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शुद्ध पेयजल के लिए तरस रहा झारखंड! बिना ट्रीटमेंट के यहां का पानी बन रहा 'जहर'

झारखंड में शुद्ध पेयजल की कमी है. स्वच्छता एवं पेयजल विभाग भी इस बात से इनकार नहीं करता है. इसके पीछे वजह यही है कि पानी का सही तरीके से ट्रीटमेंट ना होने की वजह से लोगों को पीने के लिए साफ पानी नहीं मिल पाता है.

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Published : Oct 11, 2021, 3:21 PM IST

Updated : Oct 11, 2021, 9:07 PM IST

रांची: झारखंड में पेयजल की समस्या शुरुआत के दिनों से ही देखी जा रही है. इसको लेकर स्वच्छता एवं पेयजल विभाग (Sanitation and Drinking Water Department) की ओर से वृहद स्तर पर कार्य किया जा रहा है ताकि राज्य के लोगों को स्वच्छ पानी मुहैया हो सके. इसी के मद्देनजर राज्य में जन जागरूकता अभियान भी चलाया जाता है. जिससे लोग शुद्ध पेयजल के प्रति जागरूक हो सके.

इसे भी पढ़ें- मंत्री मिथिलेश ठाकुर ने पदाधिकारियों के साथ की समीक्षा बैठक, कहा- दिसंबर से लोगों को मिलेगा पेयजल का लाभ

स्वच्छता एवं पेयजल विभाग से मिली जानकारी के अनुसार झारखंड के ज्यादातर जिलों के पीने वाले पानी में आर्सेनिक, आयरन और कार्बन की मात्रा पाई जाती है जो लोगों को पेट की बीमारियों से ग्रसित करता है. झारखंड में शुद्ध पेयजल को लेकर जानकार बताते हैं कि यहां पर पानी का ट्रीटमेंट बेहतर नहीं है, इसके साथ ही सप्लाई वाटर की स्थिति बद से बदतर है. इसके अलावा पानी के जितने भी स्रोत हैं वह सभी दिन-प्रतिदिन गंदा होता जा रहा है और इस पर सरकार की ध्यान भी नहीं जा रही है.

देखें पूरी खबर

स्वच्छता एवं पेयजल विभाग के सचिव प्रशांत कुमार बताते हैं कि झारखंड में पेयजल को लेकर संकट जरूर है. लेकिन विभाग की ओर से स्वच्छ पानी मुहैया कराने की योजनाओं पर काम किया जा रहा है जो कि जल्द ही धरातल पर देखने को मिलेगी. साहिबगंज पाकुड़ और संताल के विभिन्न जिलों के पीने के पानी में कड़ापन देखा जाता है. क्योंकि उसमें ज्यादा आयरन और कॉलीफॉर्म की मात्रा पाई जाती है. वहीं पलामू, गढ़वा, लातेहार में फ्लोराइड आर्सेनिक और नाइट्रेट पॉइजनिंग पानी में देखने को मिलता है.


राज्य सरकार एवं नगर निगम की ओर से अभी-भी पीने के पानी की ट्रीटमेंट बेहतर तरीके से नहीं की जा रही है. कई बार पीने के पानी में नाइट्रेट प्वाइजनिंग की मात्रा अधिक देखी जाती है जो कि लोगों के स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है. आज भी ज्यादातर मोहल्ले में लोग अपने सेफ्टिक टैंक और ग्राउंड वाटर के बीच में ज्यादा अंतर नहीं रखते हैं. जिस वजह से सेप्टिक टैंक का गंदा पानी ग्राउंड वाटर में मिल जाता है और उस पानी को लोग जब पीते हैं तो वो बीमार पड़ते हैं.

इसे भी पढ़ें- नल-जल योजनाः जानिए, क्यों और किस बात पर मंत्री और विधायक आमने-सामने हैं?


