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राष्ट्रीय पर्यटन दिवस: झारखंड में धार्मिक पर्यटन केंद्र की है भरमार, पढ़ें पूरी खबर

हर साल 25 जनवरी को राष्ट्रीय पर्यटन दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य लोगों को पर्यटन के महत्व और भारतीय अर्थव्यवस्था में इसकी भूमिका के बारे में बताना है. इसके साथ ही वैश्विक समुदायों के बीच पर्यटन और इसके सामाजिक, राजनीतिक, वित्तीय और सांस्कृतिक मूल्य के महत्व पर जागरुकता पैदा करने के लिए यह दिवस मनाया जाता है.

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Published : Jan 25, 2021, 8:52 AM IST

Updated : Jan 25, 2021, 11:50 AM IST

रांची: 25 जनवरी को राष्ट्रीय पर्यटन दिवस मनाया जाता है. देश में पर्यटन केंद्रों की भरमार है. झारखंड भी पर्यटन केंद्रों से परिपूर्ण है. प्राकृतिक पर्यटन स्थल हो या फिर धार्मिक राज्य को कुदरत ने भरपूर नवाजा है. बस इसे सहेजने और संवारने की जरूरत है. आइए एक नजर डालते हैं झारखंड के दस प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थलों पर.

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देवघर का वैधनाथ धाम

देवघर का बैद्यनाथ धाम

देवघर झारखंड राज्य का एक प्रमुख जिला है. देवघर को देवों की नगरी भी कहते हैं. इसे 'बाबाधाम' के नाम से भी जाना जाता है. यहां भगवान शिव का एक अत्यंत प्राचीन मंदिर स्थित है. हर सावन में यहां लाखों शिव भक्तों की भीड़ उमड़ती है और श्रावणी मेला भी लगाया जाता है. हर साल बड़ी संख्या में देश-विदेश से तीर्थयात्री और पर्यटक आते हैं. भगवान भोले के दर्शन करते हैं. आस्था और विश्वास की इस नगरी में भगवान शंकर और पार्वती का संगम का दृश्य बनता है. यहां से कई पौराणिक मान्यताएं भी जुड़ी हैं.

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छिन्नमस्तिका मंदिर

दुनिया की दूसरी बड़ी शक्तिपीठ

रामगढ़ जिले के रजरप्पा में छिन्नमस्तिका मंदिर स्थित है. ये मंदिर शक्तिपीठ के रूप में काफी विख्यात है. असम में स्थित मां कामाख्या मंदिर को दुनिया की सबसे बड़ी शक्तिपीठ कहा जाता है, जबकि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ रजरप्पा में स्थित मां का छिन्नमस्तिका मंदिर है. दामोदर और भैरवी नदी के संगम पर स्थित है यह तीर्थ स्थल. मान्यता है कि मां इस मंदिर में दर्शन के लिए आए सभी भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी करती हैं. यहां साल भर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है, लेकिन शारदीय नवरात्र और चैत्र नवरात्र के समय यहां भक्तों की संख्या दोगुनी हो जाती है. तंत्र-मंत्र सिद्धि के लिए भी यहां भक्त आते हैं. इस मंदिर को लेकर भी कई मान्यताएं हैं.

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बासुकिनाथ मंदिर

बासुकिनाथ धाम

दुमका में स्थित बासुकिनाथ मंदिर. बासुकिनाथ धाम में भगवान शिव विराजते हैं. बोलबम की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है जब तक बासुकिनाथ में दर्शन नहीं किए जाते. यह मंदिर देवघर से 42 किलोमीटर दूर दुमका के जरमुंडी गांव के पास स्थित है. यहां पर स्थानीय कला के विभिन्न रूपों को देखा जा सकता है. मंदिर का इतिहास नोनीहाट के घाटवाल से जोड़ा जाता है. बासुकिनाथ मंदिर परिसर में कई अन्य छोटे-छोटे मंदिर भी हैं.

