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जिस ऑफिस ऑफ प्रॉफिट में जा सकती है सीएम हेमंत की कुर्सी, जानिए उस मामले में कब क्या हुआ

ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में झारखंड में सियासी तूफान आया हुआ है. इस मामले को लेकर पिछले 7 महीने से कयास लगाए जा रहे हैं थे कि झारखंड का राजनीतिक परिदृश्य कैसा होगा. इस रिपोर्ट में जानिए कि ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में कब क्या हुआ.

Office of Profit case
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Published : Aug 26, 2022, 6:24 PM IST

रांचीः सीएम हेमंत सोरेन से जुड़े ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में (CM Hemant Soren office of profit case) निर्वाचन आयोग ने अपनी सिफारिश झारखंड के राज्यपाल को भेज दी है. जिसमें उन पर लगे आरोप को सही बताए जाने की बात सामने आ रही है. राज्यपाल अब इस मामले में राज्यपाल रमेश बैस ने विधि विशेषज्ञों से राय ली है. आइए एक नजर डालते हैं इस मामले में कब क्या हुआ. (Know when what happened in CM Hemant Soren office of profit case).

12 अगस्त को सुनवाई हुई पूरीः 18 अगस्त को सीएम हेमंत सोरेन की तरफ से मामले में ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में 12 अगस्त को निर्वाचन आयोग में दोनों पक्षों की बहस पूरी हुई. सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग के समक्ष मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ओर से वरीय अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने पक्ष रखा. सुनवाई के दौरान वरीय अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा के द्वारा मुख्यमंत्री की ओर से पक्ष रखते हुए आयोग से डॉक्यूमेंट सबमिट करने के लिए समय देने की मांग की गई. चुनाव आयोग ने 18 अगस्त तक डॉक्यूमेंट जमा करने की अनुमति दी. हालांकि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के वकीलों ने अपनी दलील में दावा किया था कि यह मामला लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 9ए के अधीन आता ही नहीं है. यह भी दलील दी गई कि रांची के अनगड़ा में स्टोन माइनिंग के लिए आवंटित 88 डिसमिल जमीन पर किसी तरह का व्यावसायिक काम नहीं हुआ है. दूसरी तरफ भाजपा ने दलील दी कि खान मंत्री रहते हुए उन्होंने अपने नाम पर खनन पट्टा आवंटित किया था.

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8 अगस्त को चुनाव आयोग में हुई थी सुनवाईः 12 अगस्त से पहले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से जुड़े इस मामले की सुनवाई 8 अगस्त को हुई. इस दौरान चुनाव आयोग के समक्ष मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ओर से वरीय अधिवक्ता मेद्रीदत्ता ने चुनाव आयोग के समक्ष पक्ष रखा. करीब दो घंटे तक भारत निर्वाचन आयोग में चली सुनवाई के दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर लगे आरोप को निराधार बताया गया. सुनवाई के दौरान अधिवक्ता मेद्रीदत्ता ने आयोग को कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर लगे पीपुल्स रिप्रेजेटेशन एक्ट 1951 की धारा 9A का आरोप निराधार है. मुख्यमंत्री की ओर से जवाब 8 अगस्त को पूरा नहीं हो सका. उन्होंने सुनवाई की तारीख अगस्त के अंतिम सप्ताह में रखने का आग्रह किया. जिसे ठुकराते हुए चुनाव आयोग ने 12 अगस्त को अगली तारीख निर्धारित की.

14 जुलाई को हुई सुनवाईः मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से जुड़े ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में नई दिल्ली स्थित भारत निर्वाचन आयोग में 14 जुलाई को सुनवाई हुई. इस दौरान चुनाव आयोग के समक्ष बीजेपी की ओर से समय की मांग की गई. बीजेपी की ओर से बहस कर रहे वकील अधिवक्ता कुमार हर्ष ने कहा कि हमें कुछ एडिशनल सबमिशन इस मामले में करना है इसलिए हमने समय की मांग की. जिसके बाद सुनवाई के लिए अगली तारीख 5 अगस्त की दी गई.

