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क्या सचमुच बदली जा सकती है EVM, जानिए कैसी सुरक्षा होती है बूथ से स्ट्रॉन्ग रूम तक

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Published : May 22, 2019, 7:08 PM IST

lok sabha election 2019 में मतदान खत्म होने के बाद एक बार फिर ईवीएम का मुद्दा गरमा गया है. कई पार्टियों ने आरोप लगाया कि रात के अंधरे में ईवीएम बदले जा रहे हैं. लेकिन क्या ऐसा संभव है? लेकिन ईवीएम की सुरक्षा इतनी सख्त होती है कि किस भी तरह उसके साथ छेड़छाड़ या उसे बदलना लगभग असंभव है.

EVM की सुरक्षा

रांची: लोकसभा चुनाव 2019 की मतगणना के ठीक पहले ईवीएम की सुरक्षा को लेकर सवाल किए जा रहे हैं. कई लोगों ने आरोप लगाया कि ईवीएम बदली जा रही है. ईवीएम के कथित संदिग्ध मूवमेंट की खबरें आने के बाद विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग से भी इस पर सफाई मांगी. हालांकि आयोग ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया. ऐसे में सवाल ये है कि क्या वाकई में ईवीएम में छेड़खानी या बदलाव संभव है?

ईवीएम की सुरक्षा में सेंध लगा पाना इतना आसान नहीं हो सकता, उसे बेहद कड़ी सुरक्षा के बीच रखा जाता है. जब चुनाव नहीं होते तो इन मशीनों को जिले के किसी गोदाम में रखा जाता है. उस गोदाम का सीधा नियंत्रण डिस्ट्रिक इलेक्टोरल ऑफिस यानी की डीईओ के पास होता है. गोदाम की सुरक्षा के लिए उसके दरवाजे पर डबल लॉक लगाया जाता है. इसके अलावा पुलिस और सुरक्षाकर्मी 24 घंटे उसकी निगरानी करते हैं. सुरक्षाकर्मियों के अलावा निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे का भी इस्तेमाल किया जाता है. जब चुनाव नहीं होते हैं तो बिना चुनाव आयोग के निर्देश के ईवीएम को नहीं निकाला जा सकता.

कैसे एलॉट किए जाते हैं EVM

चुनाव की तारीख जब नजदीक आती है तो ईवीएम रैंडम तरीके से किसी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले विधानसभाओं के लिए आवंटित किया जाता है. इस दौरान विभिन्न पार्टियों के प्रतिनिधि वहां मौजूद रहते हैं. अगर किसी पार्टी के प्रतिनिधि वहां मौजूद नहीं रहते हैं तो ईवीएम और वीवीपैट मशीनों की एक सूची तैयार की जाती है जिसे सभी प्रमुख पार्टियों के दफ्तर में भेज दिया जाता है. इसके बाद उस विधानसभा के रिटर्निंग ऑफिसर आवंटित ईवीएम की जिम्मेदारी लेता है और उन्हें तय किए गए स्ट्रॉन्ग रूम में रखवा दिया जाता है.

EVM आवंटिक करने का दूसरा दौर
इसके बाद ईवीएम को रैंडम तरीके से आवंटित करने का दूसरा दौर शुरू होता है. इन मशीनों को विभिन्न पार्टी के प्रतिनिधियों के मौजूदगी में खास पोलिंग स्टेशनों को आवंटित किया जाता है. चुनाव आयोग हर प्रत्याशी को सुझाव देता है कि वे मशीनों के नंबर अपने पोलिंग एजेंट के साथ शेयर करें ताकि वोटिंग शुरू होने से पहले वह मशीनों की पुष्टी कर सकें. जब सभी मशीनों को प्रत्याशियों के नाम और बाकी जानकारी के साथ तैयार कर लिया जाता है तो उसे संबंधित क्षेत्र के लिए आवंटित कर दिया जाता है. इसके बाद इन्हें जिस स्ट्रॉन्ग रूम में रखा जाता है, उसे पार्टी प्रतिनिधियों की मौजूदगी में सील कर दिया जाता है. इस दौरान पार्टी के प्रतिनिधि चाहें तो अपने ताले लगा कर उसे भी सील कर सकते हैं. इस स्ट्रॉन्ग रूम की निगरानी का जिम्मा एक सीनियर पुलिस अधिकारी के पास होता है जो कम से डीएसपी रैंक का होता है. इस स्ट्रॉन्ग रूम की सुरक्षा भी बेहद सख्त होती है. कभी कभी इसकी जिम्मेदारी केंद्रीय सुरक्षा बल को भी दी जाती है.

