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झारखंड के नेताओं की बयान वाली राजनीति, नेता मीडिया पर कर रहे तंज

झारखंड की राजनीति में आजकल बयानों का जो दौर चला है उसमें राजनेता किसी सवाल का जवाब देने के बजाय उपमा देने का काम कर रहे हैं. इसी वजह से शायद मीडिया की हर बात राजनेताओं को नागवार गुजर रही है. समस्या आम जनता की हो या फिर भ्रष्टाचार की, किसी भी सवाल का माकूल जवाब देने की बजाय नेता सवाल को ऐसे उपमा का प्रसंग दे रहे हैं कि जब जनता उनका उत्तर देखती और सुनती है तो उसे अपने हक की मिलने वाली सुविधा कब मिलेगी इसका ख्याल ही जेहन से उतर जाता है. बात किसी एक की हो तो बात को यूं ही कहा जा सकता है, लेकिन जब जवाब की भाषा उत्तर देना ही न हो तो इसे क्या कहा जाए.

politics of statements of leaders of Jharkhand
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Published : Jul 30, 2022, 9:41 PM IST

रांची: झारखंड में कोरोना की रफ्तार बढ़ रही है, हालांकि किसी लहर की बात नहीं है. लेकिन कोरोना का असर मजबूत तरीके से दिख रहा है. ऐसे में केन्द्र सरकार का यह निर्णय था कि 18 साल से ऊपर के सभी लोगों को बूस्टर डोज दे दिया जाएगा. झारखंड में कोवीसील्ड का बूस्टर डोज खत्म हो गया है.

ये भी पढ़ें: झारखंड में कोविशील्ड वैक्सीन खत्म! मीडिया के सवाल पर स्वास्थ्य मंत्री का तंज- आप लोग कादर खान टाइप का क्वेश्चन करते हैं

झारखंड में बूस्टर डोज को लेकर जब स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता से सवाल किया गया कि कोविशील्ड वैक्सीन का बूस्टर डोज खत्म हो गया है इसका इंतजाम कब तक हो पाएगा, तो शायद बन्ना गुप्ता को इस बात की जानकारी ही नहीं थी. विभाग भले उनका है लेकिन इस बात की उन्हें जरा सी भी जानकारी नहीं थी कि टीकाकरण की जिस काम को स्वास्थ्य विभाग कर रहा है उसका टीका ही खत्म हो गया है. अब जवाब तो कुछ देना था तो मीडिया के सवालों को उन्होंने कह दिया कि 'कादर खान जैसे सवाल आप पूछ रहे हैं' अब इस बात का उत्तर बन्ना गुप्ता को स्वयं सोचना होगा कि अगर जनता की बात करना कादर खान जैसे सवाल पूछना है. तो मीडिया कादर खान जैसा सवाल तो पूछ ही सकती है, क्योंकि हित जनता का है फायदा राज्य का है, सुकून चैन आम लोगों का है, क्योंकि कोरोना के कहर का असर झारखंड में भी खूब झेला है.

झारखंड में मीडिया पर नेताओं का बयान यहीं नहीं रुका है. ईडी की छापेमारी के दौरान अब गिरफ्त में आए पंकज मिश्रा से जब सवाल किया गया तो उनकी भी नाराजगी साफ तौर पर देखी गई थी. उन्होंने कहा था कि 'मीडिया वालों को यह समझ लेना चाहिए कि उन्हें क्या कहना है, नहीं तो हमारे लोग यह भूल जाएंगे कि तीसरा खंभा और चौथा खंभा क्या है'. अब आत्म मंथन और आत्म समीक्षा इसी बात की करनी है कि नेताओं की बिगड़ती भाषा या आम लोगों के सामने जिस जवाब को मीडिया बतौर पक्ष और विपक्ष रखेगी अगर उसमें इनके यही जवाब होंगे तो फिर रखने का तरीका क्या होगा.

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से ईडी की हुई छापेमारी और पूजा सिंघल की गिरफ्तारी के बाद जब यह जानना चाहा था कि आखिर पूजा सिंघल को लेकर के सरकार क्या निर्णय ले रही है, तो मुख्यमंत्री ने भी यह कह दिया था कि हाथ में माइक जो मीडिया वाले लेकर चलते हैं वह एके 47 जैसा दिखता है और कैमरा दूरबीन से है. हालांकि इस बात को भी बड़े सामान्य तरीके से ही रखा गया था, लेकिन बयानों की चर्चा जरूर हुई थी कि एके-47 और दूरबीन मीडिया कर्मियों के इस हथियार को बताया जा रहा है जो जनता की आवाज बनती है.

बयान पर सवाल उठने और उठाने की प्रासंगिकता इसलिए भी खड़ी हो रही है कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने झारखंड से ही कह दिया था कि मीडिया कंगारू कोर्ट चलाता है. इस विषय को लेकर के एक बहस में शुरू हुई है और कहा यह भी जा रहा है कि मीडिया का स्वरूप अगर किसी सवाल को खड़ा करता है और जिस पर सवाल खड़ा हो रहा है पक्ष उसका भी रखना है. लेकिन जब पक्ष रखने वाला ही निष्पक्ष तरीके से बात नहीं रखेगा तो एक मर्यादित धर्मसंकट जरूर खड़ा हो जाता है कि आखिर इन बातों को रखा कैसे जाए. क्योंकि भारत के सर्वोच्च न्यायाय विद ने मीडिया के लिए एक ऐसा शब्द कहा है तो ऐसे में समीक्षा और मंथन भी जरूरी है कि नेताओं को जनता की बात जनता के हित के अनुसार कहनी चाहिए तो वह आम जन की बात होगी. लेकिन अगर वह उपमा वाली शर्त के साथ होगी तो माना जा सकता है कि उत्तर सत्ता वाला है. यह तय होना जरूरी है और सभी को इस बारे में विचार करना भी चाहिए क्योंकि एक नई शुरुआत का इशारा भारत के सर्वोच्च न्यायाय विद ने झारखंड की धरती पर ही रखा है.

