रांची: सरयू राय ने झारखंड के निवर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास पर गंभीर आरोप लगाते हुए पूरे मामले की एसीबी से जांच कराने की मांग की है. उन्होंने इस बाबत मुख्यमंत्री हेमंत सोरोन को 15 पन्नों की चिट्ठी लिखी है. सरयू राय का आरोप है कि झारखंड में लौह-अयस्क के अवैध खनन को प्रोत्साहित करने, सरकारी खजाना पर अरबों रूपया की चपत लगाने, अवैध खनन के दोषियों को नियमानुकूल कारवाई से बचाने, अवैध खनन करने वालों पर लगाये गये अरबों रुपये के जुर्माना की वसूली नहीं करने, महाधिवक्ता के साथ सांठगांठ कर जुर्माना वसूली संबंधी सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की अवहेलना करने, कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों को परेशान और प्रताड़ित करने तथा उन्हें अपमानित कर पद से हटाने के षड्यंत्र में निवर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास शामिल रहे हैं. उनके साथ इस षड्यंत्र में शामिल अवैध खनन के अन्य दोषियों एवं षड्यंत्रकारियों को भी दंडित किया जाना चाहिए. सरयू राय ने 32 प्वाइंट का उल्लेख करते हुए पूरे मामले की एसीबी से जांच कराने की मांग की है.
लौह अयस्क का अवैध खनन
उनका कहना है कि वर्ष 2000 से 2011 के बीच झारखंड एवं अन्य लौह अयस्क धारित राज्यों में बडे़ पैमाने पर लौह अयस्क का अवैध खनन हुआ था. अवैध खनन की जांच करने के लिये यूपीए की तत्कालीन भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश एमबी शाह (अवकाश प्राप्त) की अध्यक्षता में 22 नवम्बर 2010 को एक उच्च शक्ति प्राप्त जांच आयोग का गठन किया था, जिसने अक्टूबर 2013 में अपना प्रतिवेदन भारत सरकार को सौंप दिया. आयोग ने अपनी जांच में सिद्ध किया कि उक्त अवधि में झारखंड में बड़े पैमाने पर लौह अयस्क का अवैध खनन हुआ था. आयोग ने झारखंड में अवैध खनन करने वाले विभिन्न लौह अयस्क पट्टाधारियों पर अवैध खनन की मात्रा के हिसाब से कुल 14,541 करोड़ रूपये का जुर्माना लगाया था. यह जुर्माना अवैध खनन से उत्खनित लौह अयस्क की कीमत और इसपर ब्याज की राशि को जोड़कर था. इसी प्रकार का जुर्माना अन्य लौह अयस्कधारी राज्यों के पट्टाधारियों पर भी शाह आयोग ने लगाया था.
घटाई गई जुर्माना राशि
पट्टाधारी इसके विरूद्ध सर्वोच्च न्यायालय गये तो माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने जुर्माना पर ब्याज की राशि माफ कर दिया और आदेश दिया कि पट्टाधारियों को जुर्माना की मूल राशि का भुगतान एकमुश्त करना होगा. किश्तों में जुर्माना चुकाने की अवैध खननकर्ताओं की मांग माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया. अवैध खनन के जुर्माना की कुल मूल राशि में से ब्याज की राशि घटा देने के बाद झारखंड में अवैध खनन करने वालों पर लगायी गई जुर्माना की राशि 14,541 करोड़ से घटकर 7133 करोड़ रूपया हो गई. इसके बाद अवैध खननकर्ताओं से जुर्माना वसूल करने का काम झारखंड सरकार को करना था. इसके साथ ही अवैध खनन करने के दोषी पाये गये पट्टाधारियों के खनन पट्टों को नियमानुसार रद्द करने की कारवाई के बारे में निर्णय लेने का दायित्व भी झारखंड सरकार पर था. जिस समय शाह आयोग का प्रतिवेदन आया उस समय झारखंड में यूपीए की सरकार थी जिसके मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन थे. तत्कालीन सरकार ने जुर्माना वसूलने के लिये त्वरित कारवाई आरम्भ किया. इसके लिये 9 जून, 2014 को एक उच्चस्तरीय समिति गठित की, ताकि शाह आयोग द्वारा चिन्हित लौह अयस्क के खनन पट्टाधारियों द्वारा अवैध खनन के दौरान की गई अनियमितताओं को चिन्हित कर नियमानुसार अग्रेतर कारवाई की जा सके. इस समिति ने 20 सितंबर 2014 को प्रतिवेदन दे दिया. समिति ने बताया कि झारखंड में लौह अयस्क का खनन करनेवाले खननकर्ताओं में से किस-किस ने किन-किन नियमों का उल्लंघन कर अवैध खनन किया है. इसके बाद झारखंड सरकार को अवैध खनन करने वालों पर नियमानुसार कार्रवाई करनी थी, उन्हें नोटिस जारी करनी थी, उनसे जुर्माना वसूलना था और उनका खनन पट्टा रद्द करने की कारवाई आरम्भ करनी थी.
