रांचीः झारखंड के विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की कमी जिस तेजी से हो रही है. इससे शिक्षक-छात्र अनुपात बिगड़ रहा है. राज्य की सात यूनिवर्सिटी में हर साल औसतन 40 से अधिक शिक्षक रिटायर हो रहे हैं, लेकिन 2008 के बाद अब तक शिक्षकों की नियुक्ति पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. आलम यह है कि राज्य के विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर के रेगुलर पदों से ज्यादा बैकलॉग के पद खाली हैं और इन्हीं पदों को भरने के लिए जेपीएससी की ओर से आवेदन मांगे गए हैं, पर प्रक्रिया पूरी होने में काफी समय लगने की आशंका है.
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राज्य गठन के बाद एक ही बार नियुक्ति
राज्य गठन के बाद से अब तक मात्र एक बार ही नियुक्ति हुई है. इसके चलते राज्य के विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की कमी का सीधा असर छात्र-छात्राओं की पढ़ाई पर पड़ रहा है. वर्ष 2018 तक की रिक्तियों के अनुसार राज्य के सात विश्वविद्यालयों में सहायक अध्यापकों के ही 1,118 पद खाली हैं. रांची विश्वविद्यालय में 268, विनोबा भावे विश्वविद्यालय में 155, सिद्धू कान्हू विश्वविद्यालय में 188, नीलांबर-पीतांबर विश्वविद्यालय में 161 और कोल्हान विश्वविद्यालय में 364 सहायक प्रधानाध्यापक के पद रिक्त हैं. इनमें 552 पद पर सीधी और 556 पर बैकलॉग नियुक्ति की जानी है.
हैरानी की बात यह है कि इन पदों के लिए नियुक्ति की प्रक्रिया 2 वर्ष से चल रही है, लेकिन अब तक जेपीएससी की ओर से आवेदन ही मांगे जा रहे हैं. इससे पहले भी जेपीएससी की ओर से बैकलॉग की रिक्तियां भरने के लिए आवेदन मांगे गए थे. लगभग 14 हजार आवेदन जमा भी हुए, इसके बावजूद अब तक नियुक्तियों को लेकर कोई ठोस पहल नहीं की गई. मामले को लेकर रांची विश्वविद्यालय के पूर्व सीनेटर राजेश गुप्ता ने भी सवाल खड़ा किए हैं. इनकी मानें तो विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की कमी के कारण इसका बुरा असर विद्यार्थियों के पठन-पाठन पर पड़ रहा है. इस ओर जल्द से जल्द संबंधित अधिकारियों और सरकार को ध्यान देने की जरूरत है.
विश्वविद्यालयों की स्थिति
नीलांबर पीतांबर विश्वविद्यालय में 19 पीजी विभाग में 132 सृजित पद खाली हैं. वर्ष 2009 में रांची विश्वविद्यालय से अलग कर नीलांबर पीतांबर विश्वविद्यालय का गठन हुआ था. विश्वविद्यालय के पीजी विभाग और कॉलेजों को मिलाकर कुल 161 पद खाली हैं. विश्वविद्यालय के गठन के समय ही 19 पीजी विभागों में शिक्षकों के लिए 132 पद, जिसमें 22 प्रोफेसर और 44 एसोसिएट प्रोफेसर और 66 असिस्टेंट प्रोफेसर के पद रिक्त पड़े हैं. इन पर नियुक्ति नहीं की गई है .पीजी विभागों में लगभग 3000 छात्र हैं. इनकी पढ़ाई का जिम्मा सिर्फ 18 प्रति नियुक्त शिक्षकों पर ही है. ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस विश्वविद्यालय में पठन-पाठन की स्थिति क्या होगी. राज्य गठन के 19 वर्ष में अब तक मात्र एक बार ही वर्ष 2008 में विश्वविद्यालयों में 850 सहायक प्रध्यापक की नियुक्ति की गई थी. उसके बाद आज तक किसी भी विश्वविद्यालय में नियुक्ति नहीं की गई है.
