रांची: सामाजिक ताना-बाना के बीच लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे 137 जोड़ों को भारतीय संस्कृति और परंपरा के अनुसार शादी के पावन सूत्र में बंधने के लिए निमित्त संस्था 9 फरवरी को सामूहिक विवाह का आयोजन करने जा रही है. निमित्त संस्थान उन 137 जोड़ों को परिणय सूत्र में बांधने का काम करेगी जो समाज के डर, लाज, शर्म और ताना-बाना का मार झेल रही है. इससे उनके रिश्तों को सही मायने में अधिकार मिलेगा.
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हालांकि, लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे जोड़ो को भारतीय कानून के मुताबिक मान्यता है. लेकिन समाज आज भी उस रिश्ते को नहीं मानती और यही कारण है कि जो लोग बिना शादी किए अपने मनपसंद जोड़ों के साथ रहते हैं. उसे लोगों के 'ढुकु' नाम से पुकारा जाता है, जिसके तहत वर्षों से निमित्त संस्था सामूहिक विवाह कार्यक्रम के तहत नाम देने का काम करती है.
आदिवासी समाज में विवाह के बाद पूरे गांव को दावत देने की परंपरा होती है. इस आयोजन को पूरा नहीं करने पर शादी पूरी नहीं मानी जाती है. पूरे समाज को भोज देने और इस तामझाम के साथ शादी हो गई तो उसके बाद नए जोड़े जब शादी के बाद घर प्रवेश करते हैं तो उसे 'ढुकुवा' कहा जाता है. लेकिन सामाजिक तामझाम और रीति-रिवाज के बीच आदिवासी समुदाय के कई लोग फंस जाते हैं. खासतौर पर वे लोग जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होती. यहीं से एक ऐसा नया बेनाम रिश्ता जन्म लेता है जिसे आज की दुनिया में लिव इन रिलेशन के नाम से जाना जाता है.
बड़े शहरों में कुछ लोगों के लिए यह बस शौक भरा हो सकता है लेकिन आदिवासी समाज में यह गरीबी और मजबूरी की मार होती है. जिससे यह चलन पैदा हो गया है जो दशकों से चली आ रही है. महिला और पुरुष साथ रहते हैं और पति पत्नी की तरह जिंदगी व्यतीत करते हैं और इस बीच उनके बच्चे भी होते हैं और पारिवारिक जिम्मेदारी समझने लगते हैं लेकिन उनके रिश्ते का कोई नाम नहीं होता है. वहीं, ऐसे रिश्तों को नाम देने के लिए निमित्त संस्था पिछले कई वर्षों से प्रयास कर रही है और सामूहिक विवाह के तहत इन जोड़ों को नाम देने का काम कर रही है.