रांची: शहर के हिंदपीढ़ी के लोग पुलिस वालों को लगातार निशाना बना रहे हैं. जो पुलिस दिन रात अपने परिवार से दूर रहकर हिंदपीढ़ी के लोगों की सुरक्षा और सेवा कर रही है, पत्थरबाजों ने अपने उस मसीहा को भी नहीं बक्शा. वह मसीहा जो पिछले 50 दिनों से अपने परिवार को छोड़ कर उनकी सेवा कर रहे थे. हम बात कर रहे हैं रांची के कोतवाली डीएसपी अजीत विमल की.
अजीत विमल 28 मार्च 2020 से लेकर घायल होने से पहले तक यानी 17 मई 2020 तक दिन-रात हिंदपीढ़ी के लोगों की सेवा में लगे रहे, लेकिन उसी हिंदपीढ़ी में रहने वाले कुछ असामाजिक लोगों ने डीएसपी अजीत पर ही पत्थरबाजी कर उन्हें घायल कर दिया. डीएसपी अजीत को रांची के कचहरी चौक के पास स्थित सरकारी आवास मिला हुआ है. तीन कमरों के इस सरकारी फ्लैट में अजीत अपने पत्नी और दो बच्चों के साथ रहते हैं.
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फ्लैट के बरामदे से होता हुआ पहला कमरा इन दिनों अजीत का ठिकाना बना हुआ है. कमरे में मौजूद दवाइयां और अलग किया हुआ बर्तन इसारा करता है कि इस कमरे में कोई ऐसा शख्स रहता है जिसे कोई ऐसी बीमारी होगी जो छूने से फैलती होगी. हम सब यह जानते हैं कि झारखंड का पहला कोरोना पॉजिटिव हिंदपीढ़ी से ही मिला था और उसी दिन से डीएसपी कोतवाली अजित हिंदपिढ़ी में तैनात हैं.
आंखें बयां करती हैं उनकी बेबसी
पिछले 50 दिनों से अजीत अपने बच्चों को गले नहीं लगा पाए हैं, वो भी एक ही घर में रहने के बावजूद. एक ही घर के दो हिस्से कर दिए गए हैं, एक अदृश्य बाउंड्री भी उस घर में दे दिया गया है जिसके एक ओर अजित हैं, तो दूसरी ओर उनकी पत्नी और दोनों बच्चे. जबसे हिंदपीरी में ड्यूटी लगी है तब से इसी सीमा रेखा के अंतर पर अजीत अपने परिवार वालों से मिलते हैं.
एक ही घर में रहते हुए भी अजीत अपने परिवार से नहीं मिल सकते, क्योंकि वे जिस इलाके में काम कर रहे हैं वह पूरे झारखंड का कोरोना हब है. अजीत की पत्नी और उनके छोटे बच्चे दूर से ही देखकर अपने आप को तसल्ली देते हैं. अजीत बताते हैं कि अब आदत सी हो गई है. पहले बेटा अक्सर जिद किया करता था पास आने का लेकिन धीरे-धीरे वह भी बातों को समझने लगा है और अब उसकी जिद समझदारी में बदल गई है.
अजीत के अनुसार वे अपने कमरे के बेड पर बैठते हैं और उनकी पत्नी और बच्चे दूसरे कमरे में लगे टूल पर, वहीं से बैठे-बैठे पिछले 50 दिनों से जो भी थोड़ा बहुत समय मिलता है उसमें वह बातचीत करते हैं और अपना सुख और दुख बांटते हैं.
क्या हुआ था 16 और 17 मई को
16 मई 2020 की रात और 17 मई कि सुबह हिंदपीढ़ी का पूरा इलाका रणक्षेत्र बना हुआ था. 16 मई की रात हिंदपीढ़ी में घरों की लाइटे बंद कर सीआरपीएफ और पुलिस के जवानों पर पत्थरबाजी की जा रही थी. अजीत सीआरपीएफ की टीम के साथ वहीं थे किसी तरह बाहर से मदद आई तो मामला सुलझा, लेकिन इस बीच कई लोग घायल हुए इसमें अजीत को भी चोटें आईं.
लेकिन ठीक दूसरे दिन यानी 17 मई की सुबह जो हुआ वह अपने आप में दिल दहला देने वाला था. अगर उस दिन अजीत अपनी जान पर खेलकर सीआरपीएफ और भीड़ के बीच नहीं आए होते तो शायद आज हिंदपीढ़ी की कहानी कुछ और ही होती. रविवार की सुबह डीएसपी अजीत विमल को यह सूचना मिली कि एक बार फिर से सीआरपीएफ और स्थानीय लोगों के बीच झड़प शुरू हो गई है. अजीत सिविल वर्दी में ही भागे-भागे हिंदपीढ़ी पहुंचे और सामने जो देखा वह दृश्य बेहद खतरनाक था.
