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यह परिवार है पत्थलगड़ी का मास्टरमाइंड, अड़की के कुरुंगा कोचांग में बसता है 'कुंटुंब परिवार' - khunti district news

झारखंड के खूंटी में पत्थलगड़ी के बाद एक नई विचारधारा अपने पांव पसारने लगी है. जिस कारण यहां के ग्रामीण सरकारी व्यवस्था का बहिष्कार करने लगे हैं, उनका कहना है कि हम यहां के मूल निवासी हैं न कि भारतीय नागरिक. ब्यूरोक्रेट्स हमारे सेवादार हैं, हम सिर्फ राष्ट्रपति और राज्यपाल को ही मानते हैं और सिर्फ कुदरती रूलिंग व्यवस्था से संचालित होते हैं.

kutumb pariwar
कुंटुंब परिवार
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Published : Jan 23, 2020, 1:47 PM IST

खूंटी: जिले में पत्थलगड़ी के बाद अब एक नई विचारधारा तेजी से अपना पांव पसार रही है. इसका नाम है कुंटुंब परिवार. इस संबंध में ग्रामीण खुद को आदिवासी भारत बताते हैं और कहते हैं कि वह आदिमानव हैं और भारत के शासक हैं. इसलिए उन पर कोई शासन नहीं कर सकता.

kutumb pariwar and Pathalgadi movement
कुंटुंब परिवार द्वारा लगाया गया बोर्ड

बता दें कि गांव के सभी लोगों के नाम के पहले एसी लिखा होता है, जिसका मतलब ईसा पूर्व बताया जा रहा है. खूंटी के अड़की क्षेत्र अंतर्गत कुरुंगा कोचांग इलाके के ज्यादातर ग्रामीणों के घरों में कुंटुंब परिवार का लोगो लगा हुआ है. जब ईटीवी भारत ने इन इलाकों की हकीकत जानने की कोशिश की तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए.

पढ़ें- ETV BHARAT IMPACT: स्कूल के बच्चों को मिला एडमिट कार्ड, छात्र छात्राओं ने कहा-धन्यवाद

यहां के ग्रामीणों को सरकार की कोई पहचान नहीं चाहिए. उन्हें आधार कार्ड, राशन कार्ड, जॉब कार्ड, मतदाता पहचान पत्र भी नहीं चाहिए. उनका कहना है कि उन्हें सरकार की कोई योजना नहीं चाहिए, क्योंकि वह क्षेत्र के राजा हैं, यही कारण है कि ग्रामीण एक-एक कर अपने सभी सरकारी दस्तावेज वापस करने लगे हैं. वे दस्तावेज भी वापस करने किसी मुख्यालय में नहीं जाते हैं, बल्कि एक लिफाफे में भरकर राष्ट्रपति या राज्यपाल के नाम पोस्ट ऑफिस में जाकर पोस्ट कर देते हैं.

'नहीं चाहिए कोई भी सरकारी लाभ'

उनका कहना है कि भारतीय शासन व्यवस्था के बनाए कानून और प्रमाण पत्र उनके किसी काम के नहीं, क्योंकि उनका कानून इससे अलग है. कोई भी फैसला नन-ज्यूडिशियल स्टांप पर किया जा रहा है. पत्थलगड़ी नेता समर्थक हो या उससे जुड़े ग्राम प्रधान ज्यादातर गुजरात जाकर कुंटुंब परिवार से सरकार के खिलाफ हो रहे भाषणों को सुनते हैं और खूंटी आकर यहां के ग्रामीणों को बरगलाकर राजनीति करते हैं. साथ ही यहां के भोले-भाले ग्रामीणों को सरकार और सरकारी सिस्टम से अलग होकर नशे के कारोबार में शामिल करते हैं.

kutumb pariwar and Pathalgadi movement
कुंटुंब परिवार का नेमप्लेट

कौन है कुंटुंब परिवार?

अब सवाल यह उठता है कि आखिर गुजरात में कुंटुंब परिवार कौन है और इसका संचालन कौन करता है. कहीं राज्य के बड़े नेताओं की संलिप्त्ता तो नहीं. क्योंकि यहां के ग्राम प्रधान हो या उससे जुड़े नेता सब खुद को समानांतर सरकार चलाने का दंभ भरते हैं, और पत्थलगड़ी की सभा की शुरुआत होती है. जिसे खूंटी में पत्थलगड़ी आंदोलन कहा जाता है.

ये भी पढ़ें- चाईबासा में 'सरकार आपके द्वार' कार्यक्रम का आयोजन, लाभुकों के बीच परिसंपत्तियों का वितरण

खूंटी में पत्थलगड़ी कोई नई नहीं है, लेकिन जब-जब पत्थलगड़ी आंदोलन तेज हुआ तब जिले में अफीम माफिया अफीम निकालने के फिराक में रहते हैं. क्षेत्र से जब भी अफीम निकालने और अफीम में चीरा लगाने का काम शुरू होता है, तो पत्थलगड़ी नेता आदिवासी ग्रामीणों को एकजुट करने में जुट जाते हैं. जो सरकार और प्रशासन के लिए चुनौती बन जाती है, फिर प्रशासन ग्रामीणों के सामने घुटने टेक देती है और शायद अभी उसी की शुरूआत है.

