ETV Bharat / city

किसान आंदोलन को भटकाने की हो रही है कोशिश: महेश पोद्दार - किसान आंदोलन न्यूज

किसान आंदोलन को सांसद महेश पोद्दार ने अपने विचार साझा किए. उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन को भटकाने की कोशिश हो रही है. उन्होंने आशंका जताई कि आंदोलन की आड़ में देश विरोधी तत्व हिंसा फैला सकते हैं. इसके अलावा उन्होंने किसानों के आंदोलन के जरिये स्टेन स्वामी और वारवरा राव की रिहाई की मांग किए जाने का आरोप लगाया और इस पर सवाल उठाए.

mahesh poddar shared thoughts about farmer movement in ranchi
सांसद महेश पोद्दार
author img

By

Published : Dec 13, 2020, 10:46 AM IST

Updated : Dec 13, 2020, 11:05 AM IST

रांची: हिंदुस्तान को असली पहचान अगर कोई शब्द देता है तो वह है किसान. हिंदुस्तान और किसान एक दूसरे के पूरक हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि देश की सबसे बड़ी आबादी खेती किसानी पर टिकी हुई है लेकिन आज किसान सड़क पर है और कुछ लोग बातचीत के रास्ते को बंद करने की साजिश रच रहे हैं. यह बातें झारखंड से भाजपा के राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार ने कही. उनका आरोप है कि किसान आंदोलन को भटकाने की कोशिश हो रही है. आंदोलन की आड़ में देश विरोधी तत्व हिंसा फैला सकते हैं. उन्होंने किसान आंदोलन को समर्थन दे रही झारखंड सरकार को भी आड़े हाथों लिया है.

किसान आंदोलन को समझने की जरूरत

महेश पोद्दार की दलील है कि आज के किसान आंदोलन को समझने से पहले अंग्रेजी राज में चंपारण में हुए किसानों के नील आंदोलन को समझना होगा. तब किसानों को अंग्रेजों की मर्जी से खेती करनी पड़ती थी. अंग्रेज सरकार चाहती थी कि किसान को नियंत्रण में रखा जाय.

150 साल पहले बना था एपीएमसी एक्ट

सांसद महेश पोद्दार का कहना है कि आज जिन मंडियों को बचाने की बात आंदोलनकारी किसान कर रहे हैं. उससे जुड़ा एपीएमसी एक्ट 150 साल पहले अंग्रेजों ने बनाया था. उन्हें मैनचेस्टर के वस्त्र उद्योग के लिए रुई की जरूरत थी इसलिए एक्ट बनाकर किसानों को कपास की फसल मंडियों में बेचने के लिए विवश किया गया. वही मंडी आज भी चली आ रही है. किसान कमीशनखोरी से त्रस्त हैं. हर राजनीतिक दल इससे इत्तेफाक भी रखता है. फिर किसानों को अपनी पसंद से कारोबार और खरीददार चुनने की आजादी से क्यों रोका जा रहा है.

सरकार ने बड़ा दिल दिखाया

सांसद महेश पोद्दार का कहना है कि आंदोलनकारी तीनों नए कृषि कानून रद्द कराने पर अड़े हैं. सरकार से हां या ना में जवाब चाहते हैं. सरकार भी कह सकती थी कि कानून मूल रूप में ही लागू होगा, आंदोलनकारी हां या ना में जवाब दें. तब तो बीच का यानी बातचीत का रास्ता ही बंद हो जाता. फिर भी सरकार ने बड़ा दिल दिखाया और किसानों की तमाम मांगे सुनीं, जहां वाजिब लगा संशोधन का भरोसा दिया. उन मांगों पर भी जिनका नए कृषि कानूनों से कोई लेना देना नहीं था. चाहे वो बिजली का मामला हो या पराली जलाने का.

स्टेन स्वामी और वारवरा राव का आंदोलन से क्या संबंध

आंदोलनकारियों ने शुरुआत में सिर्फ आठ मांगें रखीं. उसमें भी वारवरा राव जैसे खुलेआम नक्सलियों से सहानुभूति रखनेवाले कवि सहित कई एक्टिविस्ट्स को रिहा करने की बात कही. किसानों के मुद्दों में इन मुद्दों की मिलावट क्यों? नए तीन कृषि कानूनों से स्टेन स्वामी या वारवरा राव का क्या संबंध? सरकार संयम दिखा रही थी, बातचीत चल रही थी इसलिए जान बूझकर भी चुप थी लेकिन मीडिया के जरिये ये मिलावट सामने आ ही गई है.

किसानों के संदर्भ में खड़े किए सवाल

महेश पोद्दार ने झारखंड के किसानों के संदर्भ में भी कुछ सवाल खड़े किए हैं. झारखंड में धान में नमी बताकर खरीद रोकी गई है तो ये क्यों नहीं माना जाये कि राज्य सरकार ने पंजाब में MSP पर खरीद को बढ़ावा देने के लिए यहां पर खरीद को रोक दिया है. झारखंड के किसान 1000-1200 रुपये प्रति क्विंटल धान बेचने को मजबूर हैं.