स्ट्रॉन्ग रूम से ईवीएम निकालने की प्रक्रिया
एक बार सील होने के बाद स्ट्रॉन्ग रूम को तय तारीख और वक्त पर ही खोला जाता है. ताला खोलने के से पहले सभी प्रत्याशियों और इलेक्शन एजेंटों को इसकी जानकारी दे दी जाती है. आवंटित मशीनों के अलावा कुछ रिजर्व ईवीएम को भी स्ट्रॉन्ग रूम से निकलवा कर विधानसभा क्षेत्र के किसी अहम जगह पर पहुंचा दिया जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है कि ताकि किसी ईवीएम के खराब होने पर उसे बदला जा सके.

पोलिंग के बाद स्ट्रॉन्ग रूम पहुंचाने की प्रक्रिया
एक बार वोटिंग खत्म हो जाने के बाद ईवीएम को तुरंत ही स्ट्रॉन्ग रूम नहीं भेजा जाता है. पहले प्रिसाइडिंग ऑफिसर मशीनों में दर्ज वोटों का एक हिसाब तैयार करता है. इसकी सत्यापित कॉपी हर प्रत्याशी के पोलिंग एजेंट को दी जाती है. इसके बाद ईवीएम को सील कर दिया जाता है. प्रत्याशी और उनके एजेंट को सील पर साइन करने की इजाजत होती है. ईवीएम से छेड़छाड़ के आरोपी की स्थिति में प्रत्याशी अपनी दस्तखत को देख सकते हैं. इसके बाद पोलिंग स्टेशन से स्ट्रॉन्ग रूम तक ईवीएम को पहुंचाने के दौरान प्रत्याशी या उनके प्रतिनिधि अपनी गाड़ियों में साथ जा सकते हैं.

वहीं चुनाव आयोग की गाड़ी में पोलिंग में इस्तेमाल हुए और बिना इस्तेमाल हुए मशीनों को जीपीएस लगी गाड़ियों में लाया जाता है. इस दौरान गाड़ी की हर मुवमेंट पर डीईओ और सीईओ की पैनी निगाह होती है.

त्रिस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था
आम तौर पर स्ट्रॉन्ग रूम काउंटिंग सेंटर के पास ही बनाए जाते हैं. इन स्ट्रॉन्ग रूम में इस्तेमाल किए गए मशीनो के साथ बिना इस्तेमाल वाले मशीन भी होते हैं. एक बार जब सारी मशीनें आ जाती है तो स्ट्रॉन्ग रूम को सील कर दिया जाता है. इस वक्त भी प्रत्याशियों या उनके प्रतिनिधि को स्ट्रॉन्ग रूम के ताले पर अपनी सील और दस्तखत करने की इजाजत होती है. इस दौरान वह स्ट्रॉन्ग पर लगातार नजर भी रख सकते हैं. एक बार रूम सील होने के बाद फिर उसे काउंटिंग वाले दिन ही खोला जा सकता है. अगर किसी अनहोनी की आशंका के बीच दरवाजा खोलने की जरुरत पड़ी तो प्रत्याशियों को पहले इसकी सूचना दी जाती है.

स्ट्रॉन्ग रूम के बाहर भी तीन स्तर की सुरक्षा होती है. सबसे अंदरुनी घेरे की सुरक्षा सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स करती है. उनके अलावा जिला पुलिस के भी जवान सुरक्षा के लिए मौजूद होते हैं. काउंटिंग तभी शुरू होती है जब प्रत्याशी या उनके एजेंट ईवीएम की जांच कर लें और ईवीएम की सील टूटी हुई ना हो.

रांची: लोकसभा चुनाव 2019 की मतगणना के ठीक पहले ईवीएम की सुरक्षा को लेकर सवाल किए जा रहे हैं. कई लोगों ने आरोप लगाया कि ईवीएम बदली जा रही है. ईवीएम के कथित संदिग्ध मूवमेंट की खबरें आने के बाद विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग से भी इस पर सफाई मांगी. हालांकि आयोग ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया. ऐसे में सवाल ये है कि क्या वाकई में ईवीएम में छेड़खानी या बदलाव संभव है?

ईवीएम की सुरक्षा में सेंध लगा पाना इतना आसान नहीं हो सकता, उसे बेहद कड़ी सुरक्षा के बीच रखा जाता है. जब चुनाव नहीं होते तो इन मशीनों को जिले के किसी गोदाम में रखा जाता है. उस गोदाम का सीधा नियंत्रण डिस्ट्रिक इलेक्टोरल ऑफिस यानी की डीईओ के पास होता है. गोदाम की सुरक्षा के लिए उसके दरवाजे पर डबल लॉक लगाया जाता है. इसके अलावा पुलिस और सुरक्षाकर्मी 24 घंटे उसकी निगरानी करते हैं. सुरक्षाकर्मियों के अलावा निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे का भी इस्तेमाल किया जाता है. जब चुनाव नहीं होते हैं तो बिना चुनाव आयोग के निर्देश के ईवीएम को नहीं निकाला जा सकता.