खूंटी: जिले में पत्थलगड़ी के बाद अब एक नई विचारधारा तेजी से अपना पांव पसार रही है. इसका नाम है कुंटुंब परिवार. इस संबंध में ग्रामीण खुद को आदिवासी भारत बताते हैं और कहते हैं कि वह आदिमानव हैं और भारत के शासक हैं. इसलिए उन पर कोई शासन नहीं कर सकता.

kutumb pariwar and Pathalgadi movement
कुंटुंब परिवार द्वारा लगाया गया बोर्ड

बता दें कि गांव के सभी लोगों के नाम के पहले एसी लिखा होता है, जिसका मतलब ईसा पूर्व बताया जा रहा है. खूंटी के अड़की क्षेत्र अंतर्गत कुरुंगा कोचांग इलाके के ज्यादातर ग्रामीणों के घरों में कुंटुंब परिवार का लोगो लगा हुआ है. जब ईटीवी भारत ने इन इलाकों की हकीकत जानने की कोशिश की तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए.

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यहां के ग्रामीणों को सरकार की कोई पहचान नहीं चाहिए. उन्हें आधार कार्ड, राशन कार्ड, जॉब कार्ड, मतदाता पहचान पत्र भी नहीं चाहिए. उनका कहना है कि उन्हें सरकार की कोई योजना नहीं चाहिए, क्योंकि वह क्षेत्र के राजा हैं, यही कारण है कि ग्रामीण एक-एक कर अपने सभी सरकारी दस्तावेज वापस करने लगे हैं. वे दस्तावेज भी वापस करने किसी मुख्यालय में नहीं जाते हैं, बल्कि एक लिफाफे में भरकर राष्ट्रपति या राज्यपाल के नाम पोस्ट ऑफिस में जाकर पोस्ट कर देते हैं.

'नहीं चाहिए कोई भी सरकारी लाभ'

उनका कहना है कि भारतीय शासन व्यवस्था के बनाए कानून और प्रमाण पत्र उनके किसी काम के नहीं, क्योंकि उनका कानून इससे अलग है. कोई भी फैसला नन-ज्यूडिशियल स्टांप पर किया जा रहा है. पत्थलगड़ी नेता समर्थक हो या उससे जुड़े ग्राम प्रधान ज्यादातर गुजरात जाकर कुंटुंब परिवार से सरकार के खिलाफ हो रहे भाषणों को सुनते हैं और खूंटी आकर यहां के ग्रामीणों को बरगलाकर राजनीति करते हैं. साथ ही यहां के भोले-भाले ग्रामीणों को सरकार और सरकारी सिस्टम से अलग होकर नशे के कारोबार में शामिल करते हैं.

kutumb pariwar and Pathalgadi movement
कुंटुंब परिवार का नेमप्लेट

कौन है कुंटुंब परिवार?

अब सवाल यह उठता है कि आखिर गुजरात में कुंटुंब परिवार कौन है और इसका संचालन कौन करता है. कहीं राज्य के बड़े नेताओं की संलिप्त्ता तो नहीं. क्योंकि यहां के ग्राम प्रधान हो या उससे जुड़े नेता सब खुद को समानांतर सरकार चलाने का दंभ भरते हैं, और पत्थलगड़ी की सभा की शुरुआत होती है. जिसे खूंटी में पत्थलगड़ी आंदोलन कहा जाता है.

ये भी पढ़ें- चाईबासा में 'सरकार आपके द्वार' कार्यक्रम का आयोजन, लाभुकों के बीच परिसंपत्तियों का वितरण

खूंटी में पत्थलगड़ी कोई नई नहीं है, लेकिन जब-जब पत्थलगड़ी आंदोलन तेज हुआ तब जिले में अफीम माफिया अफीम निकालने के फिराक में रहते हैं. क्षेत्र से जब भी अफीम निकालने और अफीम में चीरा लगाने का काम शुरू होता है, तो पत्थलगड़ी नेता आदिवासी ग्रामीणों को एकजुट करने में जुट जाते हैं. जो सरकार और प्रशासन के लिए चुनौती बन जाती है, फिर प्रशासन ग्रामीणों के सामने घुटने टेक देती है और शायद अभी उसी की शुरूआत है.