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मलूटी मंदिर

मंदिरों का गांव मलूटी

दुमका के शिकारीपाड़ा में स्थित मलूटी गांव. मंदिरों का गांव के नाम से भी यह प्रसिद्ध है. यहं 300 से 400 वर्ष पुराने टेराकोटा पद्धति से बने 72 मंदिर हैं. जहां हर साल लाखों लोग पूजा-अर्चना के साथ-साथ घूमने के लिए आते हैं. मंदिरों का गांव कहलाने वाले मलूटी में काशी की तर्ज पर ही भगवान शिव के मंदिर अधिक हैं. यही कारण है कि इसे गुप्त काशी भी कहा जाता है. 17वीं-18वीं सदी में बने यहां के मंदिर की दीवारों पर टेराकोटा शैली में प्रदर्शनी है. जिनपर रामायण और महाभारत काल के चित्रण के साथ-साथ नौका विहार, नृत्यकला आदि चित्रित हैं. मलूटी के मंदिरों का निर्माण विशेष आकार की ईंटों से किया गया है, जिनकी दीवारों की चौड़ाई करीब दो फीट है. वहीं यहां पर मां मौलिक्षा के मंदिर में पूजा अर्चना करने दूर-दूर से भक्त पहुंचते हैं.

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पारसनाथ की पहाड़ी

पारसनाथ की पहाड़ी

पारसनाथ पहाड़ी झारखंड के गिरिडीह जिले में स्थित है. यह झारखंड की सबसे ऊंची चोटी है. इसकी ऊंचाई 1365 मीटर है. पारसनाथ जैन धर्मावलंबियों के लिए विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है. यहां हर साल लाखों की संख्या में देश-विदेश से सैलानी आते हैं. यहां यात्रा पैदल करनी होती है, क्योंकि दुर्गम पहाड़ी पर वाहन जाने का साधन नहीं है. खड़ी ढाल पर खड़ी सीढ़ी के माध्यम से पहाड़ी पर चढ़ना होता है जो हमारे साहस और धैर्य की भी परीक्षा लेता है. कठिन राहों से गुजरने के कारण यह यात्रा काफी मनोरंजक भी लगता है, जो यात्री पैदल चलने में असमर्थ होते हैं वे डोली का सहारा लेते हैं. डोली दो व्यक्ति या चार व्यक्ति मिलकर उठाते हैं. इसके लिए उन्हें पांच से आठ हजार तक प्रति व्यक्ति शुल्क देना होता है. व्यक्ति के वजन के आधार पर डोली के प्रकार और दाम तय किए जाते हैं. जैन धर्म ग्रंथों के अनुसार 24 तीर्थंकरों में से 20 ने इस पावन स्थली पर मोक्ष प्राप्त किया है. इन सभी बीसों तीर्थंकरों के मंदिर मधुबन तलहटी में अवस्थित है. यहां हर साल लाखों की संख्या में सैलानी पहुंचते हैं.

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रांची का जगन्नाथ मंदिर

रांची का जगन्नाथ मंदिर

रांची के धुर्वा में जगन्नाथ मंदिर स्थित है. इसका निर्माण सन 1691 ई में नागवंशी राजा ठाकुर एनी नाथ शाहदेव ने किया था. यह उत्कल पुरी के जगन्नाथ मंदिर की तर्ज पर बनाया गया है. मंदिर का निर्माण एक छोटी पहाड़ी पर किया गया है. जिसकी ऊंचाई लगभग 85-90 मीटर है. मंदिर परिसर में कई घने वृक्ष हैं जो इसके वातावरण को और भी शुद्ध बनाते हैं. निर्माण काल से लेकर आज तक मंदिर की संरचना में कई बदलाव किये गये हैं. जगन्नाथ मंदिर में कई ऐतिहासिक महत्व तो हैं ही कई पौराणिक कथाएं भी इससे जुड़ी हुई हैं. भगवान जगन्नाथ के चरणों में मौरी यानी की नवविवाहित दूल्हा का सेहरा समर्पित करने की पुरानी परंपरा है. हर साल जगन्नाथ की ऐतिहासिक रथ यात्रा निकाली जाती है.