कैसे एलॉट किए जाते हैं EVM

चुनाव की तारीख जब नजदीक आती है तो ईवीएम रैंडम तरीके से किसी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले विधानसभाओं के लिए आवंटित किया जाता है. इस दौरान विभिन्न पार्टियों के प्रतिनिधि वहां मौजूद रहते हैं. अगर किसी पार्टी के प्रतिनिधि वहां मौजूद नहीं रहते हैं तो ईवीएम और वीवीपैट मशीनों की एक सूची तैयार की जाती है जिसे सभी प्रमुख पार्टियों के दफ्तर में भेज दिया जाता है. इसके बाद उस विधानसभा के रिटर्निंग ऑफिसर आवंटित ईवीएम की जिम्मेदारी लेता है और उन्हें तय किए गए स्ट्रॉन्ग रूम में रखवा दिया जाता है.

EVM आवंटिक करने का दूसरा दौर
इसके बाद ईवीएम को रैंडम तरीके से आवंटित करने का दूसरा दौर शुरू होता है. इन मशीनों को विभिन्न पार्टी के प्रतिनिधियों के मौजूदगी में खास पोलिंग स्टेशनों को आवंटित किया जाता है. चुनाव आयोग हर प्रत्याशी को सुझाव देता है कि वे मशीनों के नंबर अपने पोलिंग एजेंट के साथ शेयर करें ताकि वोटिंग शुरू होने से पहले वह मशीनों की पुष्टी कर सकें. जब सभी मशीनों को प्रत्याशियों के नाम और बाकी जानकारी के साथ तैयार कर लिया जाता है तो उसे संबंधित क्षेत्र के लिए आवंटित कर दिया जाता है. इसके बाद इन्हें जिस स्ट्रॉन्ग रूम में रखा जाता है, उसे पार्टी प्रतिनिधियों की मौजूदगी में सील कर दिया जाता है. इस दौरान पार्टी के प्रतिनिधि चाहें तो अपने ताले लगा कर उसे भी सील कर सकते हैं. इस स्ट्रॉन्ग रूम की निगरानी का जिम्मा एक सीनियर पुलिस अधिकारी के पास होता है जो कम से डीएसपी रैंक का होता है. इस स्ट्रॉन्ग रूम की सुरक्षा भी बेहद सख्त होती है. कभी कभी इसकी जिम्मेदारी केंद्रीय सुरक्षा बल को भी दी जाती है.

स्ट्रॉन्ग रूम से ईवीएम निकालने की प्रक्रिया
एक बार सील होने के बाद स्ट्रॉन्ग रूम को तय तारीख और वक्त पर ही खोला जाता है. ताला खोलने के से पहले सभी प्रत्याशियों और इलेक्शन एजेंटों को इसकी जानकारी दे दी जाती है. आवंटित मशीनों के अलावा कुछ रिजर्व ईवीएम को भी स्ट्रॉन्ग रूम से निकलवा कर विधानसभा क्षेत्र के किसी अहम जगह पर पहुंचा दिया जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है कि ताकि किसी ईवीएम के खराब होने पर उसे बदला जा सके.

पोलिंग के बाद स्ट्रॉन्ग रूम पहुंचाने की प्रक्रिया
एक बार वोटिंग खत्म हो जाने के बाद ईवीएम को तुरंत ही स्ट्रॉन्ग रूम नहीं भेजा जाता है. पहले प्रिसाइडिंग ऑफिसर मशीनों में दर्ज वोटों का एक हिसाब तैयार करता है. इसकी सत्यापित कॉपी हर प्रत्याशी के पोलिंग एजेंट को दी जाती है. इसके बाद ईवीएम को सील कर दिया जाता है. प्रत्याशी और उनके एजेंट को सील पर साइन करने की इजाजत होती है. ईवीएम से छेड़छाड़ के आरोपी की स्थिति में प्रत्याशी अपनी दस्तखत को देख सकते हैं. इसके बाद पोलिंग स्टेशन से स्ट्रॉन्ग रूम तक ईवीएम को पहुंचाने के दौरान प्रत्याशी या उनके प्रतिनिधि अपनी गाड़ियों में साथ जा सकते हैं.

