ETV Bharat / city

कभी संघ के लिए छोड़ी थी नौकरी, अब बीजेपी के 'अश्वमेध यज्ञ' का घोड़ा रोकने की कोशिश

झारखंड में 19 साल के दौरान जनता को 3 बार राष्ट्रपति शासन देखना पड़ा. इस दौरान 10 बार मुख्यमंत्री बदले गए और 6 नेताओं को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला. 'सरकार' में आप देख सकते हैं कि कैसे कुर्सी की खींचतान में चेहरे बदलते गए और जनता के विकास के सपने हवा हो गए. पहली कड़ी में देखिए बाबूलाल मरांडी की सरकार

झारखंड सरकार
author img

By

Published : Nov 5, 2019, 7:04 AM IST

Updated : Nov 5, 2019, 6:10 PM IST

रांचीः15 नवंबर 2000, ये वो दिन था जब अलग झारखंड का सपना साकार हुआ. नया राज्य बनने तक भारतीय जनता पार्टी और झारखंड मुक्ति मोर्चा एक साथ थे. जेएमएम के दिग्गज नेता शिबू सोरेन ने अलग झारखंड के लिए लंबी लड़ाई लड़ी थी. लिहाजा वे सीएम बनना चाहते थे, लेकिन बीजेपी इसके लिए राजी नहीं हुई. बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने संताल समुदाय के नेता बाबूलाल मरांडी पर भरोसा जताया और बाबूलाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बनाए गए.

बाबूलाल मरांडी का राजनीतिक सफर

झारखंड के गठन के वक्त बीजेपी के पास 32 विधायक थे, जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा के 12, कांग्रेस के 11, राष्ट्रीय जनता दल के 9, जनता दल यूनाइटेड के 8 और 9 अन्य विधायक थे. बीजेपी ने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वन और पर्यावरण राज्य मंत्री रहे बाबूलाल मरांडी को झारखंड के पहले मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी. बाबूलाल मरांडी बीजेपी के साथ संघ के भी भरोसेमंद रहे हैं.

ये भी पढ़ें-झारखंड विधानसभा चुनाव 2019: जानिए कहां कब होगी वोटिंग

संघ के लिए छोड़ी नौकरी

गिरिडीह में जन्मे बाबूलाल मरांडी ने स्नातक तक की पढ़ाई की और फिर बतौर प्राइमरी टीचर स्कूल में पढ़ाने लगे. इसी दौरान उनका संपर्क संघ के नेताओं से हुआ और उन्होंने संघ के प्रचार के लिए शिक्षक की नौकरी छोड़ दी. वे साल 1983 में दुमका चले गए और खुद को संघ के लिए समर्पित कर दिया. इसके बाद संघ के सिलसिले में बाबूलाल का रांची और दिल्ली आना-जाना भी शुरू हो गया. 1991 में बीजेपी के महामंत्री गोविन्दाचार्य ने उन्हें बीजेपी में शामिल किया और लोकसभा चुनाव में टिकट भी दिलवाया, लेकिन वे चुनाव हार गए. 1996 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर बाबूलाल पर भरोसा जताया लेकिन इस बार उन्हें दिग्गज नेता शिबू सोरेन से हारना पड़ा, हालांकि हार का अंतर महज 5 हजार वोट था. बाबूलाल भले ही चुनाव हार गए लेकिन भाजपा का विश्वास जीत लिया. भाजपा ने बाबूलाल मरांडी को झारखंड का अध्यक्ष बना दिया.

दिशोम गुरु को हरा कर बने करिश्माई नेता

इसके बाद 1998 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने न केवल दिशोम गुरु शिबू सोरेन को मात दी, बल्कि झारखंड क्षेत्र की 14 में 12 लोकसभा सीटों पर भी भाजपा का कमल खिल गया. इसी जीत ने उन्हें झारखंड का करिश्माई नेता साबित कर दिया और वे केंद्रीय मंत्रिमंडल से होते हुए नए राज्य के पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए.

