रांचीः राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को नजरअंदाज कर भी दिया जाए तब भी यह नीति भविष्य में बहुत बड़ा नुकसान का कारण बन सकती है. मुख्यमंत्री ने कहा कि जब कोई प्रयोग करते हैं तो अच्छी बातें सामने आती हैं लेकिन जब रिप्लिकेट करते हैं तो उसका बुरा प्रभाव भी सामने नजर आता है. इस नीति में स्टेकहोल्डर राज्य सरकारें हैं और सभी चीजों को धरातल पर उतारने की जिम्मेदारी राज्य पर ही है. नीति को लागू करने से पहले राज्य सरकार के साथ-साथ शिक्षाविद और छात्रों का भी परामर्श लिया जाना चाहिए.
मुख्यमंत्री ने शिक्षा व्यवस्था को बहाल करने के लिए आने वाले खर्च का मामला भी उठाया. उन्होंने कहा कि पूर्व में शिक्षा व्यवस्था पर केंद्र सरकार 75% राज्य सरकार 25% खर्च करती थी लेकिन समय के साथ राज्य सरकार के खर्च का अनुपात बढ़ता चला गया. नई नीति में यह स्पष्ट नहीं है कि केंद्र और राज्य सरकार की हिस्सेदारी कितनी होगी.
शिक्षा के निजीकरण पर सवाल
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि नई शिक्षा नीति में ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कहीं ना कहीं इससे निजीकरण को बढ़ावा मिलेगा. संघीय ढांचे के लिहाज से इस पर विचार करने की जरूरत है. मुख्यमंत्री ने कहा कि बिहार, झारखंड, ओड़िशा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों की भौगोलिक व्यवस्था थोड़ी अलग है. ऐसे में प्राइवेट संस्थाएं जंगलों में संस्थान स्थापित करना नहीं चाहेंगी. उनका फोकस होगा जनसंख्या घनत्व वाला इलाका.
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शिक्षकों की है घोर कमी
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि झारखंड की शिक्षा व्यवस्था बुरी स्थिति में है. वर्तमान सरकार इसे पटरी पर लाने की कोशिश में जुटी है. यहां शिक्षकों की भारी कमी है. देश में किसान, खेतिहर मजदूर, दलित, पिछड़ों की संख्या करीब 70 से 80% हैं. इसलिए यह देखना होगा कि इस नीति में इतनी बड़ी आबादी कैसे सरवाइव करेगी.
क्षेत्रीय भाषाओं पर सीएम का पक्ष
मुख्यमंत्री ने कहा कि नई नीति में क्षेत्रीय भाषाओं पर फोकस करने की बात है. इस व्यवस्था को लागू करना भी बहुत बड़ी चुनौती होगी. आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाओं की बात तो समझ में आती है लेकिन स्थानीय स्तर पर बहुत सारी अलग भाषाएं भी हैं. इनको लेकर चीजें स्पष्ट नहीं हैं. झारखंड में हो, मुंडारी और उरांव जैसी कम-से-कम 5 अन्य भाषाएं हैं, जिन्हें आठवीं अनुसूची में जगह नहीं मिल पाई है, मगर इनके बोलने वालों की संख्या 10-20 लाख है.
देश में उच्च शिक्षा हमेशा से ओवर रेगुलेटेड और अंडर फंडेड रही है. विश्वविद्यालयों को समेकित तरीके से आगे बढ़ने के लिए, उन्हें रेगुलेट करने के बजाय स्वायत्तता देना ज्यादा जरूरी है.