रांची: पूर्वी सिंहभूम के सिविल सर्जन डॉ अरविंद कुमार लाल को सेवा से बर्खास्त करने की अनुशंसा पर JPSC की सहमति मिल जाने के बावजूद सिविल सर्जन के पद पर उन्हें बहाल रखना सही है, इस सवाल का जो जवाब झारखंड स्टेट हेल्थ सर्विसेस एसोसिएशन (झासा) और राजनीतिक दलों की ओर से आया है वह स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करता है. इस पूरे प्रकरण को अंजाम के करीब तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाने वाले जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय ने तो सिविल सर्जन की जगह सीधे स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता पर निशाना साधा है. उनका कहना है कि अब मुख्यमंत्री को देखना चाहिए कि राज्य में क्या हो रहा है.
सेवा में रहते हुए बिना विभाग को जानकारी दिए लड़ा था विधानसभा चुनाव: डॉ अरविंद कुमार लाल 19 जुलाई 1997 से 13 जुलाई 2006 तक तत्कालीन बिहार के वैशाली जिले के एपीएचसी, जेरंग में मेडिकल अफसर के पद पर कार्यरत थे. उसी दौरान उन्होंने बिहार विधानसभा का चुनाव 2005 में बिना विभाग को जानकारी दिए विधानसभा चुनाव लड़ा था. इसके लिए ना ही उन्होंने बिहार सरकार को जानकारी दी थी और न ही अनुमति ली थी.
झारखंड कैडर की सेवा में आने के बाद पहली बार करीब 5 वर्ष पहले यह मुद्दा सबके सामने आया, लेकिन कार्रवाई की जगह फाइल मोटी होती चली गयी. 2021 में सरयू राय ने जब विधानसभा में फिर एक बार फिर इस मुद्दे को उठाया तब उनके खिलाफ कार्रवाई आगे तो बढ़ी पर सवाल यह कायम रहा कि सिविल सर्जन जैसे महत्वपूर्ण पद पर उस अधिकारी को बैठाए रखना सही है जिसे बर्खास्त करने की प्रक्रिया अंतिम चरण में है.
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जिस अधिकारी पर सख्त कार्रवाई होनी है उसे महत्वपूर्ण पद पर बैठाए रखना ठीक नहीं: डॉ अरविंद कुमार लाल को सेवा से बर्खास्त करने की सहमति JPSC से मिलने के बाद अब कैबिनेट और मुख्यमंत्री की सहमति लेना शेष है. ऐसे में झासा के प्रदेश सचिव डॉ विमलेश सिंह ने कहा कि सिविल सर्जन का पद स्वास्थ्य विभाग के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है. इसलिए वैसे अधिकारी जिन्हें बर्खास्त करने की कार्रवाई चल रही है उन्हें सिविल सर्जन के पद पर बनाये रखना ठीक नहीं है.
वहीं, राज्य सरकार में शामिल राजद के राष्ट्रीय महासचिव अभय कुमार सिंह ने कहा कि जो अधिकारी अपने कृत्यों की वजह से बर्खास्त होने के करीब पहुंच गया है उसे कार्रवाई होने तक संटिंग में डाल देना चाहिए. झारखंड महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष गुंजन सिंह ने कहा कि सरकार की नीयत साफ है कि गड़बड़ी करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा, ऐसे में जिस अधिकारी पर बर्खास्तगी की तलवार लटक रही है उन्हें खुद पद को त्याग देना चाहिए.