रांचीः कोरोना के बढ़ते मरीजों को देखते हुए राज्य सरकार प्रतिदिन नई-नई गाइडलाइंस जारी कर रही है. जिससे निजी अस्पताल में भी राज्य के गरीब मरीजों का इलाज हो सके. लेकिन राज्य के निजी अस्पताल सरकार की गाइडलाइन को दरकिनार कर मरीज के जेबों से पैसे लूटने में लगे हैं.
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कोरोना की इस महामारी में निजी अस्पतालों की मनमानी को लेकर ईटीवी भारत की टीम ने जब कुछ मरीजों से बात की. हमने देखा कि निजी अस्पताल में भर्ती मरीज के परिजनों को जीवन की आस तब तक रहती है, जब तक उनके जेब में पैसे हैं. पैसे खत्म होते ही मरीज के जीवन की सांसें भी समाप्त हो जाती है.
गंभीर मरीजों के मजबूरी का फायदा उठाते हैं निजी अस्पताल
निजी अस्पताल की मार झेल चुके पंकज कुमार बताते हैं कि सरकार भले ही लाख दावे कर ले. लेकिन निजी अस्पतालों में लूट बदस्तूर जारी है. उन्होंने आपबीती सुनाते हुए कहा कि राजधानी के कोकर स्थित सैम्फोर्ड अस्पताल में उन्होंने अपने मरीज को भर्ती कराया था. जहां पर प्रतिदिन 60 हजार से 70 हजार रुपये खर्च कर रहे थे. पिछले 15 दिनों में अस्पताल प्रबंधन की ओर से 10 लाख से ज्यादा पैसे जमा करा लिए गए. इसके बावजूद भी उनके मरीज की मौत हो गई.
उन्होंने अस्पताल प्रबंधन पर आरोप लगाते हुए कहा कि मरीज की मौत के बाद भी अस्पताल प्रबंधन परिजन को लूटने से बाज नहीं आते. निजी अस्पतालों के तुगलकी कानून का पालन कराने के लिए मरीज को बाध्य किया जाता है. अपनी ही एंबुलेंस से डेड बॉडी से मुक्तिधाम तक भेजने का दबाव बनाते हैं ताकि मृतक के परिजनों से अवैध उगाही की जा सके. जब परिजन इसका विरोध करते हैं तो उन्हें डराया-धमकाया जाता है.
सरकारी व्यवस्था लचर होने के कारण निजी अस्पताल में इलाज कराना मजबूरी
निजी अस्पताल में अपने लाखों रुपए लुटा चुके कई मरीजों ने कैमरे पर नाम नहीं बताने का हवाला देते हुए कहा कि मजबूरन में निजी अस्पतालों में इलाज कराना पड़ रहा है. क्योंकि सरकारी अस्पतालों में समान्य बीमारी का भी बेहतर इलाज नहीं हो पाता. ऐसे में अपनी जान बचाने के लिए मरीजों को निजी अस्पताल जाना मजबूरी हो जाता है.
सरकारी स्तर पर बेहतर नहीं है आइसोलेशन केंद्र
कुछ मरीजों ने बताया कि कभी-कभी जिन मरीजों के घर में होम आइसोलेशन की सुविधा नहीं हो पाती वैसे कोविड मरीजों को भी अलग रहने के लिए अस्पताल का रुख करना पड़ता है. कई निजी अस्पताल सिर्फ एक कमरा मुहैया कराने के नाम पर महज कुछ दिनों में ही लाखों रुपए एंठ लेते हैं. मरीजों ने बताया कि अगर सरकार की तरफ से बेहतर आइसोलेशन केंद्र स्थापित किए जाते तो लोगों को महज सामान्य इलाज के लिए निजी अस्पतालों में लाखों रुपया नहीं देना पड़ता.
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निजी अस्पतालों के द्वारा किया जा रहा है मुद्रा मोचन, सरकार दे ध्यान
कोविड-19 मरीजों की सेवा और उन्हें राशन पहुंचा रहे वाम दल के नेता भुवनेश्वर केवट बताते हैं कि झारखंड में निजी अस्पतालों की तरफ से अत्यधिक मुद्रा मोचन हो रहा है. अस्पतालों किसी-भी तरह की गाइडलाइन का पालन नहीं कर रहे हैं. कुछ घंटे में ही गरीब मरीजों से लाखों रुपए इलाज के नाम पर वसूल लिए जाते हैं. जब मरीज के परिजन अपने मरीज से मिलना चाहते हैं तो कोरोना का बहाना बनाकर उनसे मिलना नहीं दिया जाता. जब स्थिति बिगड़ने लगती है तो परिजन से सारे पैसे लेकर उन्हें मृत घोषित कर देते हैं. उन्होंने निजी अस्पताल की मनमानी को लेकर स्वास्थ्य मंत्री से आग्रह करते हुए कहा कि ऐसे अस्पतालों पर नकेल कसा जाए ताकि गरीब मरीज भी बेहतर इलाज पा सके.
