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चित्रगुप्त पूजा: साल में एक दिन कलम से नहीं लिखते कायस्थ जाति के लोग, जानिए वजह

कायस्थ परिवार के लोगों का कहना है कि हमारे पूर्वज चित्रगुप्त ने जितनी देर कलम नहीं छुआ. हम उसी परंपरा का निर्वहन कर साल में एक दिन कलम से काम नही करते हैं.

चित्रगुप्त भगवान
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Published : Oct 29, 2019, 8:19 AM IST

रांची: हमारे देश मे कई धर्म और जाति के लोग हैं. सबका अपना अलग-अलग तरह के रीति रिवाज है. उनके पूजा पाठ करने के ढंग और तौर तरीके भी अलग-अलग हैं. लेकिन कायस्थ समाज में एक विशेष परंपरा प्रचलित है. चित्रगुप्त पूजा के दिन वो कलम नहीं छूते हैं.

साल भर में इस एक दिन कायस्थ जाति के लोग कलम नहीं छूते हैं. ये परंपरा सदियों से चली आ रही है. वहीं, चित्रांश परिवार यानी कायस्थ जाति के लोग इस परंपरा को मानते हुए आ रहे हैं. इस दिन वो सब कलम-दवात की पूजा करते हैं. कलम दवात की पूजा करने के पीछे पौराणिक कथा प्रचलित हैं.

ये भी पढ़ें- कम नहीं हो रहे सुबोधकांत के बगावती तेवर, कहा- बर्दाश्त नहीं होगा झारखंड में कांग्रेस का पिछलग्गू बनकर चलना

निमंत्रण नहीं मिलने से थे नाराज
कायस्थ समाज के डॉक्टर वी.वी. लाल का कहना है कि इस दिन हमारे कुलदेवता चित्रगुप्त भगवान ने आक्रोश में आकर खाता-बही का काम करना बंद कर दिये थे. क्योंकि भगवान राम के राजतिलक में उन्हें निमंत्रण नहीं दिया गया था. निमंत्रण नहीं दिए जाने से वो काफी नाराज हो गए थे और मर्त्यलोक के लेखा-जोखा का काम बंद कर दिए.

'भगवान राम ने अनुनय-विनय कर मनाया'
चित्रगुप्त भगवान ने जब मर्त्यलोक लेखा-जोखा बंद कर दिया तो इसकी जानकारी भगवान राम को हुई. उन्होंने अनुनय विनय कर चित्रगुप्त भगवान को मनाया. उसके बाद चित्रगुप्त भगवान ने लेखा-जोखा का काम शुरू किए. इसीलिए कायस्थ परिवार के लोगों का कहना है कि हमारे पूर्वज चित्रगुप्त ने जितनी देर कलम नहीं छुआ. हम उसी परंपरा का निर्वहन कर साल में एक दिन कलम से काम नहीं करते हैं.

रांची: हमारे देश मे कई धर्म और जाति के लोग हैं. सबका अपना अलग-अलग तरह के रीति रिवाज है. उनके पूजा पाठ करने के ढंग और तौर तरीके भी अलग-अलग हैं. लेकिन कायस्थ समाज में एक विशेष परंपरा प्रचलित है. चित्रगुप्त पूजा के दिन वो कलम नहीं छूते हैं.

साल भर में इस एक दिन कायस्थ जाति के लोग कलम नहीं छूते हैं. ये परंपरा सदियों से चली आ रही है. वहीं, चित्रांश परिवार यानी कायस्थ जाति के लोग इस परंपरा को मानते हुए आ रहे हैं. इस दिन वो सब कलम-दवात की पूजा करते हैं. कलम दवात की पूजा करने के पीछे पौराणिक कथा प्रचलित हैं.

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निमंत्रण नहीं मिलने से थे नाराज
कायस्थ समाज के डॉक्टर वी.वी. लाल का कहना है कि इस दिन हमारे कुलदेवता चित्रगुप्त भगवान ने आक्रोश में आकर खाता-बही का काम करना बंद कर दिये थे. क्योंकि भगवान राम के राजतिलक में उन्हें निमंत्रण नहीं दिया गया था. निमंत्रण नहीं दिए जाने से वो काफी नाराज हो गए थे और मर्त्यलोक के लेखा-जोखा का काम बंद कर दिए.

'भगवान राम ने अनुनय-विनय कर मनाया'
चित्रगुप्त भगवान ने जब मर्त्यलोक लेखा-जोखा बंद कर दिया तो इसकी जानकारी भगवान राम को हुई. उन्होंने अनुनय विनय कर चित्रगुप्त भगवान को मनाया. उसके बाद चित्रगुप्त भगवान ने लेखा-जोखा का काम शुरू किए. इसीलिए कायस्थ परिवार के लोगों का कहना है कि हमारे पूर्वज चित्रगुप्त ने जितनी देर कलम नहीं छुआ. हम उसी परंपरा का निर्वहन कर साल में एक दिन कलम से काम नहीं करते हैं.

Intro:एंकर हमारे देश मे कई धर्म जाति के लोग है सबका अपना अलग अलग तरह के रीति रिवाज है पूजा करने के ढंग भी अलग अलग है लेकिन एक बिशेस जो परंपरा कायस्थ समाज मे प्रचलित है वो है चित्रगुप्त पूजा के दिन कलम नही छूने की परंपरा पूरे साल में एक दिन कायस्थ जाति के लोग कलम नही छूते हैं यानी कलम से कोई काम नही करते ये परंपरा सदियों से चला आ रहा है और जो भी लोग चित्रांश परिवार यानी कायस्थ जाति से है वो सहर्ष इस परंपरा को मान्यता दे निर्वहन कर रहे हैं वैसे उसदिन वो कलम दवात की पूजा करते है लेकिन उसका व्यवहार नही करते


Body: इसके पीछे पौराणिक कथा प्रचलित है जिसे कायस्थ जाति के लोग कलम नही छूने का कारण मानते है कायस्थ जाति के डॉक्टर वी वी लाल का कहना है कि इस दिन हमारे कुलदेवता चित्रगुप्त भगवान ने आक्रोस में आकर खाता वही बैंड किये थे और कलम नाजी चलाये थे क्योंकि भगवान राम के राजतिलक में उन्हें निमंत्रण नही दिया गया था जिससे वो नाराज हुए और मर्त्यलोक के लेखा जोखा करनेवाले चित्रगुप्त ने कलम ही नही छुआ था बाद में भगवान राम को पता चला की चित्रगुप्त भगवान को राजतिलक समारोह में नही आमंत्रित कजय गया घ फिर भगवान राम ने चित्रगुप्त भगवान को अनुनय विनय कर मनाया और फिर से चित्रगुप्त भगवान लेखा जोखा का काम शुरू किए


Conclusion: चित्रांश परिवार का कहना है कि हमारे पूर्वज चित्रगुप्त ने जितने देर कलम नही छुआ आज हम उसी परम्परा का निर्वहन कर साल में एक दिन कलम से काम नही करते। पी टी सी कुन्दन कुमार पटना
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