ये भी पढ़ें- झारखंड विधानसभा चुनाव 2019: कौन बन सकता है विधायक, क्या होनी चाहिए योग्यता

सहयोगियों के दबाव में इस्तीफा

झारखंड की पहली सरकार का पहला साल एनडीए में शामिल विधायकों और मंत्रियों की मान-मनौव्वल में ही बीत गया. डोमिसाइल नीति लागू करने के बाद राज्य में काफी बवाल हुआ. बाबूलाल मरांडी ने सपनों के झारखंड को गढ़ना शुरू ही किया था कि तभी सहयोगी जनता दल यूनाइटेड के दबाव के चलते उन्हें मुख्यमंत्री की गद्दी छोड़नी पड़ी. नए राज्य की पहली सरकार का कार्यकाल पूरा न हो पाना बड़ा झटका था. सरकार बची रहे इसके लिए कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा को कमान सौंपनी पड़ी.

पार्टी में उपेक्षा से बने बागी

जिन मुद्दों पर सहयोगी दलों की बात नहीं मानने पर बाबूलाल को कुर्सी छोड़नी पड़ी, उन मुद्दों पर अर्जुन मुंडा 2005 के विधानसभा चुनाव तक मतभेद रोकने में कामयाब रहे. इधर, बीजेपी में बाबूलाल की अनदेखी की जाने लगी. इससे नाराज बाबूलाल ने राज्य की राजनीति से थोड़ी दूरी बना ली. बीजेपी प्रभारियों से बाबूलाल के मतभेद बढ़ने लगे और वे सार्वजनिक मंच पर भी राज्य सरकार की आलोचना करने लगे.

jvm leader babulal marandi
जेवीएम का गठन

झारखंड विकास मोर्चा का गठन

पार्टी में उपेक्षित होने पर बाबूलाल मरांडी ने 2006 में खुद की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा का गठन किया. 2009 के विधानसभा चुनाव में जेवीएम ने 25 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 11 सीटों पर जीत हासिल की. बाबूलाल मरांडी किंग मेंकर की भूमिका में नजर आने लगे. इसके बाद 2014 के विधानसभा चुनाव में जेवीएम ने 73 सीटों पर उम्मीदवार उतारे लेकिन मोदी लहर में जेवीएम सिर्फ 8 सीटों पर कामयाबी हासिल कर सकी और 55 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. चुनाव जीतने के बाद जेवीएम के 6 विधायकों ने भी बाबूलाल मरांडी का साथ छोड़ दिया और बीजेपी में शामिल हो गए.

अब एक बार फिर बाबूलाल मरांडी अपनी खोए करिश्माई अंदाज को पाने की कोशिश में हैं. किंग से किंगमेकर बनने का बाबूलाल मरांडी का ये सपना पूरा होगा या नहीं.. इसका इंतजार हमें भी रहेगा. फिलहाल आप सरकार की अगली कड़ी में देख सकते हैं झारखंड के दूसरे मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा का सफर

रांचीः15 नवंबर 2000, ये वो दिन था जब अलग झारखंड का सपना साकार हुआ. नया राज्य बनने तक भारतीय जनता पार्टी और झारखंड मुक्ति मोर्चा एक साथ थे. जेएमएम के दिग्गज नेता शिबू सोरेन ने अलग झारखंड के लिए लंबी लड़ाई लड़ी थी. लिहाजा वे सीएम बनना चाहते थे, लेकिन बीजेपी इसके लिए राजी नहीं हुई. बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने संताल समुदाय के नेता बाबूलाल मरांडी पर भरोसा जताया और बाबूलाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बनाए गए.

बाबूलाल मरांडी का राजनीतिक सफर

झारखंड के गठन के वक्त बीजेपी के पास 32 विधायक थे, जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा के 12, कांग्रेस के 11, राष्ट्रीय जनता दल के 9, जनता दल यूनाइटेड के 8 और 9 अन्य विधायक थे. बीजेपी ने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वन और पर्यावरण राज्य मंत्री रहे बाबूलाल मरांडी को झारखंड के पहले मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी. बाबूलाल मरांडी बीजेपी के साथ संघ के भी भरोसेमंद रहे हैं.

