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झारखंड विधानसभा परिसर में सरहुल मिलन समारोह, मांदर की थाप पर जमकर नांचे स्पीकर रबीन्द्र नाथ महतो - Jharkhand news

झारखंड विधानसभा परिसर में सरहुल मिलन समारोह आयोजित का आयोजन किया गया. इस दौरान विधानसभाध्यक्ष रबीन्द्र नाथ महतो ने मांदर बजाकर लोगों को इस पर्व की शुभकामनाएं और बधाई दी.

Sarhul Milan Ceremony in Jharkhand Assembly Complex
Sarhul Milan Ceremony in Jharkhand Assembly Complex
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Published : Apr 1, 2022, 9:53 PM IST

रांची: झारखंड विधानसभा परिसर में शुक्रवार को सरहुल मिलन समारोह आयोजित किया गया. इस अवसर पर विधानसभाध्यक्ष रबीन्द्र नाथ महतो ने मांदर बजाकर लोगों को प्रकृति पर्व सरहुल की बधाई दी. इस दौरान पारंपरिक वेशभूषा में आए आदिवासी महिला पुरुषों के साथ विधानसभाध्यक्ष ने सरहुल के गीतों पर झूमे. कार्यक्रम में विधायक राजेश कच्छप सहित कई विधायक शामिल भी हुए.

ये भी पढ़ें: राजधानी में शोभायात्रा निकालकर मनाया जाएगा प्रकृति पर्व सरहुल, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने दिया आश्वाशन

विधानसभा परिसर में सरहुल मिलन समारोह के मौके पर विधानसभाध्यक्ष रबीन्द्र नाथ महतो ने प्रकृति पर्व सरहुल की विशेषता बताते हुए कहा कि झारखंड को प्रकृति ने अपने प्राकृतिक धरोहरों से नवाजा है जिसके गर्भ में जल, जंगल और जमीन से जुड़ी हुई भावनाएं हैं. वन संपदा हमारी भारतीय संस्कृति और प्राचीन संस्कृति की अमूल्य धरोहर है जो हमारे राज्य झारखंड के सांस्कृतिक जीवन की आत्मा है.

रबीन्द्र नाथ महतो ने कहा कि सरहुल और बाहा पर्व फूलों का त्योहार के रूप में वसुधैव कुटुंबकम की भावनाओं को भी समाहित किए हुए हैं. सरहुल दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है सर और हुल जिसमें सर का अर्थ सड़ई अर्थात सखुआ यानी साल के पेड़ के फूलों से है जबकि हुल का अर्थ क्रांति से है. फूलों की क्रांति को सरहुल के नाम से जाना जाता है. इसी साल के पत्ते का प्रयोग संथाल हूल क्रांति में भी किया गया था.

विधानसभा अध्यक्ष ने सरहुल मिलन समारोह में कहा कि यह पर्व नए साल की शुरुआत का प्रतीक है, जो हमारे राज्य के राजकीय वृक्ष साल पेड़ों को अपनी शाखाओं पर नए मिलने का द्योतक है. वहीं इस त्यौहार की किवदंतियां महाभारत युद्ध से भी जुड़ी हुई हैं. सरहुल में डॉ रामदयाल मुंडा का कथन नाची से बांची यानी जो नाचेगा वही बचेगा क्योंकि नृत्य ही संस्कृति है. इस संस्कृति में महिलाओं की लाल पाड़ साड़ी में सफेद रंग पवित्रता और शालीनता का प्रतीक है वही लाल रंग संघर्ष को बतलाता है.


