रांची: झारखंड में कृषि विपणन पर्षद (State Agricultural Marketing Board) सफेद हाथी साबित हो रहा है. विभागीय लचर व्यवस्था के कारण सरकार का यह महत्वपूर्ण कार्यालय आर्थिक बदहाली से गुजर रहा है. हालत यह है कि 27 अप्रैल 2015 के बाद से मार्केटिंग बोर्ड को फूटी कौड़ी भी राजस्व के रूप में नहीं मिला है. ऐसे में यहां कार्यरत कर्मी बोर्ड की दयनीय स्थिति को लेकर काफी चिंतित है. इसके माध्यम से व्यापारी और किसानों के बीच समन्वय बनाया जाता है. न्यूनतम समर्थन मूल्य पर मार्केटिंग बोर्ड कृषि उपज को खरीद बिक्री करता है. जिसके लिए बाजार समिति राज्यभर में गठित की गई है. जहां किसानों को एक कैंपस में बाजार उपलब्ध होता था.
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बदहाली की क्या है वजह
राज्य कृषि विपणन परिषद (State Agricultural Marketing Board) के आय का मुख्य साधन बाजार समितियों की ओर से संग्रहित राजस्व में से 20 फीसदी हिस्सा का मिलना है. बाजार समितियों की ओर से व्यापारियों से बाजार समिति कैंपस और हाट बाजारों में लगने वाले दुकानों से टैक्स के रूप में 1% वसूल की जाती है. टैक्स कलेक्शन में आ रही गड़बड़ी और भ्रष्टाचार की शिकायत को देखते हुए राज्य सरकार ने 27 अप्रैल 2015 को बाजार समिति प्रांगण और हाट बाजार को टैक्स फ्री कर दिया. सरकार के इस फैसले का साइड इफेक्ट बाजार समिति से लेकर मार्केटिंग बोर्ड पर पड़ता चला गया. टैक्स कलेक्शन खत्म होते ही राज्य के सभी 28 बाजार समितियों की माली हालत बिगड़ती चली गई. इस फैसले से कई बाजार समितियों की आर्थिक स्थिति बेहद ही खराब होने के कारण दूसरे जिले के बाजार समिति से टैग कर उनके कर्मचारियों के वेतन देने की व्यवस्था की गई.
बाजार समितियों के आमदनी का क्या है मुख्य श्रोत
वर्तमान में इन बाजार समितियों का आमदनी का मुख्य श्रोत बाजार समिति प्रांगण में बने दुकानों और गोदामों के भाड़ा से है. लेकिन राज्य के कई जिलों में ऐसे भी बाजार समिति हैं, जिनके पास कुछ भी अपना संपत्ति नहीं है. ऐसे में इन जिलों के कर्मचारियों को आर्थिक रूप से संपन्न दूसरे जिले के बाजार समिति से टैग कर वेतन भुगतान की व्यवस्था की गई है. रांची पंडरा बाजार समिति से लातेहार बाजार समिति को टैग कर वेतन दिया जा रहा है. इसी तरह से हजारीबाग, बोकारो, जमशेदपुर, धनबाद और अन्य शहरों के बाजार समिति को टैग किया गया है.
पंडरा बाजार समिति के सचिव अभिषेक आनंद के अनुसार रांची पंडरा बाजार समिति को दुकानों और गोदाम के भाड़े से हर साल करीब 2-3 करोड़ आय होती है. इसके अलावे बाजार समिति के बैंक में फिक्स डिपोजिट करीब 100 करोड़ है. जिसके सूद से काम चलाया जाता है. मार्केटिंग बोर्ड के शंभू सिंह की मानें तो जिस उद्देश्य से बाजार समिति और मार्केटिंग बोर्ड की स्थापना हुई थी वो आज कहीं ना कहीं अपने उदेश्य से भटक गया है. अपने उत्पादों को बेचने के लिए किसान परेशान हैं, पर बाजार नहीं मिल पा रहा है. संयुक्त बिहार के बाद कोई भी नया बाजार समिति झारखंड में नहीं गठित हुआ है जो भी है वह अपने अस्तित्व के लड़ रहा है.
मार्केटिंग बोर्ड और बाजार समितियों में बदलाव की तैयारी
बदहाल पड़े कृषि विपणन पर्षद (Agricultural Marketing Board) को सरकार ने सुधारने का फैसला किया है. कृषि विपणन पर्षद से लेकर बाजार समिति तक में बड़े पैमाने पर बदलाव होंगे. कृषि मंत्री बादल ने विभाग के इस प्रस्ताव पर मुहर लगाकर कैबिनेट मंजूरी के लिए भेज दिया है. कृषि मंत्री बादल के अनुसार कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद मार्केटिंग बोर्ड में बड़े पैमाने पर बदलाव होगा.
मार्केटिंग बोर्ड में इस तरह होगा बदलाव
बाजार समिति के अध्यक्ष एसडीओ होते हैं. सरकार अध्यक्ष के पद को मनोनयन की तरफ से भरने की तैयारी कर रही है. स्वभाविक रूप से मनोनयन के आधार पर बाजार समिति का अध्यक्ष पद पर राजनीतिक व्यक्ति भी आसीन होंगे. यदि ऐसा होता है तो राज्य के सभी 28 बाजार समितियों को पुर्नगठित होगा.
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बाजार समितियों को टैक्स कलेक्शन का मिलेगा अधिकार
राज्य सरकार एक बार फिर बाजार समितियों को टैक्स कलेक्शन का अधिकार देने की तैयारी में है. यदि यह होता है तो 27 अप्रैल 2015 से पूर्व की तरह बाजार समिति को 1% टैक्स वसुलने का अधिकार होगा. बाजार समिति की ओर से संकलित राजस्व में से 20 फीसदी राशि मार्केटिंग बोर्ड को मिलेगा. जिससे आर्थिक कमी मार्केटिंग बोर्ड की दूर होगी. मार्केटिंग बोर्ड को सुव्यवस्थित कर बाजार समितियों पर नियंत्रण इसके माध्यम से रखा जाएगा.
व्यापारिक गतिविधि को मजबूत करने की तैयारी
किसानों और व्यापारियों के बीच समन्वय बनाने के लिए कृषि विपणन पर्षद की स्थापना की गई है. लेकिन जब समन्वय बनाने वाले का ही खस्ताहाल हो तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि किसानों की समस्या कितनी दूर हो रही होगी. जिसका फायदा व्यापारी वर्ग को होता है. ऐसे में सरकार मार्केटिंग बोर्ड को पुर्नगठित कर राज्य में व्यापारिक गतिविधि को मजबूत करने की तैयारी में है. जिससे राजस्व संग्रह के साथ-साथ किसानों को फसलों का समुचित मूल्य मिल सके.