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सरकार के आदेश से शिक्षकों की अटकी सांसें, ऐसे बंटेगा अनाज तो कैसे दूर होगा कोरोना - lockdown not followed

झारखंड में लॉकडाउन की धज्जियां उड़ रही है. राज्य सरकार के आदेश का पालन करते हुए शिक्षक पूरे देश में लॉकडाउन का पालन नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में शिक्षक दोहरी मार झेल रहे हैं. एक तरफ वह इस असमंजस में पड़े हैं कि सरकार के आदेश का अनुपालन कैसे किया जाए. वहीं, दूसरी तरफ नौकरी कैसे बचाएं.

Mid day mill breaking down lockdown in jharkhand
अजान वितरण
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Published : Mar 28, 2020, 11:05 PM IST

रांची: झारखंड सरकार के एक आदेश ने प्रदेश के लगभग एक लाख शिक्षकों की सांस अटका दी है. दरअसल, राज्य सरकार ने प्रदेश के सभी सरकारी स्कूलों में बंटने वाले मिड डे मील का अनाज गांव में जाकर बच्चों को देने का निर्देश दिया है. इस बाबत 20 मार्च को शिक्षा विभाग के प्रधान महासचिव अमरेंद्र प्रताप सिंह ने एक ऑर्डर जारी किया है, जिसमें साफ कहा गया है कि कोरोना वायरस नामक महामारी की गंभीरता को देखते हुए यह तय किया गया है कि 14 अप्रैल तक विद्यालय बंद रहेंगे.

देखिए पूरी खबर

ऐसे में मिड डे मील के तहत एलिजिबल छात्र-छात्राओं को पका हुआ मध्यान भोजन या खाद्यान और कुकिंग कॉस्ट की राशि जो भी संभव हो प्राप्त कराने का निर्देश दिया गया है. आर्डर में साफ लिखा है कि चूंकि पका हुआ मध्यान भोजन के लिए बच्चों को विद्यालय परिसर में उपस्थिति अनिवार्य होगी, जो मौजूदा परिप्रेक्ष्य में संभव नहीं है. इसलिए राज्य स्तरीय स्टीयरिंग कमिटी ने निर्णय लिया है कि छात्र-छात्राओं को कुकिंग कॉस्ट के साथ खाद्यान्न दिया जाए.

सरकार ने दिया है आदेश

इसके लिए विद्यालय के प्रधानाध्यापक या प्रभारी प्रधानाध्यापक बंद अवधि में चावल कुकिंग कॉस्ट के साथ दें. वहीं, कक्षा एक और दो के लिए प्राप्तकर्ता विद्यार्थी और अभिभावक दोनों में से किसी एक का हस्ताक्षर भी पंजी में लें, जिससे स्पष्ट हो कि लाभुक तक अनाज दिया गया. वहीं, पूरक पोषाहार भी इसी तरह दिए जाने का निर्देश दिया गया है. वितरण का कार्य सुबह 9 बजे से लेकर दोपहर 1 बजे तक किया जाना है और इसकी सूचना भी पहले दी जानी है. इतना ही नहीं छात्र-छात्राओं के बीच डिस्ट्रीब्यूशन का फोटोग्राफ और वितरण के बाद रजिस्टर का फोटो लेकर उसे व्हाट्सएप या ईमेल से भेजना है.

शिक्षक संघ ने उठाए सवाल

राज्य सरकार के इस ऑर्डर पर झारखंड राज्य प्राथमिक संघ ने सवाल खड़े किए हैं. उसमें साफ कहा गया है कि प्रधानमंत्री के आह्वान पर लॉकडाउन की घोषणा की गई है. ऐसे में ग्रामीणों के घरों के बाहर निकलने पर रोक है. इसके साथ ही राज्य में धारा 144 लागू है. इतना ही नहीं अलग-अलग माध्यमों से यह बात भी सामने आ रही है कि विभिन्न गांव में बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश पूरी तरह से वर्जित कर दिया गया है. इस स्थिति में सरकार के इस आदेश का अनुपालन कैसे किया जाए.

वहीं, चावल वितरण में सोशल डिस्टेंसिंग कैसे संभव हो पाएगा. नाम नहीं लिखने की शर्त पर कुछ शिक्षकों ने बताया कि मौजूदा स्थिति में अनाज लेकर चलने में भी रिस्क है. इतना ही नहीं राज्य सरकार ने 20 मार्च को यह पत्र जारी किया. जिस वक्त लॉकडाउन की घोषणा भी नहीं हुई थी. ऐसे में शिक्षक दोहरी मार झेल रहे हैं. एक तरफ वह इस असमंजस में पड़े हैं कि सरकार के आदेश का अनुपालन कैसे किया जाए. वहीं, दूसरी तरफ नौकरी कैसे बचाएं.

ये भी पढ़ें: एक ही घर में फंसे 60 लोग, कोरोना संक्रमण का है खतरा

सरकार को दिए ये सुझाव

हालांकि, इसके लिए राज्य सरकार को कुछ सुझाव भी दिए गए हैं. जिसके तहत इन अनाजों का वितरण पीडीएस दुकानों से किया जा सकता है या फिर संबंधित इलाकों के मुखिया की मदद भी इसके लिए ली जा सकती है. आंकड़ों के अनुसार, मध्याह्न भोजन योजना से राज्य के अलग-अलग स्कूलों में लगभग 45,000 स्टूडेंट्स लाभांवित होंगे. वहीं, पारा शिक्षकों को मिला दें तो लगभग एक लाख शिक्षक इस काम में सहयोग करेंगे. ऐसी स्थिति में लॉकडाउन सोशल डिस्टेंसिंग पर भी सवालिया निशान खड़े होते हैं.