क्या है FCI

सरकार या FCI की खाद्यान्न खरीद की एक सीमा है, MSP पर धान की खरीद होती है और इसका चावल PDS के जरिये गरीब जनता तक रियायती दर पर पहुंचता है. अगर सरकार ही MSP के जरिये देश की कुल उपज खरीदने लगे तो बड़ी बात नहीं कि देश का पूरा बजट भी कम पड़ जाय. MSP मार्केट सपोर्ट मैकेनिज्म है, ताकि किसानों को उसकी उपज का वाजिब मूल्य मिल सके, आर्थिक समर्थन मिल सके.

किसानों को खुले बाजार में बेचने से मिलेगा लाभ

खाद्यान्न का उत्पादन बढ़ा है, खरीद प्रणाली में निजी क्षेत्र को शामिल करने की वजह ये है कि यदि झारखंड का किसान धान छोड़कर कोई दूसरी खेती फसल उगाना चाहे तो उसे वाजिब दाम पर फसल की बिक्री का आश्वासन मिल सके. ये काम सरकार अकेले नहीं कर सकती, निजी क्षेत्र कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के जरिये ये भरोसा किसानों में पैदा कर सकते हैं.

ये भी पढ़े- CCTNS के लिए थानों में तैनात किए जा रहे हैं रेडियो ऑपरेटर, अब आउटसोर्सकर्मियों से नहीं कराया जाएगा काम

बतौर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने पिछले कार्यकाल में ही भावान्तर योजना की शुरुआत की थी. किसान की कृषि योग्य भूमि और उसमें होनेवाली उपज का आकलन कर, उसे उस फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य और बाजार मूल्य के अंतर का भुगतान सीधे उसके खाते में कर दी जाती है. किसान खुले बाजार में अपनी फसल बेचता है और उसे कोई आर्थिक नुकसान नहीं होता है. एमएसपी का लाभ मिल जाता है. झारखंड सरकार वाकई किसानों की आर्थिक सुरक्षा के लिए चिंतित है तो इसे झारखंड में इसे लागू करें

किसान को सालाना 6,000 रुपये का समर्थन

केंद्र सरकार ने हर किसान को सालाना 6,000 रुपये का नकद समर्थन डीबीटी के जरिये देना शुरू किया. झारखंड की पूर्ववर्ती रघुवर दास सरकार ने किसानों को सालाना प्रति एकड़ 5,000 रुपये देना शुरू किया था.

सांसद ने किसानों से किया आग्रह

झारखंड की नई सरकार ने कामकाज संभालते ही इस योजना को बंद कर दिया और किसान आंदोलन की हिमायती भी बन रही है. इससे साफ है कि किसानों के आंदोलन को एक साजिश के तहत भटकाने की कोशिश हो रही है. भाजपा सांसद महेश पोद्दार ने झारखंड के किसानों से आग्रह किया है कि वे अपने खेतों में खड़े होकर किसान हित के असली मुद्दों पर मजबूती से अपनी बात रखने की शुरुआत करें.

रांची: हिंदुस्तान को असली पहचान अगर कोई शब्द देता है तो वह है किसान. हिंदुस्तान और किसान एक दूसरे के पूरक हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि देश की सबसे बड़ी आबादी खेती किसानी पर टिकी हुई है लेकिन आज किसान सड़क पर है और कुछ लोग बातचीत के रास्ते को बंद करने की साजिश रच रहे हैं. यह बातें झारखंड से भाजपा के राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार ने कही. उनका आरोप है कि किसान आंदोलन को भटकाने की कोशिश हो रही है. आंदोलन की आड़ में देश विरोधी तत्व हिंसा फैला सकते हैं. उन्होंने किसान आंदोलन को समर्थन दे रही झारखंड सरकार को भी आड़े हाथों लिया है.

किसान आंदोलन को समझने की जरूरत

महेश पोद्दार की दलील है कि आज के किसान आंदोलन को समझने से पहले अंग्रेजी राज में चंपारण में हुए किसानों के नील आंदोलन को समझना होगा. तब किसानों को अंग्रेजों की मर्जी से खेती करनी पड़ती थी. अंग्रेज सरकार चाहती थी कि किसान को नियंत्रण में रखा जाय.

150 साल पहले बना था एपीएमसी एक्ट

सांसद महेश पोद्दार का कहना है कि आज जिन मंडियों को बचाने की बात आंदोलनकारी किसान कर रहे हैं. उससे जुड़ा एपीएमसी एक्ट 150 साल पहले अंग्रेजों ने बनाया था. उन्हें मैनचेस्टर के वस्त्र उद्योग के लिए रुई की जरूरत थी इसलिए एक्ट बनाकर किसानों को कपास की फसल मंडियों में बेचने के लिए विवश किया गया. वही मंडी आज भी चली आ रही है. किसान कमीशनखोरी से त्रस्त हैं. हर राजनीतिक दल इससे इत्तेफाक भी रखता है. फिर किसानों को अपनी पसंद से कारोबार और खरीददार चुनने की आजादी से क्यों रोका जा रहा है.