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दिउड़ी मंदिर

तमाड़ा का दिउड़ी मंदिर

झारखंड की राजधानी रांची से करीब 60 किलोमीटर दूर तमाड़ में दिउड़ी मंदिर स्थित है. जो आज देश-विदेश में प्रसिद्ध है. इस मंदिर में मां दुर्गा की 700 साल पुरानी प्रतिमा है. यहां मां दुर्गा के 16 हाथ हैं. आमतौर पर मां की अष्टभुजा प्रतिमा मिलती है. मान्यता है कि जिसने भी मंदिर की संरचना को बदलने की कोशिश की, उसे देवताओं के कोप का सामना करना पड़ा. दिउड़ी मंदिर के नाम से मशहूर आस्था के इस अलौकिक धाम से धोनी का खास रिश्ता है. धोनी अपना हर बड़ा काम शुरू करने से पहले यहां मां दुर्गा के दर्शन के लिए आते हैं. धौनी के दिउड़ी मंदिर में बार-बार पूजा के लिए आने से भी इस स्थान के प्रति लोगों की रूचि बढ़ी है.

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सूर्य मंदिर

सूर्य मंदिर की अलग पहचान

रांची से 37 किलोमीटर की दूरी पर रांची-टाटा रोड पर स्थित यह सूर्य मंदिर बुंडू के पास है. संगमरमर से निर्मित इस मंदिर का निर्माण 18 पहियों और 9 घोड़ों के रथ पर विद्यमान भगवान सूर्य के रूप में किया गाया है. 25 जनवरी को टुसू मेला के अवसर पर यहां विशेष मेले का आयोजन होता है. सूर्य मंदिर का पौराणिक और धार्मिक महत्व है. यूं तो इस मंदिर का निर्माण 1989 में शुरू हुआ. 1994 में इसमें भगवान भास्कर की प्रतिमा स्थापित कर प्राण प्रतिष्ठा की गई. लेकिन इस स्थान पर पूजा सदियों से होती आ रही है. इस मंदिर को लेकर लोगों की आस्था इतनी है कि न सिर्फ आसपास बल्कि दूसरे जिलों और पड़ोसी राज्यों के छठव्रती भी इस मंदिर में अर्ध्य देने आते हैं. मान्यता है कि यहां से कोई खाली हाथ नहीं जाता है.

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इटखोरी मंदिर

चतरा का भद्रकाली मंदिर

चतरा में पवित्र मुहाने और बक्सा नदी के संगम पर अवस्थित ईटखोरी का मां भद्रकाली मंदिर तीन धर्मों का संगम स्थल है. रांची से 150 किमी दूर इटखोरी में सनातन, बौद्ध और जैन धर्म का समागम हुआ है. प्रागैतिहासिक काल से इस पवित्र भूमि पर धर्म संगम की अलौकिक भक्ति धारा बहती चली आ रही है. सनातन धर्मावलंबियों के लिए यह पावन भूमि मां भद्रकाली और सहस्र शिवलिंग महादेव के सिद्ध पीठ के रूप में आस्था का केंद्र है. मां भद्रकाली की प्रतिमा कीमती काले पत्थर को तराश कर बनाई गई है. करीब पांच फीट ऊंची आदमकद प्रतिमा चतुर्भुज है. प्रतिमा के चरणों के नीचे ब्राम्ही लिपि में अंकित है कि प्रतिमा का निर्माण नौवीं शताब्दी काल में राजा महेंद्र पाल द्वितीय ने कराया था.

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बंशीधर धाम

गढ़वा का बंशीधर धाम

गढ़वा में स्थित है बंशीधर धाम. बंशीधर नगर को योगेश्वर कृष्ण की धरती माना जाता है. बंशीधर धाम में स्वयं विराजमान श्रीकृष्ण की वंशीवादन करती प्रतिमा की ख्याति देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है. इसलिए यह स्थान बंशीधर धाम के नाम से भी प्रसिद्ध है. यहां कण-कण में राधा और कृष्ण विद्यमान हैं. बंशीधर गंगा-जमुनी संस्कृति और धार्मिक भावनाओं से ओत-प्रोत खूबसूरत हरी भरी वादियों, कंदराओं, पर्वतों, नदियों से आच्छादित है. उतर प्रदेश, छतीसगढ़ और बिहार तीन राज्यों की सीमाओं को यह इलाका स्पर्श करता है. यह तीनों राज्यों की मिश्रित संस्कृति को समेटे हुए है. बंशीधर मंदिर के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यहां भगवान श्रीकृष्ण त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों स्वरूप में हैं. मंदिर में स्थित प्रतिमा को गौर से देखने पर यहां भगवान के त्रिदेव के स्वरूप में विद्यमान रहने का अहसास होता है. बंशीधर मंदिर श्रद्धा का तो केंद्र है ही, इसे पर्यटन स्थल के रूप में लोग घूमने आते हैं.