ये भी पढ़ें-झारखंड विधानसभा चुनाव 2019: जानिए कहां कब होगी वोटिंग

संघ के लिए छोड़ी नौकरी

गिरिडीह में जन्मे बाबूलाल मरांडी ने स्नातक तक की पढ़ाई की और फिर बतौर प्राइमरी टीचर स्कूल में पढ़ाने लगे. इसी दौरान उनका संपर्क संघ के नेताओं से हुआ और उन्होंने संघ के प्रचार के लिए शिक्षक की नौकरी छोड़ दी. वे साल 1983 में दुमका चले गए और खुद को संघ के लिए समर्पित कर दिया. इसके बाद संघ के सिलसिले में बाबूलाल का रांची और दिल्ली आना-जाना भी शुरू हो गया. 1991 में बीजेपी के महामंत्री गोविन्दाचार्य ने उन्हें बीजेपी में शामिल किया और लोकसभा चुनाव में टिकट भी दिलवाया, लेकिन वे चुनाव हार गए. 1996 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर बाबूलाल पर भरोसा जताया लेकिन इस बार उन्हें दिग्गज नेता शिबू सोरेन से हारना पड़ा, हालांकि हार का अंतर महज 5 हजार वोट था. बाबूलाल भले ही चुनाव हार गए लेकिन भाजपा का विश्वास जीत लिया. भाजपा ने बाबूलाल मरांडी को झारखंड का अध्यक्ष बना दिया.

दिशोम गुरु को हरा कर बने करिश्माई नेता

इसके बाद 1998 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने न केवल दिशोम गुरु शिबू सोरेन को मात दी, बल्कि झारखंड क्षेत्र की 14 में 12 लोकसभा सीटों पर भी भाजपा का कमल खिल गया. इसी जीत ने उन्हें झारखंड का करिश्माई नेता साबित कर दिया और वे केंद्रीय मंत्रिमंडल से होते हुए नए राज्य के पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए.

ये भी पढ़ें- झारखंड विधानसभा चुनाव 2019: कौन बन सकता है विधायक, क्या होनी चाहिए योग्यता

सहयोगियों के दबाव में इस्तीफा

झारखंड की पहली सरकार का पहला साल एनडीए में शामिल विधायकों और मंत्रियों की मान-मनौव्वल में ही बीत गया. डोमिसाइल नीति लागू करने के बाद राज्य में काफी बवाल हुआ. बाबूलाल मरांडी ने सपनों के झारखंड को गढ़ना शुरू ही किया था कि तभी सहयोगी जनता दल यूनाइटेड के दबाव के चलते उन्हें मुख्यमंत्री की गद्दी छोड़नी पड़ी. नए राज्य की पहली सरकार का कार्यकाल पूरा न हो पाना बड़ा झटका था. सरकार बची रहे इसके लिए कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा को कमान सौंपनी पड़ी.

पार्टी में उपेक्षा से बने बागी

जिन मुद्दों पर सहयोगी दलों की बात नहीं मानने पर बाबूलाल को कुर्सी छोड़नी पड़ी, उन मुद्दों पर अर्जुन मुंडा 2005 के विधानसभा चुनाव तक मतभेद रोकने में कामयाब रहे. इधर, बीजेपी में बाबूलाल की अनदेखी की जाने लगी. इससे नाराज बाबूलाल ने राज्य की राजनीति से थोड़ी दूरी बना ली. बीजेपी प्रभारियों से बाबूलाल के मतभेद बढ़ने लगे और वे सार्वजनिक मंच पर भी राज्य सरकार की आलोचना करने लगे.