स्वच्छ्ता एवं पेयजल विभाग सचिव प्रशांत कुमार बताते हैं कि पीने के पानी को लेकर सरकार संवेदनशील है और जल्द ही राज्य के सभी जिलों में एनएबीएल से मान्यता प्राप्त लैबोरेट्री खोले जा रहे हैं. जिससे लोग पानी की जांच आसानी से करा सके और विभाग को इसकी जानकारी दे सकें ताकि उस क्षेत्र में पीने के पानी में जो भी कमी है उसको विभाग सही कर सके.

राजधानी के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. डीके सिन्हा बताते हैं आज ज्यादातर बीमारियां पानी की वजह से होती है. खास करके पेट से जुड़ी बीमारियां पानी के कारण उत्पन्न होती है. इसीलिए लोगों को पीने के पानी के प्रति सजग रहना चाहिए. फिल्टर मशीन का उपयोग करना चाहिए नहीं तो पानी को पूरी तरह से बॉयल करके पीना चाहिए ताकि पानी के अंदर का बैक्टिरिया समाप्त हो जाए. राज्य में जल सहिया को भी यह निर्देश दिए गए हैं कि राज्य के विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर चापाकल और सप्लाई वाटर के पानी की समय-समय पर जांच करें और लोगों को भी जागरूक करें कि अपने पीने के पानी को कैसे साफ रखें.

झारखंड का पड़ोसी राज्य बिहार में पीने के पानी की गुणवत्ता काफी बेहतर है क्योंकि वहां पर जमीन के नीचे मिट्टी की परत काफी मोटी है. लेकिन झारखंड में जमीन के नीचे ज्यादातर चट्टान है. जिस वजह से यहां के पानी की गुणवत्ता बेहतर नहीं हो पाती है. झारखंड में पीने के पानी पर काम कर रहे जानकारों का कहना है कि झारखंड में भी पीने का पानी बेहतर हो सकता है. इसके लिए सरकार के साथ-साथ आम लोगों को भी कई ठोस कदम उठाने होंगे, जैसे नदी, डैम और भूमिगत जल को स्वच्छ करना होगा.

इसे भी पढ़ें- सुरक्षित पेयजल तक पहुंच, डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ की रिपोर्ट

एक अच्छे राज्य का निर्माण तभी हो सकता है जब वहां के राज्यवासी स्वस्थ रहें और स्वस्थ रहने के लिए बेहतर खानपान के साथ-साथ शुद्ध पेयजल बेहद जरूरी है. इस मामले में झारखंड काफी पीछे है. इसीलिए जरूरी है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने पीने के पानी के प्रति सजग हो और पानी में आ रही कमी को दूर करने के लिए प्रयत्नशील रहे.

रांची: झारखंड में पेयजल की समस्या शुरुआत के दिनों से ही देखी जा रही है. इसको लेकर स्वच्छता एवं पेयजल विभाग (Sanitation and Drinking Water Department) की ओर से वृहद स्तर पर कार्य किया जा रहा है ताकि राज्य के लोगों को स्वच्छ पानी मुहैया हो सके. इसी के मद्देनजर राज्य में जन जागरूकता अभियान भी चलाया जाता है. जिससे लोग शुद्ध पेयजल के प्रति जागरूक हो सके.

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स्वच्छता एवं पेयजल विभाग से मिली जानकारी के अनुसार झारखंड के ज्यादातर जिलों के पीने वाले पानी में आर्सेनिक, आयरन और कार्बन की मात्रा पाई जाती है जो लोगों को पेट की बीमारियों से ग्रसित करता है. झारखंड में शुद्ध पेयजल को लेकर जानकार बताते हैं कि यहां पर पानी का ट्रीटमेंट बेहतर नहीं है, इसके साथ ही सप्लाई वाटर की स्थिति बद से बदतर है. इसके अलावा पानी के जितने भी स्रोत हैं वह सभी दिन-प्रतिदिन गंदा होता जा रहा है और इस पर सरकार की ध्यान भी नहीं जा रही है.

