ETV Bharat / city

सरहुल में पाहन ने बांटे सखुआ के पत्ते से बने मास्क, कोरोना से बचाव के लिए की प्रकृति पूजा

कोरोना वायरस ने सरहुल महापर्व का रंग फीका कर दिया है. बड़े ही धूमधाम से मनाया जाने वाला यह पर्व इस साल सिर्फ सरना स्थलों पर सरल पूजा विधि-विधान में ही सिमट गया है. इस कड़ी में रांची में पाहन ने सरहुल पर्व के मौके पर पूजा की और कोरोना से बचाव के लिए सखुआ पत्ते से बने मास्क का वितरण किया.

Pahan distributed masks made of sakhua leaves in Sarhul festival ranchi
पाहन ने बांटा सखुआ के पत्ते से बना मास्क
author img

By

Published : Mar 27, 2020, 11:16 AM IST

रांची: वैश्विक महामारी कोरोना वायरस पूरे देश भर में लॉकडाउन किया गया है. इसके कारण प्रकृति का महापर्व सरहुल थोड़ा फीका पड़ गया. धूमधाम से मनाए जाने वाला यह पर्व इस बार सरना स्थल तक ही सिमट गया है. महापर्व सरहुल के मौके पर पाहन अपने रीति-रिवाज के अनुसार प्रकृति के साथ-साथ आदिवासियों के देवी-देवता माने जाने वाले (धर्मेश बाबा और सरना मां) की पूजा करते हैं. इस साल आदिवासी सरहुल महापर्व में कोरोना महामारी से बचाव के लिए प्रकृति से विनती कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें-लॉकडाउन की वजह से झारखंड में फंसे तेलंगाना के 22 छात्र, सीएम ने ट्वीट कर डीसी से जाना हाल

इस दौरान सूत और सखुआ के पत्ते से बने मास्क की पूजा की गई और प्रकृति से इस महामारी से बचाव के लिए प्रार्थना किया गया और फिर मास्क को आदिवासी श्रद्धालुओं के बीच बांटा गया. वहीं, पाहन ने सांकेतिक रूप से इस मास्क का वितरण कर कहा कि इस कोरोना महामारी से बचाव सबके लिए बहुत जरूरी है.

सरहुल पूजा, आदिवासियों की सभ्यता, संस्कृति और प्रकृति से जुड़ाव का प्रतीक माना जाता है. सुखआ के पेड़ पर नया फूल और पत्ते आने की खुशी में इस पर्व को मनाया जाता है. आदिवासी समाज प्रकृति के रक्षक के रूप में माने जाते हैं, जिसके मद्देनजर पाहन ने सरना स्थलों में इस बार सरल पूजा विधि-विधान से पूजा कराई.

कोरोना जैसी महामारी से निजात पाने के लिए सांकेतिक रूप से सखुआ का पत्ता दिया जाना कहीं ना कहीं अच्छी पहल है, लेकिन डॉक्टरों के अनुसार सखुआ के पत्ते से कोरोना महामारी से निजात नहीं पाया जा सकता है इसके लिए सभी को मास्क लगाना अति आवश्यक है. वहीं, जरूरत ना हो तो घर से भी बाहर निकलने की जरूरत नहीं है.

रांची: वैश्विक महामारी कोरोना वायरस पूरे देश भर में लॉकडाउन किया गया है. इसके कारण प्रकृति का महापर्व सरहुल थोड़ा फीका पड़ गया. धूमधाम से मनाए जाने वाला यह पर्व इस बार सरना स्थल तक ही सिमट गया है. महापर्व सरहुल के मौके पर पाहन अपने रीति-रिवाज के अनुसार प्रकृति के साथ-साथ आदिवासियों के देवी-देवता माने जाने वाले (धर्मेश बाबा और सरना मां) की पूजा करते हैं. इस साल आदिवासी सरहुल महापर्व में कोरोना महामारी से बचाव के लिए प्रकृति से विनती कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें-लॉकडाउन की वजह से झारखंड में फंसे तेलंगाना के 22 छात्र, सीएम ने ट्वीट कर डीसी से जाना हाल

इस दौरान सूत और सखुआ के पत्ते से बने मास्क की पूजा की गई और प्रकृति से इस महामारी से बचाव के लिए प्रार्थना किया गया और फिर मास्क को आदिवासी श्रद्धालुओं के बीच बांटा गया. वहीं, पाहन ने सांकेतिक रूप से इस मास्क का वितरण कर कहा कि इस कोरोना महामारी से बचाव सबके लिए बहुत जरूरी है.

सरहुल पूजा, आदिवासियों की सभ्यता, संस्कृति और प्रकृति से जुड़ाव का प्रतीक माना जाता है. सुखआ के पेड़ पर नया फूल और पत्ते आने की खुशी में इस पर्व को मनाया जाता है. आदिवासी समाज प्रकृति के रक्षक के रूप में माने जाते हैं, जिसके मद्देनजर पाहन ने सरना स्थलों में इस बार सरल पूजा विधि-विधान से पूजा कराई.

कोरोना जैसी महामारी से निजात पाने के लिए सांकेतिक रूप से सखुआ का पत्ता दिया जाना कहीं ना कहीं अच्छी पहल है, लेकिन डॉक्टरों के अनुसार सखुआ के पत्ते से कोरोना महामारी से निजात नहीं पाया जा सकता है इसके लिए सभी को मास्क लगाना अति आवश्यक है. वहीं, जरूरत ना हो तो घर से भी बाहर निकलने की जरूरत नहीं है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.