रांची: झारखंड सरकार के एक आदेश ने प्रदेश के लगभग एक लाख शिक्षकों की सांस अटका दी है. दरअसल, राज्य सरकार ने प्रदेश के सभी सरकारी स्कूलों में बंटने वाले मिड डे मील का अनाज गांव में जाकर बच्चों को देने का निर्देश दिया है. इस बाबत 20 मार्च को शिक्षा विभाग के प्रधान महासचिव अमरेंद्र प्रताप सिंह ने एक ऑर्डर जारी किया है, जिसमें साफ कहा गया है कि कोरोना वायरस नामक महामारी की गंभीरता को देखते हुए यह तय किया गया है कि 14 अप्रैल तक विद्यालय बंद रहेंगे.

देखिए पूरी खबर

ऐसे में मिड डे मील के तहत एलिजिबल छात्र-छात्राओं को पका हुआ मध्यान भोजन या खाद्यान और कुकिंग कॉस्ट की राशि जो भी संभव हो प्राप्त कराने का निर्देश दिया गया है. आर्डर में साफ लिखा है कि चूंकि पका हुआ मध्यान भोजन के लिए बच्चों को विद्यालय परिसर में उपस्थिति अनिवार्य होगी, जो मौजूदा परिप्रेक्ष्य में संभव नहीं है. इसलिए राज्य स्तरीय स्टीयरिंग कमिटी ने निर्णय लिया है कि छात्र-छात्राओं को कुकिंग कॉस्ट के साथ खाद्यान्न दिया जाए.

सरकार ने दिया है आदेश

इसके लिए विद्यालय के प्रधानाध्यापक या प्रभारी प्रधानाध्यापक बंद अवधि में चावल कुकिंग कॉस्ट के साथ दें. वहीं, कक्षा एक और दो के लिए प्राप्तकर्ता विद्यार्थी और अभिभावक दोनों में से किसी एक का हस्ताक्षर भी पंजी में लें, जिससे स्पष्ट हो कि लाभुक तक अनाज दिया गया. वहीं, पूरक पोषाहार भी इसी तरह दिए जाने का निर्देश दिया गया है. वितरण का कार्य सुबह 9 बजे से लेकर दोपहर 1 बजे तक किया जाना है और इसकी सूचना भी पहले दी जानी है. इतना ही नहीं छात्र-छात्राओं के बीच डिस्ट्रीब्यूशन का फोटोग्राफ और वितरण के बाद रजिस्टर का फोटो लेकर उसे व्हाट्सएप या ईमेल से भेजना है.

शिक्षक संघ ने उठाए सवाल

राज्य सरकार के इस ऑर्डर पर झारखंड राज्य प्राथमिक संघ ने सवाल खड़े किए हैं. उसमें साफ कहा गया है कि प्रधानमंत्री के आह्वान पर लॉकडाउन की घोषणा की गई है. ऐसे में ग्रामीणों के घरों के बाहर निकलने पर रोक है. इसके साथ ही राज्य में धारा 144 लागू है. इतना ही नहीं अलग-अलग माध्यमों से यह बात भी सामने आ रही है कि विभिन्न गांव में बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश पूरी तरह से वर्जित कर दिया गया है. इस स्थिति में सरकार के इस आदेश का अनुपालन कैसे किया जाए.

वहीं, चावल वितरण में सोशल डिस्टेंसिंग कैसे संभव हो पाएगा. नाम नहीं लिखने की शर्त पर कुछ शिक्षकों ने बताया कि मौजूदा स्थिति में अनाज लेकर चलने में भी रिस्क है. इतना ही नहीं राज्य सरकार ने 20 मार्च को यह पत्र जारी किया. जिस वक्त लॉकडाउन की घोषणा भी नहीं हुई थी. ऐसे में शिक्षक दोहरी मार झेल रहे हैं. एक तरफ वह इस असमंजस में पड़े हैं कि सरकार के आदेश का अनुपालन कैसे किया जाए. वहीं, दूसरी तरफ नौकरी कैसे बचाएं.

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सरकार को दिए ये सुझाव

हालांकि, इसके लिए राज्य सरकार को कुछ सुझाव भी दिए गए हैं. जिसके तहत इन अनाजों का वितरण पीडीएस दुकानों से किया जा सकता है या फिर संबंधित इलाकों के मुखिया की मदद भी इसके लिए ली जा सकती है. आंकड़ों के अनुसार, मध्याह्न भोजन योजना से राज्य के अलग-अलग स्कूलों में लगभग 45,000 स्टूडेंट्स लाभांवित होंगे. वहीं, पारा शिक्षकों को मिला दें तो लगभग एक लाख शिक्षक इस काम में सहयोग करेंगे. ऐसी स्थिति में लॉकडाउन सोशल डिस्टेंसिंग पर भी सवालिया निशान खड़े होते हैं.

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