रांची: जीवन में गुरु का किरदार सबसे अहम होता है, शिक्षक दिवस के दिन आमतौर पर हम अपने उन्हीं गुरुजनों को याद करते हैं और उनका सम्मान करते हैं. लेकिन हम आपको आज एक दूजे किस्म के गुरुजी के बारे में बताने जा रहे हैं. झारखंड पुलिस में एक ऐसे गुरुजी हैं, जिन्होंने अपने शागिर्दों को ना सिर्फ कानून की बारीकियां सिखाई बल्कि झारखंड पुलिस के लिए सबसे आफत बने लैंडमाइंस और खतरनाक बमों से बचाव और उसे निष्क्रिय करने की विधि भी बताई.
झारखंड पुलिस इंस्पेक्टर असित कुमार मोदी उस शख्स का नाम है जिसने 1994 में पुलिस में बहाली के बाद पुलिस सेवा में अपनी भूमिका ज्यादातर शिक्षक की ही निभाई. मोदी झारखंड-बिहार के पहले बम डिफ्यूज करने वाले एक्सपर्ट हैं. जिस समय असित मोदी ने नक्सलियों के बिछाए बमों को निष्क्रिय करना शुरू किया था, उस समय न तो झारखंड में बीडीएस की टीम थी और ना ही बिहार में. सिर्फ बमों को निष्क्रिय करने में ही मोदी को महारत हासिल नहीं है. इसके अलावा भी कानून की बारीकियों को भी बेहद बखूबी से समझते हैं और किताबों से उन्हें बेहद लगाव है. यही वजह है कि जब कभी कानून की धाराओं को लेकर कोई जूनियर पुलिस अफसर अटकता है तो वह सीधे मोदी को फोन लगाता है.
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खतरों के खिलाड़ी हैं असित मोदी
साल 1996 संयुक्त बिहार के गया जिले में 1994 बैच के एक दारोगा की पोस्टिंग हुई जिसका नाम था असित कुमार मोदी. झारखंड के बोकारो के चंदनकियारी के एक छोटे से गांव रामडीह के रहने वाले असित मोदी की पोस्टिंग जब गया में हुई तो उस समय जिले में नक्सलियों का आतंक था. नक्सली आमने-सामने की लड़ाई पर विश्वास न कर गोरिल्ला वार के जरिए पुलिस को लगातार नुकसान पहुंचा रहे थे. नक्सलियों के लगाए गए बम नक्सल अभियान में लगे जवानों के लिए आफत बने हुए थे. अगर कहीं बम होने की खबर मिलती तो सेना के बम निरोधक दस्ते को बमों को निष्क्रिय करने के लिए बुलाना पड़ता था. केमिस्ट्री में बैचलर डिग्री लेकर दारोगा बने असित मोदी को बमों के आगे बेबस अपने अधिकारियों और जवानों को देखकर यह ख्याल आया कि क्यों नहीं बमों को निष्क्रिय करने के लिए वे कोई प्रयास करें. चुकी असित कुमार मोदी ने केमिस्ट्री में अपनी पढ़ाई की थी और यह भली-भांति पता था कि बम बनाने में किस मैकेनिज्म का इस्तेमाल किया जाता है. अथक प्रयास के बाद असित मोदी ने बमों को कैसे निष्क्रिय किया जाता है यह सीख लिया. जिसके बाद वे संयुक्त बिहार के पहले बमों को निष्क्रिय करने वाले पुलिस अधिकारी बने. कैडर विभाजन के बाद 2004 में असित मोदी झारखंड चले आए और गुमला में उनकी पोस्टिंग हो गई.
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एनएसजी में भेजा गया ट्रेनिंग के लिए
झारखंड पुलिस के आला अधिकारियों ने जब देखा कि असित कुमार मोदी बिना किसी ट्रेनिंग के ही बमों को निष्क्रिय कर दे रहे हैं तो उन्हें बकायदा विशेष ट्रेनिंग के लिए एनएसजी भेजा गया. एनएसजी में ट्रेनिंग लेने के बाद जिस जिले में भी असित कुमार मोदी की पोस्टिंग हुई वहां उन्होंने खतरनाक बमों को निष्क्रिय किया. उनकी काबिलियत को देखकर झारखंड पुलिस की तरफ से उन्हें अमेरिका भेजा गया. जहां उन्होंने विशेष रूप से बमों को निष्क्रिय करने की तकनीक सीखी. असित मोदी कहते हैं कि सीनियर अफसरों उन्हें काफी मदद की, यही वजह है कि अब झारखंड में बम निरोधक दस्ते की 12 टीमें काम कर रही हैं.
कम हुई घटनाएं
झारखंड के निर्माण के समय से ही नक्सलवाद सबसे बड़ी समस्या बनकर सामने आई थी. साल 2000 से लेकर 2012 तक नक्सलियों ने लैंडमाइंस विस्फोट कर झारखंड पुलिस को कई मौकों पर बड़े-बड़े घाव दिए. लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं. असित मोदी ने जो प्रयास शुरू किया था वह आज के समय पूरी तरह से सफल हो चुका है. आज के समय में झारखंड बीडीएस की टीम इतनी सक्षम हो चुकी है कि वह नक्सलियों के बिछाए गए बमों के जाल को नुकसान पहुंचाने के पहले ही निष्क्रिय कर दे रही है. असित कुमार मोदी झारखंड के उन सभी इलाकों में जाकर अपने सहयोगियों और कनीय अफसरों को प्रैक्टिकली फील्ड ट्रेनिंग दे चुके हैं कि आखिर कैसे बमों से बचना है. बम का मैक्नीज में क्या है और कितनी सावधानी बरतनी चाहिए.
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फिलहाल कर रहे थानेदारी, फिर भी पढ़ाते हैं
असित कुमार मोदी फिलहाल राजधानी रांची में पोस्टेड हैं और गोंदा सदर सर्कल के थानेदार हैं. लेकिन वर्तमान में भी उनका अधिकांश समय पढ़ाने में ही बीता है. जब भी कोई टीम नक्सल अभियान के लिए निकलती है उससे पहले उसे ब्रीफ करने का काम मोदी ही करते हैं. इसके अलावा नए बहाल पुलिसकर्मियों को भी अक्सर वे पुलिस लाइन में कानून की बारीकियों की जानकारी देते हैं.