रांची: एक करोड़ के इनामी नक्सली प्रशांत बोस की पत्नी शीला मरांडी रिम्स में भर्ती हैं. शीला मरांडी को मिर्गी बीमारी है. इस बीमारी से पूरी दुनिया में 5 करोड़ लोग ग्रसित हैं. वहीं भारत में मिर्गी के 1-2 करोड़ मरीज हैं. जबकि झारखंड में करीब साढ़े तीन लाख लोग मिर्गी से प्रभावित हैं. ऐसे में जरूरी है मिर्गी को समझना और समय पर सही इलाज करना.
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मिर्गी एक मस्तिष्क विकार (Disorder) है. जिसकी वजह से बार-बार दौरे पड़ते हैं. ये दौरे अनैच्छिक और संक्षिप्त होते हैं. जिसमें शरीर का एक हिस्सा या पूरा शरीर प्रभावित होता है. कई बार शरीर में चेतना का भी नुकसान होता है. मरीजों को सामान्यतः कुछ सेकंड के लिए दौरे पड़ते हैं. लेकिन कई बार यह लंबा भी हो सकता है. ऐसे में जरूरी है कि मरीज को जल्द अस्पताल ले जाया जाए.
मिर्गी के क्या-क्या है लक्षण
ज्यादातर लोग समझते हैं कि हाथ पैर ऐंठना, मुंह से झाग आना, आंखें चढ़ जाना मिर्गी के लक्षण नहीं हैं जो गलत है. लंबे समय तक घूरना, भावनाओं और व्यवहार में बदलाव, भ्रम, इंद्रियों के परिवर्तन का नुकसान, झटकेदार हरकतें और चेतना का नुकसान भी मिर्गी के लक्षण हो सकते हैं.
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किस वजह से होती है मिर्गी
मिर्गी को लेकर चिकित्सा विज्ञान में हर दिन शोध हो रहे हैं. अभी तक जितनी जानकारी मिर्गी को लेकर उपलब्ध है. उसके अनुसार अनुवांशिक कारण, स्नायुतंत्र में संक्रमण, बचपन में दौरे, सिर में चोट, आघात, डाइबिटीज से न्यूरो की समस्या सहित कई कारण हैं. जिससे मिर्गी हो सकता है. भारत और झारखंड जैसे राज्य में इन्फेक्शन मिर्गी का एक बड़ा कारण है.
मिर्गी के दौरे आए तो क्या करें
मिर्गी के दौरे आने पर रोगी को करवट लिटा देना चाहिए. उसके नाक या मुंह बंद न करें. न ही मुंह में कोई चम्मच डालें. दौरे के समय पानी भी रोगी को नहीं देना चाहिए. इससे जान जा सकती है. जूता चप्पल न सुंघाएं और 10 सेकंड से ज्यादा दौरा रहे तो पास के डॉक्टर के पास ले जाएं. रिम्स के न्यूरोलॉजी विभाग के Hod कहते हैं कि सही समय पर बीमारी की पहचान और इलाज से मिर्गी को ठीक किया जा सकता है. डॉ सुरेंद्र प्रसाद कहते हैं कि बच्चों में भी मिर्गी होती है. कुछ में तो पता भी नहीं चलता और ऐसे में बच्चे के स्वास्थ्य के साथ-साथ पढ़ाई भी प्रभावित होती है.
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रिम्स में लोगों को किया गया जागरूक
रिम्स के न्यूरोलॉजी विभाग में गुरुवार को लोगों को मिर्गी के प्रति जागरूक किया गया. न्यूरो के डॉक्टरों का यह प्रयास इसलिए जरूरी है, क्योंकि झारखंड जैसे प्रदेश में मिर्गी रोगियों का महज 5 से 10 % मरीज ही अस्पताल या डॉक्टरों के पास पहुंच पाते हैं.