रांची: 25 जनवरी को राष्ट्रीय पर्यटन दिवस मनाया जाता है. देश में पर्यटन केंद्रों की भरमार है. झारखंड भी पर्यटन केंद्रों से परिपूर्ण है. प्राकृतिक पर्यटन स्थल हो या फिर धार्मिक राज्य को कुदरत ने भरपूर नवाजा है. बस इसे सहेजने और संवारने की जरूरत है. आइए एक नजर डालते हैं झारखंड के दस प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थलों पर.

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देवघर का वैधनाथ धाम

देवघर का बैद्यनाथ धाम

देवघर झारखंड राज्य का एक प्रमुख जिला है. देवघर को देवों की नगरी भी कहते हैं. इसे 'बाबाधाम' के नाम से भी जाना जाता है. यहां भगवान शिव का एक अत्यंत प्राचीन मंदिर स्थित है. हर सावन में यहां लाखों शिव भक्तों की भीड़ उमड़ती है और श्रावणी मेला भी लगाया जाता है. हर साल बड़ी संख्या में देश-विदेश से तीर्थयात्री और पर्यटक आते हैं. भगवान भोले के दर्शन करते हैं. आस्था और विश्वास की इस नगरी में भगवान शंकर और पार्वती का संगम का दृश्य बनता है. यहां से कई पौराणिक मान्यताएं भी जुड़ी हैं.

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छिन्नमस्तिका मंदिर

दुनिया की दूसरी बड़ी शक्तिपीठ

रामगढ़ जिले के रजरप्पा में छिन्नमस्तिका मंदिर स्थित है. ये मंदिर शक्तिपीठ के रूप में काफी विख्यात है. असम में स्थित मां कामाख्या मंदिर को दुनिया की सबसे बड़ी शक्तिपीठ कहा जाता है, जबकि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ रजरप्पा में स्थित मां का छिन्नमस्तिका मंदिर है. दामोदर और भैरवी नदी के संगम पर स्थित है यह तीर्थ स्थल. मान्यता है कि मां इस मंदिर में दर्शन के लिए आए सभी भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी करती हैं. यहां साल भर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है, लेकिन शारदीय नवरात्र और चैत्र नवरात्र के समय यहां भक्तों की संख्या दोगुनी हो जाती है. तंत्र-मंत्र सिद्धि के लिए भी यहां भक्त आते हैं. इस मंदिर को लेकर भी कई मान्यताएं हैं.

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बासुकिनाथ मंदिर

बासुकिनाथ धाम

दुमका में स्थित बासुकिनाथ मंदिर. बासुकिनाथ धाम में भगवान शिव विराजते हैं. बोलबम की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है जब तक बासुकिनाथ में दर्शन नहीं किए जाते. यह मंदिर देवघर से 42 किलोमीटर दूर दुमका के जरमुंडी गांव के पास स्थित है. यहां पर स्थानीय कला के विभिन्न रूपों को देखा जा सकता है. मंदिर का इतिहास नोनीहाट के घाटवाल से जोड़ा जाता है. बासुकिनाथ मंदिर परिसर में कई अन्य छोटे-छोटे मंदिर भी हैं.

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मलूटी मंदिर

मंदिरों का गांव मलूटी

दुमका के शिकारीपाड़ा में स्थित मलूटी गांव. मंदिरों का गांव के नाम से भी यह प्रसिद्ध है. यहं 300 से 400 वर्ष पुराने टेराकोटा पद्धति से बने 72 मंदिर हैं. जहां हर साल लाखों लोग पूजा-अर्चना के साथ-साथ घूमने के लिए आते हैं. मंदिरों का गांव कहलाने वाले मलूटी में काशी की तर्ज पर ही भगवान शिव के मंदिर अधिक हैं. यही कारण है कि इसे गुप्त काशी भी कहा जाता है. 17वीं-18वीं सदी में बने यहां के मंदिर की दीवारों पर टेराकोटा शैली में प्रदर्शनी है. जिनपर रामायण और महाभारत काल के चित्रण के साथ-साथ नौका विहार, नृत्यकला आदि चित्रित हैं. मलूटी के मंदिरों का निर्माण विशेष आकार की ईंटों से किया गया है, जिनकी दीवारों की चौड़ाई करीब दो फीट है. वहीं यहां पर मां मौलिक्षा के मंदिर में पूजा अर्चना करने दूर-दूर से भक्त पहुंचते हैं.

