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ओपन जेल में रहने वाले 33 सरेंडर नक्सलियों के परिजन पहुंचे पुलिस मुख्यालय, डीजीपी से लगाई फरियाद

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Published : Feb 11, 2020, 4:24 AM IST

सोमवार की देर शाम हजारीबाग ओपन जेल में बंद 33 पूर्व नक्सलियों के परिजन राज्य पुलिस मुख्यालय पहुंचे. यहां सभी ने डीजीपी कमलनयन चौबे से मुलाकात की. परिजनों की मांग थी कि कई बंदी ओपन जेल में बीते चार-पांच सालों से बंद हैं. समर्पण नीति में जिक्र है कि समर्पण करने वाले नक्सलियों पर दर्ज मामलों का निष्पादन फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित कर किया जाएगा, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है.

Surrender Naxalites demand
पुलिस मुख्यालय

रांची: झारखंड में उग्रवादी समर्पण नीति के तहत सरेंडर करने वाले नक्सलियों को सरेंडर नीति के तहत राहत नहीं मिल रही है. सोमवार की देर शाम हजारीबाग ओपन जेल में बंद 33 पूर्व नक्सलियों के परिजन राज्य पुलिस मुख्यालय पहुंचे. यहां सभी ने डीजीपी कमलनयन चौबे से मुलाकात की. सरेंडर कर चुके नक्सलियों के परिजनों की मांग थी कि कई बंदी ओपन जेल में बीते चार-पांच सालों से बंद हैं.

समर्पण नीति में जिक्र है कि समर्पण करने वाले नक्सलियों पर दर्ज मामलों का निष्पादन फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित कर किया जाएगा, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है. पूर्व नक्सलियो के परिजनों ने मांग की है कि सरेंडर कर चुके उग्रवादियों पर दर्ज सारे मामले फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित कर सुनी जाएं, ताकि मामलों का तत्काल निष्पादन हो सके.

वकीलों का भी खर्च नहीं मिल रहा
परिजनों ने मुख्यमंत्री और डीजीपी को सौंपे आवेदन में लिखा है कि सरकार की तरफ से केस लड़ने के लिए निशुल्क वकील और केस पैरवी का सारा खर्च देने का प्रावधान है, लेकिन अभी तक इसका पैसा नहीं मिल पाया है. फास्ट ट्रैक की जगह समान्य न्यायालयों के द्वारा ही मामले निपटाए जा रहे हैं. परिजनों का आरोप है कि न्यायालय में उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. लंबे समय तक जेल में बंद रहने के बाद भी मामले निष्पादित नहीं हो रहे, जिससे सरेंडर कर चुके नक्सलियों को समस्याएं आ रही हैं.

ये भी पढ़ें: वेलेंटाइन डे के दिन से कांग्रेस भवन में मंत्रियों का जनता दरबार, कार्यकर्ता और जनता से मंत्री होंगे मुखातिब

ये भी हैं पूर्व नक्सलियों की मांगें

  • सरेंडर करने वाले बंदियों को अपना परिचित वकील नियुक्त करने का अधिकार मिले, जिसका पैसा सरकार वहन करे.
  • सरेंडर करने वाले नक्सलियों के दर्ज मामलों में पीपी, पेशकार समेत कानूनी प्रक्रिया से जुड़े लोग त्वरित निष्पादन की पहल करें.
  • बंदियों के बच्चों को शिक्षा और हॉस्टल का खर्च दिया जाए. अभी तक यह लाभ नहीं मिला.
  • गृह निर्माण के लिए सुरक्षित जमीन और मकान बनाने की राशि दी जाए.
  • सरेंडर के एक या दो साल बाद मिलने वाला वार्षिक पुनर्वास राशि ससमय दिया जाए.
  • सरेंडर करने वाले नक्सलियों की पत्नियों को जीविकोपार्जन और तत्काल रहने के लिए रूम रेंट का खर्च दिया जाए.
  • बंदियों को जीवन बीमा, प्रत्यर्पण प्रमाण पत्र और अन्य लाभ तत्काल दिए जाएं.

रांची: झारखंड में उग्रवादी समर्पण नीति के तहत सरेंडर करने वाले नक्सलियों को सरेंडर नीति के तहत राहत नहीं मिल रही है. सोमवार की देर शाम हजारीबाग ओपन जेल में बंद 33 पूर्व नक्सलियों के परिजन राज्य पुलिस मुख्यालय पहुंचे. यहां सभी ने डीजीपी कमलनयन चौबे से मुलाकात की. सरेंडर कर चुके नक्सलियों के परिजनों की मांग थी कि कई बंदी ओपन जेल में बीते चार-पांच सालों से बंद हैं.

समर्पण नीति में जिक्र है कि समर्पण करने वाले नक्सलियों पर दर्ज मामलों का निष्पादन फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित कर किया जाएगा, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है. पूर्व नक्सलियो के परिजनों ने मांग की है कि सरेंडर कर चुके उग्रवादियों पर दर्ज सारे मामले फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित कर सुनी जाएं, ताकि मामलों का तत्काल निष्पादन हो सके.