क्या है सरहुल: सरहुल झारखंड का लोकप्रिय पर्व है. सरहुल का शाब्दिक अर्थ है 'साल की पूजा', सरहुल त्योहार धरती माता को समर्पित है. इस त्योहार के दौरान प्रकृति की पूजा की जाती है. सरहुल कई दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें मुख्य पारंपरिक नृत्य सरहुल नृत्य किया जाता है. आदिवासियों का मानना ​​है कि वे इस त्योहार को मनाए जाने के बाद ही नई फसल का उपयोग मुख्य रूप से धान, पेड़ों के पत्ते, फूलों और फलों के फल का उपयोग कर सकते हैं. मुख्यत: यह पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है. जिसकी शुरूआत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया से होती है. इस वर्ष सरहुल 4 अप्रैल को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा मगर इसकी धमक अभी से देखी जा रही है.

रांची: झारखंड विधानसभा परिसर में शुक्रवार को सरहुल मिलन समारोह आयोजित किया गया. इस अवसर पर विधानसभाध्यक्ष रबीन्द्र नाथ महतो ने मांदर बजाकर लोगों को प्रकृति पर्व सरहुल की बधाई दी. इस दौरान पारंपरिक वेशभूषा में आए आदिवासी महिला पुरुषों के साथ विधानसभाध्यक्ष ने सरहुल के गीतों पर झूमे. कार्यक्रम में विधायक राजेश कच्छप सहित कई विधायक शामिल भी हुए.

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विधानसभा परिसर में सरहुल मिलन समारोह के मौके पर विधानसभाध्यक्ष रबीन्द्र नाथ महतो ने प्रकृति पर्व सरहुल की विशेषता बताते हुए कहा कि झारखंड को प्रकृति ने अपने प्राकृतिक धरोहरों से नवाजा है जिसके गर्भ में जल, जंगल और जमीन से जुड़ी हुई भावनाएं हैं. वन संपदा हमारी भारतीय संस्कृति और प्राचीन संस्कृति की अमूल्य धरोहर है जो हमारे राज्य झारखंड के सांस्कृतिक जीवन की आत्मा है.

रबीन्द्र नाथ महतो ने कहा कि सरहुल और बाहा पर्व फूलों का त्योहार के रूप में वसुधैव कुटुंबकम की भावनाओं को भी समाहित किए हुए हैं. सरहुल दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है सर और हुल जिसमें सर का अर्थ सड़ई अर्थात सखुआ यानी साल के पेड़ के फूलों से है जबकि हुल का अर्थ क्रांति से है. फूलों की क्रांति को सरहुल के नाम से जाना जाता है. इसी साल के पत्ते का प्रयोग संथाल हूल क्रांति में भी किया गया था.

विधानसभा अध्यक्ष ने सरहुल मिलन समारोह में कहा कि यह पर्व नए साल की शुरुआत का प्रतीक है, जो हमारे राज्य के राजकीय वृक्ष साल पेड़ों को अपनी शाखाओं पर नए मिलने का द्योतक है. वहीं इस त्यौहार की किवदंतियां महाभारत युद्ध से भी जुड़ी हुई हैं. सरहुल में डॉ रामदयाल मुंडा का कथन नाची से बांची यानी जो नाचेगा वही बचेगा क्योंकि नृत्य ही संस्कृति है. इस संस्कृति में महिलाओं की लाल पाड़ साड़ी में सफेद रंग पवित्रता और शालीनता का प्रतीक है वही लाल रंग संघर्ष को बतलाता है.


क्या है सरहुल: सरहुल झारखंड का लोकप्रिय पर्व है. सरहुल का शाब्दिक अर्थ है 'साल की पूजा', सरहुल त्योहार धरती माता को समर्पित है. इस त्योहार के दौरान प्रकृति की पूजा की जाती है. सरहुल कई दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें मुख्य पारंपरिक नृत्य सरहुल नृत्य किया जाता है. आदिवासियों का मानना ​​है कि वे इस त्योहार को मनाए जाने के बाद ही नई फसल का उपयोग मुख्य रूप से धान, पेड़ों के पत्ते, फूलों और फलों के फल का उपयोग कर सकते हैं. मुख्यत: यह पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है. जिसकी शुरूआत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया से होती है. इस वर्ष सरहुल 4 अप्रैल को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा मगर इसकी धमक अभी से देखी जा रही है.

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