सरकार ने बड़ा दिल दिखाया

सांसद महेश पोद्दार का कहना है कि आंदोलनकारी तीनों नए कृषि कानून रद्द कराने पर अड़े हैं. सरकार से हां या ना में जवाब चाहते हैं. सरकार भी कह सकती थी कि कानून मूल रूप में ही लागू होगा, आंदोलनकारी हां या ना में जवाब दें. तब तो बीच का यानी बातचीत का रास्ता ही बंद हो जाता. फिर भी सरकार ने बड़ा दिल दिखाया और किसानों की तमाम मांगे सुनीं, जहां वाजिब लगा संशोधन का भरोसा दिया. उन मांगों पर भी जिनका नए कृषि कानूनों से कोई लेना देना नहीं था. चाहे वो बिजली का मामला हो या पराली जलाने का.

स्टेन स्वामी और वारवरा राव का आंदोलन से क्या संबंध

आंदोलनकारियों ने शुरुआत में सिर्फ आठ मांगें रखीं. उसमें भी वारवरा राव जैसे खुलेआम नक्सलियों से सहानुभूति रखनेवाले कवि सहित कई एक्टिविस्ट्स को रिहा करने की बात कही. किसानों के मुद्दों में इन मुद्दों की मिलावट क्यों? नए तीन कृषि कानूनों से स्टेन स्वामी या वारवरा राव का क्या संबंध? सरकार संयम दिखा रही थी, बातचीत चल रही थी इसलिए जान बूझकर भी चुप थी लेकिन मीडिया के जरिये ये मिलावट सामने आ ही गई है.

किसानों के संदर्भ में खड़े किए सवाल

महेश पोद्दार ने झारखंड के किसानों के संदर्भ में भी कुछ सवाल खड़े किए हैं. झारखंड में धान में नमी बताकर खरीद रोकी गई है तो ये क्यों नहीं माना जाये कि राज्य सरकार ने पंजाब में MSP पर खरीद को बढ़ावा देने के लिए यहां पर खरीद को रोक दिया है. झारखंड के किसान 1000-1200 रुपये प्रति क्विंटल धान बेचने को मजबूर हैं.

क्या है FCI

सरकार या FCI की खाद्यान्न खरीद की एक सीमा है, MSP पर धान की खरीद होती है और इसका चावल PDS के जरिये गरीब जनता तक रियायती दर पर पहुंचता है. अगर सरकार ही MSP के जरिये देश की कुल उपज खरीदने लगे तो बड़ी बात नहीं कि देश का पूरा बजट भी कम पड़ जाय. MSP मार्केट सपोर्ट मैकेनिज्म है, ताकि किसानों को उसकी उपज का वाजिब मूल्य मिल सके, आर्थिक समर्थन मिल सके.

किसानों को खुले बाजार में बेचने से मिलेगा लाभ

खाद्यान्न का उत्पादन बढ़ा है, खरीद प्रणाली में निजी क्षेत्र को शामिल करने की वजह ये है कि यदि झारखंड का किसान धान छोड़कर कोई दूसरी खेती फसल उगाना चाहे तो उसे वाजिब दाम पर फसल की बिक्री का आश्वासन मिल सके. ये काम सरकार अकेले नहीं कर सकती, निजी क्षेत्र कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के जरिये ये भरोसा किसानों में पैदा कर सकते हैं.

ये भी पढ़े- CCTNS के लिए थानों में तैनात किए जा रहे हैं रेडियो ऑपरेटर, अब आउटसोर्सकर्मियों से नहीं कराया जाएगा काम

बतौर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने पिछले कार्यकाल में ही भावान्तर योजना की शुरुआत की थी. किसान की कृषि योग्य भूमि और उसमें होनेवाली उपज का आकलन कर, उसे उस फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य और बाजार मूल्य के अंतर का भुगतान सीधे उसके खाते में कर दी जाती है. किसान खुले बाजार में अपनी फसल बेचता है और उसे कोई आर्थिक नुकसान नहीं होता है. एमएसपी का लाभ मिल जाता है. झारखंड सरकार वाकई किसानों की आर्थिक सुरक्षा के लिए चिंतित है तो इसे झारखंड में इसे लागू करें

किसान को सालाना 6,000 रुपये का समर्थन

केंद्र सरकार ने हर किसान को सालाना 6,000 रुपये का नकद समर्थन डीबीटी के जरिये देना शुरू किया. झारखंड की पूर्ववर्ती रघुवर दास सरकार ने किसानों को सालाना प्रति एकड़ 5,000 रुपये देना शुरू किया था.

सांसद ने किसानों से किया आग्रह

झारखंड की नई सरकार ने कामकाज संभालते ही इस योजना को बंद कर दिया और किसान आंदोलन की हिमायती भी बन रही है. इससे साफ है कि किसानों के आंदोलन को एक साजिश के तहत भटकाने की कोशिश हो रही है. भाजपा सांसद महेश पोद्दार ने झारखंड के किसानों से आग्रह किया है कि वे अपने खेतों में खड़े होकर किसान हित के असली मुद्दों पर मजबूती से अपनी बात रखने की शुरुआत करें.

Last Updated : Dec 13, 2020, 11:05 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.