28 जून को हुई सुनवाईः 14 जुलाई से पहले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से जुड़े इस मामले में 28 जून को सुनवाई हुई. जिस दौरान मुख्यमंत्री की ओर से समय की मांग की गई थी. जिस पर आयोग ने नाराजगी जताई. आयोग ने उनकी मांग को ठुकरा दिया था. जिसके बाद आंशिक सुनवाई हुई. समय अभाव के कारण आयोग ने अगली सुनवाई 14 जुलाई निर्धारित की. सीएम हेमंत सोरेन की ओर से आयोग के समक्ष मीनाक्षी अरोड़ा और मेन्द्री दत्ता ने पक्ष रखा. सुनवाई के दौरान बीजेपी की ओर से पूरे मामले को डिसक्वालिफिकेशन का केस बताया गया. काफी देर तक दोनों पक्षों की ओर से हुई सुनवाई के बाद आयोग ने इसे अगली तारीख में सुनवाई जारी रखने को कहा.

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14 जून को हुई सुनवाईः ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भारत निर्वाचन आयोग ने 28 जून को पक्ष रखने के लिए अंतिम मौका दिया गया था. इस संबंध में चुनाव आयोग के द्वारा जारी नोटिस को तामिल कराई गई. इस संबंध में प्रार्थी भारतीय जनता पार्टी को भी नोटिस रिसीव कराई गई थी. चुनाव आयोग के द्वारा जारी नोटिस के अनुसार इस मामले की अगली सुनवाई 28 जून को निर्धारित की गई. जिस दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को खुद या वकील के माध्यम से पक्ष रखने को कहा गया. सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग के समक्ष मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ओर से समय की मांग की गई थी. आयोग से समय की मांग के पीछे की वजह अधिवक्ता का कोरोना पॉजिटिव होना बताया गया था.


पेश होने का आदेशः 21 मई को निर्वाचन आयोग ने खनन पट्टा आवंटन मामले में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को 31 मई को व्यक्तिगत रूप से या अपने वकील के माध्यम से पेश होने के लिए कहा. निर्वाचन आयोग ने सोरेन को अपना पक्ष रखने के लिए नोटिस दिया था. हेमंत सोरेन के लिखित जवाब का अध्ययन करने के बाद निर्वाचन आयोग ने उन्हें व्यक्तिगत रूप से या अपने वकील के जरिए 31 मई को पेश होने को कहा. आयोग ने प्रथम दृष्टया पाया कि हेमंत सोरेन ने धारा 9ए के प्रावधानों का उल्लंघन किया है.

20 मई को मुख्यमंत्री ने दिया जवाबः मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की तरफ से ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में 20 मई को चुनाव आयोग की नोटिस का जवाब दिया गया. विशेष मैसेंजर के जरिए जवाब की कॉपी भेजी गयी. जिसे दिल्ली स्थित आयोग के दफ्तर में सबमिट किया गया. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के द्वारा चुनाव आयोग को दिए जवाब में कहा गया कि उनके पास कोई माइनिंग लीज नहीं है. बता दें कि ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में मुख्यमंत्री को 10 मई तक जवाब देना था लेकिन उन्होंने अपनी माताजी की बीमारी का हवाला देते हुए अतिरिक्त समय की मांग की थी. उसी आधार पर चुनाव आयोग ने 20 मई तक का समय दिया था.

राज्यपाल को सौंपा गया था ज्ञापन: बीजेपी नेताओं की शिकायत के बाद चुनाव आयोग ने मुख्यमंत्री को नोटिस का जवाब देने को कहा था. सीएम हेमंत पहले नोटिस का जवाब दे चुके हैं. झारखंड प्रदेश भाजपा की तरफ से लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 9A के तहत मुख्यमंत्री को विधायकी से अयोग्य ठहराने के लिये राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा गया था.