jvm leader babulal marandi
जेवीएम का गठन

झारखंड विकास मोर्चा का गठन

पार्टी में उपेक्षित होने पर बाबूलाल मरांडी ने 2006 में खुद की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा का गठन किया. 2009 के विधानसभा चुनाव में जेवीएम ने 25 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 11 सीटों पर जीत हासिल की. बाबूलाल मरांडी किंग मेंकर की भूमिका में नजर आने लगे. इसके बाद 2014 के विधानसभा चुनाव में जेवीएम ने 73 सीटों पर उम्मीदवार उतारे लेकिन मोदी लहर में जेवीएम सिर्फ 8 सीटों पर कामयाबी हासिल कर सकी और 55 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. चुनाव जीतने के बाद जेवीएम के 6 विधायकों ने भी बाबूलाल मरांडी का साथ छोड़ दिया और बीजेपी में शामिल हो गए.

अब एक बार फिर बाबूलाल मरांडी अपनी खोए करिश्माई अंदाज को पाने की कोशिश में हैं. किंग से किंगमेकर बनने का बाबूलाल मरांडी का ये सपना पूरा होगा या नहीं.. इसका इंतजार हमें भी रहेगा. फिलहाल आप सरकार की अगली कड़ी में देख सकते हैं झारखंड के दूसरे मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा का सफर

Intro:Body:

कभी संघ के लिए छोड़ी थी नौकरी, अब बीजेपी के 'अश्वमेध यज्ञ' का घोड़ा रोकने की कोशिश

political career of first cm of jharkhand jvm leader babulal marandi 



babulal marandi, babulal marandi party, first cm of jharkhand, babulal marandi news, झारखंड के पहले मुख्यमंत्री, बाबूलाल मरांडी, बाबूलाल मरांडी न्यूज, 

babulal marandi kaun hai, झारखंड मुक्ति मोर्चा, jharkhand mukti morcha, बाबूलाल मरांडी की पार्टी, झारखंड विधानसभा चुनाव 2019, jharkhand assembly election 2019, jharkhand mahasamar, झारखंड महासमर



झारखंड में 19 साल के दौरान जनता को 3 बार राष्ट्रपति शासन देखना पड़ा. इस दौरान 10 बार मुख्यमंत्री बदले गए और 6 नेताओं को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला. 'सरकार' में आप देख सकते हैं कि कैसे कुर्सी की खींचतान में चेहरे बदलते गए और जनता के विकास के सपने हवा हो गए. पहली कड़ी में देखिए बाबूलाल मरांडी की सरकार



रांचीः15 नवंबर 2000, ये वो दिन था जब अलग झारखंड का सपना साकार हुआ. नया राज्य बनने तक भारतीय जनता पार्टी और झारखंड मुक्ति मोर्चा एक साथ थे. जेवीएम के दिग्गज नेता शिबू सोरेन ने अलग झारखंड के लिए लंबी लड़ाई लड़ी थी. लिहाजा वे सीएम बनना चाहते थे, लेकिन बीजेपी इसके लिए राजी नहीं हुई. बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने संताल समुदाय के नेता बाबूलाल मरांडी पर भरोसा जताया और बाबूलाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बनाए गए. 



झारखंड के गठन के वक्त बीजेपी के पास 32 विधायक थे, जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा के 12, कांग्रेस के 11, राष्ट्रीय जनता दल के 9, जनता दल यूनाइटेड के 8 और 9 अन्य विधायक थे. बीजेपी ने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वन और पर्यावरण राज्य मंत्री रहे बाबूलाल मरांडी को झारखंड के पहले मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी. बाबूलाल मरांडी बीजेपी के साथ संघ के भी भरोसेमंद रहे हैं.