रांची: झारखंड में कोरोना की रफ्तार बढ़ रही है, हालांकि किसी लहर की बात नहीं है. लेकिन कोरोना का असर मजबूत तरीके से दिख रहा है. ऐसे में केन्द्र सरकार का यह निर्णय था कि 18 साल से ऊपर के सभी लोगों को बूस्टर डोज दे दिया जाएगा. झारखंड में कोवीसील्ड का बूस्टर डोज खत्म हो गया है.

ये भी पढ़ें: झारखंड में कोविशील्ड वैक्सीन खत्म! मीडिया के सवाल पर स्वास्थ्य मंत्री का तंज- आप लोग कादर खान टाइप का क्वेश्चन करते हैं

झारखंड में बूस्टर डोज को लेकर जब स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता से सवाल किया गया कि कोविशील्ड वैक्सीन का बूस्टर डोज खत्म हो गया है इसका इंतजाम कब तक हो पाएगा, तो शायद बन्ना गुप्ता को इस बात की जानकारी ही नहीं थी. विभाग भले उनका है लेकिन इस बात की उन्हें जरा सी भी जानकारी नहीं थी कि टीकाकरण की जिस काम को स्वास्थ्य विभाग कर रहा है उसका टीका ही खत्म हो गया है. अब जवाब तो कुछ देना था तो मीडिया के सवालों को उन्होंने कह दिया कि 'कादर खान जैसे सवाल आप पूछ रहे हैं' अब इस बात का उत्तर बन्ना गुप्ता को स्वयं सोचना होगा कि अगर जनता की बात करना कादर खान जैसे सवाल पूछना है. तो मीडिया कादर खान जैसा सवाल तो पूछ ही सकती है, क्योंकि हित जनता का है फायदा राज्य का है, सुकून चैन आम लोगों का है, क्योंकि कोरोना के कहर का असर झारखंड में भी खूब झेला है.

झारखंड में मीडिया पर नेताओं का बयान यहीं नहीं रुका है. ईडी की छापेमारी के दौरान अब गिरफ्त में आए पंकज मिश्रा से जब सवाल किया गया तो उनकी भी नाराजगी साफ तौर पर देखी गई थी. उन्होंने कहा था कि 'मीडिया वालों को यह समझ लेना चाहिए कि उन्हें क्या कहना है, नहीं तो हमारे लोग यह भूल जाएंगे कि तीसरा खंभा और चौथा खंभा क्या है'. अब आत्म मंथन और आत्म समीक्षा इसी बात की करनी है कि नेताओं की बिगड़ती भाषा या आम लोगों के सामने जिस जवाब को मीडिया बतौर पक्ष और विपक्ष रखेगी अगर उसमें इनके यही जवाब होंगे तो फिर रखने का तरीका क्या होगा.

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से ईडी की हुई छापेमारी और पूजा सिंघल की गिरफ्तारी के बाद जब यह जानना चाहा था कि आखिर पूजा सिंघल को लेकर के सरकार क्या निर्णय ले रही है, तो मुख्यमंत्री ने भी यह कह दिया था कि हाथ में माइक जो मीडिया वाले लेकर चलते हैं वह एके 47 जैसा दिखता है और कैमरा दूरबीन से है. हालांकि इस बात को भी बड़े सामान्य तरीके से ही रखा गया था, लेकिन बयानों की चर्चा जरूर हुई थी कि एके-47 और दूरबीन मीडिया कर्मियों के इस हथियार को बताया जा रहा है जो जनता की आवाज बनती है.

बयान पर सवाल उठने और उठाने की प्रासंगिकता इसलिए भी खड़ी हो रही है कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने झारखंड से ही कह दिया था कि मीडिया कंगारू कोर्ट चलाता है. इस विषय को लेकर के एक बहस में शुरू हुई है और कहा यह भी जा रहा है कि मीडिया का स्वरूप अगर किसी सवाल को खड़ा करता है और जिस पर सवाल खड़ा हो रहा है पक्ष उसका भी रखना है. लेकिन जब पक्ष रखने वाला ही निष्पक्ष तरीके से बात नहीं रखेगा तो एक मर्यादित धर्मसंकट जरूर खड़ा हो जाता है कि आखिर इन बातों को रखा कैसे जाए. क्योंकि भारत के सर्वोच्च न्यायाय विद ने मीडिया के लिए एक ऐसा शब्द कहा है तो ऐसे में समीक्षा और मंथन भी जरूरी है कि नेताओं को जनता की बात जनता के हित के अनुसार कहनी चाहिए तो वह आम जन की बात होगी. लेकिन अगर वह उपमा वाली शर्त के साथ होगी तो माना जा सकता है कि उत्तर सत्ता वाला है. यह तय होना जरूरी है और सभी को इस बारे में विचार करना भी चाहिए क्योंकि एक नई शुरुआत का इशारा भारत के सर्वोच्च न्यायाय विद ने झारखंड की धरती पर ही रखा है.

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