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आरयू-डीएसपीएमयू में भी शिक्षकों की कमी
रांची विश्वविद्यालय से ही अलग किए गए डीएसपीएमयू विश्वविद्यालय में कॉलेज के समय के ही शिक्षकों के 148 पद स्वीकृत हैं. इनमें 73 शिक्षक कार्यरत हैं और 75 पद अभी भी खाली हैं. वहीं, विश्वविद्यालय बनने के बाद प्रोफेसर के 29, एसोसिएट प्रोफेसर के 58, असिस्टेंट प्रोफेसर के 116 पद सृजित करने का प्रस्ताव सरकार को भेजा गया है, लेकिन अब तक यह प्रस्ताव सरकार के समक्ष लंबित ही है. इस ओर भी उच्च शिक्षा विभाग का बिल्कुल भी ध्यान नहीं है.
वहीं, राज्य के सबसे पुराने विश्वविद्यालय रांची विश्वविद्यालय की हम बात करें तो आरयू में शिक्षकों के 1,108 पद सृजित हैं. इनमें 509 शिक्षक कार्यरत हैं जबकि सेवानिवृत्ति के कारण 599 पद खाली हैं. इनके अलावा भी थर्ड ग्रेड के 764 में से 436 और फोर्थ ग्रेड के 731 में से 393 पद खाली हैं. आरयू में तो मार्च महीने में ही 48 शिक्षक सेवानिवृत्त भी हो गए हैं. इनमें 28 एसोसिएट प्रोफेसर हैं और 12 असिस्टेंट प्रोफेसर हैं और 7 प्रोफेसर शामिल है. ऐसे में पहले से ही शिक्षकों की कमी जूझ रहे इस विश्वविद्यालय की हालत पठन-पाठन को लेकर दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है. मामले को लेकर जब विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार अमर कुमार चौधरी से बातचीत की गई तो उनका कहना है कि जेपीएससी की ओर से आवेदन मांगे गए हैं. जल्द ही इस समस्या को दूर किया जाएगा. हालांकि पठन-पाठन में परेशानी न हो इसे लेकर कॉन्ट्रैक्ट पर 483 शिक्षकों की नियुक्ति की गई है.
राज्य के अन्य विश्वविद्यालयों में भी संकट
राज्य के अन्य विश्वविद्यालयों की हालत भी कमोबेश ऐसी ही है शिक्षकों की कमी के कारण कई परेशानियों का सामना विद्यार्थियों को करना पड़ रहा है. आरयू, बिनोवा भावे विश्वविद्यालय, सिद्धू कान्हू विश्वविद्यालय, नीलांबर -पीतांबर विश्वविद्यालय, डीएसपीएमयू के अलावा अब बिनोद बिहारी महतो विश्वविद्यालय और कोल्हान विश्वविद्यालय जैसे नए विश्वविद्यालय भी शिक्षकों के कमी से जूझ रहे हैं. अनुबंध पर शिक्षकों की बहाली कर पठन-पाठन सुचारू रूप से संचालित भले ही किया जा रहा है लेकिन झारखंड में विद्यार्थियों के अनुपात में शिक्षकों की भारी गिरावट आ चुकी है. राज्य के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में आवश्यकता के अनुसार शिक्षक कम हैं.
छात्र-शिक्षक अनुपात के चौंकाने वाले आंकड़े
6 साल में छात्र छात्राओं की संख्या दोगुनी हो गई है. झारखंड के विश्वविद्यालय और कॉलेजों में छात्र शिक्षक का अनुपात लगातार खराब हो रहा है. विद्यार्थी बढ़ते गए और शिक्षक सेवानिवृत्त होते गए. वर्ष 2012-13 के रिपोर्ट के आधार पर 48 छात्र छात्राओं पर एक शिक्षक उपलब्ध थे. 6 साल बाद यानी कि हालिया आंकड़ा 2018-19 में यह अनुपात 73 हो गया है. अभी कॉलेजों में 73 छात्र-छात्राओं पर एक शिक्षक उपलब्ध हैं, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर 29 छात्रों पर एक शिक्षक उपलब्ध हैं. ऐसे में झारखंड के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की स्थिति क्या है. इसका अंदाजा इन आंकड़ों के आधार पर ही लगाया जा सकता है.