देखें पूरी खबर

स्वच्छता एवं पेयजल विभाग के सचिव प्रशांत कुमार बताते हैं कि झारखंड में पेयजल को लेकर संकट जरूर है. लेकिन विभाग की ओर से स्वच्छ पानी मुहैया कराने की योजनाओं पर काम किया जा रहा है जो कि जल्द ही धरातल पर देखने को मिलेगी. साहिबगंज पाकुड़ और संताल के विभिन्न जिलों के पीने के पानी में कड़ापन देखा जाता है. क्योंकि उसमें ज्यादा आयरन और कॉलीफॉर्म की मात्रा पाई जाती है. वहीं पलामू, गढ़वा, लातेहार में फ्लोराइड आर्सेनिक और नाइट्रेट पॉइजनिंग पानी में देखने को मिलता है.


राज्य सरकार एवं नगर निगम की ओर से अभी-भी पीने के पानी की ट्रीटमेंट बेहतर तरीके से नहीं की जा रही है. कई बार पीने के पानी में नाइट्रेट प्वाइजनिंग की मात्रा अधिक देखी जाती है जो कि लोगों के स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है. आज भी ज्यादातर मोहल्ले में लोग अपने सेफ्टिक टैंक और ग्राउंड वाटर के बीच में ज्यादा अंतर नहीं रखते हैं. जिस वजह से सेप्टिक टैंक का गंदा पानी ग्राउंड वाटर में मिल जाता है और उस पानी को लोग जब पीते हैं तो वो बीमार पड़ते हैं.

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स्वच्छ्ता एवं पेयजल विभाग सचिव प्रशांत कुमार बताते हैं कि पीने के पानी को लेकर सरकार संवेदनशील है और जल्द ही राज्य के सभी जिलों में एनएबीएल से मान्यता प्राप्त लैबोरेट्री खोले जा रहे हैं. जिससे लोग पानी की जांच आसानी से करा सके और विभाग को इसकी जानकारी दे सकें ताकि उस क्षेत्र में पीने के पानी में जो भी कमी है उसको विभाग सही कर सके.

राजधानी के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. डीके सिन्हा बताते हैं आज ज्यादातर बीमारियां पानी की वजह से होती है. खास करके पेट से जुड़ी बीमारियां पानी के कारण उत्पन्न होती है. इसीलिए लोगों को पीने के पानी के प्रति सजग रहना चाहिए. फिल्टर मशीन का उपयोग करना चाहिए नहीं तो पानी को पूरी तरह से बॉयल करके पीना चाहिए ताकि पानी के अंदर का बैक्टिरिया समाप्त हो जाए. राज्य में जल सहिया को भी यह निर्देश दिए गए हैं कि राज्य के विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर चापाकल और सप्लाई वाटर के पानी की समय-समय पर जांच करें और लोगों को भी जागरूक करें कि अपने पीने के पानी को कैसे साफ रखें.

झारखंड का पड़ोसी राज्य बिहार में पीने के पानी की गुणवत्ता काफी बेहतर है क्योंकि वहां पर जमीन के नीचे मिट्टी की परत काफी मोटी है. लेकिन झारखंड में जमीन के नीचे ज्यादातर चट्टान है. जिस वजह से यहां के पानी की गुणवत्ता बेहतर नहीं हो पाती है. झारखंड में पीने के पानी पर काम कर रहे जानकारों का कहना है कि झारखंड में भी पीने का पानी बेहतर हो सकता है. इसके लिए सरकार के साथ-साथ आम लोगों को भी कई ठोस कदम उठाने होंगे, जैसे नदी, डैम और भूमिगत जल को स्वच्छ करना होगा.

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एक अच्छे राज्य का निर्माण तभी हो सकता है जब वहां के राज्यवासी स्वस्थ रहें और स्वस्थ रहने के लिए बेहतर खानपान के साथ-साथ शुद्ध पेयजल बेहद जरूरी है. इस मामले में झारखंड काफी पीछे है. इसीलिए जरूरी है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने पीने के पानी के प्रति सजग हो और पानी में आ रही कमी को दूर करने के लिए प्रयत्नशील रहे.

Last Updated : Oct 11, 2021, 9:07 PM IST
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