पूर्व सीएम रघुवर दास ने उठाया था मामला: इस मामले को 10 फरवरी को पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने उठाया था. उन्होंने 11 फरवरी को राज्यपाल से मिलकर हेमंत सोरेन को विधायक पद से अयोग्य ठहराने की मांग की थी. इस पर राज्यपाल रमेश बैस ने धारा 191 और 192 के तहत अपनी संवैधानिक शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए शिकायती पत्र को चुनाव आयोग के पास भेजा था. इसके बाद चुनाव आयोग ने झारखंड के मुख्य सचिव से खदान लीज आवंटन रिपोर्ट मांगी थी. उसी आधार पर सबसे पहले चुनाव आयोग ने मुख्य सचिव से वेरिफाइड डॉक्टूमेंट्स की मांग की थी. इसके बाद आयोग में दोनों पक्षों की ओर से दलीलें पेश की गई थी.

मुख्य सचिव ने आयोग की ओर से निर्धारित अवधि से तीन दिन पहले ही रिपोर्ट भेज दी थी. इसके बाद भारत निर्वाचन आयोग ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को नोटिस भेजकर पूछा था कि कारण स्पष्ट करिये कि खुद को पत्थर खदान का पट्टा आवंटित करने के मामले में आपके खिलाफ कार्रवाई क्यों न की जाए. भारत निर्वाचन आयोग के नोटिस में यह भी कहा था कि प्रथम दृष्टया आपकी ओर से किया गया कार्य आरपी एक्ट की धारा 9A का उल्लंघन करता प्रतीत होता है.

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर यह है आरोप: भारतीय जनता पार्टी ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर रांची के अनगड़ा में पत्थर खदान लीज अपने नाम पर लेने का आरोप लगाते हुए राज्यपाल से लिखित शिकायत की है. राज्यपाल रमेश बैस को ज्ञापन सौंपते हुए भाजपा शिष्टमंडल ने हेमंत सोरेन पर मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए अपने नाम से रांची के अनगड़ा मौजा थाना नंबर 26, खाता नंबर 187 प्लॉट नंबर 482 में पत्थर खनन पट्टा लेने का आरोप लगाया. जिसके बाद राजभवन ने भारत निर्वाचन आयोग से मंतव्य मांगा था. तत्पश्चात भारत निर्वाचन आयोग ने मुख्य सचिव को चिठ्ठी भेजकर रिपोर्ट मंगवाई. मुख्य सचिव की रिपोर्ट मिलने के बाद भारत निर्वाचन आयोग ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को नोटिस भेजकर खनन पट्टा मामले में सुनवाई शुरू की.

रांचीः सीएम हेमंत सोरेन से जुड़े ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में (CM Hemant Soren office of profit case) निर्वाचन आयोग ने अपनी सिफारिश झारखंड के राज्यपाल को भेज दी है. जिसमें उन पर लगे आरोप को सही बताए जाने की बात सामने आ रही है. राज्यपाल अब इस मामले में राज्यपाल रमेश बैस ने विधि विशेषज्ञों से राय ली है. आइए एक नजर डालते हैं इस मामले में कब क्या हुआ. (Know when what happened in CM Hemant Soren office of profit case).

12 अगस्त को सुनवाई हुई पूरीः 18 अगस्त को सीएम हेमंत सोरेन की तरफ से मामले में ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में 12 अगस्त को निर्वाचन आयोग में दोनों पक्षों की बहस पूरी हुई. सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग के समक्ष मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ओर से वरीय अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने पक्ष रखा. सुनवाई के दौरान वरीय अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा के द्वारा मुख्यमंत्री की ओर से पक्ष रखते हुए आयोग से डॉक्यूमेंट सबमिट करने के लिए समय देने की मांग की गई. चुनाव आयोग ने 18 अगस्त तक डॉक्यूमेंट जमा करने की अनुमति दी. हालांकि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के वकीलों ने अपनी दलील में दावा किया था कि यह मामला लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 9ए के अधीन आता ही नहीं है. यह भी दलील दी गई कि रांची के अनगड़ा में स्टोन माइनिंग के लिए आवंटित 88 डिसमिल जमीन पर किसी तरह का व्यावसायिक काम नहीं हुआ है. दूसरी तरफ भाजपा ने दलील दी कि खान मंत्री रहते हुए उन्होंने अपने नाम पर खनन पट्टा आवंटित किया था.

