच शुरू

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने छात्रवृत्ति घोटाले की जांच के आदेश दे दिए हैं. उन्होंने 4 नवंबर को दुमका में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि एक बड़ा छात्रवृत्ति घोटाला उनके संज्ञान में आया है. उन्होंने मुख्य सचिव सुखदेव सिंह को इस घोटाले की जांच की जिम्मेदारी दी है. उन्होंने कहा कि झारखंड में तब भाजपा की सरकार थी और रघुवर दास मुख्यमंत्री थे. यह मामला कल्याण विभाग के अंतर्गत आता है और उस वक्त लुईस मरांडी कल्याण मंत्री थीं. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बताया कि वह बदले की भावना से राजनीति करने में यकीन नहीं रखते लेकिन इस घोटाले की जांच करवाई जाएगी और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.


ये भी पढ़ें-EXCLUSIVE: प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप घोटाला, सुनिए लाभुक छात्रा और संदिग्ध स्कूल संचालक की जुबानी


बिचौलिया की भूमिका

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार फर्जीवाड़ा करनेवाला गिरोह अल्पसंख्यक समुदाय के जरूरतमंद लोगों की तलाश करता है और उन्हें सऊदी अरब से मदद दिलाने के नाम पर आधार कार्ड और बैंक खाते की जानकारी लेता है. इसके बाद राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल में छात्रवृत्ति के लिए आवेदन जमा किया जाता है. बैंक खाते में छात्रवृत्ति की रकम आने पर गिरोह के लोग कुछ रुपए बैंक खाते के मालिक को देते हैं और बाकी रुपए खुद हजम कर जाते हैं. छात्र अपने खातों में प्राप्त वास्तविक राशि के बारे में जानते ही नहीं हैं.


कहां से खुली फर्जीवाड़े की पोल

रामगढ़ जिले में दुलमी प्रखंड के बोंगासौरी गांव के एक सरकारी अनुदान प्राप्त मदरसे में सबसे पहले फर्जीवाड़े का पता चला था. रामगढ़ के जिस मदरसा फैजुल बारी में फर्जीवाड़े की बात कही गई, जब ईटीवी भारत की टीम वहां पहुंची तो स्थानीय लोगों के बताया कि मदरसा लॉकडाउन के समय से बंद है. हालांकि पूर्व में ही छात्रवृत्ति में फर्जीवाड़ा की आशंका को लेकर अंजुमन कमेटी ने रामगढ़ डीसी को आवेदन देकर मामले की जांच की मांग की थी. अंजुमन कमेटी ने डीसी को लिखा था कि वित्तीय वर्ष 2019- 20 के दौरान फैजुल रज्जा मदरसा में महिलाओं और पुरुषों को सातवीं-आठवीं का स्टूडेंट बताकर छात्रवृत्ति दे दी गई है. इस पूरे मामले में जब हमने जिला कल्याण पदाधिकारी रामेश्वर चौधरी से बात की तो उन्होंने बताया कि उपायुक्त के निर्देश पर 3 सदस्यीय टीम मामले की जांच कर रही है.

धनबाद के जेवियर्स पब्लिक स्कूल बरवाअड्डा के प्रिंसिपल घनश्याम साव ने ईटीवी भारत को बताया कि इस स्कूल में मात्र 6 छात्रों का ही एडमिशन का अपडेट पोर्टल पर अपलोड किया गया था. बाद में जब अन्य छात्रों की जानकारी अपलोड करना चाहा तो पासवर्ड फेल हो गया. उन्होंने जब जिला कल्याण पदाधिकारी से संपर्क किया तो पता चला कि उनके मोबाइल नंबर को हटाकर किसी दूसरे का मोबाइल नंबर डाल दिया गया है. मोबाइल नंबर सही करवाने के बाद घनश्याम ने जब लॉगिन किया तो देखा कि कुल 341 छात्रों का रजिस्ट्रेशन किया जा चुका है. यानी फर्जीवाड़ा करने वाला गिरोह ऐसे ही मोबाइल नंबर बदलकर फर्जी छात्रों का रजिस्ट्रेशन करवाता है और छात्रवृत्ति की रकम मिलने पर हड़प लेता है.


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प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना क्या है?

प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों की मदद करने के लिए है. मुस्लिम, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध परिवारों में 1 लाख रुपये से कम वार्षिक आय वाले परिवारों के छात्रों को अपनी कक्षा की परीक्षा में कम से कम 50 प्रतिशत अंक लाने की आवश्यकता होती है. छात्रवृत्ति हर साल दो स्तरों में दी जाती है. कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों को हर साल 1,000 रुपये मिलते हैं. छात्रावास में रहने वाले कक्षा 6 से 10 के छात्रों के 10,700 रुपये दिये जाते हैं जबकि डे-स्कॉलर के लिए ये रकम 5,700 रुपये हैं.


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झारखंड के लिए कितनी रकम मिली

अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के अनुसार साल 2019-20 के दौरान प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के तहत झारखंड को 61 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया. मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 2,03,628 छात्रों ने आवेदन किया और 84,133 छात्रों ने छात्रवृत्ति दी गई. 2018-19 में झारखंड के लिए 34.61 करोड़ रुपये दिए गए. तब 1,66,423 छात्रों ने आवेदन किया और केवल 50,466 छात्रों को छात्रवृत्ति मिली. यहां ये भी बता दें कि शैक्षणिक वर्ष 2019-20 के लिए देशभर में प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति के लिए 1423.89 करोड़ रुपये का वितरण किया गया था.

