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National Family Health Survey: झारखंड में एनीमिया मामलों में मामूली गिरावट

National family health survey की लेटेस्ट रिपोर्ट के अनुसार भारत में एनीमिया से पीड़ित बच्चों और महिलाओं के प्रतिशत में वृद्धि दर्ज की गई है. हालांकि इसी दौरान झारखंड में एनीमिया के मामलों में मामूली ही सही, लेकिन कमी आई है.

National Family Health Survey
झारखंड में एनीमिया मामलों में मामूली गिरावट
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Published : Nov 26, 2021, 5:33 PM IST

हैदराबादः झारखंड में एनीमिक बच्चों का प्रतिशत पिछले पांच वर्षों में मामूली रूप से गिरा है, भले ही आंकड़े राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रहे हैं, नवीनतम National family health survey 2020-21 से यह पता चला है. राज्य की नवजात मृत्यु दर में भी गिरावट आई है.

ये भी पढ़ेंः झारखंड में 65% महिलाएं एनीमिया से ग्रसित, ग्रामीण भागों में स्थिति अत्यंत दयनीय

NFHS-5 के अनुसार, 2020-21 में झारखंड में छह से 59 महीने के बीच के कम से कम 67.5 प्रतिशत बच्चे एनीमिक हैं. 2015-16 में हुए एनएफएचएस -4 में राज्य में एनीमिक बच्चों का प्रतिशत 69.9 बताया गया है, जो नवीनतम आंकड़े से अधिक है. हालांकि, भारत में एनीमिया से पीड़ित बच्चों का प्रतिशत 2015-16 में 58.6 था और 2020-21 में यह आंकड़ा 67.1 प्रतिशत तक पहुंच गया.

National Family Health Survey
झारखंड में एनीमिया मामलों में मामूली गिरावट

हालांकि झारखंड में एनीमिया से पीड़ित बच्चों के प्रतिशत में मामूली गिरावट देखी गई है. फिर भी राज्य में एनीमिया एक चिंता का विषय बना हुआ है. विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO के अनुसार, यदि किसी आबादी में एनीमिया का प्रसार 40 प्रतिशत या उससे अधिक है तो इसे एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में वर्गीकृत किया जाता है.

NFHS की रिपोर्ट के अनुसार, एनीमिया एक ऐसी स्थिति है जो रक्त में हीमोग्लोबिन के निम्न स्तर से चिह्नित होती है. विश्व स्तर पर एनीमिया के लिए आयरन की कमी को जिम्मेदार माना जाता है, लेकिन एनीमिया मलेरिया, हुकवर्म और अन्य कृमि, पोषक तत्वों की कमी, पुराने संक्रमण और आनुवंशिक स्थितियों के कारण भी हो सकता है. एनएफएचएस ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में कहा है कि एनीमिया के परिणामस्वरूप मातृ मृत्यु दर, कमजोरी, शारीरिक और मानसिक क्षमता में कमी और संक्रामक रोगों से होने वाली बीमारी हो सकती है.

नीति आयोग ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार पिछले कुछ वर्षों में झारखंड में एनीमिया और कुपोषण को कम करने के लिए व्यापक परियोजनाओं को मंजूरी दी है. अधिकारियों ने कहा कि यह राज्य में एनीमिक बच्चों की संख्या में गिरावट का एक कारण हो सकता है.

हालांकि, झारखंड में पिछले पांच वर्षों में एनीमिया से पीड़ित 15 से 49 वर्ष की महिलाओं का प्रतिशत थोड़ा बढ़ा है. 2020-21 में, आदिवासी राज्य में समान आयु वर्ग की कम से कम 65.7 प्रतिशत गैर-गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित थीं. 2015-16 में यह आंकड़ा 65.3 फीसदी था. भारत में, एनीमिया से पीड़ित गैर-गर्भवती महिलाओं का प्रतिशत 2015-16 में 53.2 था. नवीनतम एनएफएचएस निष्कर्षों में यह आंकड़ा बढ़कर 57.2 प्रतिशत हो गया है.

