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जेएसएससी की संशोधित नियमावली पर हाई कोर्ट सख्त, कहा- असंवैधानिक लगता है नया प्रावधान - JSSC in ranchi

झारखंड राज्य कर्मचारी चयन आयोग की नियुक्ति नियमावली पर सुनवाई करते हुए झारखंड हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से नाराजगी व्यक्त की है. हाई कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया जेएसएससी की संशोधित नियमावली असंवैधानिक प्रतीत होती है. कोर्ट ने कहा कि इस तरह के प्रावधानों को वैध नहीं माना जा सकता है. हाई कोर्ट की तरफ से राज्य सरकार को पूरे मामले में 8 फरवरी तक जवाब पेश करने का निर्देश दिया गया है.

Jharkhand High Court
झारखंड हाई कोर्ट
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Published : Jan 27, 2022, 8:20 PM IST

Updated : Jan 27, 2022, 10:54 PM IST

रांची: झारखंड राज्य कर्मचारी चयन आयोग (JSSC) की नियुक्ति नियमावली को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए झारखंड हाई कोर्ट ने झारखंड सरकार से नाराजगी व्यक्त की है. चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया जेएसएससी की संशोधित नियमावली असंवैधानिक प्रतीत हो रही है और ऐसा लग रहा है कि सरकार सरकार सामान्य वर्ग के छात्रों को झारखंड से बाहर जाकर पढ़ाई करने नहीं देना चाहती है. इन्हें यहीं पर रोक कर रखना चाहती है, जबकि आरक्षित वर्ग के लोगों के लिए छूट है. इस तरह के प्रावधान को वैध नहीं माना जा सकता है.

ये भी पढ़ें- आखिर क्यों स्थगित हो गई 7वीं जेपीएससी की मुख्य परीक्षा, कहां हो गई आयोग से चूक, पढ़ें रिपोर्ट

सरकार बार-बार मांग रही है समय: सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि सरकार अन्य नियुक्तियां भी निकाल रही है. ऐसे में अगर इस मामले में देरी की जाएगी तो अन्य नियुक्तियां भी इससे प्रभावित होंगी. अदालत ने कहा कि इस मामले में सरकार हर बार जवाब दाखिल करने के लिए समय की मांग कर रही है. लेकिन अब तक जवाब दाखिल नहीं किया गया है. क्यों नहीं अदालत नियुक्ति पर रोक लगा दे. अदालत ने सरकार को 8 फरवरी तक जवाब दाखिल करने का अंतिम मौका देते हुए सुनवाई स्थगित कर दी है. प्रार्थी रमेश हांसदा और कुशल कुमार ने संशोधित नियमावली को असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द करने का आग्रह अदालत से किया है.

देखें वीडियो

छात्रों को नहीं मिल रहा है आवेदन का मौका: सुनवाई के दौरान प्रार्थी का अधिवक्ता अपराजिता भारद्वाज ने अदालत को बताया कि जेएसएससी की नई नियमावली के तहत झारखंड सरकार ने अब तक करीब चार विज्ञापन जारी कर दिए हैं. इस नियम के चलते प्रार्थी इन नियुक्तियों में आवेदन नहीं कर पा रहे हैं. सरकार जवाब तक नहीं दे रही है. इस पर अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि क्यों नहीं इन सारी नियुक्तियों पर रोक लगा दी जाए. इस पर सरकार की ओर से अंतिम मौका दिए जाने का आग्रह किया गया जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया है.

क्या है पूरा विवाद: रमेश हांसदा और कुशल कुमार की ओर से झारखंड हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कहा गया है कि नई नियमावली में राज्य के संस्थानों से दसवीं और प्लस टू योग्यता वाले अभ्यर्थियों को ही परीक्षा में शामिल होने की अनिवार्य शर्त रखी गई है. इसके अलावा 14 स्थानीय भाषाओं में से हिंदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया है. जबकि उर्दू बांग्ला और उड़िया सहित 12 अन्य स्थानीय भाषाओं को शामिल किया गया है. प्रार्थी का कहना है कि नई नियमावली में राज्य के संस्थानों से ही दसवीं और प्लस टू की परीक्षा पास करने की अनिवार्य किया जाना संविधान की मूल भावना और समानता के अधिकार का उल्लंघन है. क्योंकि वैसे अभ्यर्थी जो राज्य के निवासी होते हुए भी राज्य के बाहर से पढ़ाई किए हों उन्हें नियुक्ति परीक्षा से नहीं रोका जा सकता है. नई नियमावाली में संशोधन कर क्षेत्रीय एवं जनजातीय भाषाओं की श्रेणी से हिंदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया है, जबकि उर्दू, बांग्ला और उड़िया को रखा गया है.