छात्रवृत्ति का आवेदन करने के लिए राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल (एनएसपी) पर पंजीकरण अनिवार्य है. छात्रों को अपने शैक्षिक दस्तावेज, बैंक खाते का विवरण और आधार संख्या देना होता है. छात्रों को हर साल अगस्त और नवंबर के बीच योजना के लिए आवेदन करने के लिए कहा जाता है जबकि पैसा सालाना वितरित किया जाता है.

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छात्रवृत्ति के लिए आवेदन की प्रक्रिया

योग्य छात्रों को राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल (एनएसपी) पर पंजीकरण करने के लिए शैक्षिक दस्तावेज, बैंक खाता विवरण और आधार संख्या जमा करने की आवश्यकता होती है. अल्पसंख्यकों के लिए योजना हर साल अगस्त से नवंबर तक खुली रहती है. इस साल छात्र 30 नवंबर तक आवेदन कर सकते हैं. यह योजना केवल ऑनलाइन है और कोई भी छात्र एनएसपी वेबसाइट या मोबाइल एप्लिकेशन के जरिये आवेदन कर सकता है. योग्य छात्रों को छात्रवृत्ति का वितरण साल में एक बार आमतौर पर अप्रैल या मई में किया जाता है. कोई भी व्यक्ति अपने बैंक खाता नंबर या एप्लिकेशन आईडी के माध्यम से लोक वित्त प्रबंधन प्रणाली सॉफ्टवेयर के माध्यम से भुगतान को ट्रैक कर सकता है. चूंकि अधिकांश छात्र इस प्रक्रिया से अनजान हैं इसलिए स्कूल उनके आवेदन को भरता है और कुछ मामलों में बिचौलियों को इसका लाभ मिल जाता है.


सत्यापन की प्रक्रिया

  • छात्र को छात्रवृत्ति के लिए आवेदन करने में सक्षम बनाने के लिए, संस्थान/स्कूल को एक नोडल अधिकारी नियुक्त करना होगा और एनएसडी पोर्टल पर नोडल अधिकारी को खुद को पंजीकृत करना होगा.
  • आवेदन को स्कूल/संस्थान स्तर पर और फिर अधिवास जिले या अधिवास राज्य स्तर पर सत्यापित किया जाना चाहिए.
  • अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय छात्रवृत्ति राशि तभी जारी करेगा जब आवेदन का सत्यापन सभी अधिकारियों द्वारा अनुमोदित हो.
  • यदि आवेदन किसी भी कारण से संबंधित अधिकारियों द्वारा अस्वीकार कर दिया जाता है, तो आवेदन करने वाले छात्रों को छात्रवृत्ति नहीं मिलेगी.

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राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल क्या है?

राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल (एनएसपी) एक वन-स्टॉप समाधान है, जिसके माध्यम से छात्र विभिन्न सेवाओं जैसे आवेदन, आवेदन रसीद, सत्यापन जैसी सुविधाएं पा सकते हैं. राष्ट्रीय-ई गवर्नेंस योजना के तहत लॉन्च राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल 50 अलग -अलग छात्रवृतियों के लिए एक मंच के तौर पर काम करता है. इसके जरिए केंद्र सरकार गरीब परिवार के बच्चों की पढ़ाई के लिए छात्रवृति देती है. ये पोर्टल छात्रवृत्ति के आवेदन और उसके निष्पादन को सरल और पारदर्शी बनाता है. इसका उद्देश्य छात्रवृत्ति की राशि को बिना किसी बाधा के सीधे छात्रों के बैंक खाते में भेजना है.

छात्रवृत्ति घोटाले वाले अन्य राज्य

  • बिहार में वित्तीय वर्ष 2014-15 के दौरान पांच करोड़ से ज्यादा का एससी-एसटी छात्रवृत्ति घोटाला उजागर हुआ था. आर्थिक अपराध इकाई को इसकी जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई थी.
  • उत्तराखंड में भी छात्रवृत्ति घोटाला का मामला सामने आया है. सामाजिक कार्यकर्ता रविंद्र जुगरान ने नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि समाज कल्याण विभाग के द्वारा वर्ष 2003 से लेकर 2020 तक अनुसूचित जाति एवं जनजाति के छात्रों की छात्रवृत्ति का पैसा नहीं दिया गया है. साल 2017 में इसकी जांच के लिए एसआईटी गठित की गई थी और 3 माह के भीतर जांच पूरी करने को भी कहा था, लेकिन इस पर आगे की कोई कार्रवाई नहीं हो सकी.
  • इसी तरह हिमाचल प्रदेश में साल 2013-14 से 2016-17 तक 924 निजी संस्थानों के छात्रों को 210.05 करोड़ रुपये और 18 हजार 682 सरकारी संस्थानों के छात्रों को 56.35 करोड़ रुपये की छात्रवृत्ति दी गई. आरोप है कि इस दौरान फर्जी दस्तावेजों के आधार पर मोटी रकम हड़प ली गई और छात्रों को छात्रवृत्ति मिली ही नहीं. इस मामले की जांच सीबीई कर रही है.
  • पंजाब में भी छात्रवृत्ति का कथित घोटाला सामने आया है. साल 2019 के दौरान निजी कॉलेजों के छात्रों के लिए केंद्र से 303 करोड़ रुपये मिले थे, जिसमें 39 करोड़ रुपये से संबंधित रिकॉर्ड नहीं हैं. माना जा रहा है कि इस राशि का गबन किया गया है या फर्जी संस्थानों को जारी कर दिया गया है. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह इस छात्रवृत्ति घोटाले की जांच के आदेश दे चुके हैं.
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