संघ के लिए छोड़ी नौकरी

गिरिडीह में जन्मे बाबूलाल मरांडी ने स्नातक तक की पढ़ाई की और फिर बतौर प्राइमरी टीचर स्कूल में पढ़ाने लगे. इसी दौरान उनका संपर्क संघ के नेताओं से हुआ और उन्होंने संघ के प्रचार के लिए शिक्षक की नौकरी छोड़ दी. वे साल 1983 में दुमका चले गए और खुद को संघ के लिए समर्पित कर दिया. इसके बाद संघ के सिलसिले में बाबूलाल का रांची और दिल्ली आना-जाना भी शुरू हो गया. 1991 में बीजेपी के महामंत्री गोविन्दाचार्य ने उन्हें बीजेपी में शामिल किया और लोकसभा चुनाव में टिकट भी दिलवाया, लेकिन वे चुनाव हार गए. 1996 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर बाबूलाल पर भरोसा जताया लेकिन इस बार उन्हें दिग्गज नेता शिबू सोरेन से हारना पड़ा, हालांकि हार का अंतर महज 5 हजार वोट था. बाबूलाल भले ही चुनाव हार गए लेकिन भाजपा का विश्वास जीत लिया. भाजपा ने बाबूलाल मरांडी को झारखंड का अध्यक्ष बना दिया. 



दिशोम गुरु को हरा कर बने करिश्माई नेता

इसके बाद 1998 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने न केवल दिशोम गुरु शिबू सोरेन को मात दी, बल्कि झारखंड क्षेत्र की 14 में 12 लोकसभा सीटों पर भी भाजपा का कमल खिल गया. इसी जीत ने उन्हें झारखंड का करिश्माई नेता साबित कर दिया और वे केंद्रीय मंत्रिमंडल से होते हुए नए राज्य के पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए. 



सहयोगियों के दबाव में इस्तीफा

झारखंड की पहली सरकार का पहला साल एनडीए में शामिल विधायकों और मंत्रियों की मान-मनौव्वल में ही बीत गया. डोमिसाइल नीति लागू करने के बाद राज्य में काफी बवाल हुआ. बाबूलाल मरांडी ने सपनों के झारखंड को गढ़ना शुरू ही किया था कि तभी सहयोगी जनता दल यूनाइटेड के दबाव के चलते उन्हें मुख्यमंत्री की गद्दी छोड़नी पड़ी. नए राज्य की पहली सरकार का कार्यकाल पूरा न हो पाना बड़ा झटका था. सरकार बची रहे इसके लिए कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा को कमान सौंपनी पड़ी. 



पार्टी में उपेक्षा से बने बागी

जिन मुद्दों पर सहयोगी दलों की बात नहीं मानने पर बाबूलाल को कुर्सी छोड़नी पड़ी, उन मुद्दों पर अर्जुन मुंडा 2005 के विधानसभा चुनाव तक मतभेद रोकने में कामयाब रहे. इधर, बीजेपी में बाबूलाल की अनदेखी की जाने लगी. इससे नाराज बाबूलाल ने राज्य की राजनीति से थोड़ी दूरी बना ली. बीजेपी प्रभारियों से बाबूलाल के मतभेद बढ़ने लगे और वे सार्वजनिक मंच पर भी राज्य सरकार की आलोचना करने लगे. पार्टी में उपेक्षित होने पर बाबूलाल मरांडी ने 2006 में खुद की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा का गठन किया.  2009 के विधानसभा चुनाव में जेवीएम ने 25 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 11 सीटों पर जीत हासिल की. बाबूलाल मरांडी किंग मेंकर की भूमिका में नजर आने लगे. इसके बाद 2014 के विधानसभा चुनाव में जेवीएम ने 73 सीटों पर उम्मीदवार उतारे लेकिन मोदी लहर में जेवीएम सिर्फ 8 सीटों पर कामयाबी हासिल कर सकी और 55 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. चुनाव जीतने के बाद जेवीएम के 6 विधायकों ने भी बाबूलाल मरांडी का साथ छोड़ दिया और बीजेपी में शामिल हो गए. 



अब एक बार फिर बाबूलाल मरांडी अपनी खोए करिश्माई अंदाज को पाने की कोशिश में हैं. किंग से किंगमेकर बनने का बाबूलाल मरांडी का ये सपना पूरा होगा या नहीं.. इसका इंतजार हमें भी रहेगा. फिलहाल आप सरकार की अगली कड़ी में देख सकते हैं झारखंड के दूसरे मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा का सफर 


Conclusion:
Last Updated : Nov 5, 2019, 6:10 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.