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8 अगस्त को चुनाव आयोग में हुई थी सुनवाईः 12 अगस्त से पहले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से जुड़े इस मामले की सुनवाई 8 अगस्त को हुई. इस दौरान चुनाव आयोग के समक्ष मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ओर से वरीय अधिवक्ता मेद्रीदत्ता ने चुनाव आयोग के समक्ष पक्ष रखा. करीब दो घंटे तक भारत निर्वाचन आयोग में चली सुनवाई के दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर लगे आरोप को निराधार बताया गया. सुनवाई के दौरान अधिवक्ता मेद्रीदत्ता ने आयोग को कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर लगे पीपुल्स रिप्रेजेटेशन एक्ट 1951 की धारा 9A का आरोप निराधार है. मुख्यमंत्री की ओर से जवाब 8 अगस्त को पूरा नहीं हो सका. उन्होंने सुनवाई की तारीख अगस्त के अंतिम सप्ताह में रखने का आग्रह किया. जिसे ठुकराते हुए चुनाव आयोग ने 12 अगस्त को अगली तारीख निर्धारित की.

14 जुलाई को हुई सुनवाईः मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से जुड़े ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में नई दिल्ली स्थित भारत निर्वाचन आयोग में 14 जुलाई को सुनवाई हुई. इस दौरान चुनाव आयोग के समक्ष बीजेपी की ओर से समय की मांग की गई. बीजेपी की ओर से बहस कर रहे वकील अधिवक्ता कुमार हर्ष ने कहा कि हमें कुछ एडिशनल सबमिशन इस मामले में करना है इसलिए हमने समय की मांग की. जिसके बाद सुनवाई के लिए अगली तारीख 5 अगस्त की दी गई.

28 जून को हुई सुनवाईः 14 जुलाई से पहले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से जुड़े इस मामले में 28 जून को सुनवाई हुई. जिस दौरान मुख्यमंत्री की ओर से समय की मांग की गई थी. जिस पर आयोग ने नाराजगी जताई. आयोग ने उनकी मांग को ठुकरा दिया था. जिसके बाद आंशिक सुनवाई हुई. समय अभाव के कारण आयोग ने अगली सुनवाई 14 जुलाई निर्धारित की. सीएम हेमंत सोरेन की ओर से आयोग के समक्ष मीनाक्षी अरोड़ा और मेन्द्री दत्ता ने पक्ष रखा. सुनवाई के दौरान बीजेपी की ओर से पूरे मामले को डिसक्वालिफिकेशन का केस बताया गया. काफी देर तक दोनों पक्षों की ओर से हुई सुनवाई के बाद आयोग ने इसे अगली तारीख में सुनवाई जारी रखने को कहा.

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14 जून को हुई सुनवाईः ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भारत निर्वाचन आयोग ने 28 जून को पक्ष रखने के लिए अंतिम मौका दिया गया था. इस संबंध में चुनाव आयोग के द्वारा जारी नोटिस को तामिल कराई गई. इस संबंध में प्रार्थी भारतीय जनता पार्टी को भी नोटिस रिसीव कराई गई थी. चुनाव आयोग के द्वारा जारी नोटिस के अनुसार इस मामले की अगली सुनवाई 28 जून को निर्धारित की गई. जिस दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को खुद या वकील के माध्यम से पक्ष रखने को कहा गया. सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग के समक्ष मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ओर से समय की मांग की गई थी. आयोग से समय की मांग के पीछे की वजह अधिवक्ता का कोरोना पॉजिटिव होना बताया गया था.


पेश होने का आदेशः 21 मई को निर्वाचन आयोग ने खनन पट्टा आवंटन मामले में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को 31 मई को व्यक्तिगत रूप से या अपने वकील के माध्यम से पेश होने के लिए कहा. निर्वाचन आयोग ने सोरेन को अपना पक्ष रखने के लिए नोटिस दिया था. हेमंत सोरेन के लिखित जवाब का अध्ययन करने के बाद निर्वाचन आयोग ने उन्हें व्यक्तिगत रूप से या अपने वकील के जरिए 31 मई को पेश होने को कहा. आयोग ने प्रथम दृष्टया पाया कि हेमंत सोरेन ने धारा 9ए के प्रावधानों का उल्लंघन किया है.

