रांचीः हेमंत सोरेन कैबिनेट से 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति (1932 Khatian based domicile policy) से संबंधित प्रस्ताव को मंजूरी दी गई. इस फैसले के बाद एक तरफ ढोल नगाड़े बजने लगे तो दूसरी ओर विरोध भी होने लगा. कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा और उनके पति पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा पार्टी लाइन को नजरअंदाज करते हुए स्थानीय नीति के विरोध में खड़े हो गए. वहीं, कई विधायक दबे स्वर से इसको लेकर खुद को असहज महसूस कर रहे हैं. इस स्थिति में कांग्रेस विधायक दल के नेता और संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम ने ईटीवी भारत से खास मुलाकात में कहा कि 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति पर चिंता करने की जरूरत नहीं है. आगामी विधानसभा सत्र में बिल को प्रस्तुत किया जाएगा, जहां सभी विधायक अपना विचार रखेंगे.
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आलमगीर आलम ने कहा कि हमारी सरकार जनहित को ध्यान में रख कर काम कर रही है. उन्होंने कहा कि 14 सितंबर को हुई कैबिनेट की बैठक में 43 प्रस्ताव को मंजूरी दी गई, जिसमें ओबीसी को 27% आरक्षण और 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति महत्वपूर्ण है. लेकिन सभी प्रस्ताव महत्वपूर्ण हैं. कुछ लोग मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं तो कुछ विरोध भी कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि झारखंड बनने के पहले एकीकृत बिहार था, तब यहां के ओबीसी को 27% आरक्षण मिलता था. राज्य अलग होने के बाद जब तक नया कानून नहीं बना, तब तक पुराना नियम ही चलता रहा. लेकिन झारखंड में ऐसा नहीं हुआ और ओबीसी का आरक्षण 27% से घटा कर 14% कर दिया गया.
आलमगीर आलम ने कहा कि ओबीसी समाज की ओर से लगातार 27% आरक्षण की मांग की जा रही थी. उन्होंने कहा कि पिछले 21-22 वर्षों में कई सरकार आई गई. किसी सरकार ने ओबीसी की मांग पूरी नहीं की. लेकिन इस बार हमने चुनावी मेनिफेस्टो में वादा था कि महागठबंधन की सरकार आती है तो हम ओबीसी को 27% आरक्षण देंगे. हमने इस वादे को पूरा किया है. उन्होंने कहा कि 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति 2003 का अगर इतिहास देखें तो उस समय भी बाबूलाल मरांडी कि सरकार ने 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति लागू किया किया था. लेकिन हाई कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया था.
मंत्री ने कहा कि अभी हाल में भारतीय जनता पार्टी का एक सेमिनार हुआ था, जिसका स्लोगन था 1932 की खतियान हमारी पहचान और अभी हमारे मुख्यमंत्री विधानसभा के विशेष सत्र में कहा था कि यहां के लोगों की वर्षों पुरानी मांग 1932 का खतियान हम लागू करेंगे. इससे पहले भी विधानसभा में कई बार 1932 खतियान पर चर्चा हुई है और वस्तुस्थिति बताया गया था. उन्होंने कहा कि झारखंड में सर्वे 1932 से लेकर 1971 तक हुए हैं. लेकिन कैबिनेट ने निर्णय लिया है, जिसमें यहां के मूल निवासी और आदिवासी हैं. सारे लोगों का समायोजन उसके क्लाउज में है.
आलमगीर आलम ने कहा कि कैबिनेट से पारित प्रस्ताव को लागू करने के लिए विधानसभा का सत्र बुलाया जाए और उसमें बिल पर चर्चा कराई जाए. इसमें सभी विधायकों को विचार व्यक्त करने का मौका मिलेगा. चर्चा के दौरान बिल में कोई त्रुटि चिन्हित होती है, तो उसमें संशोधन किया जाएगा. इस स्थिति में किसी को एग्रेसिव होने की जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि राज्य में महागठबंधन की सरकार सवा तीन करोड़ की आबादी का ख्याल रखने वाली सरकार है.
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आलमगीर आलम ने कहा कि राज्य के कुछ लोगों का विचार भय का माहौल पैदा करने वाला है. लेकिन उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम हिंदुस्तानी हैं और यही हमारी पहचान है. उन्होंने कहा कि इस बिल में कहीं ऐसा नहीं है कि जो लोग बाहर से आकर झारखंड में रह रहे हैं. उन्हें भगा दिया जाएगा. इस बिल से चतुर्थ श्रेणी नौकरियों में जाने का मौका अधिक मिलेगा. किसी को भ्रम नहीं होना चाहिए. बाहर से आए लोगों को झारखंड में कोई परेशानी नहीं होगी.
मुख्यमंत्री के दिल्ली दौरे को लेकर लगाये जा रहे कयासों पर पूछे गए सवाल पर आलमगीर आलम ने कहा कि कयास लगाने वाली बात नहीं है. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री दिल्ली दिल्ली गए हैं तो हो सकता है कि भारत निर्वाचन आयोग में जाकर यह आग्रह करें कि ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में संशय की स्थिति को समाप्त करें.
आलमगीर आलम ने कहा कि चुनाव आयोग के लीफाफे में क्या है. इसपर अब तक सस्पेंस बना है. इसका खुलासा होना चाहिए. स्थानीय नीति पर कांग्रेस विधायकों में किसी प्रकार का मतभेद से इनकार करते हुए आलमगीर आलम ने कहा कि मधु कोड़ा और गीता कोड़ा से उनकी बात हुई है और उन्हें यह बताया गया है कि कैसे 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति चिंता की बात नहीं है.