वकीलों का भी खर्च नहीं मिल रहा
परिजनों ने मुख्यमंत्री और डीजीपी को सौंपे आवेदन में लिखा है कि सरकार की तरफ से केस लड़ने के लिए निशुल्क वकील और केस पैरवी का सारा खर्च देने का प्रावधान है, लेकिन अभी तक इसका पैसा नहीं मिल पाया है. फास्ट ट्रैक की जगह समान्य न्यायालयों के द्वारा ही मामले निपटाए जा रहे हैं. परिजनों का आरोप है कि न्यायालय में उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. लंबे समय तक जेल में बंद रहने के बाद भी मामले निष्पादित नहीं हो रहे, जिससे सरेंडर कर चुके नक्सलियों को समस्याएं आ रही हैं.

ये भी पढ़ें: वेलेंटाइन डे के दिन से कांग्रेस भवन में मंत्रियों का जनता दरबार, कार्यकर्ता और जनता से मंत्री होंगे मुखातिब

ये भी हैं पूर्व नक्सलियों की मांगें

  • सरेंडर करने वाले बंदियों को अपना परिचित वकील नियुक्त करने का अधिकार मिले, जिसका पैसा सरकार वहन करे.
  • सरेंडर करने वाले नक्सलियों के दर्ज मामलों में पीपी, पेशकार समेत कानूनी प्रक्रिया से जुड़े लोग त्वरित निष्पादन की पहल करें.
  • बंदियों के बच्चों को शिक्षा और हॉस्टल का खर्च दिया जाए. अभी तक यह लाभ नहीं मिला.
  • गृह निर्माण के लिए सुरक्षित जमीन और मकान बनाने की राशि दी जाए.
  • सरेंडर के एक या दो साल बाद मिलने वाला वार्षिक पुनर्वास राशि ससमय दिया जाए.
  • सरेंडर करने वाले नक्सलियों की पत्नियों को जीविकोपार्जन और तत्काल रहने के लिए रूम रेंट का खर्च दिया जाए.
  • बंदियों को जीवन बीमा, प्रत्यर्पण प्रमाण पत्र और अन्य लाभ तत्काल दिए जाएं.
Intro:ओपन जेल में रहने वाले 33 सरेंडर नक्सलियो  के परिजन पहुंचे पुलिस मुख्यायल ,डीजीपी से लगाई फरियाद


रांची।
झारखंड में उग्रवादी समर्पण नीति के तहत सरेंडर करने वाले नक्सलियो को सरेंडर नीति के तहत राहत नहीं मिल रही है। सोमवार की देर शाम हजारीबाग ओपन जेल में बंद 33 पूर्व नक्सलियों के परिजन राज्य पुलिस मुख्यालय पहुंचे। यहां सभी ने डीजीपी कमलनयन चौबे से मुलाकात की। सरेंडर कर चुके नक्सलियो के परिजनों की मांग थी कि कई बंदी ओपन जेल में बीते चार- पांच सालों से बंद हैं। समर्पण नीति में जिक्र है कि समर्पण करने वाले नक्सलियो पर दर्ज मामलों का निष्पादन फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित कर किया जाएगा। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। पूर्व नक्सलियो के परिजनों ने मांग की है कि सरेंडर कर चुके उग्रवादियों पर दर्ज सारे मामले फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित कर सुनी जाएं, ताकि मामलों का तत्काल निष्पादन हो सके।

वकीलों का भी खर्च नहीं मिल रहा

परिजनों ने मुख्यमंत्री व डीजीपी को सौंपे आवेदन में लिखा है कि सरकार की तरफ से केस लड़ने के लिए निशुल्क वकील और केस पैरवी का सारा खर्च देने का प्रावधान है। लेकिन अभी तक इसका पैसा नहीं मिल पाया है। फास्ट ट्रैक की जगह समान्य न्यायालयों के द्वारा ही मामले निपटाए जा रहे हैं। परिजनों का आरोप है कि न्यायालय में उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। लंबे समय तक जेल में बंद रहने के बाद भी मामले निष्पादित नहीं हो रहे , जिससे सरेंडर कर चुके नक्सलियो को समस्याएं आ रही हैं।

ये भी हैं पूर्व नक्सलियो की मांगे
- सरेंडर करने वाले बंदियों को अपना परिचित वकील नियुक्त करने का अधिकारी मिले, जिसका पैसा सरकार वहन करे।
- सरेंडर करने वाले नक्सलियो के दर्ज मामलों में पीपी, पेशकार समेत कानूनी प्रक्रिया से जुड़े लोग त्वरित निष्पादन की पहल करें।
- बंदियों के बच्चों को शिक्षा व हॉस्टल का खर्च दिया जाए, अभी तक यह लाभ नहीं मिला।
- गृह निर्माण के लिए सुरक्षित जमीन व मकान बनाने की राशि दी जाए।
-सरेंडर के एक या दो साल बाद मिलने वाला वार्षिक पुनर्वास राशि ससमय दिया जाए।
- सरेंडर करने वाले नक्सलियो की पत्नियों को जीविकोपार्जन व तत्काल रहने हेतू रूम रेंट का खर्च दिया जाए।
- बंदियों को जीवन बीमा, प्रत्यर्पण प्रमाण पत्र व अन्य लाभ तत्काल दिए जाएं।Body:1Conclusion:2
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