रांचीः झारखंड जनजातीय महोत्सव (Jharkhand Tribal Festival) में देश विदेश से आये विद्वानों ने आदिवासियों के संस्कृति, सभ्यता और इतिहासिक पहलुओं पर प्रकाश डाला गया. मोरहाबादी स्थित टीआरआई में विभिन्न विषयों पर आयोजित सेमिनार में विद्वानों ने कहा कि किवंदती किताबों की कहानियों का अहम हिस्सा बन जाती हैं. इसकी वजह है कि किवंदती कथाये झुर्रियों से झांकती जुबां से आती हैं, जिन्होंने पल-पल प्रकृति में खुद को महसूस किया है और प्रकृति को ही अपना इष्ट माना है. जनजातीय शोध संस्थान (Tribal Research Institute) सभागार में आयोजित सेमिनार में जनजातीय भाषाओं, संस्कृति और परंपराओं के विशेषज्ञों ने जनजातीय साहित्य, इतिहास, जनजातीय दर्शन और मनुष्य जाति के विकास में जनजाति के महत्व के बारे में विस्तार से चर्चा की. इस अवसर पर विभिन्न राज्यों और विभिन्न जिलों से आये स्कॉलरों ने मनुष्य जाति के विकास में जनजाति के महत्व को बताया.
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ट्राइबल लिट्रेचर पर सेमिनारः जनजातीय शोध संस्थान में आयोजित सेमिनार में ट्रायबल लिट्रेचर पर चर्चा हुई. जनजाति परंपराओं के जानकार ने विभिन्न मंचों से अलग-अलग विषयों पर अपना व्याख्यान दिया. देर शाम तक चले व्याख्यान में जनजातीय समुदाय का कैसे पहाड़ों, नदियों और जंगलों से अटूट रिश्ता रहा है. इसको लेकर साहित्य के अलग-अलग पहलुओं पर विशेषज्ञों ने अपनी बात रखी. इस अवसर पर प्रयागराज से प्रो जनार्दन गोण्ड, असम से कविता करमाकर, मुंबई से संतोष कुमार सोनकर और विनोद कुमार, गुवाहाटी से दिनकर कुमार, दिल्ली के जेएनयू से अरुण कुमार उरांव, ओडिशा से हेमंत दलपती, कर्नाटक से सानता नायक, बिहार से रूद्र चरण मांझी, छत्तीसगढ़ से डॉ देवमेत मिंझ और रांची से कुसुम माधुरी टोप्पो, महादेव टोप्पो और प्रो पार्वती तिर्की आदि साहित्य के विद्वानों ने जनजातीय साहित्य पर विस्तृत प्रकाश डाला.
ट्राइबल एन्थ्रोपोलॉजी पर व्याख्यानः ट्राइबल एन्थ्रोपोलॉजी पर आयोजित सेमिनार में मनुष्य जाति के विकास में जनजाति के महत्व को बताया गया. वक्ताओं ने कहा कि खुद को जनजाति कहलाना पसंद करते हैं या नहीं. पहले पूरे गांव की जमीन हुआ करती थी. आज जमीन का प्राइवेटाइजेशन हो गया है. वक्ताओं ने कहा कि जनजाति आंदोलनों को फिर से पढ़ने की आवश्यकता है. लोगों को उसके बारे में जानना चाहिए. उन्होंने जनजाति समूह द्वारा निर्मित चीजों को जीआई टैग से जोड़ने की बात कही, ताकि उनकी सामग्री का उन्हें उचित मूल्य मिल सके.
जनजाति इतिहास पर आयोजित सेमिनारः झारखंड जनजातीय महोत्सव 2022 के अवसर पर मोरहाबादी मैदान स्थित जनजातीय शोध संस्थान में ट्राइबल हिस्ट्री पर सेमिनार का आयोजन किया गया. इसमें जाने-माने वक्ताओं ने भाग लिया और ट्राइबल हिस्ट्री के बारे में जानकारी दी. ट्राइबल हिस्ट्री सेमिनार में यूके से आई प्रोफेसर विनिता दामोदरन ने आदिवासियों का ग्लोबल इन्वायरमेंट में योगदान से संबंधित जानकारी दी. उन्होंने कहा कि आदिवासी प्रकृति पूजक होते हैं. जल, जंगल, जमीन की सुरक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं. प्रो संगीता दास गुप्ता ने रीराइटिंग इंडिजेनस हिस्ट्री के बारे में बताया. वहीं यूएस से डॉ राहुल रंजन ने बिरसा मुंडा की जीवनी और झारखंड के परिप्रेक्ष्य में उनके योगदान से संबंधित जानकारी दी. जनजातीय शोध संस्थान में ट्राइबल फिलॉसफी पर सेमिनार का भी आयोजन किया गया. इसमें डॉ गोमती बोदरा ने जनजातीय दर्शन पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि जनजातीय दर्शन के अध्ययन से ही जनजातियों के सामजिक और सांस्कृतिक मूल्यों को भलिभांति समझा जा सकता है. इस अवसर पर डॉ आइसा गौतम, डॉ संतोष किंडो, प्रो मृणाल मिरी और प्रो सुजाता मिरी ने अपने विचार व्यक्त किये.