वहीं चुनाव आयोग की गाड़ी में पोलिंग में इस्तेमाल हुए और बिना इस्तेमाल हुए मशीनों को जीपीएस लगी गाड़ियों में लाया जाता है. इस दौरान गाड़ी की हर मुवमेंट पर डीईओ और सीईओ की पैनी निगाह होती है.

त्रिस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था
आम तौर पर स्ट्रॉन्ग रूम काउंटिंग सेंटर के पास ही बनाए जाते हैं. इन स्ट्रॉन्ग रूम में इस्तेमाल किए गए मशीनो के साथ बिना इस्तेमाल वाले मशीन भी होते हैं. एक बार जब सारी मशीनें आ जाती है तो स्ट्रॉन्ग रूम को सील कर दिया जाता है. इस वक्त भी प्रत्याशियों या उनके प्रतिनिधि को स्ट्रॉन्ग रूम के ताले पर अपनी सील और दस्तखत करने की इजाजत होती है. इस दौरान वह स्ट्रॉन्ग पर लगातार नजर भी रख सकते हैं. एक बार रूम सील होने के बाद फिर उसे काउंटिंग वाले दिन ही खोला जा सकता है. अगर किसी अनहोनी की आशंका के बीच दरवाजा खोलने की जरुरत पड़ी तो प्रत्याशियों को पहले इसकी सूचना दी जाती है.

स्ट्रॉन्ग रूम के बाहर भी तीन स्तर की सुरक्षा होती है. सबसे अंदरुनी घेरे की सुरक्षा सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स करती है. उनके अलावा जिला पुलिस के भी जवान सुरक्षा के लिए मौजूद होते हैं. काउंटिंग तभी शुरू होती है जब प्रत्याशी या उनके एजेंट ईवीएम की जांच कर लें और ईवीएम की सील टूटी हुई ना हो.

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रांची: लोकसभा चुनाव 2019 की मतगणना के ठीक पहले ईवीएम की सुरक्षा को लेकर सवाल किए जा रहे हैं. कई लोगों ने आरोप लगाया कि ईवीएम बदली जा रही है. ईवीएम के कथित संदिग्ध मूवमेंट की खबरें आने के बाद विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग से भी इस पर सफाई मांगी. हालांकि आयोग ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया. ऐसे में सवाल ये है कि क्या वाकई में ईवीएम में छेड़खानी या बदलाव संभव है?



ईवीएम की सुरक्षा में सेंध लगा पाना इतना आसान नहीं हो सकता, उसे बेहद कड़ी सुरक्षा के बीच रखा जाता है. जब चुनाव नहीं होते तो इन मशीनों को जिले के किसी गोदाम में रखा जाता है. उस गोदाम का सीधा नियंत्रण डिस्ट्रिक इलेक्टोरल ऑफिस यानी की डीईओ के पास होता है. गोदाम की सुरक्षा के लिए उसके दरवाजे पर डबल लॉक लगाया जाता है. इसके अलावा पुलिस और सुरक्षाकर्मी 24 घंटे उसकी निगरानी करते हैं. सुरक्षाकर्मियों के अलावा निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे का भी इस्तेमाल किया जाता है. जब चुनाव नहीं होते हैं तो बिना चुनाव आयोग के निर्देश के ईवीएम को नहीं निकाला जा सकता.



ऐसे एलॉट होते हैं EVM 

चुनाव की तारीख जब नजदीक आती है तो ईवीएम रैंडम तरीके से किसी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले विधानसभाओं के लिए आवंटित किया जाता है. इस दौरान विभिन्न पार्टियों के प्रतिनिधि वहां मौजूद रहते हैं. अगर किसी पार्टी के प्रतिनिधि वहां मौजूद नहीं रहते हैं तो ईवीएम और वीवीपैट मशीनों की एक सूची तैयार की जाती है जिसे सभी प्रमुख पार्टियों के दफ्तर में भेज दिया जाता है. इसके बाद उस विधानसभा के रिटर्निंग ऑफिसर आवंटित ईवीएम की जिम्मेदारी लेता है और उन्हें तय किए गए स्ट्रॉन्ग रूम में रखवा दिया जाता है.