Intro:खूंटी - खूंटी जिले में पत्थलगड़ी के बाद अब एक नई विचारधारा तेजी से अपना पांव पसार रही है .... इसका नाम दिया गया है कुटुंब परिवार और इस संबंध ग्रामीण खुद को आदिवासी भारत बताते हैं और कहते हैं कि आदिमानव हैं .... यहाँ के खुद शासक हैं,इसलिए उन पर कोई शासन नहीं कर सकता .... ऐसे गांव के सभी लोगों के नाम के पहले एसी लिखा होता है .... इसका मतलब यह बताते हैं कि एसी माने ईसा पूर्व ...
खूंटी के अड़की क्षेत्र अंतरगत कुरुँगा कोचांग इलाके के लगभग गांवों के ग्रामीणों के घरों में कुटुंब परिवार का लोगों लगा हुआ है ... इन इलाकों में ईटीवी जब हकीकत जानने की कोशिश की तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए सामने आए .... यहाँ भोले-भाले आदिवासियों को कौन बरगला रहा है इस पर वे खामोश रहे लेकिन इतना जरुर कहा कि ज्यादा जानकारी चाहिए तो गुजरात जाइये ....
यहां के ग्रामीणों को सरकार का कोई पहचान नहीं चाहिए .... उन्हें आधार कार्ड,राशन कार्ड,जॉब कार्ड,मतदाता पहचान पत्र भी नहीं चाहिए .... उनका कहना है कि उन्हें सरकार की कोई योजना नहीं चाहिए,क्योंकि वह क्षेत्र के राजा हैं,यही कारण है कि ग्रामीण एक-एक कर अपने सभी सरकारी दस्तावेज वापस करने लगे हैं .... वे दस्तावेज भी वापस करने किसी मुख्यालय में नहीं जाते हैं,बल्कि एक लिफाफे में भरकर राष्ट्रपति या राज्यपाल के नाम पोस्ट ऑफिस में जाकर पोस्ट कर देते हैं ....
खूंटी जिले में गांव के गांव सरकारी व्यवस्था का बहिष्कार करने लगे है .... उनका कहना है कि हम यहां के मूल निवासी हैं ना कि भारतीय नागरिक .... ब्यूरोक्रेट्स हमारे सेवादार हैं,हम सिर्फ राष्ट्रपति व राज्यपाल को ही मानते हैं .... सिर्फ कुदरती रूलिंग व्यवस्था से संचालित होते हैं .... केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार भारतीय जुडिशियल व्यवस्था से संचालित होते हैं ....
भारतीय जुडिशल व्यवस्था के बनाए कानून एवं प्रमाण पत्र उनके किसी काम के नहीं,क्योंकि उनका कानून इससे अलग है ..... कोई भी फैसला नन-जुडिशल स्टांप पर काम करते हैं .... जारी कुटुम परिवार की विचारधारा वाले ग्रामीण प्रेस विज्ञप्ति से लेकर आदेश व निर्देश तक भी जुड़ी सिस्टम पर जारी करते हैं .... उनका कहना है पूरा भारत आदिवासी भारत है इसके बाद ही कोई और है ... इसलिए उन्हें दूसरा उनका सेवादार जैसे कि डीसी एसपी सम्बंधित अधिकारी उनका प्रमाण पत्र कैसे बना सकता है ....
पत्थलगड़ी नेता समर्थक हो या उससे जुड़े ग्राम प्रधान ज्यादातर गुजरात जाकर कुटुंब परिवार से सरकार के खिलाफ हो रहे भाषणों को सुनते है और खूंटी आकर यहाँ के ग्रामीणों को बरगलाकर राजनीती करते है ... यहाँ के भोले-भाले ग्रामीणों को सरकार व सरकारी सिस्टम से अलग होकर नशे के कारोबार में शामिल कटते है और खुद इसका धंधा करते है ... खूंटी पुलिस कई बार नशे से जुड़े सौदागरों को गिरफ्तार किया है जिसमे जिले के कई ग्राम प्रधान शामिल रहे है ... इसमें एक सवाल ये उठता है कि आखिर गुजरात में कुटुंब परिवार कौन है और इसका संचालन कौन करता है जिससे यहाँ के ग्रामीण सरकारी सिस्टम को मानने से इंकार करते है ...कहीं राज्य के बड़े नेताओं की संलिप्प्ता तो नहीं क्योंकि यहाँ के ग्राम प्रधान हो या उससे जुड़े नेता जो खुद को समानांतर सरकार चलाने का दंभ भरते है उनके पास तो पैसे तक नहीं होते ... फिर भी जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में गुजरात के नेता कैसे पहुँच जाते है और सभा कर लोगों को जानकारी देते है फिर शुरू होता है पत्थलगड़ी की सभा,जिसे खूंटी में कहा जाता है पत्थलगडी आन्दोलन ...
खूंटी में पत्थलगड़ी कोई नया नहीं लेकिन जब-जब पत्थलगड़ी आन्दोलन तेज हुआ तब जिले में अफीम माफिया अफीम निकालने के फिराक में रहते है ... क्षेत्र से जब भी अफीम निकालने व अफीम में चीरा लगाने का काम शुरू होता है तो पत्थलगड़ी नेता आदिवासी ग्रामीणों को एकजुट करने में जुड़ जाते है ... जो सरकार व स्थानीय प्रशासन के लिए चुनौती बन कर सामने रहता है लेकिन प्रशासन ग्रामीणों के सामने अपना घुटना टेक देती है और शायद अभी वही होने की शुरुवात है ....
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