रांचीः अमर शहीद वीर बुधु भगत के नाम से चिन्हित जमीन पर एकलव्य आवासीय विद्यालय बनाए जाने का विरोध दिनोंदिन बढ़ रहा है. राज्य के कई आदिवासी सामाजिक संगठन एकजुट होकर उग्र आंदोलन की चेतावनी दी है.
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अमर शहीद वीर बुधु भगत की जन्म स्थली सिलंगाई में उनके नाम से 52 एकड़ जमीन चिन्हित किया गया है. जहां वीर बुधु भगत की जयंती के अवसर पर जतरा मेला का आयोजन होता है. इस जमीन पर केंद्रीय आदिवासी कल्याण मंत्रालय की ओर से एकलव्य आवासीय विद्यालय बनाया जा रहा है, जिसका आदिवासी समाज के बड़े तबके ने विरोध किया है.
आदिवासी समाज की मांग है वीर बुधु भगत के नाम से चिन्हित पर आवासीय विद्यालय ना बनाकर क्षेत्र के कहीं दूसरे जमीन पर विद्यालय बनाया जाए. जिससे समाज के लोगों को इस विद्यालय का लाभ मिले और स्वतंत्रता सेनानी रहे वीर बुधु भगत का अस्तित्व भी बरकरार रहे.
अमर शहीद वीर बुधु भगत के नाम से चिन्हित जमीन पर जैसे ही आवासीय विद्यालय बनाए जाने का योजना लायी गई. आदिवासी समाज इसके विरोध में सड़क पर उतर आयी है. केंद्रीय आदिवासी कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा, सांसद सुदर्शन भगत और विधायक बंधु तिर्की का पुतला दहन कर लगातार चरणबद्ध आंदोलन किया जा रहा है, इसके बावजूद यहां निर्माण कार्य जारी है. इसको लेकर कई आदिवासी सामाजिक संगठन एकजुट होकर आगामी 25 सितंबर को एनएच जाम करने की चेतावनी दी है. साथ ही 3 अक्टूबर को सिलंगाई चलो नारा के साथ आवासीय विद्यालय का निर्माण कार्य रोकने की चेतावनी दी है.
अमर शहीद वीर बुधु भगत कोल आंदोलन के महानायक थे. जिन्होंने सन 1831-32 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम का आंदोलन छेड़ा और अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिया था. क्रांतिकारी बुधु भगत का जन्म 17 फरवरी 1792 में रांची के चान्हो प्रखंड में हुआ था. वो बचपन से ही तलवारबाजी और धनुर्विद्या का अभ्यास करते थे, साथ में हमेशा एक कुल्हाड़ी रखते थे.
ऐसा कहा जाता था कि वीर बुधु भगत को दैवीय शक्तियां प्राप्त थीं. इसलिए वो एक कुल्हाड़ी हमेशा अपने साथ रखते थे. कोल आंदोलन के जननेता बुधु भगत ने अंग्रेजों के जमींदारों, दलालों के विरुद्ध भूमि, वन की सुरक्षा के लिए जंग छेड़ी थी.
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अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ उन्होंने कई आंदोलन किए. जनजातियों को बचाने के लिए शुरू किए गए लरका आंदोलन और कोल विद्रोह की अगुआई भी उन्होंने की. अपने दस्ते को गुरिल्ला युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया. अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ने के लिए उस समय एक हजार रुपये के इनाम की घोषणा की थी. 13 फरवरी, 1832 को अपने गांव सिलागाई में अंग्रेजों की सेना से लड़ते हुए साथियों के साथ बुधु भगत शहीद हो गए.