इसके बाद ईवीएम को रैंडम तरीके से आवंटित करने का दूसरा दौर शुरू होता है. इन मशीनों को विभिन्न पार्टी के प्रतिनिधियों के मौजूदगी में खास पोलिंग स्टेशनों को आवंटित किया जाता है. चुनाव आयोग हर प्रत्याशी को सुझाव देता है कि वे मशीनों के नंबर अपने पोलिंग एजेंट के साथ शेयर करें ताकि वोटिंग शुरू होने से पहले वह मशीनों की पुष्टी कर सकें. जब सभी मशीनों को प्रत्याशियों के नाम और बाकी जानकारी के साथ तैयार कर लिया जाता है तो उसे संबंधित क्षेत्र के लिए आवंटित कर दिया जाता है. इसके बाद इन्हें जिस स्ट्रॉन्ग रूम में रखा जाता है, उसे पार्टी प्रतिनिधियों की मौजूदगी में सील कर दिया जाता है. इस दौरान पार्टी के प्रतिनिधि चाहें तो अपने ताले लगा कर उसे भी सील कर सकते हैं. इस स्ट्रॉन्ग रूम की निगरानी का जिम्मा एक सीनियर पुलिस अधिकारी के पास होता है जो कम से डीएसपी रैंक का होता है. इस स्ट्रॉन्ग रूम की सुरक्षा भी बेहद सख्त होती है. कभी कभी इसकी जिम्मेदारी केंद्रीय सुरक्षा बल को भी दी जाती है.



स्ट्रॉन्ग रूम से ईवीएम निकालने की प्रक्रिया

एक बार सील होने के बाद स्ट्रॉन्ग रूम को तय तारीख और वक्त पर ही खोला जाता है. ताला खोलने के से पहले सभी प्रत्याशियों और इलेक्शन एजेंटों को इसकी जानकारी दे दी जाती है. आवंटित मशीनों के अलावा कुछ रिजर्व ईवीएम को भी स्ट्रॉन्ग रूम से निकलवा कर विधानसभा क्षेत्र के किसी अहम जगह पर पहुंचा दिया जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है कि ताकि किसी ईवीएम के खराब होने पर उसे बदला जा सके.



पोलिंग के बाद स्ट्रॉन्ग रूम पहुंचाने की प्रक्रिया

एक बार वोटिंग खत्म हो जाने के बाद ईवीएम को तुरंत ही स्ट्रॉन्ग रूम नहीं भेजा जाता है. पहले प्रिसाइडिंग ऑफिसर मशीनों में दर्ज वोटों का एक हिसाब तैयार करता है. इसकी सत्यापित कॉपी हर प्रत्याशी के पोलिंग एजेंट को दी जाती है. इसके बाद ईवीएम को सील कर दिया जाता है. प्रत्याशी और उनके एजेंट को सील पर साइन करने की इजाजत होती है. ईवीएम से छेड़छाड़ के आरोपी की स्थिति में प्रत्याशी अपनी दस्तखत को देख सकते हैं. इसके बाद पोलिंग स्टेशन से स्ट्रॉन्ग रूम तक ईवीएम को पहुंचाने के दौरान प्रत्याशी या उनके प्रतिनिधि अपनी गाड़ियों में साथ जा सकते हैं.



वहीं चुनाव आयोग की गाड़ी में पोलिंग में इस्तेमाल हुए और बिना इस्तेमाल हुए मशीनों को जीपीएस लगी गाड़ियों में लाया जाता है. इस दौरान गाड़ी की हर मुवमेंट पर डीईओ और सीईओ की पैनी निगाह होती है. 



त्रिस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था

आम तौर पर स्ट्रॉन्ग रूम काउंटिंग सेंटर के पास ही बनाए जाते हैं. इन स्ट्रॉन्ग रूम में इस्तेमाल किए गए मशीनो के साथ बिना इस्तेमाल वाले मशीन भी होते हैं.  एक बार जब सारी मशीनें आ जाती है तो स्ट्रॉन्ग रूम को सील कर दिया जाता है. इस वक्त भी प्रत्याशियों या उनके प्रतिनिधि को स्ट्रॉन्ग रूम के ताले पर अपनी सील और दस्तखत करने की इजाजत होती है. इस दौरान वह स्ट्रॉन्ग पर लगातार नजर भी रख सकते हैं. एक बार रूम सील होने के बाद फिर उसे काउंटिंग वाले दिन ही खोला जा सकता है. अगर किसी अनहोनी की आशंका के बीच दरवाजा खोलने की जरुरत पड़ी तो प्रत्याशियों को पहले इसकी सूचना दी जाती है.

स्ट्रॉन्ग रूम के बाहर भी तीन स्तर की सुरक्षा होती है. सबसे अंदरुनी घेरे की सुरक्षा सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स करती है. उनके अलावा जिला पुलिस के भी जवान सुरक्षा के लिए मौजूद होते हैं. काउंटिंग तभी शुरू होती है जब प्रत्याशी या उनके एजेंट ईवीएम की जांच कर लें और ईवीएम की सील टूटी हुई ना हो. 


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