रांचीः झारखंड में विकास को रफ्तार देने के लिए राज्य सरकारें निवेशकों को आमंत्रित करती रही हैं. झारखंड को कुदरत से मिले अकूत खनिज संसाधन के चलते निवेशक आकर्षित तो होते हैं लेकिन एमओयू के बाद योजनाएं शायद ही ये मूर्त रूप ले पाती हैं. हेमंत सोरेन की सरकार भी निवेशकों का खुले दिल से स्वागत करना चाहती है और मुख्यमंत्री खुद उन्हें हर सुविधा देने का वादा कर रहे हैं.
झारखंड के उद्योग विभाग की तरफ से दिल्ली में 6 मार्च को आयोजित स्टेक होल्डर्स कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि झारखंड खनिज संपदा से संपन्न राज्य है. उन्होंने कहा कि झारखंड में उद्योग को स्थापित करने के लिए जिन चीजों की जरूरत होती है, वह सब हमारे पास है. हेमंत सोरेन ने निवेशकों से झारखंड में आने और उद्योग लगाने का आग्रह भी किया.
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निजी क्षेत्र में आरक्षण का पेंच
हेमंत सोरेन एक ओर निवेशकों को खुला ऑफर तो दे रहे हैं लेकिन दूसरी ओर निजी कंपनियों में 75 फीसदी आरक्षण की वकालत भी करते हैं. यही नहीं वह तो पत्थलगड़ी आंदोलन से जुड़े मामलों को भी वापस लेने की बात कह चुके हैं. ऐसे में निवेशक आखिर झारखंड आए भी तो कैसे? दरअसल, झारखंड में निवेशकों के नहीं आने की मुख्य वजह है जमीन विवाद, सिंगल विंडो सिस्टम का ठीक से काम नहीं करना और बिगड़ी कानून व्यवस्था. विपक्ष का सवाल लाजमी है कि सरकार की नीति स्पष्ट नहीं है. जमशेदपुर पूर्व से निर्दलीय विधायक सरयू राय कहते हैं कि दूध का जला मट्ठा भी फूंक-फूंक कर पीता है. उन्होंने नाकामियों से सबक लेकर आगे बढ़ने की बात कही. वहीं भाजपा विधायक अनंत ओझा ने साफ कहा कि राज्य सरकार की नीति और नीयत दोनों स्पष्ट नहीं है.
सत्ता पक्ष से जुड़े विधायक भी झारखंड और यहां के लोगों के विकास के लिए निवेश को जरूरी मानते हैं. लेकिन उनके पास इस सवाल का जवाब नहीं है कि 75 फीसदी आरक्षण और पत्थलगड़ी जैसे विवाद के बीच निवेशकों का भरोसा कैसे जीतेंगे? झामुमो विधायक समीर मोहंती और कांग्रेस विधायक उमा शंकर अकेला, दोनों ही निवेश को लेकर आशांवित हैं. हालांकि वो यह नहीं बता पा रहे हैं कि निवेशकों को राज्य में सही माहौल नहीं मिला और उनपर शर्तें थोपी गईं तो फिर वे निवेश क्यों करेंगे?
कहीं अधूरे न रह जाएं सपने
झारखंड में पिछले 21 सालों में जितनी भी सरकारें बनी, सभी ने जनता को विकास का सपना दिखाया. लेकिन 21 साल बाद भी गरीबी और बेरोजगारी जैसी समस्या जस की तस बनी हुई है. रघुवर सरकार के दौरान सबसे ज्यादा एमओयू हुए थे. मोंमेटम झारखंड के तहत राज्य में तीन लाख करोड़ रुपए के निवेश और करीब डेढ़ लाख लोगों को रोजगार का दावा किया गया. हालांकि ये दावे धरे रह गए और झारखंड की जनता के सपने और अरमान अधूरे रह गए.