रांची: राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में सबसे बड़ा सोलर पैनल लगाया गया था ताकि परंपरागत ऊर्जा के स्रोत पर कम बोझ हो और परंपरागत ऊर्जा के स्रोत का संरक्षण किया जा सके, लेकिन रिम्स प्रबंधन की उदासीनता की वजह से रिम्स की छत पर लगा हजारों सोलर पैनल प्लेट अपनी क्षमता के अनुसार पूरी तरह से काम नहीं कर पा रहा है.
पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के शासनकाल में रिम्स के छत पर 400 किलोवाट बिजली उत्पन्न करने के लिए 1400 सोलर पैनल लगाए गए हैं ताकि रिम्स में बिजली की कमी को पूरा किया जा सके, लेकिन रिम्स के अधिकारियों की उदासीनता के कारण सोलर पैनल सही तरीके से काम नहीं कर रहा है. वहीं, 400 किलोवाट का सोलर प्लांट का कनेक्शन रिम्स के सभी ऑपरेशन थिएटर, मॉडलर ऑपरेशन थिएटर और सभी वार्ड के इमरजेंसी सेवा से जोड़ा गया है ताकि अगर किसी तकनीकी खराबी के कारण अचानक बिजली गायब हो जाती है तो मरीजों के लिए इमरजेंसी सेवा को बहाल रखा जा सके.
वहीं, अगर देखें तो वर्ष 2017 में जब सोलर प्लांट लगाया गया था तो उस समय रिम्स की पुरानी बिल्डिंग में 20 से 25 एयर कंडीशन ही उपयोग में लाए जा रहे थे, लेकिन वर्तमान में इसकी संख्या लगभग डेढ़ सौ के करीब है जिस कारण भी सोलर प्लांट से निकलने वाली बिजली रिम्स की आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ है.
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प्रतिदिन 2200 किलो वाट बिजली की खपत
अगर बात करें रिम्स की तो मिली जानकारी के अनुसार रिम्स में 2200 किलो वाट बिजली की खपत प्रतिदिन है जिसमें 400 किलोवाट बिजली रिम्स में लगे सोलर प्लांट से उत्पन्न होती है. वहीं, बाकी के 1800 किलो वाट बिजली रिम्स में बाहर से मिलती है. इस आंकड़े से यह अनुमान तो जरूर लगाया जा सकता है कि पूरे रिम्स के भार को सोलर प्लांट से उत्पन्न की हुई बिजली से पूरा नहीं किया जा सकता.
मामले में ईटीवी भारत की टीम ने जब पड़ताल की तो पाया कि रिम्स प्रबंधन के उदासीन रवैये के कारण अस्पताल में 400 किलो वाट की बिजली का उपयोग भी पूरे तरीके से नहीं हो पा रहा है क्योंकि इसके लिए लगाए जाने वाला 500 किलो वाट का ट्रांसफार्मर रिम्स प्रबंधन की ओर से उपलब्ध नहीं कराया गया है. रिम्स में काम कर रहे सनग्रेस एनर्जी सोल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड के कर्मचारी की माने तो ट्रांसफार्मर लगाने के लिए रिम्स प्रबंधन को कई बार आवेदन दिया गया है लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब नहीं दिया जाता.
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रिम्स प्रबंधन की उदासीनता
सोलर पैनल्स की निगरानी करने के लिए बनाया गया कार्यालय भी रिम्स प्रबंधन की उदासीनता का दंश झेल रहा है. इसमें काम करने वाले कर्मचारी बताते हैं कि जहां पर ऑफिस बनाया गया है वहां पर गंदगी का अंबार है जिस वजह से कर्मचारी का बैठना भी दुर्लभ हो जाता है. रिम्स प्रबंधन को कई बार सोलर से निकलने वाली बिजली को नापने के लिए नेट मीटर लगाने को लेकर भी कहा गया है लेकिन प्रबंधन की ओर से कोई जवाब नहीं मिला है.
रिम्स में सांसद के प्रतिनिधि राजकिशोर बताते हैं कि इतना बड़ा सोलर प्लांट लगने के बावजूद भी रिम्स प्रबंधन छोटी-मोटी सावधानियां नहीं बरत पा रहा है. एक ट्रांसफार्मर नहीं रहने के कारण सोलर प्लांट का एक पैनल बेहतर तरीके से काम नहीं कर पा रहा है. जरूरत है कि रिम्स प्रबंधन इस पर ध्यान दे ताकि अस्पताल में आने वाले गरीब मरीजों को इसका सीधा लाभ मिल सके.
रिम्स में जेआरइडीए और उर्जा विभाग की पहल पर इतना बड़ा सोलर प्लांट इसलिए बनाया गया था ताकि रिम्स में ऊर्जा के स्रोत के लिए एक बेहतर विकल्प लाया जा सके और गरीब मरीजों को विपरीत परिस्थिति में भी इमरजेंसी सेवा दिया जा सके. वहीं, पूरे मामले पर हमने जब रिम्स प्रबंधन से जानकारी लेने की कोशिश की तो रिम्स के डिप्टी सुपरिटेंडेंट डॉ संजय ने जरेडा के अधिकारियों से बात करने का हवाला देकर कुछ भी कहने से मना कर दिया. वहीं, निदेशक भी पूरे मामले पर कुछ भी कहने से बचते नजर आए.
अब ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि भले ही ऊर्जा विभाग की तरफ से सोलर प्लांट रिम्स में लगाया गया हो लेकिन उसकी देखरेख की जिम्मेदारी रिम्स प्रबंधन को ही लेनी होगी तभी गरीब मरीजों को इसका सीधा लाभ मिल पाएगा.