रांची: खूंटी लोकसभा सीट पर पूरे प्रदेश की निगाहें टिकी हुई है. इसकी वजह हैं अर्जुन मुंडा. तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे अर्जुन मुंडा इस बार खूंटी के रास्ते दिल्ली पहुंचने की तैयारी में जुटे हैं. अब सवाल है कि राजनीतिक समीकरण के लिहाज से खूंटी लोकसभा सीट अर्जुन मुंडा के लिए कितनी मुफीद है.
भाजपा ने अर्जुन मुंडा को मैदान में उतारा
इसे 1989 से 2014 तक हुए 8 लोकसभा चुनाव के नतीजों से समझा जा सकता है. इन चुनावों के दौरान सिर्फ 2004 में कांग्रेस की सुशीला केरकेट्टा ने जीत दर्ज की थी. बाकी चुनाव में भाजपा के कड़िया मुंडा जीत का परचम लहराते रहे. इस बार पार्टी संविधान के तहत 75 साल से ज्यादा आयु होने के कारण कड़िया मुंडा को टिकट ना देकर भाजपा ने अर्जुन मुंडा को मैदान में उतारा है.
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एकतरफा जीत तय है
लेकिन झारखंड की राजनीति के धुरंधर कहे जाने वाले अर्जुन मुंडा ने अपना नाम घोषित होते ही सबसे पहले सीटिंग सांसद कड़िया मुंडा का आशीर्वाद लेकर कैडर वोट में बिखराव की संभावना पर विराम लगा दिया. खूंटी विधानसभा सीट से विधायक और रघुवर सरकार में मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा से अर्जुन मुंडा के सामने आने वाली चुनौतियों के बाबत ईटीवी भारत के वरिष्ठ सहयोगी राजेश कुमार सिंह ने बेबाकी से बातचीत की. इस पर नीलकंठ सिंह मुंडा ने दावा किया कि खूंटी में अर्जुन मुंडा के सामने कोई नहीं टिकेगा और उनकी एकतरफा जीत तय है.
एक और फैक्टर जो अर्जुन मुंडा को मजबूती देता है
पिछले कई चुनावों से भाजपा की परंपरागत सीट बन चुकी खूंटी लोकसभा क्षेत्र में 6 विधानसभा सीटें हैं. इनमें दो पर झामुमो, दो पर भाजपा, एक पर आजसू और एक पर कांग्रेस का कब्जा है. यानी खरसावां और तोरपा सीट पर झामुमो, खूंटी और सिमडेगा सीट पर भाजपा, तमाड़ सीट पर आजसू और कोलेबिरा विधानसभा सीट पर कांग्रेस का कब्जा है. पिछले लोकसभा चुनाव में झारखंड पार्टी के एनोस एक्का दूसरे स्थान पर रहे थे. लेकिन शिक्षक हत्याकांड में सजा होने के बाद हुए उपचुनाव में उन्होंने कोलेबिरा सीट भी गंवा दी.
इस बात की होती रही चर्चा
चर्चा इस बात की भी होती रही थी कोलेबिरा सीट पर हुए उपचुनाव के दौरान भाजपा ने एनोस एक्का की पत्नी को जीत दिलाने के लिए डमी कैंडिडेट दिया था. हालांकि यह बाजी कांग्रेस के नमन विक्सल कोनगाड़ी मार ले गए. लेकिन नीलकंठ सिंह मुंडा का मानना है कि अर्जुन मुंडा झारखंड में आदिवासियों के एक बड़े नेता है और उन्हें करिया मुंडा का भी आशीर्वाद है इसलिए एसटी के लिए रिजर्व इस सीट के वोटर्स अर्जुन मुंडा के प्रति ही विश्वास दिखाएंगे. खूंटी में पिछले साल पत्थलगड़ी का भी मामला जोर शोर से उठा था. लिहाजाइस बाबत पूछे गए सवाल को नीलकंठ सिंह मुंडा ने सिरे से नकार दिया.
अर्जुन के सारथी बने कड़िया मुंडा और नीलकंठ बने ध्वज
अर्जुन मुंडा को तसल्ली इस बात से भी होगी कि झारखंड की राजनीति के दिग्गज करिया मुंडा सहर्ष सारथी की भूमिका निभा रहे हैं तो दूसरी तरफ विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं. सिमडेगा में विमला प्रधान उन्हें मजबूती दे रही है तो दूसरी तरफ खरसावां के लोगों की सहानुभूति अर्जुन मुंडा के साथ जुड़ी हुई है.
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'चुनाव के दौरान परिस्थितियां बदलती रहती हैं'
लेकिन कहा जाता है कि चुनाव के दौरान परिस्थितियां बदलती रहती हैं और कई बार छोटे विवाद के कारण भी हवा का रुख बदल जाता है. बकौल नीलकंठ सिंह मुंडा, अर्जुन मुंडा के आगे खूंटी के मैदान में कोई नहीं टिकेगा. लेकिन यह सिर्फ दावा है जो 23 मई को ही मतगणना के दिन सच्चाई के रूप में सामने आएगा.