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एक तरफ हाथों में पत्थर और डंडे लिए भीड़ खड़ी थी तो दूसरी तरफ बंदूक को कॉक कर गोली चलाने के लिए तैयार सीआरपीएफ के जवान. इसी बीच अपनी जान की परवाह किए बिना अजीत भीड़ की तरफ खड़े हो गए और सीआरपीएफ के जवानों से मिन्नत करने लगे कि वह गोलियां ना चलाएं. डीएसपी अजीत की बातचीत के बाद सीआरपीएफ के जवान अलग हो गए लेकिन ठीक उसी समय दूसरी तरफ से आई भीड़ ने अजीत और उनकी टीम पर ही हमला बोल दिया.
जिन लोगों को अपनी जान पर खेलकर अजीत बचाने गए थे उन्हीं के मोहल्ले के लोगों ने अब अजीत पर ही हमला कर दिया था. अजीत यह सोचते ही रह गए कि उनकी गलती क्या है, तब तक वह घायल हो चुके थे. इस बीच उसी भीड़ में कई ऐसे लोग भी थे जो अजीत को बचाने के लिए अपनी जान पर खेल गए और उन्हें बचाकर बाहर निकाला. फिलहाल अजीत बेड रेस्ट में हैं. उन्हें अंदरूनी चोटें आई हैं. बाएं हाथ की कोहनी सूज गई है. हालांकि हड्डी नहीं टूटी है. शरीर में काफी दर्द है.
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अजीत कहते हैं कि ठीक होने के बाद फिर से ड्यूटी पर लगूंगा. अजीत से जब हमने यह सवाल किया कि आप क्या वहां ड्यूटी करना पसंद करेंगे, जिनके लिए आपने अपनी जान की बाजी लगाई, अपने बहुमूल्य 50 दिन दिए, उसके बावजूद उन्होंने आपकी ही जान लेने की कोशिश की. हिंदपीढ़ी के असामाजिक लोगो की करतूत से अजित थोड़े परेशान दिखे, लेकिन उन्होंने कहा कि ड्यूटी है तो करनी है. अखबारों और टीवी चैनलों में उनके घायल होने की सूचना मिलने पर उनके मां-बाप काफी परेशान हैं. ये सब बोलते हुए अजीत की आंखें नम हो जाती हैं, अजित कहते हैं बुजुर्ग माता-पिता बेहद परेशान हैं. वह पास में नहीं हैं इसलिए उनकी कमी खलती है.
कौन हैं अजित विमल
2013 बैच के डीएसपी अजित झारखंड के दुमका के रहने वाले हैं, पुलिस फोर्स जॉइन करने से पहले अजीत दुमका में ही सरकारी शिक्षक थे. माता-पिता की इच्छा थी कि बेटा किसी बड़े पद पर जाए तो उन्होंने जेपीएससी की तैयारी की और पहले ही प्रयास में एग्जाम क्लियर कर डीएसपी बन गए. रांची में लगभग डेढ़ साल पहले उनको कोतवाली डीएसपी के रूप में तैनात किया गया. अभी भी डीएसपी अजीत पुलिस वाले कम शिक्षक ज्यादा नजर आते हैं. बड़े-बड़े मामलों को बैठकर सुलझा लेना उनकी काबिलियत है.
हिंदपीढ़ी घर जैसा था, फिर भी हो गया हमला
रांची का हिंदपीढ़ी थाना भी कोतवाली डीएसपी के अंतर्गत ही आता है. इस इलाके में कई बार सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिशें की गई, लेकिन वह अजीत ही थे जिन्होंने हर बार मामले को संभाला. इसी बीच हिंदपीढ़ी फिर से बड़े चर्चा में आ गया जब वहां से लगातार कोरोना के मरीज निकलने लगे और उसे सील कर दिया गया. इस बीच अजीत अपने परिवार की चिंता छोड़ लगातार हिंदपीढ़ी के लोगों की सेवा करते रहें.
उनके बीच दवाइयां और खाना पहुंचाया, बीमारों को अस्पताल पहुंचाया, लेकिन शायद हिंदपीढ़ी के कुछ लोग एहसान फरामोश हैं, तभी तो उन्होंने अपने उस रक्षक पर ही पत्थर बरसाया, जो अपना घर-बार छोड़ उनकी सेवा में रमा हुआ था. डीएसपी अजीत कैमरे के सामने हिंदपीढ़ी के लोगों को कुछ नहीं कहते, लेकिन उन्होंने इतना जरूर कहा कि जितनी चोट दिल में लगी है शरीर के जख्म उसके सामने कुछ भी नहीं.