राजनीतिक फायदे के लिए संशोधन: याचिका में कहा गया है कि उर्दू को जनजातीय भाषा की श्रेणी में रखा जाना सरकार की राजनीतिक मंशा का परिणाम है. ऐसा सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए किया गया है. राज्य के सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई का माध्यम भी हिंदी है. भाषा एवं धर्म के आधार पर राज्य के नागरिकों को बांटने एवं प्रलोभन दिया गया है. उर्दू की पढ़ाई एक खास वर्ग के लोग ही मदरसे में करते हैं. ऐसे में किसी खास वर्ग को सरकारी नौकरी में अधिक अवसर देना और हिंदी भाषी अधिकांश अभ्यर्थियों के अवसर में कटौती करना संविधान की भावना के अनुरूप नहीं है. इसलिए नई नियमावाली में निहित दोनों प्रावधानों को निरस्त किया जाए.

रांची: झारखंड राज्य कर्मचारी चयन आयोग (JSSC) की नियुक्ति नियमावली को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए झारखंड हाई कोर्ट ने झारखंड सरकार से नाराजगी व्यक्त की है. चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया जेएसएससी की संशोधित नियमावली असंवैधानिक प्रतीत हो रही है और ऐसा लग रहा है कि सरकार सरकार सामान्य वर्ग के छात्रों को झारखंड से बाहर जाकर पढ़ाई करने नहीं देना चाहती है. इन्हें यहीं पर रोक कर रखना चाहती है, जबकि आरक्षित वर्ग के लोगों के लिए छूट है. इस तरह के प्रावधान को वैध नहीं माना जा सकता है.

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सरकार बार-बार मांग रही है समय: सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि सरकार अन्य नियुक्तियां भी निकाल रही है. ऐसे में अगर इस मामले में देरी की जाएगी तो अन्य नियुक्तियां भी इससे प्रभावित होंगी. अदालत ने कहा कि इस मामले में सरकार हर बार जवाब दाखिल करने के लिए समय की मांग कर रही है. लेकिन अब तक जवाब दाखिल नहीं किया गया है. क्यों नहीं अदालत नियुक्ति पर रोक लगा दे. अदालत ने सरकार को 8 फरवरी तक जवाब दाखिल करने का अंतिम मौका देते हुए सुनवाई स्थगित कर दी है. प्रार्थी रमेश हांसदा और कुशल कुमार ने संशोधित नियमावली को असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द करने का आग्रह अदालत से किया है.

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छात्रों को नहीं मिल रहा है आवेदन का मौका: सुनवाई के दौरान प्रार्थी का अधिवक्ता अपराजिता भारद्वाज ने अदालत को बताया कि जेएसएससी की नई नियमावली के तहत झारखंड सरकार ने अब तक करीब चार विज्ञापन जारी कर दिए हैं. इस नियम के चलते प्रार्थी इन नियुक्तियों में आवेदन नहीं कर पा रहे हैं. सरकार जवाब तक नहीं दे रही है. इस पर अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि क्यों नहीं इन सारी नियुक्तियों पर रोक लगा दी जाए. इस पर सरकार की ओर से अंतिम मौका दिए जाने का आग्रह किया गया जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया है.

क्या है पूरा विवाद: रमेश हांसदा और कुशल कुमार की ओर से झारखंड हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कहा गया है कि नई नियमावली में राज्य के संस्थानों से दसवीं और प्लस टू योग्यता वाले अभ्यर्थियों को ही परीक्षा में शामिल होने की अनिवार्य शर्त रखी गई है. इसके अलावा 14 स्थानीय भाषाओं में से हिंदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया है. जबकि उर्दू बांग्ला और उड़िया सहित 12 अन्य स्थानीय भाषाओं को शामिल किया गया है. प्रार्थी का कहना है कि नई नियमावली में राज्य के संस्थानों से ही दसवीं और प्लस टू की परीक्षा पास करने की अनिवार्य किया जाना संविधान की मूल भावना और समानता के अधिकार का उल्लंघन है. क्योंकि वैसे अभ्यर्थी जो राज्य के निवासी होते हुए भी राज्य के बाहर से पढ़ाई किए हों उन्हें नियुक्ति परीक्षा से नहीं रोका जा सकता है. नई नियमावाली में संशोधन कर क्षेत्रीय एवं जनजातीय भाषाओं की श्रेणी से हिंदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया है, जबकि उर्दू, बांग्ला और उड़िया को रखा गया है.

राजनीतिक फायदे के लिए संशोधन: याचिका में कहा गया है कि उर्दू को जनजातीय भाषा की श्रेणी में रखा जाना सरकार की राजनीतिक मंशा का परिणाम है. ऐसा सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए किया गया है. राज्य के सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई का माध्यम भी हिंदी है. भाषा एवं धर्म के आधार पर राज्य के नागरिकों को बांटने एवं प्रलोभन दिया गया है. उर्दू की पढ़ाई एक खास वर्ग के लोग ही मदरसे में करते हैं. ऐसे में किसी खास वर्ग को सरकारी नौकरी में अधिक अवसर देना और हिंदी भाषी अधिकांश अभ्यर्थियों के अवसर में कटौती करना संविधान की भावना के अनुरूप नहीं है. इसलिए नई नियमावाली में निहित दोनों प्रावधानों को निरस्त किया जाए.

Last Updated : Jan 27, 2022, 10:54 PM IST
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