National family health survey-2020-21 (NFHS-5), NFHS श्रृंखला में पांचवां, भारत और प्रत्येक राज्य / केंद्र शासित प्रदेश (UT) के लिए जनसंख्या, स्वास्थ्य और पोषण पर जानकारी प्रदान करता है. NFHS-4 की तरह, NFHS-5 भी कई महत्वपूर्ण संकेतकों के लिए जिला-स्तरीय अनुमान प्रदान करता है.

हैदराबादः झारखंड में एनीमिक बच्चों का प्रतिशत पिछले पांच वर्षों में मामूली रूप से गिरा है, भले ही आंकड़े राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रहे हैं, नवीनतम National family health survey 2020-21 से यह पता चला है. राज्य की नवजात मृत्यु दर में भी गिरावट आई है.

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NFHS-5 के अनुसार, 2020-21 में झारखंड में छह से 59 महीने के बीच के कम से कम 67.5 प्रतिशत बच्चे एनीमिक हैं. 2015-16 में हुए एनएफएचएस -4 में राज्य में एनीमिक बच्चों का प्रतिशत 69.9 बताया गया है, जो नवीनतम आंकड़े से अधिक है. हालांकि, भारत में एनीमिया से पीड़ित बच्चों का प्रतिशत 2015-16 में 58.6 था और 2020-21 में यह आंकड़ा 67.1 प्रतिशत तक पहुंच गया.

National Family Health Survey
झारखंड में एनीमिया मामलों में मामूली गिरावट

हालांकि झारखंड में एनीमिया से पीड़ित बच्चों के प्रतिशत में मामूली गिरावट देखी गई है. फिर भी राज्य में एनीमिया एक चिंता का विषय बना हुआ है. विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO के अनुसार, यदि किसी आबादी में एनीमिया का प्रसार 40 प्रतिशत या उससे अधिक है तो इसे एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में वर्गीकृत किया जाता है.

NFHS की रिपोर्ट के अनुसार, एनीमिया एक ऐसी स्थिति है जो रक्त में हीमोग्लोबिन के निम्न स्तर से चिह्नित होती है. विश्व स्तर पर एनीमिया के लिए आयरन की कमी को जिम्मेदार माना जाता है, लेकिन एनीमिया मलेरिया, हुकवर्म और अन्य कृमि, पोषक तत्वों की कमी, पुराने संक्रमण और आनुवंशिक स्थितियों के कारण भी हो सकता है. एनएफएचएस ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में कहा है कि एनीमिया के परिणामस्वरूप मातृ मृत्यु दर, कमजोरी, शारीरिक और मानसिक क्षमता में कमी और संक्रामक रोगों से होने वाली बीमारी हो सकती है.

नीति आयोग ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार पिछले कुछ वर्षों में झारखंड में एनीमिया और कुपोषण को कम करने के लिए व्यापक परियोजनाओं को मंजूरी दी है. अधिकारियों ने कहा कि यह राज्य में एनीमिक बच्चों की संख्या में गिरावट का एक कारण हो सकता है.

हालांकि, झारखंड में पिछले पांच वर्षों में एनीमिया से पीड़ित 15 से 49 वर्ष की महिलाओं का प्रतिशत थोड़ा बढ़ा है. 2020-21 में, आदिवासी राज्य में समान आयु वर्ग की कम से कम 65.7 प्रतिशत गैर-गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित थीं. 2015-16 में यह आंकड़ा 65.3 फीसदी था. भारत में, एनीमिया से पीड़ित गैर-गर्भवती महिलाओं का प्रतिशत 2015-16 में 53.2 था. नवीनतम एनएफएचएस निष्कर्षों में यह आंकड़ा बढ़कर 57.2 प्रतिशत हो गया है.

National family health survey-2020-21 (NFHS-5), NFHS श्रृंखला में पांचवां, भारत और प्रत्येक राज्य / केंद्र शासित प्रदेश (UT) के लिए जनसंख्या, स्वास्थ्य और पोषण पर जानकारी प्रदान करता है. NFHS-4 की तरह, NFHS-5 भी कई महत्वपूर्ण संकेतकों के लिए जिला-स्तरीय अनुमान प्रदान करता है.

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