रघुवर दास बने सीएम
इसके कुछ ही दिन बाद झारखंड में विधानसभा के आम चुनावों की घोषणा हो गई. चुनाव के बाद आपके नेतृत्व वाली यूपीए सरकार बदल गई. इसकी जगह एनडीए की सरकार बनी. रघुवर दास इस सरकार के मुख्यमंत्री बने. अब इस नवगठित सरकार को पूर्ववर्ती सरकार द्वारा तय किये गये जुर्माना की राशि को अवैध खननकर्ताओं से वसूलना था, लेकिन इसके उलट इस सरकार ने अवैध खनन के दोषियों को बचाने का षड्यंत्र आरम्भ कर दिया. नवनियुक्त मुख्यमंत्री रघुवर दास स्वयं इस षडयंत्र का सूत्रधार बन गये. अवैध खनन करने वालों के विरूद्ध कारवाई करने और उनसे जुर्माना वसूलने का मामला ठंढे बस्ते में पड गया. जुर्माना की वसूली रूक गई. एक षड्यंत्र के तहत यह वसूली नहीं होने दी गई. षडयंत्र का पहला कदम आरम्भ हुआ जुर्माना की राशि वसूलने की कार्रवाई करने के बदले जुर्माना की राशि को घटाने की साजिश करने के साथ. पश्चिम सिंहभूम जिला के खान पदाधिकारी का चाईबासा कार्यालय इस षडयंत्र का केन्द्र बना. सरकार ने पश्चिम सिंहभूम जिला के उस जिला खान पदाधिकारी को हटा दिया जिसने शाह आयोग द्वारा की गई अनुशंसा के आधार पर ब्याज समेत जुर्माना की कुल राशि 14,541 करोड़ रुपये निर्धारित किया था. खान विभाग ने पत्रांक 825/एम दिनांक 30.05.2014 द्वारा इसकी वसूली के लिये मांग नोटिस भेजा. पत्रांक 467/एम., दिनांक 02.05.2015 द्वारा पुनः वसूली नोटिस दिया गया. बाद में इस मांग को संशोधित किया गया. 02.05.2015 को पुनः एक संशोधित मांग पत्र जुर्माना वसूली के लिये अवैध खननकर्ताओं को भेजा गया. इसमें मूलधन एवं ब्याज सहित मांग घटाकर 7,133 करोड़ रूपया कर दी गई. मांग में यह कमी शाह ब्रदर्स, एनके पीके, पीके जैन, देबका बाई भेलजी आदि सभी खननकत्र्ताओं के संबंध में थी.
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सरकार ने इस जिला खान पदाधिकारी को बदलकर नया जिला खान पदाधिकारी नियुक्त किया. नवनियुक्त जिला खान पदाधिकारी ने एमएमडीआर एक्ट 1960 की धारा 21(5) के तहत जुर्माना राशि की गणना फिर से किया. पूर्ववर्ती जिला खान पदाधिकारी द्वारा की गई गणना के अनुसार शाह ब्रदर्स पर ब्याज की पूर्व निर्धारित राशि को छोड़कर जुर्माना 605.56 करोड़ रुपया थी. नये जिला खान पदाधिकारी ने पता नहीं किस फॉर्मूला से इसको घटाकर करीब 194.59 करोड़ रुपये कर दिया. ज्ञात हो कि सर्वोच्च न्यायालय ने मूल जुर्माना पर सूद की राशि माफ कर दिया था. परंतु उस आदेश में जुर्माना चुकाने में विलंब करनेवालों के मूल जुर्माने पर विलंब अवधि के लिये सूद नहीं लेने की बात नहीं थी. प्रश्न यह है कि दोनों जिला खान पदाधिकारियों में से कौन पदाधिकारी शाह आयोग की कसौटी पर सही है? यह जांच के बाद ही पता चलेगा कि दोनों में से एक सही है तो दूसरा गलत है. इसलिये इसकी जांच अवश्य होनी चाहिये और जांचोपरांत उसपर कार्रवाई होनी चाहिये जो दोषी है. सरयू राय ने सिलसिलेवार अन्य बिंदुओं का जिक्र किया है. 15 पन्नों की चिट्ठी में बिंदुवार लगाए गए आरोपों को पढ़ा जा सकता है. उन्होंने आरोप लगाया है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास के अलावा तत्कालीन महाधिवक्ता ने भी जानबूझकर अवैध खनन को संरक्षण देने में अहम भूमिका निभायी है.