खूंटी: जिले में पत्थलगड़ी के बाद अब एक नई विचारधारा तेजी से अपना पांव पसार रही है. इसका नाम है कुंटुंब परिवार. इस संबंध में ग्रामीण खुद को आदिवासी भारत बताते हैं और कहते हैं कि वह आदिमानव हैं और भारत के शासक हैं. इसलिए उन पर कोई शासन नहीं कर सकता.
बता दें कि गांव के सभी लोगों के नाम के पहले एसी लिखा होता है, जिसका मतलब ईसा पूर्व बताया जा रहा है. खूंटी के अड़की क्षेत्र अंतर्गत कुरुंगा कोचांग इलाके के ज्यादातर ग्रामीणों के घरों में कुंटुंब परिवार का लोगो लगा हुआ है. जब ईटीवी भारत ने इन इलाकों की हकीकत जानने की कोशिश की तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए.
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यहां के ग्रामीणों को सरकार की कोई पहचान नहीं चाहिए. उन्हें आधार कार्ड, राशन कार्ड, जॉब कार्ड, मतदाता पहचान पत्र भी नहीं चाहिए. उनका कहना है कि उन्हें सरकार की कोई योजना नहीं चाहिए, क्योंकि वह क्षेत्र के राजा हैं, यही कारण है कि ग्रामीण एक-एक कर अपने सभी सरकारी दस्तावेज वापस करने लगे हैं. वे दस्तावेज भी वापस करने किसी मुख्यालय में नहीं जाते हैं, बल्कि एक लिफाफे में भरकर राष्ट्रपति या राज्यपाल के नाम पोस्ट ऑफिस में जाकर पोस्ट कर देते हैं.
'नहीं चाहिए कोई भी सरकारी लाभ'
उनका कहना है कि भारतीय शासन व्यवस्था के बनाए कानून और प्रमाण पत्र उनके किसी काम के नहीं, क्योंकि उनका कानून इससे अलग है. कोई भी फैसला नन-ज्यूडिशियल स्टांप पर किया जा रहा है. पत्थलगड़ी नेता समर्थक हो या उससे जुड़े ग्राम प्रधान ज्यादातर गुजरात जाकर कुंटुंब परिवार से सरकार के खिलाफ हो रहे भाषणों को सुनते हैं और खूंटी आकर यहां के ग्रामीणों को बरगलाकर राजनीति करते हैं. साथ ही यहां के भोले-भाले ग्रामीणों को सरकार और सरकारी सिस्टम से अलग होकर नशे के कारोबार में शामिल करते हैं.
कौन है कुंटुंब परिवार?
अब सवाल यह उठता है कि आखिर गुजरात में कुंटुंब परिवार कौन है और इसका संचालन कौन करता है. कहीं राज्य के बड़े नेताओं की संलिप्त्ता तो नहीं. क्योंकि यहां के ग्राम प्रधान हो या उससे जुड़े नेता सब खुद को समानांतर सरकार चलाने का दंभ भरते हैं, और पत्थलगड़ी की सभा की शुरुआत होती है. जिसे खूंटी में पत्थलगड़ी आंदोलन कहा जाता है.
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खूंटी में पत्थलगड़ी कोई नई नहीं है, लेकिन जब-जब पत्थलगड़ी आंदोलन तेज हुआ तब जिले में अफीम माफिया अफीम निकालने के फिराक में रहते हैं. क्षेत्र से जब भी अफीम निकालने और अफीम में चीरा लगाने का काम शुरू होता है, तो पत्थलगड़ी नेता आदिवासी ग्रामीणों को एकजुट करने में जुट जाते हैं. जो सरकार और प्रशासन के लिए चुनौती बन जाती है, फिर प्रशासन ग्रामीणों के सामने घुटने टेक देती है और शायद अभी उसी की शुरूआत है.