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पारसनाथ की पहाड़ी

पारसनाथ की पहाड़ी

पारसनाथ पहाड़ी झारखंड के गिरिडीह जिले में स्थित है. यह झारखंड की सबसे ऊंची चोटी है. इसकी ऊंचाई 1365 मीटर है. पारसनाथ जैन धर्मावलंबियों के लिए विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है. यहां हर साल लाखों की संख्या में देश-विदेश से सैलानी आते हैं. यहां यात्रा पैदल करनी होती है, क्योंकि दुर्गम पहाड़ी पर वाहन जाने का साधन नहीं है. खड़ी ढाल पर खड़ी सीढ़ी के माध्यम से पहाड़ी पर चढ़ना होता है जो हमारे साहस और धैर्य की भी परीक्षा लेता है. कठिन राहों से गुजरने के कारण यह यात्रा काफी मनोरंजक भी लगता है, जो यात्री पैदल चलने में असमर्थ होते हैं वे डोली का सहारा लेते हैं. डोली दो व्यक्ति या चार व्यक्ति मिलकर उठाते हैं. इसके लिए उन्हें पांच से आठ हजार तक प्रति व्यक्ति शुल्क देना होता है. व्यक्ति के वजन के आधार पर डोली के प्रकार और दाम तय किए जाते हैं. जैन धर्म ग्रंथों के अनुसार 24 तीर्थंकरों में से 20 ने इस पावन स्थली पर मोक्ष प्राप्त किया है. इन सभी बीसों तीर्थंकरों के मंदिर मधुबन तलहटी में अवस्थित है. यहां हर साल लाखों की संख्या में सैलानी पहुंचते हैं.

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रांची का जगन्नाथ मंदिर

रांची का जगन्नाथ मंदिर

रांची के धुर्वा में जगन्नाथ मंदिर स्थित है. इसका निर्माण सन 1691 ई में नागवंशी राजा ठाकुर एनी नाथ शाहदेव ने किया था. यह उत्कल पुरी के जगन्नाथ मंदिर की तर्ज पर बनाया गया है. मंदिर का निर्माण एक छोटी पहाड़ी पर किया गया है. जिसकी ऊंचाई लगभग 85-90 मीटर है. मंदिर परिसर में कई घने वृक्ष हैं जो इसके वातावरण को और भी शुद्ध बनाते हैं. निर्माण काल से लेकर आज तक मंदिर की संरचना में कई बदलाव किये गये हैं. जगन्नाथ मंदिर में कई ऐतिहासिक महत्व तो हैं ही कई पौराणिक कथाएं भी इससे जुड़ी हुई हैं. भगवान जगन्नाथ के चरणों में मौरी यानी की नवविवाहित दूल्हा का सेहरा समर्पित करने की पुरानी परंपरा है. हर साल जगन्नाथ की ऐतिहासिक रथ यात्रा निकाली जाती है.

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दिउड़ी मंदिर

तमाड़ा का दिउड़ी मंदिर

झारखंड की राजधानी रांची से करीब 60 किलोमीटर दूर तमाड़ में दिउड़ी मंदिर स्थित है. जो आज देश-विदेश में प्रसिद्ध है. इस मंदिर में मां दुर्गा की 700 साल पुरानी प्रतिमा है. यहां मां दुर्गा के 16 हाथ हैं. आमतौर पर मां की अष्टभुजा प्रतिमा मिलती है. मान्यता है कि जिसने भी मंदिर की संरचना को बदलने की कोशिश की, उसे देवताओं के कोप का सामना करना पड़ा. दिउड़ी मंदिर के नाम से मशहूर आस्था के इस अलौकिक धाम से धोनी का खास रिश्ता है. धोनी अपना हर बड़ा काम शुरू करने से पहले यहां मां दुर्गा के दर्शन के लिए आते हैं. धौनी के दिउड़ी मंदिर में बार-बार पूजा के लिए आने से भी इस स्थान के प्रति लोगों की रूचि बढ़ी है.