20 मई को मुख्यमंत्री ने दिया जवाबः मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की तरफ से ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में 20 मई को चुनाव आयोग की नोटिस का जवाब दिया गया. विशेष मैसेंजर के जरिए जवाब की कॉपी भेजी गयी. जिसे दिल्ली स्थित आयोग के दफ्तर में सबमिट किया गया. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के द्वारा चुनाव आयोग को दिए जवाब में कहा गया कि उनके पास कोई माइनिंग लीज नहीं है. बता दें कि ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में मुख्यमंत्री को 10 मई तक जवाब देना था लेकिन उन्होंने अपनी माताजी की बीमारी का हवाला देते हुए अतिरिक्त समय की मांग की थी. उसी आधार पर चुनाव आयोग ने 20 मई तक का समय दिया था.

राज्यपाल को सौंपा गया था ज्ञापन: बीजेपी नेताओं की शिकायत के बाद चुनाव आयोग ने मुख्यमंत्री को नोटिस का जवाब देने को कहा था. सीएम हेमंत पहले नोटिस का जवाब दे चुके हैं. झारखंड प्रदेश भाजपा की तरफ से लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 9A के तहत मुख्यमंत्री को विधायकी से अयोग्य ठहराने के लिये राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा गया था.

पूर्व सीएम रघुवर दास ने उठाया था मामला: इस मामले को 10 फरवरी को पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने उठाया था. उन्होंने 11 फरवरी को राज्यपाल से मिलकर हेमंत सोरेन को विधायक पद से अयोग्य ठहराने की मांग की थी. इस पर राज्यपाल रमेश बैस ने धारा 191 और 192 के तहत अपनी संवैधानिक शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए शिकायती पत्र को चुनाव आयोग के पास भेजा था. इसके बाद चुनाव आयोग ने झारखंड के मुख्य सचिव से खदान लीज आवंटन रिपोर्ट मांगी थी. उसी आधार पर सबसे पहले चुनाव आयोग ने मुख्य सचिव से वेरिफाइड डॉक्टूमेंट्स की मांग की थी. इसके बाद आयोग में दोनों पक्षों की ओर से दलीलें पेश की गई थी.

मुख्य सचिव ने आयोग की ओर से निर्धारित अवधि से तीन दिन पहले ही रिपोर्ट भेज दी थी. इसके बाद भारत निर्वाचन आयोग ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को नोटिस भेजकर पूछा था कि कारण स्पष्ट करिये कि खुद को पत्थर खदान का पट्टा आवंटित करने के मामले में आपके खिलाफ कार्रवाई क्यों न की जाए. भारत निर्वाचन आयोग के नोटिस में यह भी कहा था कि प्रथम दृष्टया आपकी ओर से किया गया कार्य आरपी एक्ट की धारा 9A का उल्लंघन करता प्रतीत होता है.

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर यह है आरोप: भारतीय जनता पार्टी ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर रांची के अनगड़ा में पत्थर खदान लीज अपने नाम पर लेने का आरोप लगाते हुए राज्यपाल से लिखित शिकायत की है. राज्यपाल रमेश बैस को ज्ञापन सौंपते हुए भाजपा शिष्टमंडल ने हेमंत सोरेन पर मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए अपने नाम से रांची के अनगड़ा मौजा थाना नंबर 26, खाता नंबर 187 प्लॉट नंबर 482 में पत्थर खनन पट्टा लेने का आरोप लगाया. जिसके बाद राजभवन ने भारत निर्वाचन आयोग से मंतव्य मांगा था. तत्पश्चात भारत निर्वाचन आयोग ने मुख्य सचिव को चिठ्ठी भेजकर रिपोर्ट मंगवाई. मुख्य सचिव की रिपोर्ट मिलने के बाद भारत निर्वाचन आयोग ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को नोटिस भेजकर खनन पट्टा मामले में सुनवाई शुरू की.

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