रांची: लगभग साढ़े तीन महीने से वैश्विक महामारी कोरोना के कारण समाज का हर तबका बूरी तरह प्रभावित है. उनमें सबसे ज्यादा मार झेलने वालों में छोटा-मोटा व्यापार कर अपनी रोजी रोटी चलाने वाले लोग हैं. उनमें एक बड़ा तबका वैसे लोगों का है जो सड़क किनारे फुटपाथ पर रेहड़ी लगाकर अपना और अपने परिवार का पेट पालते हैं. एक अनुमानित आंकड़े के अनुसार, राजधानी रांची में 20,000 से अधिक ऐसे लोग हैं जिनकी आजीविका सड़क पर लगी अस्थाई दुकान और ठेले खोमचों से होने वाली आमदनी पर टिकी हुई है.
केंद्र और राज्य सरकार की गाइडलाइन के बाद भी पूरी तरह से इन्हें राहत नहीं मिली है. हालांकि, उनमें से कुछ लोगों को फौरी तौर पर राहत मिली है, लेकिन पिछले 3 महीने से बंद पड़ी दुकानों के कारण कर्ज का बोझ और बढ़ गया है. आंकड़ों के हिसाब से प्रदेश के 9 नगर निगम इलाकों समेत राज्य में ठेले खोमचों के मार्फत मार्केट में हर दिन लगभग 60 लाख रुपये से ज्यादा के नकद का फ्लो होता है.
क्या कहते हैं दुकानदार
राजधानी के अरगोड़ा मोड़ पर फास्ट फूड की दुकान चलाने वाले दीपक कुमार कहते हैं कि दुकान लंबे समय से बंद रही. ऐसे में कर्ज सर पर है. उन्होंने कहा कि एक तरफ मकान मालिक को किराया देना है. वहीं, दूसरी तरफ बिजली का बिल बकाया है. इतना ही नहीं बच्चों के स्कूल की फीस का मामला भी अटका पड़ा हुआ है. उन्होंने कहा कि पहले क्रेडिट पर सामान मिल जाया करता था, लेकिन अब सारा काम नकद में हो रहा है. इस वजह से काफी परेशानी हो रही है.
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दूसरी तरफ चाय की दुकान चलाने वाले गोपाल मिश्रा बताते हैं कि बाहर से आकर रांची में चाय की दुकान चलाना महंगा पड़ रहा है. पिछले 3 महीने में कर्जा काफी बढ़ गया है. समझ नहीं आ रहा है कि इससे कैसे निजात पाया जाए.
मोरहाबादी और डोरंडा समेत सभी जगह है सन्नाटा
राजधानी रांची के मोरहाबादी इलाके में लगभग 100 से अधिक छोटी दुकानें सुबह से शाम तक सजी रहती थी. वैश्विक महामारी का प्रभाव ऐसा पड़ा कि इन दुकानों का चूल्हा पिछले 3 महीने से नहीं जला है. इतना ही नहीं जूस और चाय की दुकान तक वहां नहीं खुली है. केवल राजधानी रांची की बात करें तो मोरहाबादी, डोरंडा, कचहरी चौक, फिरायालाल, रातू रोड और महात्मा गांधी पथ समेत कई ऐसे इलाके हैं जो सड़क किनारे लगने वाली ऐसी दुकानों से गुलजार रहते थे, लेकिन अब इलाकों में सारी दुकानें बंद हैं.
तंगहाली में सैलून मालिक
दूसरी तरफ शहरी इलाकों में सैलून चलाने वाले लोग खासे परेशान हैं. उनका साफ कहना है कि राज्य सरकार ने सभी दुकाने खोलने का निर्णय ले लिया है, लेकिन सैलून पर अभी भी ताले लटके हुए हैं. सैलून चलाने वाले राजू ठाकुर कहते हैं कि डॉक्टर के क्लिनिक पर लोगों की खासी भीड़ देखी जा रही है. ऐसे में वहां कोरोना संक्रमण का भय ज्यादा है, लेकिन सरकार सैलून चलाने वालों पर ज्यादा सख्ती बरत रही है. पिछले तीन महीने का समय काफी बुरा बीता है. बच्चों का नाम स्कूल से कटवा दिया गया है.
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झारखंड में राज्य सरकार की गाइडलाइन के अनुसार अभी भी मंदिरों के दरवाजे नहीं खुले हैं. इसके साथ ही सैलून बंद रखने का निर्णय लिया गया है. वहीं दूसरी तरफ मनोरंजन के साधन पर भी पाबंदी है, न तो सिनेमाहॉल खुले हैं और न ही स्टेडियम खोलने की इजाजत दी गई है. यहां तक कि शॉपिंग मॉल भी फिलहाल बंद है.