रांचीः आज के चिकित्सकों ने अपनी काबिलियत के बल पर कोढ़ या Treatment of Leprosy ढूंढ लिया है. डॉक्टर बताते हैं कि कुष्ठ एक ऐसी बीमारी है जो हवा में मौजूद बैक्टीरिया के जरिए फैलती है. हवा में यह बैक्टीरिया किसी बीमार व्यक्ति से ही आते हैं. इसलिए इसे संक्रामक रोग भी कहा जाता है. अगर कोई व्यक्ति किसी संक्रमित मरीज के पास जाता है तो दूसरे व्यक्ति को सांस के माध्यम से यह बीमारी हो सकती है ना कि उससे सटने या उसे छूने से. इसीलिए कुष्ठ रोग से ग्रसित लोगों के लिए छुआछूत को गलत माना गया है.
इसे भी पढ़ें- रांची में कुष्ठ रोगी सुविधाओं से वंचित, मरीजों को मदद की दरकार
झारखंड की बात करें तो सरकारी आंकड़ों के हिसाब से राज्य के 11 जिला के लोग इस कुष्ठ रोग से प्रभावित हैं. आंकड़ों के अनुसार राज्य में लगभग चार हजार लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं. राज्य का संथाल परगना और कोल्हान के साथ-साथ रांची जिला भी कुष्ठ रोग से ग्रसित है. कुष्ठ रोग Bacteria called Mycobacterium leprae के संक्रमण से होता है. यह मुख्यत: त्वचा, आंख, नाक और बाहरी तंत्रिका को प्रभावित करता है.
इस बीमारी की जद में झारखंड के मूलवासी-आदिवासी समाज के लोग अत्यधिक हैं. एक आंकड़े के मुताबिक कुष्ठ के मरीजों में लगभग 37% मरीज सिर्फ एसटी श्रेणी के हैं. वहीं 13% मरीज के एससी श्रेणी से हैं. राज्य के कई जिलों में कुष्ठ कॉलोनी बनाए गए हैं. राजधानी रांची में भी जगन्नाथपुर और राजेंद्र पुल के नीचे कुष्ठ कॉलोनी बनाकर वहां पर कुष्ठ से ग्रसित मरीजों को बसाया गया है और उन्हे उचित इलाज दिया जा रहा है.
Etv Bharat की टीम जब रांची के कुष्ठ कॉलोनी में पहुंची तो देखा कि कुष्ठ के मरीजों को आज भी कई तरह के परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि समय-समय पर राज्य सरकार की ओर से कुष्ठ रोग से ग्रसित मरीजों को मेडिकल कैंप लगाकर उन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं. लेकिन उन्हें अपनी रोजमर्रा की जिंदगी के लिए अन्य सुविधाओं को लेकर दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
कुष्ठ रोग से ग्रसित एक मरीज कहते हैं कि मेडिकल कैंप या स्वास्थ्य सुविधाएं तो समय-समय पर कुष्ठ रोगियों को मिल ही जाती हैं. लेकिन उनके भविष्य के लिए कोई नहीं सोचता है. दवाइयों के नित्य उपयोग से उनका कुष्ठ तो ठीक हो रहा है लेकिन उनकी जीवनशैली में सुधार नहीं हो पा रहा है. जैसे सरकारी स्तर पर अनाज की सुविधा, बच्चों की शिक्षा की सुविधा सहित कई मुद्दों पर भी ध्यान देने की जरूरत है. क्योंकि कुष्ठ होने के बाद कई भ्रांतियों के कारण समाज उनका बहिष्कार कर देता है.
इसे भी पढ़ें- लातेहार में कुष्ठ रोग पर लगामः प्रशासन की कड़ी मेहनत से कम हो रहे केस
सरकार की तरफ से कुष्ठ रोगियों को आर्थिक मदद भी दिए जाते हैं. जिससे कुष्ठ रोगी अपने जीवन यापन कर सके. झारखंड में आदिवासियों और एससी समाज के लोगों की आर्थिक स्थिति को देखते हुए उन्हें एक-एक हजार रुपये का आर्थिक लाभ भी दिया जाता है. नगरीय अंचलाधिकारी संतोष शुक्ला बताते हैं कि सरकारी मदद दिलाने के लिए उनके जैसे पदाधिकारी समय-समय पर कुष्ठ कॉलोनी का निरीक्षण करते रहते हैं, जिससे कोई भी पीड़ित व्यक्ति आर्थिक लाभ से वंचित ना रह सके. स्वास्थ्य विभाग की ओर से आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर कुष्ठ रोगियों के लिए विशेष कैंप लगाया गया है. जिसमें कुष्ठ रोग से ग्रसित मरीजों के ठेढ़े-मेढ़े अंग को रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी से ठीक की जा रही है.
State Health Secretary AK Singh बताते हैं कि झारखंड का लगभग 11 जिला इस बीमारी से ग्रसित है. सभी जिलों में विशेष कैंप लगाकर मरीजों को चिन्हित किया जा रहा है और यह पता लगाया जा रहा है कि आखिर झारखंड को कुष्ठ से निजाद कैसे मिल सके. उन्होंने लोगों को भी संदेश देते हुए कहा कि कुष्ठ छुआछूत की बीमारी नहीं है. इसीलिए इस बीमारी से ग्रसित लोगों से भेदभाव नहीं करनी चाहिए. यह बीमारी सांस के द्वारा फैलती है, बस लोगों को परहेज करने की आवश्यकता है.
उन्होंने बताया कि झारखंड में कुष्ठ रोग से ग्रसित लोगों के टेढ़े-मेढ़े अंग को ठीक करने के लिए बाहर से चिकित्सक को बुलाया गया है. जो झारखंड के चिकित्सकों को ट्रेनिंग देंगे और फिर उसके बाद Reconstructive surgery for leprosy patients से उनका अंग ठीक किया जाता है. जिससे वो फिर से वो एक स्वस्थ और साधारण जीवन जी सकेंगे. समाजसेवी दीपक लोहरा बताते हैं कि आज भी हमारे समाज में कुष्ठ रोगियों को हीन भाव से देखा जाता है, जो सरासर गलत है. उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य विभाग ने लगभग सभी कुष्ठ रोगियों को चिन्हित कर लिया है. अब बस जरूरत है कि आम लोग और शासन-प्रशासन वैसे मरीजों की मदद करें ताकि वह इस बीमारी से बाहर निकल सके.
इसे भी पढ़ें- विश्व कुष्ठ रोग उन्मूलन दिवस: समय पर जांच जरूरी
कुष्ठ रोग के लक्षण
लेप्रोसी या कोढ़ के दौरान शरीर पर सफेद चकते यानी निशान पड़ने लगते हैं. यह निशान उस जगह को सुन्न कर देते हैं यानी इनमें किसी तरह का सेंसेशन नहीं होता है. अगर मरीज की दाग वाली जगह पर कोई नुकीली वस्तु चुभाकर देखा जाए तो उसे दर्द का एहसास नहीं होता है. यह पैच या धब्बा शरीर के किसी एक हिस्से पर होने से शुरू हो सकते हैं. जिसका ठीक से इलाज ना कराने पर पूरे शरीर में भी फैल सकता हैं. ऐसी स्थिति में बिना देरी किए तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें अगर लेप्रोसी का आपको शुरू में पता चल जाता है तो डॉक्टर उसे इलाज से ठीक कर सकते हैं. इसकी दवा 6 महीने से लेकर 2 साल तक लगातार चलती है. ये सभी दवाइयां स्वास्थ्य केंद्रों पर कुष्ठ रोगियों को सरकार की ओर से मुफ्त मुहैया करायी जाती है.