रांची: कोरोना वायरस से जारी जंग के बीच सरकार के सामने रोजगार मुहैया कराना सबसे बड़ी चुनौती है. खासकर वैसे अकुशल श्रमिकों के लिए जिनकी जिंदगी सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है. क्योंकि इनके पास हुनर नहीं है, इसे ध्यान में रखते हुए मनरेगा की तर्ज पर झारखंड के 51 नगर निकाय क्षेत्रों में रहने वाले अकुशल श्रमिकों को रोजगार देने के मकसद से मुख्यमंत्री श्रमिक योजना शुरू की गई है. 2 अक्टूबर से शुरू इस योजना को कैसा रिस्पांस मिल रहा है, ईटीवी भारत की टीम ने इसकी पड़ताल की है.
रोजगार के लिए अब तक करीब 10 हजार आवेदन आए हैं. जिनमें से करीब 3,200 जॉब कार्ड बने हैं, काम के लिए सबसे ज्यादा धनबाद के लोगों ने इच्छा जाहिर की है. दूसरे स्थान पर है देवघर. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि नगर विकास विभाग के पास शहरी अकुशल श्रमिकों का डाटा नहीं है. कितने श्रमिकों को रोजगार मुहैया कराना है इसे लेकर कोई टारगेट भी सेट नहीं है. अब तक सौ के आसपास लोगों ने काम मांगा है. मनरेगा में प्रावधान है कि एक परिवार को साल में 100 दिन काम देना है. अगर काम नहीं दिया गया तो उसके बदले संबंधित परिवार को बेरोजगारी भत्ता देने का प्रावधान है. लेकिन मुख्यमंत्री श्रमिक योजना में यह व्यवस्था एक साल बाद लागू होगी. इस योजना को अलग-अलग कैटेगरी में बांटा गया है. नगर निकाय की संचालित योजनाएं, नगर विकास की अनुषंगी इकाइयों योजनाएं और जिला स्तर पर दूसरे विभाग यानी सड़क, पेयजल, बिजली, भवन से जुड़ी योजनाएं हैं.
'योजना की सफलता है के लिए हो रही मॉनिटरिंग'
इस योजना के तहत उसी अकुशल श्रमिक को रोजगार मिलेगा, जो नगर निकाय क्षेत्र का निवासी होगा. इस योजना का लाभ दिलाने के लिए 436 सीआरपी को जिम्मेदारी दी गई है. झारखंड के नगरीय प्रशासन निदेशालय की निदेशक विजया जाधव ने कहा कि यह एक फ्लैगशिप प्रोग्राम है. इसे सफल बनाने के लिए हर स्तर पर मॉनिटरिंग हो रही है. जैसे-जैसे विकास के काम शुरू होते जाएंगे वैसे-वैसे रोजगार सृजन का रास्ता भी खुलता जाएगा. कैसे एक श्रमिक इस योजना का लाभ ले सकता है इसके बारे में भी उन्होंने बताया. किसी भी प्रज्ञा केंद्र या नगर निगम के दफ्तर में जाकर आवेदन दिया जा सकता है. उसके कागजात की पड़ताल के बाद संबंधित मजदूर को जॉब कार्ड मिलेगा.
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कुशल श्रमिक बेहद लाचार हैं
इसके बाद जहां भी विकास के काम होंगे वहां संबंधित मजदूर को काम दिलाया जाएगा. इस योजना के तहत प्रतिदिन एक अकुशल श्रमिक को 285 रु और 72 पैसे मिलेंगे. जाहिर सी बात है कि कोरोना के दौर में विकास के काम प्रभावित हुए हैं. राजधानी रांची जैसे शहर में कई ऐसी जगह है जहां हर सुबह बड़ी संख्या में अकुशल श्रमिक काम की तलाश में पहुंचते हैं. ईटीवी भारत की टीम ने हरमू स्थित कुछ युवा अकुशल श्रमिकों से बात की. यह जानकर हैरानी हुई कि किसी को भी इस योजना की जानकारी नहीं थी. जीतू नाम के श्रमिक ने कहा कि वह हरमू इलाके में ही रहता है और हर दिन काम की तलाश में हरमू चौक पहुंचता है यह उम्मीद लिए कि कोई आएगा और उसे काम कराने के लिए ले जाएगा. सप्ताह में बमुश्किल 2 से 3 दिन ही काम मिल पाता है. यानी शहरों के अकुशल श्रमिक बेहद परेशान हैं और लाचार हैं.