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पिजन पॉक्स की बीमारी से मर रहे कबूतर, मनुष्यों में संक्रमित होने का डर नहीं

रांची के कई इलाकों में बड़ी संख्या में मरे हुए कबूतर मिले हैं. कई स्थानों पर बीमारी कबूतर भी पाए गए हैं. पशुचिकित्सा महाविद्यालय के डीन डॉ सुशील प्रसाद बताते हैं कि मौसम की स्थिति में बदलाव से कबूतरों में पॉक्स बीमारी हो सकती है.

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बीएयू रांची
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Published : Apr 6, 2020, 8:25 PM IST

रांची: राजधानी रांची के विभिन्न भागों में पिछले दो-तीन दिनों से बड़ी संख्या में मरे हुए कबूतर मिले हैं. कई स्थानों पर बीमारी कबूतर भी पाए गए हैं. कोरोना संकट की घड़ी में कबूतर में पाए जाने वाले इस बीमारी ने कबूतर प्रेमियों को चिंतित कर दिया है. रांची पशुचिकित्सा महाविद्यालय के डीन डॉ सुशील प्रसाद बताते हैं कि मौसम की स्थिति में बदलाव से कबूतरों में पॉक्स बीमारी हो सकती है. ऐसा कोई सबूत नहीं है कि एवियन पॉक्स वायरस मनुष्यों को संक्रमित कर सकता है. इसलिए इससे सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता नहीं है.

झुंड में तेजी से फैलता है वायरस

डीन ने कहा कि अगर इस बीमारी से एक पक्षी प्रभावित होता है, तो वायरस जल्दी से झुंड में अन्य पक्षियों में फैलने का डर रहता है. पक्षियों में यह बीमारी 7- 10 दिनों तक और झुंड में आम तौर पर 5 से 7 सप्ताह तक रहता है.

ये भी पढ़ें- कोरोना संकट: सुरीली आवाज में लोगों को जागरूक कर रहा चरवाहा, दूर रह कर रहें पास



'उचित उपचार से पक्षियों को बचाया जा सकता है'
महाविद्यालय के पशु रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ एमके गुप्ता का कहना है कि यह बीमारी वायरस के कारण होता है, जो मच्छरों और गंदे पानी से फैलता है. इस बीमारी से पक्षी के चेहरे, मुंह और पैरों के चारों ओर पॉक्स के निशान बन जाते हैं. मुंह में चेचक (पॉक्स) और यदि बाहरी शरीर पर चेचक देखा गया, तो उचित उपचार से पक्षियों को बचाया जा सकता है.

ये भी पढ़ें- कोरोना संकट: लॉकडाउन में मुस्तैदी से ड्यूटी निभा रही हैं भारत की बेटियां

ऐसे रख सकते हैं ध्यान

विशेषज्ञों का कहना है कि कबूतर पालतू नहीं होते. जिसके कारण इस वायरल बीमारी का सार्वजानिक इलाज संभव नहीं है. कुछ लोग कबूतर को पालते हैं. पौष्टिक पूरक तरल द्रव्य को एजिथ्रोमाइसिनया टेट्रासाइक्लिन को ड्रॉपर या पाइप के माध्यम से उपचार किया जा सकता है. इसके आलावा कबूतर के रहने वाले स्थान में रात को मच्छर मारने की अगरबत्ती जलाकर और रहने वाले जमीन में सुबह मच्छरदानी लगाकर बीमारी से बचाव किया जा सकता है. साथ ही रहने वाले स्थान को 1 प्रतिशतपोटेशियम हाइड्रोक्साइड, 2 प्रतिशत सोडियम हाइड्रोक्साइड और 5 प्रतिशत फिनॉल को मिलाकर कबूतर घर/बर्तन की सफाई करनी चाहिए.

रांची: राजधानी रांची के विभिन्न भागों में पिछले दो-तीन दिनों से बड़ी संख्या में मरे हुए कबूतर मिले हैं. कई स्थानों पर बीमारी कबूतर भी पाए गए हैं. कोरोना संकट की घड़ी में कबूतर में पाए जाने वाले इस बीमारी ने कबूतर प्रेमियों को चिंतित कर दिया है. रांची पशुचिकित्सा महाविद्यालय के डीन डॉ सुशील प्रसाद बताते हैं कि मौसम की स्थिति में बदलाव से कबूतरों में पॉक्स बीमारी हो सकती है. ऐसा कोई सबूत नहीं है कि एवियन पॉक्स वायरस मनुष्यों को संक्रमित कर सकता है. इसलिए इससे सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता नहीं है.

झुंड में तेजी से फैलता है वायरस

डीन ने कहा कि अगर इस बीमारी से एक पक्षी प्रभावित होता है, तो वायरस जल्दी से झुंड में अन्य पक्षियों में फैलने का डर रहता है. पक्षियों में यह बीमारी 7- 10 दिनों तक और झुंड में आम तौर पर 5 से 7 सप्ताह तक रहता है.

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'उचित उपचार से पक्षियों को बचाया जा सकता है'
महाविद्यालय के पशु रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ एमके गुप्ता का कहना है कि यह बीमारी वायरस के कारण होता है, जो मच्छरों और गंदे पानी से फैलता है. इस बीमारी से पक्षी के चेहरे, मुंह और पैरों के चारों ओर पॉक्स के निशान बन जाते हैं. मुंह में चेचक (पॉक्स) और यदि बाहरी शरीर पर चेचक देखा गया, तो उचित उपचार से पक्षियों को बचाया जा सकता है.

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ऐसे रख सकते हैं ध्यान

विशेषज्ञों का कहना है कि कबूतर पालतू नहीं होते. जिसके कारण इस वायरल बीमारी का सार्वजानिक इलाज संभव नहीं है. कुछ लोग कबूतर को पालते हैं. पौष्टिक पूरक तरल द्रव्य को एजिथ्रोमाइसिनया टेट्रासाइक्लिन को ड्रॉपर या पाइप के माध्यम से उपचार किया जा सकता है. इसके आलावा कबूतर के रहने वाले स्थान में रात को मच्छर मारने की अगरबत्ती जलाकर और रहने वाले जमीन में सुबह मच्छरदानी लगाकर बीमारी से बचाव किया जा सकता है. साथ ही रहने वाले स्थान को 1 प्रतिशतपोटेशियम हाइड्रोक्साइड, 2 प्रतिशत सोडियम हाइड्रोक्साइड और 5 प्रतिशत फिनॉल को मिलाकर कबूतर घर/बर्तन की सफाई करनी चाहिए.

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