रांची: सेवा स्थायीकरण की मांग को लेकर संविदा पर नियुक्त राज्य के सहायक पुलिसकर्मियोंं का आंदोलन 16 वें दिन भी जारी रहा. पिछले 27 सितंबर से अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठे ये पुलिसकर्मी सरकार की बेरुखी से काफी नाराज हैं. अब तक सरकार या सत्तापक्ष का कोई भी प्रतिनिधि पुलिसकर्मियों से ना तो मिलने पहुंचा है और ना ही उनकी मांगों पर विचार किया गया है. यही वजह है कि आंदोलनरत पुलिसकर्मी नाराज हैं. इधर सहायक पुलिसकर्मियों को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष भी आमने सामने हैं.
आंदोलनरत सहायक पुलिसकर्मियों की मांग पर राजनीति तेज हो गई है. सोमवार को भाजपा शिष्टमंडल ने राज्यपाल से मिलकर सहायक पुलिसकर्मियों की मांग पर हस्तक्षेप करने का आग्रह कर सियासी चाल चलने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. भाजपा के इस चाल पर सत्तारूढ़ कांग्रेस पलटवार करने में जुटी है. कांग्रेस ने सहायक पुलिसकर्मियों की परेशानी के लिए रघुवर सरकार को दोषी माना है. कांग्रेस प्रवक्ता राकेश सिन्हा ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा है कि राजनीति करने के बजाय इसके समाधान के लिए सत्तारूढ़ दल लगी हुई है. उन्होंने कहा कि आंदोलनरत पुलिसकर्मियों से वैसे मिलने की बजाय समाधान का रास्ता बनाने की कोशिश में सरकार है. इसके लिए विधि विभाग से परामर्श ली जा रही है. इधर, भाजपा ने एक बार फिर सरकार पर निशाना साधते हुए मुख्यमंत्री से इस्तीफा देने की मांग की है.
राज्य के नक्सल प्रभावित 12 जिलों में इनकी नियुक्ति पांच वर्ष के लिए संविदा पर हुई थी. रघुवर सरकार के कार्यकाल में नक्सल हिंसा को रोकने के लिए जेएसएससी के माध्यम से 2500 युवा पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई थी. मानदेय वृद्धि और सेवा नियमित करने की मांग को लेकर ये पुलिसकर्मी राजभवन के समक्ष आमरण अनशन करने पहुंचे थे, लेकिन प्रशासन ने अनुमति नहीं दी. इसके बाद ये जबरन मोरहाबादी में डेरा डालकर आंदोलन कर रहे हैं. इन पुलिसकर्मियों ने सरकार पर वादा खिलाफी का आरोप लगाते हुए इस बार आर पार की लड़ाई लड़ने की घोषणा की है.
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राज्य के 12 नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में कार्यरत ये पुलिसकर्मी लगातार आंदोलन करते रहे हैं. इस बार अपनी मांगें मनवाने के लिए ये पुलिसकर्मी इंसाफ ए वर्दी के नाम से आंदोलन चला रखा है. मोरहाबादी मैदान में जुटे इन पुलिसकर्मियों में कई महिला पुलिसकर्मी भी हैं जो अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ पहुंची है. 2017 से संविदा पर काम कर रहे इन पुलिसकर्मियों का मानना है कि महज 10 हजार रुपए में नक्सल प्रभावित घनघोर जंगल में काम करने को विवश ये हैं. सरकार द्वारा कई बार मांगों को लेकर आश्वासन भी दिया गया मगर उसे सरकार ने पूरा नहीं किया.