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सूर्य मंदिर

सूर्य मंदिर की अलग पहचान

रांची से 37 किलोमीटर की दूरी पर रांची-टाटा रोड पर स्थित यह सूर्य मंदिर बुंडू के पास है. संगमरमर से निर्मित इस मंदिर का निर्माण 18 पहियों और 9 घोड़ों के रथ पर विद्यमान भगवान सूर्य के रूप में किया गाया है. 25 जनवरी को टुसू मेला के अवसर पर यहां विशेष मेले का आयोजन होता है. सूर्य मंदिर का पौराणिक और धार्मिक महत्व है. यूं तो इस मंदिर का निर्माण 1989 में शुरू हुआ. 1994 में इसमें भगवान भास्कर की प्रतिमा स्थापित कर प्राण प्रतिष्ठा की गई. लेकिन इस स्थान पर पूजा सदियों से होती आ रही है. इस मंदिर को लेकर लोगों की आस्था इतनी है कि न सिर्फ आसपास बल्कि दूसरे जिलों और पड़ोसी राज्यों के छठव्रती भी इस मंदिर में अर्ध्य देने आते हैं. मान्यता है कि यहां से कोई खाली हाथ नहीं जाता है.

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इटखोरी मंदिर

चतरा का भद्रकाली मंदिर

चतरा में पवित्र मुहाने और बक्सा नदी के संगम पर अवस्थित ईटखोरी का मां भद्रकाली मंदिर तीन धर्मों का संगम स्थल है. रांची से 150 किमी दूर इटखोरी में सनातन, बौद्ध और जैन धर्म का समागम हुआ है. प्रागैतिहासिक काल से इस पवित्र भूमि पर धर्म संगम की अलौकिक भक्ति धारा बहती चली आ रही है. सनातन धर्मावलंबियों के लिए यह पावन भूमि मां भद्रकाली और सहस्र शिवलिंग महादेव के सिद्ध पीठ के रूप में आस्था का केंद्र है. मां भद्रकाली की प्रतिमा कीमती काले पत्थर को तराश कर बनाई गई है. करीब पांच फीट ऊंची आदमकद प्रतिमा चतुर्भुज है. प्रतिमा के चरणों के नीचे ब्राम्ही लिपि में अंकित है कि प्रतिमा का निर्माण नौवीं शताब्दी काल में राजा महेंद्र पाल द्वितीय ने कराया था.

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बंशीधर धाम

गढ़वा का बंशीधर धाम

गढ़वा में स्थित है बंशीधर धाम. बंशीधर नगर को योगेश्वर कृष्ण की धरती माना जाता है. बंशीधर धाम में स्वयं विराजमान श्रीकृष्ण की वंशीवादन करती प्रतिमा की ख्याति देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है. इसलिए यह स्थान बंशीधर धाम के नाम से भी प्रसिद्ध है. यहां कण-कण में राधा और कृष्ण विद्यमान हैं. बंशीधर गंगा-जमुनी संस्कृति और धार्मिक भावनाओं से ओत-प्रोत खूबसूरत हरी भरी वादियों, कंदराओं, पर्वतों, नदियों से आच्छादित है. उतर प्रदेश, छतीसगढ़ और बिहार तीन राज्यों की सीमाओं को यह इलाका स्पर्श करता है. यह तीनों राज्यों की मिश्रित संस्कृति को समेटे हुए है. बंशीधर मंदिर के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यहां भगवान श्रीकृष्ण त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों स्वरूप में हैं. मंदिर में स्थित प्रतिमा को गौर से देखने पर यहां भगवान के त्रिदेव के स्वरूप में विद्यमान रहने का अहसास होता है. बंशीधर मंदिर श्रद्धा का तो केंद्र है ही, इसे पर्यटन स्थल के रूप में लोग घूमने आते हैं.

Last Updated : Jan 25, 2021, 11:50 AM IST
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