प्राइवेट अस्पतालों की भी है अपनी मजबूरी, सरकार से लगाई गुहार
मरीज के आरोप सुनने के बाद हमने जब प्राइवेट अस्पताल एसोसिएशन के सदस्य व निजी अस्पताल के संचालक योगेश गंभीर से बात कि तो उन्होंने निजी अस्पतालों की मजबूरी बताते हुए कहा कि सरकार की तरफ से जो रेट तय किया गया है, वह काफी नहीं है. इसके बावजूद भी कोरोना महामारी को देखते हुए निजी अस्पताल अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं. वहीं उन्होंने निजी अस्पताल की समस्या बताते हुए कहा कि कई बार ऐसे मरीज भी आते हैं जो कोरोना से संक्रमित होने के अलावा भी कई बीमारियों से ग्रसित होते हैं. वैसे में उन मरीजों का इलाज करने के लिए अस्पताल के संसाधनों का ज्यादा उपयोग किया जाता है, उस परिस्थिति में कोरोना के मरीजों से ज्यादा चार्ज किए जा रहे हैं. लेकिन मरीज के परिजन इस बात को समझने के लिए तैयार नहीं होते, जिस वजह से कई बार परिजन और अस्पताल के कर्मचारियों के बीच विवाद भी देखने को मिलता है.
उन्होंने बताया कि कोरोना महामारी में निजी अस्पतालों के कर्मचारी ज्यादा तनख्वाह और विशेष सुविधा कि आए दिन मांग करते हैं. ऐसे में अगर उनकी मांगों को पूरा नहीं किया जाता है तो अस्पताल छोड़ने की धमकी देते हैं. जिस वजह से बीमार मरीजों पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है. उन्होंने सरकार से आग्रह करते हुए कहा कि इस महामारी के दौर में निजी अस्पतालों के ऐसे कर्मचारियों पर कठोर निर्णय लें, ताकि निजी अस्पताल इस महामारी में सरकार की मदद के लिए ज्यादा से ज्यादा आगे आ सके.
निजी अस्पताल में टीकाकरण भी होगा महंगा
केंद्र सरकार की ओर से जब से राज्यों के सरकारों से टीका को लेकर राशि की मांग की गई है तो वैसे में निजी अस्पतालों में भी टीका का दर बढ़ गया है. कोरोना का टीका निजी अस्पतालों में अब तक 250 रुपये में लोगों को लगाया जाता था. अब वही कोरोना का टीका निजी अस्पतालों में एक हजार रुपए से 1500 रुपये तक लिए जाएंगे. एक बार फिर से आम लोगों के लिए निजी अस्पतालों में टीका लेना आर्थिक संकट पैदा करेगा.
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सरकारी गाइडलाइन की धज्जियां उड़ा रही है निजी अस्पताल
राज्य सरकार की तरफ से कोविड के मरीजों के लिए जो इलाज के दर तय किए गए हैं. उसमें सामान्य मरीजों के लिए प्रतिदिन 10 हजार तय किया गया है. गंभीर मरीजों के लिए प्रतिदिन 15 हजार रुपया निर्धारित किया गया है. जो मरीज बेहद गंभीर है और उन्हें आईसीयू एवं वेंटिलेटर पर रखा गया है, वैसे मरीजों से प्रतिदिन 18 हजार रुपये तक निजी अस्पताल चार्ज कर सकते हैं. अगर इससे ज्यादा कोई अस्पताल चार्ज करता है तो उसके ऊपर कानूनी प्रक्रिया के तहत कार्रवाई किए जाने की प्रावधान है. लेकिन कई निजी अस्पताल सरकार की इस गाइडलाइन की धज्जियां उड़ा रहे हैं.
महामारी में धन उपार्जन करने वाले निजी अस्पतालों पर होगी सख्त कार्रवाई
निजी अस्पतालों की समस्या और परिजनों के आरोप सुनने के बाद हमने जो सूबे के स्वास्थ्य मंत्री से बात कि तो उन्होंने बताया कि इस विपदा की घड़ी में अगर कोई निजी अस्पताल अवसर बनाकर धन उपार्जन करते हैं तो क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत वैसे अस्पतालों का निबंधन रद्द किया जाएगा. क्योंकि कोविड-19 के दौर में देश का प्रत्येक नागरिक परेशान है. वैसे में स्वास्थ्य संस्थानों की जिम्मेदारी बनती है कि वह अपना निजी लाभ को नजरअंदाज करते हुए सरकार का साथ दें और राज्यवासियों को बेहतर इलाज प्रदान कराएं.