रांचीः झारखंड में मनरेगा जॉब कार्डधारी मजदूरों को आसानी से काम मिले. इसको लेकर झारखंड सरकार ने श्रमिकों के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के लिए श्रम कल्याण केंद्र की व्यवस्था की है. लेकिन हकीकत यह है कि मनरेगा जॉब कार्डधारी मजदूरों को काम नहीं मिल रहा है. स्थिति यह है कि गांव के मजदूर काम की तलाश में भटकने को मजबूर हैं.
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लोहरदगा और आसपास के जिलों से रोजाना मजदूर काम की तलाश में राजधानी रांची पहुंतते हैं. लेकिन इन मजदूरों को सप्ताह में तीन से चार दिन बिना काम किये खाली हाथ लौटना पड़ता है. लोहरदगा के भंडरा थाना क्षेत्र के कुम्हरिया गांव के रहने वाले अनीस अंसारी कहते हैं कि गांव में मनरेगा के तहत काम नहीं मिल रहा है. इसके साथ ही अन्य सरकारी और गैर सरकारी योजना के तहत भी कोई काम नहीं है. उन्होंने कहा कि मजबूरी में प्रत्येक दिन सुबह 4 बजे लोहरदगा से रांची के लिए निकलते हैं, ताकि रांची में काम मिल जाये. लेकिन रांची में भी प्रतिदिन काम नहीं मिलता है. उन्होंने कहा कि काम नहीं मिलने से घर चलाना और परिवार का भरन-पोषण करना काफी मुश्किल हो गया है.
सुमन अंसारी बताते हैं कि पिछले चार दिनों से काम की तलाश में रांची आ रहे है. लेकिन काम नहीं मिल रहा है. घर से लाये नाश्ता और खाना खाकर दिन बिता देते हैं और शाम में निराश होकर लौट जाते हैं. उन्होंने कहा कि एक तरफ दिन प्रतिदिन महंगाई बढ़ रही है और दूसरी तरफ रोजगार नहीं मिल रहा है. इससे परिवार चलाना मुश्किल हो गया है.
झारखंड में एक नजर मनरेगा मजदूर
- झारखंड में मनरेगा के तहत निबंधित मजदूरों की संख्याः 113.46 लाख
- झारखंड में मनरेगा के तहत एक्टिव मजदूरों की संख्याः 44.3 लाख
- मनरेगा के तहत जारी जॉब कार्डः 69.55 लाख
- एक्टिव मजदूरों की तूलना में एसटी मजदूरों का प्रतिशतः 44.3 प्रतिशत
- एक्टिव मजदूरों की तूलना में एससी मजदूरों का प्रतिशतः 10.37 प्रतिशत
ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम ने बताया कि मनरेगा के तहत मजदूरों को 225 रुपये मिल रहे हैं. लेकिन इससे ज्यादा मजदूरी शहर में काम करने से मिलता है. इस स्थिति में गांव के मजदूर शहर में आकर काम की तलाश करते हैं. उन्होंने कहा कि जिन श्रमिकों को गांव में काम नहीं मिलता है, वे मजदूर प्रखंड कार्यालय से संपर्क कर सरकार की निश्चित रोजगार योजना से जुड़ सकते हैं. बहरहाल मजदूरों की समस्या और उसके समाधान के लिए बड़े बड़े दावे किये जाते रहे हैं. लेकिन अनीस अंसारी जैसे सैकड़ों मजदूर हैं, जो काम की तलाश में गांव से शहर की ओर पलायन करने को मजबूर हैं.