रांची: झारखंड में ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी मुख्यमंत्री ने अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा किया हो. इससे पहले यहां की राजनीति ऐसी डगमग थी कि 19 साल के दौरान 9 मुख्यमंत्रियों ने सत्ता की कमान संभाली और 3 बार राष्ट्रपति शासन तक लगाना पड़ा.
2000 में बना था अलग राज्य
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पहल पर 15 नवंबर 2000 को भारत के मानचित्र पर 28वें राज्य के रूप में झारखंड का उदय हुआ था. तब बीजेपी ने बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में सरकार का गठन किया. हालांकि डोमिसाइल विवाद के कारण बाबूलाल मरांडी को हटाना पड़ा और उनकी जगह युवा नेता के रूप में उभरे अर्जुन मुंडा पर बीजेपी ने भरोसा जताया.
झारखंड विधानसभा चुनाव 2000
- बीजेपी: 32
- जेएमएम: 12
- कांग्रेस: 11
- आरजेडी: 09
- जेडीयू: 08
- अन्य: 09
जोड़तोड़ की राजनीति
इसके बाद 2005 के चुनावी नतीजों ने झारखंड की राजनीति को मकड़जाल में उलझा दिया. गठबंधन और जोड़तोड़ की राजनीति शुरू हुई. इस चुनाव में भाजपा 30 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, लेकिन बहुमत के लिए 11 विधायकों को जोड़ने में उसके पसीने छूट गए.
जेएमएम को मिला मौका
बीजेपी के पास सबसे ज्यादा सीट होने के बाद भी तत्कालीन राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने जेएमएम को सरकार बनाने का मौका दिया और शिबू सोरेन मुख्यमंत्री बने. हालांकि बहुमत नहीं होने के कारण 10 दिन बाद ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया. बीजेपी से अर्जुन मुंडा ने दोबारा कमान संभाली, लेकिन 555 दिन बाद वे भी राजनीतिक उथल-पुथल के शिकार हो गए.
मधु कोड़ा की किस्मत चमकी
जोड़तोड़ में आरजेडी के समर्थन से निर्दलीय मधु कोड़ा की किस्मत चमकी और वे पहले निर्दलीय मुख्यमंत्री बनाए गए. मधु कोड़ा के दामन पर भ्रष्टाचार के दाग लगे और उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी. इसका फायदा जेएमएण को मिला और शिबू सोरेन फिर से सत्ता पर काबिज हो गए.
झारखंड विधानसभा चुनाव 2005
- बीजेपी: 30
- जेएमएम: 17
- कांग्रेस: 09
- आरजेडी: 07
- जेडीयू: 06
- अन्य: 12
किसी पार्टी को बहुमत नहीं
2009 में भी किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला. अलबत्ता 2005 के चुनाव में 30 सीटें जीतने वाली भाजपा 18 सीट पर सिमट गई और झामुमो ने पिछले चुनाव के मुकाबले एक सीट ज्यादा लाकर भाजपा की बराबरी कर ली. इस चुनाव में भाजपा से अलग होकर जेवीएम पार्टी बनाकर मैदान में उतरा और 11 सीट लाकर चौथी पार्टी बनी.
झारखंड में लगा राष्ट्रपति शासन
दूसरी विधानसभा के कार्यकाल पूरा होने से तीन महीना पहले ही राष्ट्रपति शासन के दौरान ही तीसरी विधानसभा के लिए चुनाव कराने पड़े. 2009 के चुनाव के वक्त उठी बयार इशारा कर चुकी थी कि इस बार भी झारखंड की राजनीति बैसाखी पर ही खड़ी रहेगी और हुआ भी वैसा ही.
बीजेपी और जेएमएम का गठबंधन
सरकार बनाना किसी के बूते की बात नहीं थी. फिर बीजेपी के समर्थन से शिबू सोरेन के नेतृत्व में सरकार बनी जो सिर्फ 152 दिन ही चल सकी. अस्थिरता के बीच 102 दिन के लिए दूसरी बार झारखंड में राष्ट्रपति शासन लगा. इसके बाद जेएमएम के समर्थन से बीजेपी के अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बने, लेकिन 860 दिन ही कुर्सी बचा सके. जेएमएम द्वारा समर्थन वापस लेने के कारण सूबे में तीसरी बार राष्ट्रपति शासन लगा जो 175 दिन तक रहा. अंत में कांग्रेस के समर्थन से हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने और 533 दिन तक मुख्यमंत्री बने रहे.
झारखंड विधानसभा चुनाव 2009
- बीजेपी: 18
- जेएमएम: 18
- कांग्रेस: 13
- जेवीएम: 11
- आजसू: 06
- आरजेडी: 05
- अन्य: 10
2014 में बीजेपी को मिली बहुमत
2005 से 2014 के बीच चौथी विधानसभा के गठन से पहले तक यानी नौ वर्षों तक झारखंड में राजनीतिक अस्थिरता बनी रही. आखिर 2014 के चुनावी नतीजे झारखंड के लिए शुभ साबित हुए. यह दौर था जब झारखंड को रघुवर दास के रूप में राज्य गठन के बाद पहली बार गैर आदिवासी मुख्यमंत्री मिला. हालांकि, इस चुनाव में भी किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला, लेकिन जेवीएम के छह विधायकों के पाला बदलने से बीजेपी पूर्ण बहुमत में आ गई.
झारखंड विधानसभा चुनाव 2014
- बीजेपी: 37
- जेएमएम: 19
- कांग्रेस: 06
- जेवीएम: 08
- आजसू: 05
- अन्य: 06
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आमने-सामने बीजेपी और जेएमएम
अब पांचवी विधानसभा के गठन की कवायद शुरू हो चुकी है. हालात बदल चुके हैं. कभी बीजेपी के साथ सरकार में रही जेएमएम अब महागठबंधन के रास्ते सत्ता की कुर्सी पर नजर लगाए हुए है.